लेखा शाखा अधिनियम : 4. भण्डार-क्रय, रखरखाव एवं निस्तारण


4. भण्डार-क्रय, रखरखाव एवं निस्तारण
1.    प्राक्कथन
                भण्डार क्रय सम्बन्धी नियमों का उल्लेख वित्तीय नियम संग्रह, खण्ड V भाग I के अध्याय XII के नियम 255 से 260 क तक में एवं परिशिष्ट XVIII में किया गया है। उक्त के अतिरिक्त शासन द्वारा समय-समय पर आवश्यकता अनुसार भण्डार क्रय नियमों से सम्बन्धित शासनादेश जारी किये जाते हैं। भण्डार क्रय करते समय ऐसे सभी नियमों तथा शासनादेशों का पालन किया जाना चाहिए।
2.    भण्डार क्रय करते समय ध्यान रखने योग्य बिन्दु       
                क्रय के करते समय वित्तीय औचित्य के सिद्धान्तों का पालन किया जाना चाहिये। अनावश्यक व्यय, आवश्यकता से अधिक व्यय तथा ऐसा व्यय जो विभाग के निर्दिष्ट उद्देश्यों/लक्ष्यों की पूर्ति में सहायक न हो, नहीं किया जाना चाहिये। प्रत्येक सरकारी कर्मचारी का कर्तव्य है कि वह उसके नियंत्रण में रखे गये लोक धन में से व्यय करते समय उसी सतर्कता और सावधानी का परिचय दे जैसा कि एक सामान्य विवेकपूर्ण व्यक्ति अपने निजी धन के व्यय के सम्बन्ध में बरतता है। व्यय की धनराशि का शासकीय हित में पूर्ण प्रतिदान मिलना चाहिये। व्यय शासकीय नीतियों/निर्देशों के प्रतिकूल न हो।
                क्रय हेतु निम्नलिखित बिन्दुओं का अनुपालन अवश्य सुनिश्चित करना चाहिये :-
    (i) क्रय की स्वीकृति सक्षम प्राधिकारी से प्राप्त कर ली गयी हो।
    (ii) बजट के माध्यम से पर्याप्त धनराशि की व्यवस्था कर ली गयी हो।
    (iii) नियमानुसार क्रय प्रक्रिया का अनुपालन किया गया हो।
3.    सामग्री क्रय हेतु अपनायी जाने वाली विधियाँ
        (क) बिना कोटेशन के क्रय-
            रू0  2500/- तक की वस्तुओं का क्रय बिना कोटेशन प्राप्त किये किया जा सकता है।
        (ख) कोटेशन प्राप्त करके क्रय-
            रू0 2500  से अधिक किन्तु रू0 15000/- तक की वस्तुओं का क्रय प्रतिष्ठित आपूर्तिकर्ताओं से कोटेशन    प्राप्त करके किया जा सकता है।
        (ग) निविदा या टेण्डर की प्रक्रिया से क्रय -
              रू0 15000/- से अधिक के मूल्य की सामग्री के क्रय के लिए टेण्डर की प्रक्रिया अपनायी जायेगी।
        (घ) कोटेशन प्राप्त करने अथवा टेण्डर की प्रक्रिया अपनाने की आवश्यकता नहीं होगी यदि :
  • उद्योग निदेशालय द्वारा सामग्री के सम्बन्ध में दर अनुबन्ध या मात्रा अनुबन्ध किया गया हो।
  • वाहनों के क्रय के सम्बन्ध में डायरेक्टर जनरल ऑफ सप्लाई एण्ड डिस्पोजल्स (डी0जी0एस0 एण्ड डी0) का दर अनुबन्ध लागू हो।
  • पंचायत उद्योग निदेशक से मान्यता प्राप्त पंचायत उद्योगों से उनके द्वारा निर्मित वस्तुओं का क्रय किया जाय।
  • खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के माध्यम से फाइल बोर्ड, फाइल कवर तथा कैडक का क्रय किया जाय।
4.    टेण्डर तथा कोटेशन में मुख्य अंतर
  1. प्रस्तावित क्रय की धनराशियों की सीमा में अंतर होता है।
  2. टेण्डर फार्म का मूल्य निर्धारित होता है परन्तु कोटेशन नि:शुल्क होता है।
  3. टेण्डर के लिए विज्ञापन समाचार पत्रों में तथा वेब साइट पर प्रकाशित किया जाएगा पर कोटेशन के मामले में ऐसा किया जाना आवश्यक नहीं है।
  4. टेण्डर निविदादाताओं की अपस्थिति में खोला जाता है, परन्तु कोटेशन खोलने हेतु कोटेशन दाताओं की उपस्थिति आवश्यक नहीं है।
  5. टेण्डर हेतु अर्नेस्ट मनी आवश्यक है कोटेशन हेतु नहीं।
5.    भण्डार क्रय में उद्योग निदेशक की भूमिका
                भण्डार क्रय हेतु निदेशक उद्योग निम्नांकित व्यवस्थाएँ करते हैं :-
(क) दर अनुबंध (रेक्ट कांट्रैक्ट)
                निदेशक उद्योग उपयुक्त समय में राज्य के मुख्य सामग्री प्रयोगकर्ताओं व विभागाध्यक्षों से आगामी वर्ष में प्रयोग होने वाली संभावित सामग्री की सूची तैयार कर उन्हें वर्गीकृत करने के बाद सामग्री क्रय नियमों के अनुसार निविदा प्राप्त करती है तथा दर अनुबन्ध संबंधी निर्णय लेते हैं। यह प्रक्रिया लगातार  चलती रहती है। एक ही प्रकार की सामग्री के लिए एक से अधिक आपूर्तिकर्ताओं से अलग-अलग दर अनुबन्ध किया जा सकता है।
(ख) मात्रा अनुबंध (क्वांटिटी कांट्रैक्ट)
                दर अनुबन्ध की भाँति ही प्रक्रिया अपनायी जाती है। किन्तु इसमें सामग्री की मात्रा के अनुमान के अनुसार दरें मांगी जाती हैं। यह अधिक सामग्री प्रयोग करने वाले विभागों के लिए होता है। कुछ विभागों जैसे चिकित्सा विभाग को मात्रा अनुबंध करने का प्राधिकार शासन से प्राप्त है। मात्रा अनुबंध के अंतर्गत उद्योग निदेशालय के माध्यम से क्रय करने की व्यवस्था को शासनादेश संख्या-2177-एल/18-7-915/(एस.पी.)/92 दिनांक 17-10-1994 (शासनादेश संख्या-344/18-5-2003-76(एस.पी.)/86 दिनांक 10-03-2003 द्वारा यथा संशोधित विकेन्द्रीकृत करके संबंधित विभागों/विभागाध्यक्षों/कार्यालयाध्यक्षों को सीधे क्रय का अधिकार  दिया गया है जिसकी वर्तमान व्यवस्था आगे वर्णित है।
(ग) सीधे क्रय का अधिकार (डी0पी0ए0-डायरेक्ट परचेज अथारिटी)
              शासनादेश संख्या 344/18-5-2003-76(एस.पी.)/86 दिनांक 10-03-2003 के अनुसार जिन वस्तुओं का मात्रा अनुबन्ध उद्योग निदेशालय द्वारा नहीं किया गया है, उन वस्तुओं का सीधा क्रय कार्यालयाध्यक्ष एक बार में रू0 1,00,000/- (रू0 एक लाख) मूल्य सीमा तक तथा विभागाध्यक्ष रू0 10,00,000 /- (रू0 दस लाख) की मूल्य सीमा तक कर सकते हैं। वित्तीय नियम संग्रह, खण्ड V भाग I के परिशिष्ट XVIII  के क्रय नियम 8 तथा 8 अ (यथासंशोधित) अवलोकनीय है।
             जो विभाग विकेन्द्रीकृत व्यवस्था के अंतर्गत अपने स्तर से सीधे क्रय करने में व्यावहारिक कठिनाइयों का अनुभव करें तो उनका उल्लेख करते हुए अपना प्रस्ताव उद्योग निदेशक को भेजेंगे। इन विभागों के समक्ष यह विकल्प नहीं होगा कि कभी क्रय स्वयं करें और कभी उद्योग निदेशक के माध्यम से।
              कुछ विशेष प्रकार की सामग्री (जैसे Perishable और Fragile प्रकृति की वस्तुओं या मशीनों के स्पेयर पार्ट्स जानवर और उनके लिये चारा, ईंट, बालू, सामान्य टिम्बर, कंकड़, गिट्टी, चूना इत्यादि) विभागों द्वारा सीधे क्रय की जा सकती है।
7.    लेखन सामग्री का क्रय
              शासनादेश सं0-3639/पी0एस0/18-8-90-21(2) पी0एस0-90, दिनांक 15-2-90 द्वारा लेखन सामग्री के क्रय का अधिकार  निदेशक मुद्रण एवं लेखन सामग्री, इलाहाबाद से हटाकर विभागों में प्रतिनिधानित कर दिया गया है। प्रमुख बिन्दु निम्नांकित हैं :-
    (क) विभागाध्यक्ष एक बार में रू0 50,000 तथा कार्यालयाध्यक्ष एक बार में रू0 20,000 तक की लेखन सामग्री क्रय कर सकते हैं।
     (ख) शासनादेश दिनांक 15-2-90 में दी गयी सूची (कुल 66 आइटम) से भिन्न लेखन सामग्री (जैसे टीपें और आज्ञायें, शासकीय तथा अर्द्धशासकीय पत्रों के छपे हुए कोरे कागज, पीतल की मुहरें, छपे लिफाफे) की आपूर्ति निदेशक मुद्रण एवं लेखन सामग्री, उ0प्र0 इलाहाबाद द्वारा पूर्ववत् किया जायेगा। आपूर्ति हेतु स्टेशनरी मैनुअल के अंतर्गत विभिन्न कार्यालय राजकीय मुद्रणालयों से अलग-अलग सम्बद्ध किए गए हैं जहाँ से यह आपूर्ति की जाएगी।
      (ग) फाइल बोर्ड, फाइल कवर तथा कैडक की आपूर्ति खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के माध्यम से की जायेगी।
8.    मुद्रण हेतु कागज का क्रय
                शासनादेश सं0-251/18-5-2003-76 (एस0पी0) 86, दिनांक 10-3-2003 द्वारा यह व्यवस्था की गयी है कि विभिन्न शासकीय विभागों के शासकीय कार्यों एवं अभिलेखों आदि के मुद्रण में प्रयुक्त होने वाले कागज के लिए उद्योग निदेशक नियमित दर अनुबंध समय से करें। यदि दर अनुबंध उपलब्ध नहीं है तो विभाग कागज का क्रय स्वयं कर सकते हैं। निम्नांकित शर्तों का पालन अपेक्षित होगा :
    (क) शासनादेश संख्या-217/एल/18-7-91-15(एस0पी)/92, दिनांक 17-10-94 के अनुसार वे इसके लिए मात्रा अनुबंध निष्पादित करेंगे। विकल्पत: वे प्रिंटिंग एवं स्टेशनरी विभाग के माध्यम से भी क्रय करा सकेंगे।
     (ख) मात्रा अनुबंध करने की अवस्था में डी0जीएस0 एंड डी0 के दर अनुबंध में पंजीकृत इकाइयों से क्रय की छूट होगी, पर विभाग एक समय में उपर्युक्त (क) तथा (ख) में से एक ही प्रक्रिया अपनायेंगे।
      (ग) डी0जी0एस0 एंड डी0 के दर अनुबंध के माध्यम से क्रय की स्थिति में गुणवत्ता तथा मानदण्ड समान होने पर प्रदेशीय इकाई को वरीयता दी जाएगी।
9.    विविध सामग्री
                शासनादेश संख्या-1098/18-5-2000-71क/99, दिनांक 1-7-2000 द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि सभी सरकारी विभाग तथा शासकीय नियंत्रणाधीन उपक्रमों/प्राधिकरणों/परिषदों एवं स्वायत्तशासी संस्थाओं द्वारा निम्नांकित आइटमों को उद्योग निदेशालय के दर या मात्रा अनुबंध के अभाव में तथा उन आइटमों को जहाँ-जहाँ राष्ट्रीय लघु उद्योग  निगम (एन0एस0आई0सी0) के पक्ष में वरीयता दी गयी है, उसी के समतुल्य आइटमों के लिए उ0प्र0 लघु उद्योग निगम, लि0 कानुपर के माध्यम से भी क्रय किया जा सकता है -
  1.    कृषि 10. बैलेट बाक्स
  2.    टाट पट्टी 11. हैंड पम्प
  3.      जूट बैग्स 12. फ्री-बोरिंग
  4. स्टील बॉक्स 13. फैब्रीकेशन आइटम
  5. शिक्षा किट्स 14. आर0सी0सी0 स्पन पाइप
  6. विज्ञान किट्स 15.
इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत संगमरगर
        की नाम पट्टिकायें
  7. फेमिली प्लानिंग किट्स    
  8. सर्जिकल इंस्टूमेंट्स 16. हार्टिकल्चर विभाग के लिए आइटम
  9. वैटिनरी आइटम्स 17. हास्पिटल इक्यूपमेंट
10.    पंचायत उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुओं का क्रय
                पंचायती राज अनुभाग-3 के शासनादेश संख्या-5038ग/33-371-74, दिनांक 19 जुलाई, 1976 द्वारा शासन ने निर्णय लिया है कि राज्य सरकार के समस्त विभाग तथा समस्त पंचायती राज संस्थाएं अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ अनिवार्य रूप से प्रथमत: पंचायत उद्योगों से ही क्रय करें। इस सम्बन्ध में यह भी निश्चय किया गया कि पंचायत उद्योगों द्वारा निर्मित माल की खरीदारी के लिए टेण्डर या कोटेशन आमंत्रित करना आवश्यक नहीं होगा और इस सीमा तक स्टोर परचेज नियमों को शिथिल समझा जाएगा।
                शासनादेश संख्या-2282ग/33-3-14/1983 पंचायती राज अनुभाग-3, दिनांक 30 मई, 1984 द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया कि पंचायती राज संस्थाओं द्वारा निर्मित/उत्पादित उन्ही वस्तुओं का क्रय उनसे किया जायेगा तथा जिस उत्पाद के लिए निदेशक पंचायती राज द्वारा अधिकृत किया गया हो। इस शासनादेश में यह भी अपेक्षा की गयी है कि पंचायत उद्योग अपने ही बनाये माल की आपूर्ति करे तथा किसी भी दशा में विचौलियों का काम न करे।
11.    कम्प्यूटर-क्रय
                    शा0सं0-08/78/आई0टी0-2-2001, दिनांक 12-9-2001 द्वारा कम्प्यूटर क्रय के सम्बन्ध में नियम/शर्तें निर्धारित की गयी हैं -
        (क) निम्नांकित तीन विकल्पों के माध्यम से संबंधित विभाग, सार्वजनिक उपक्रम, निगम, निकाय, परिषद, स्वायत्तशासी संस्थाएं कम्प्यूटर क्रय करेंगी -
                        (i) अपने स्तर से
                        (ii) यू0पी0 डेस्को, यू0पी0 इलेक्ट्रानिक्स कारपोरेशन, या निक्सी से या
                        (iii) संबंधित जिलाधिकारी के माध्यम से।
        (ख) प्रशासकीय विभाग द्वारा स्वयं द्वारा क्रय की दशा में (i) सचिव/प्रमुख सचिव की अध्यक्षता में (ii) आई0टी0 एवं इलेक्ट्रानिक्स विभाग (iii) वित्त विभाग (iv) सचिव, औद्योगिक विकास (प्रभारी स्टोर परचेज) (v) स्टेट इन्फारमेटिक्स ऑफीसर या एन0आई0सी0 के प्रतिनिधि तथा (vi) यू0पी0 डेस्को या यू0पी0 इलेक्ट्रानिक्स कारपोरेशन द्वारा नामित विशेषज्ञ को सम्मिलित करते हुए गठित समिति के माध्यम से क्रय किया जायेगा।
        (ग) प्रशासनिक विभाग उचित समझें तो विभागाध्यक्ष के स्तर से क्रय करा सकेंगे जिसके लिए निम्नांकित क्रय समिति होगी :-
            (i) विभागाध्यक्ष - अध्यक्ष
            (ii) विभाग के वित्त नियंत्रक या विभाग के वित्त एवं लेखा प्रभाग प्रमुख
            (iii) विभाग के राज्य स्तरीय विभागीय विशेषज्ञ
            (iv) यू0पी0 डेस्को या यू0पी0ई0सी0 द्वारा नामित विशेषज्ञ
            (v) स्टेट इन्फार्मेटिक्स आफिसर एन0आई0सी0 के प्रतिनिधि
           (घ) राज्य के नियंत्रणाधीन संगठनों यथा सार्वजनिक उपक्रमों, निगमों, निकायों, परिषदों, स्वायत्तशाषी निकायों द्वारा कम्प्यूटर क्रय स्वयं किये जाने की दशा में क्रय समिति निम्नवत् गठित होगी :-
            (i) संगठन का मुख्य कार्यकारी अधिकारी,
            (ii) संगठन के वित्त एवं लेखा के प्रमुख,
            (iii) संगठन के तकनीकी विभाग का प्रमुख,
            (iv) मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा नामित बाहरी विशेषज्ञ,
            (v) एन0आई0सी0 का प्रतिनिधि (स्थानीय)।
            (ड.) जिलाधिकारी स्तर हेतु क्रय समिति :-
            (i) जिलाधिकारी
            (ii) मुख्य विकास अधिकारी
            (iii) संबंधित विभाग का जिला स्तरीय अधिकारी
            (iv) जिला कोषाधिकारी
            (v) जिला सूचना विज्ञान अधिकारी (एन0आई0सी0)
            (vi) जिलाधिकारी द्वारा नामित वाह्य तकनीकी विशेषज्ञ।
            (च) एक वर्ष में रू0 10 लाख तक की सीमा के कम्प्यूटर क्रय करने के लिए शासन के समस्त प्रशासनिक विभाग/विभागाध्यक्ष/सार्वजनिक उपक्रमों के मुख्यकार्यकारी/अन्य शासकीय संगठन/जिलाधिकारी शासन के आई.टी. एवं इलैक्ट्रानिक्स विभाग द्वारा अनुमोदित पैनल में कम से कम तीन आपूर्तिकर्ताओं जो कि अलग-अलग ओरिजनल एक्विपमेन्ट मैनुफैक्चरर  अथवा उनके प्राधिकृत प्रतिनिधि हों, से कोटेशन माँग कर क्रय आदेश जारी कर सकेंगे। शासन के आई.टी. एवं इलैक्ट्रानिक्स विभाग द्वारा उपरोक्तानुसार अनुमोदित पैनल सभी विभागों को उपलब्ध कराया जायगा।
            (छ) कम्प्यूटर क्रय स्टोर परचेज रूल्स के सामान्य प्राविधानों व समय-समय पर जारी निविदा एवं अनुबन्ध प्रणाली से संबंधित सामान्य निर्देशों के अनुरूप तथा निम्नलिखित बिन्दुओं का अनिवार्य रूप से अनुपालन सुनिश्चित करते हुए किया जायेगा-
(i) केवल ब्रांडेड/ओरिजनल इक्यूपमेंट मैनुफैक्चरर अथवा उनके अधिकृत डीलर/विक्रेताओं से ही कम्प्यूटर क्रय किया जायेगा।
(ii) क्रय में सामान्यत: मात्रा अनुबन्ध हेतु शासकीय नियम लागू होंगे। कम्प्यूटर क्रय हेतु तकनीकी विशिष्टियों का निर्धारण भी सम्बन्धित क्रय समिति द्वारा किया जायेगा।
(iii) कम्प्यूटर क्रय केवल खुली निविदा से किया जायेगा जो कि दो भागों में- टेक्निकल बिड या फाइनेन्सियल बिड होगी और यह दोनो अलग-अलग लिफाफों में प्राप्त की जायेगी। टेक्निकल बिड खुलने के बाद तकनीकी रूप से सक्षम पायी गई निविदाओं की फाइनेन्सियल बिड खोली जायेगी।
(iv) वांछित विशेषताओं तथा शर्तों का स्पष्ट रूप उल्लेख टेण्डर डाक्यूमेंट में किया जायेगा और टेण्डर खुलने के बाद में इनमें परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
(v) फाइनेन्शियल बिड खुलने के बाद कोई निगोशियेशन नहीं किया जाएगा।
(vi) टेण्डर प्रक्रिया एवं क्रय में पूर्ण पारदर्शिता अपनाई जाएगी।
(vii) यदि किसी कारण से आपूर्ति के स्त्रोत में टैक्स/ड्यूटी घटती है तो आपूर्तिकर्ता द्वारा मूल्य तदनुसार घटाया जाय।
(viii) कम्प्यूटर क्रय हेतु माडल डाक्यूमेंट बनाया गया है जो कि उत्तर प्रदेश सरकार की वेबसाइट WWW/up.govt.in/infotech पर डाला जा रहा है।
13.    निविदा सूचना का व्यापक प्रचार
                    निविदा आमंत्रण सूचना का प्रचार अत्यंत खुले तथा व्यापक पारदर्शी विधि से किया जायेगा। उत्तर प्रदेश राजपत्र (गजट) में प्रकाशन, सूचीबद्ध अदाताओं को सीधे परिपत्र द्वारा सूचित करना, समाचार पत्र में सूचना का प्रकाशन तथा स्वयं के सूचना पट्ट पर सूचना चिपकाना आदि कुछ विधियाँ हैं। बड़े मूल्य का टेण्डर मांगा जाय तो उसका प्रकाशन दूर-दूर तक व्यापक परिचालन वाले प्रसिद्ध दो/तीन समाचार पत्रों में प्रकाशित कराया जाना चाहिए। टेण्डर सूचना के विज्ञापन में अन्य बातों के अतिरिक्त यह भी उल्लेख होना चाहिये कि टेण्डर किस स्थान पर एवं किस तिथि तथा समय तक डाले जाने तथा कब खोले जाने हैं। टेण्डर सूचना में वाँछित अर्नेस्ट मनी तथा टेण्डर स्वीकृति की दशा में वाँछित सेक्योरिटी मनी के बारे में भी विवरण दिया जाय तथा यह स्पष्ट किया जाय कि सभी टेण्डरों को बिना कारण बताये, सक्षम अधिकारी (कौन है, लिखा जाय) द्वारा निरस्त किया जा सकता है। शा0सं0 ए-1-1173/दस-2001-10(55)/2000, दिनांक 27 अप्रैल, 2001 के अनुसार शासन के विभाग द्वारा जारी टेण्डरों की सूचना तथा टेण्डरों की प्रति WWW.up.info.org . की साइट पर उपलब्ध करायी जायेगी तथा समाचार पत्रों में प्रकाशन तथा वेबसाइट पर उसे रखने का कार्य सूचना निदेशालय के माध्यम से किया जाता है।
                    ऐसी सामग्री जो क्रेता द्वारा तय मानदण्ड के अनुसार क्रय किया जाना परमावश्यक हो और उसका उत्पादक मात्र अकेला हो तो उस दशा में सीधे उत्पादक से टेण्डर मांगा जायेगा। सावधानी यह होगी कि क्रेता किन्हीं कारणों से विशेष सामग्री हेतु उसके उत्पादक को एकल उत्पादक न घोषित करे। क्रेता अधिकारी/समिति को इस आशय का प्रमाणक उल्लिखित करना पड़ता है कि यह प्रोप्राइटरी आइटम है। ऐसे प्रकरणों में निदेशक उद्योग से परामर्श लिया जा सकता है कि क्या वांछित सामग्री प्रोप्राइटरी आइटम है या नहीं?
14.    निविदा प्रपत्र का विक्रय
                टेन्डरदाता से टेण्डर प्रपत्र का विक्रय मूल्य शासनादेश संख्या 390एल/18-7-89-45(एस0पी0)/86 दिनांक 31-3-89 के अंतर्गत निम्न प्रकार निर्धारित है -
दर अनुबन्ध पर क्रय के लिए रू0 200/- तक (निदेशक उद्योग द्वारा)
2.5 लाख तक रू0 50/-
5 लाख तक रू0 100/-
15 लाख तक रू0 150/-
15 लाख से ऊपर रू0 200/-
15.    निविदा प्रपत्र में उल्लेखनीय प्रमुख प्राविधान
    (क) सामान्यतया रू0 50,000/- से अधिक की निविदायें बड़े मूल्य की निविदाएं मानी जायेंगी तथा उनकी प्राप्ति के लिए कम से कम एक माह का समय दिया जायेगा।
    (ख) यथासम्भव, निविदायें इस उद्देश्य से निर्धारित मानक  प्रपत्र पर आमंत्रित की जानी चाहिये। टेण्डर सूचना या विज्ञापन टेण्डर प्रपत्र का भाग बन जाता है। टेण्डर प्रपत्र में आपूर्तित की जाने वाली सामग्री का विवरण, मात्रा, निर्दिष्टियाँ, आपूर्ति स्थल, आपूर्ति समय, लदाई-उतराई का दायित्व, पैकिंग, एक्सपायरी तिथि भुगतान की शर्तें, परीक्षण/बेंचमार्किंग, कटौतियाँ आपूर्ति की मात्रा तथा उसमें घट-बढ़, अर्नेस्ट मनी, सेक्योरिटी मनी, न्याय क्षेत्र, आरबीट्रेशन इत्यादि सभी बिन्दुओं पर प्रकाश डाला जाना चाहिए।
    (ग) निम्नांकित दर से अर्नेस्ट मनी मांगी जायेगी। यदि विशेष दशा में छूट हो तो उसका उल्लेख कर दिया जायेगा।
                1- रू0 15000/- से अधिक रू0 20000/- तक रू0 300/-
               2- प्रत्येक अतिरिक्त पांच हजार या भाग पर रू0 100/- पर किसी भी दशा में पूरी धनराशि अनुमानित क्रय के 1/2 प्रतिशत से कम न हो।
            वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-5, भाग-1 के पैरा 71 के अनुसार अर्नेस्ट मनी की धनराशि, राष्ट्रीय बचतपत्रों, राष्ट्रीयकृत बैंकों के मियादी जमा रसीदों, बैंक जमा रसीदों इत्यादि के रूप में प्राप्त किये जा सकते हैं। राष्ट्रीय बचतपत्र आदि श्री राज्यपाल के पक्ष में बन्धक होंगे तथा मियादी जमा रसीदें एवं बैंक जमा रसीदें श्री राज्यपाल के नाम से जारी होंगी।
    (घ) निविदा प्रपत्र में क्रय की जाने वाली सामग्री की निर्दिष्टियाँ (स्पेशिफिकेशन) अत्यन्त सावधानी एवं ब्योरेवार दिया जाना परमावश्यक होगा यदि विवरण देने में कठिनाई या पेंचीदापन हो तो बाजार में निरीक्षण कर राजकीय कार्य हेतु उक्त सामग्री का एक नमूना कार्यालय व्यय से खरीदा जा सकता है। तथा टेण्डर फार्म में उल्लेख किया जा सकता है कि उक्त सामग्री के विवरण हेतु कार्यालय के किसी भी कार्य दिवस में निर्धारित तिथियों में नमूना देख लिया जाय। नमूने के अनुरूप ही सामग्री क्रय की जायेगी। जटिल प्रकरणों में किसी सक्षम टेक्निकल एजेंसी से मानक तथा निर्दिष्टियों को तैयार कराया जाना चाहिए। यदि भारत सरकार/राज्य सरकार द्वारा मानक  प्रमाणित सामग्री ही क्रय होनी हो तो उसका उल्लेख निविदा पत्र में होगा।
    (ड.) यथा आवश्यक, निविदा के साथ निविदादाता से सामग्री का सैम्पुल भी उसके व्यय पर मांगा जा सकता है।
    (च) निर्माण संबंधी निविदा में क्रय नियम-5 के अनुरूप विभागीय तौर पर उपलब्ध कराये जाने वाली सामग्री/वस्तुओं की सूची अवश्य दे दी जाय। यदि पी0डबलू0डी0 के शेड्यूल रेट पर कार्य होना है तो उसकी सूची भी लगा दी जाए।
      (छ) आवश्यकतानुसार, निविदा प्रपत्र को दो प्रभागों में निम्नवत बाँटा जा सकता है और तदनुसार निविदा दाता से टेक्निकल बिड और फाइनैंशियल बिड अलग-अलग सील्ड लिफाफों में प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जा सकती है।
      (ज) शा0सं0 ए-1-1173/दस-2001-10(55)/2000, दिनांक 27 अप्रैल, 2001 के अनुसार टेक्निकल बिड के मूल्यांकन के लिए निष्पक्ष मानदण्ड होने चाहिए। विभागों द्वारा मात्रात्मक (क्वांटिटेटिव इवलुएशन) मूल्यांकन निर्धारित किया जाय। मानक मापदण्डों का उल्लेख टेण्डर डाक्यूमेंट में किया जाय। टेक्नीकल बिड के मूल्यांकन में किसी ऐसे बिन्दु या मापदण्ड पर विचार नहीं किया जाएगा जिसका उल्लेख टेण्डर डाक्यूमेंट में नहीं किया गया हो।
    (झ) शा0सं0 ए-1-1173/दस-2001-10(55)/2000, दिनांक 27 अप्रैल, 2001 के अनुसार टेक्नीकल बिड/प्रीक्वालीफिकेशन की शर्त अथवा बिड्स के मूल्यांकन के मानदण्ड शिथिल नहीं किया जायेंगे। इनमें कोई परिवर्तन भी अनुमन्य नहीं होगा, इस आशय का उल्लेख टेण्डर विचार नोटिस में ही कर दिया जाय।
   (¥) टेक्निकल बिड, फाइनैंशियल बिड तथा अर्नेस्ट मनी का प्रस्तुतीकरण
        (i) टेक्निकल बिड तथा फाइनैंशियल बिड के दो सील्ड लिफाफों के साथ ही तीसरा सील्ड लिफाफा जिसमें अर्नेस्ट मनी का इन्स्टूमेण्ट रखा गया हो तथा जिस पर अर्नेस्ट मनी अंकित हो; तैयार कर अलग से प्रस्तुत किया जाएगा।
        (ii) उपरोक्त तीनों लिफाफे निविदा के साथ संलग्न बड़े सील्ड लिफाफे में रखे जायेंगे तथा उस पर निविदा विवरण, प्राप्तकर्ता का पता आदि अंकित किया जायेगा।
    16.    निविदाओं का खोलना
    (क) निविदायें पूर्व निश्चित स्थान एवं समय पर ही खोले जाएँ। यदि इसमें परिवर्तन अपरिहार्य हो तो ऐसा निर्णय पूर्व निर्धारित तिथि के पर्याप्त पहले प्रकाशित/सूचित कर दिया जायेगा। जिन आपूर्तिकर्ताओं को पत्र से निविदा देने के लिए लिखा गया हो उन्हें पत्र से सूचित करना होगा।
    (ख) उत्तरदायी अधिकारी या क्रय समिति के समक्ष ही प्राप्त लिफाफे खोले जाएं। यह कार्य किसी भी दशा में अधीनस्थों को न सौंपा जाय। टेण्डर लिफाफों को खोलने के पूर्व ठीक से जांच किया जाय कि मोहरबंद है कि नहीं।
    (ग) लिफाफे के ऊपर अधिकारी/कमेटी के सदस्यों के हस्ताक्षर/आदेश होने पर लिफाफा खोला जाता है। बड़ा लिफाफा खोलने के बाद उसमें से पहले अर्नेस्ट मनी तथा तदुपरान्त टेक्निकल बिड के लिफाफों को खोलकर हस्ताक्षर करने के बाद उन्हें टेण्डर पंजी पर सूचीबद्ध कर लिया जायेगा। जब सभी अर्नेस्ट मनी/टेक्निकल बिड के लिफाफे खोल दिये जायं तो कमेटी निविदा में उल्लिखित शर्तों के अनुसार परीक्षण कर जो मान्य एवं स्वीकार्य टेक्निकल बिड पायी जाय उन्हें चिन्हित कर लिया जाय और उन्हीं निविदादाताओं के फाइनैंशियल बिड खोले जाय। शा0सं0 ए-1-1173/दस-2001-10(55)/2000, दिनांक 27 अप्रैल, 2001 के अनुसार टेक्नीकल बिड की शर्तें पूरी न होने पर फाइनैंशियल बिड पर विचार नहीं किया जाय।
    (घ) फाइनैंशियल बिड खोलते हुये उन पर अंकित दरों को लाल स्याही से घेरकर उस पर कमेटी के सदस्यों के हस्ताक्षर हो जायेंगे। यदि उनमें कोई ओवर राइटिंग होगी तो उसको अस्वीकृत किया जा सकता है। साथ ही सभी उपस्थितों के समक्ष बिडों की शर्तों तथा आपूर्तिकर्ता का विवरण ऊँचे शब्दों में पढ़कर सुनाया जायेगा ताकि इच्छुक व्यक्ति उनको अंकित कर ले। साथ ही टेण्डर पंजी में बिडों का विवरण भी अंकित होता चलेगा। यह प्रक्रिया तब तक चालू रहेगी जब तक सब लिफाफे खोल न लिए जाएं। लिफाफों को खोलने का कार्य स्थगन उचित नहीं होता है। सील लगे लिफाफे भी सुरक्षित रखे जायेंगे।
   (ड.) यदि टेण्डर के साथ सैम्पुल मांगे गये हों तो उनका विवरण, अलग से अंकित किया जायेगा तथा सैम्पुल पर अधिकारी या कमेटी के सदस्य इस प्रकार हस्ताक्षर करेंगे कि सैम्पुल में परिवर्तन संभव न हो। उन्हें सुरक्षित कर लिया जायेगा। सैम्पुल पंजी बनेगी।
    (च) आपूर्तिकर्ता/टेण्डर डालने वाले व्यक्ति/प्रतिनिधि जो उपस्थित रहना चाहे, उनके सामने टेण्डर खोले जायें। सुविधा हेतु एक पंजी पर उनके नाम/फर्म सहित पदनाम विवरण एवं पता दिनांक हस्ताक्षर सहित रखें जाय। यदि सुनाए जाने वाले बिडों/शर्तों के सम्बन्ध में कोई आपत्ति मौखिक हो तो मौखिक समाधान अपेक्षित होगा। गम्भीर प्रकृति की बात लिखित रूप से ले ली जायेगी। उनका लिखित समाधान उत्तर देना होता है।
17.    तुलनात्मक विवरण एवं निविदा स्वीकार करने की प्रक्रिया
    (क) टेण्डर पंजी, अर्नेस्ट मनी पंजी तथा सैम्पुल पंजी पूरी कर यथाशीघ्र खोली गयी निविदाओं के सन्दर्भ में तुलनात्मक विवरण बनाया जायेगा। विवरण प्रपत्र पर निविदा प्रपत्र में प्रकाशित सभी औपचारिकताओं का विवरण अंकित करेंगे। जिन आपूर्तिकर्ताओं ने किन्हीं औपचारिकताओं को सकारण निश्चित यथोचित समय में पूरा करने का उल्लेख किया है उन पर विचार कर समय देने का प्रकरण तय कर लिया जाय। शेष में जिन्होंने मांगी गयी औपचारिकताओं को पूरा नहीं किया है या त्रुटिपूर्ण ढंग से पूरा किया है अथवा सशर्त टेण्डर दिया है, उनको विवरण पत्र की अभ्युक्ति में कारण लिखते हुए सक्षम अधिकारी अस्वीकृत कर देंगे। शेष के दरों का तुलनात्मक विवरण पत्र तैयार करेंगे।
      (ख)    तुलनात्मक विवरण पत्र का सूक्ष्मता से जांच किया जायेगा तथा कमेटी के सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर किया जायेगा।
       (ग)    इस विवरण पत्र में मूल्य तुलना स्तम्भ (प्राइस-मैचिंग) विशेष रूप से जांचा जाए।
      (घ)    क्रय किया जाने वाला सामान या मशीन यदि तकनीकी प्रकार का हो जैसे कम्प्यूटर तो विशेषज्ञ से निरीक्षरण कराकर उसकी क्षमता, (बेंच मार्किंग) जिसका उल्लेख टेण्डर प्रपत्र में दिया गया हो, ज्ञात करा ली जाएगी। यह कार्य आपूर्तिकर्ताओं की उपस्थिति में होगी। अनुपयुक्त मशीनरी के निविदादाता की टेक्निकल बिड को अस्वीकृत कर दिया जायेगा। निविदादाता से प्राप्त सैम्पुल के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार कार्यवाही की जा सकती है।
       (ड.)    सभी शर्तों के समान होने पर न्यूनतम दर के टेण्डर को स्वीकृत किया जायेगा। यदि किसी कारणवश इसे अस्वीकृत किया जाता है तो कारण अंकित करते हुए उससे ठीक अधिक दर का टेण्डर स्वीकार होगा। यही प्रक्रिया दर के तय होने तक अपनायी जायेगी।
        (च)    क्रय अनुबंध किए जाने हेतु निविदादाताओं से बातचीत (निगोशिएशन) सामान्यत: नहीं किया जाय। यदि निगोशिएशन किया जाना अनिवार्य हो तो न्यूनतम निविदादाता से बातचीत की जा सकती है।
      (छ)    शा0सं0 ए-1-1173/दस-2001-10(55)/2000, दिनांक 27 अप्रैल, 2001 के अनुसार यदि एक से अधिक आपूर्तिकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत एक ही दर स्वीकृत होता है तो क्रय की जाने वाली सामग्री को बराबर संख्या में आवंटित कर दिया जायेगा। एक के द्वारा मना करने पर यह आवंटन दूसरे आपूर्तिकर्ता को कर दिया जायेगा।
         (ज)    शा0सं0 ए-1-1173/दस-2001-10(55)/2000, दिनांक 27 अप्रैल, 2001 के अनुसार क्रय के सम्बन्ध में न्यूनतम टेण्डर दर को स्वीकार करते हुए स्वीकर्ता प्राधिकारी पूर्व अनुभव तथा प्रचलित बाजार मूल्यों को भी ध्यान में रखेंगे।
        (झ)    अस्वीकृत सभी टेण्डरों के अर्नेस्टमनी को बंधक मुक्त करते हुए तत्काल वापस किया जायेगा। जिनसे आपूर्ति का निर्णय होता है उनकी अर्नेस्टमनी उनके भुगतान या सिक्योरिटी मनी से समायोजित हो जायेगी।
        (=)    शा0सं0 ए-1-1173/दस-2001-10(55)/2000, दिनांक 27 अप्रैल, 2001 के अनुसार पूर्व में प्राप्त टेण्डर के आधार पर पुन: नये फर्मों अथवा चालू फर्मों के लिए रिपीट आर्डर नहीं दिए जायेंगे। स्वीकृत कार्यों को यथासंभव टुकड़ों में न बाँटा जाय। यदि ऐसा किया जाय तो उसका कारण उल्लिखित किया जाय।
    18.    संविदा
       (क)  आपूर्तिकर्ता (विक्रेता) से आपूर्ति प्राप्तकर्ता (क्रेता) के मध्य सामग्री क्रय विषयक शर्तों के पालन से सम्बन्धित विवादों के निस्तारण हेतु 'संविदा अधिनियम' की धाराएं लागू होती है। संविदा तीन प्रकार की हो सकती है-इम्पलाइड अर्थात मान ली गयी संविदा, ओरल अथवा मौखिक तथा रिटेन अर्थात लिखित संविदा। तीनों की अपनी-अपनी विशिष्टताएं हैं जिनका क्रय प्रक्रिया में प्रयोग होता है।
      (ख)    बड़ी मात्रा के ठेके शासन द्वारा अनुमोदित संविदा पत्रों पर सम्पादित होंगे। आवश्यकतानुसार विधि अधिकारियों द्वारा ऐसे प्रारूप का पूर्वानुमोदित करा लिया जाय।
        (ग)    रू0 2500/- तक के क्रय में लिखित अनुबंध आवश्यक नहीं है। (शासनादेश संख्या ए-1-2086/दस-96-15(1)186,  दिनांक 14-10-96)
        (घ)    सामान्यतया लम्बी अवधि की संविदा नहीं की जानी चाहिये। यदि ऐसा करना पड़े तो क्रयादेश में यह शर्त डाल दी जाय कि 3 या 6 माह पूर्व नोटिस देकर क्रयादेश निरस्त किया जा सकता है। ध्यान रहे कि आपूर्तिकर्ता को रिपीट आर्डर नहीं किया जायेगा।
        (ड.)    लागू नियमों के अनुसार आपूर्तिकर्ता के साथ संविदा हेतु अनुबंध पत्र रजिस्टर्ड कर लिया जाएगा। आवश्यक स्टैम्प ड्यूटी चकायी जायेगी। प्रारूप वित्तीय नियम संगह खण्ड-6 में उपलब्ध है अन्यथा नया अनुबंध पत्र विधिक रूप से शासन से स्वीकृत कराकर उसका प्रयोग हो सकता है।
19.    क्रयादेश
    (क)    क्रयादेश एक विधिक पत्र होता है तथा विवाद की स्थिति में न्यायालय में निर्णय का यह आधार बनता है। इसकी शब्दावली तथा इसमें उल्लिखित शर्तें टेण्डर फार्म में अंकित बातों के अनुरूप होगी।
     (ख)    क्रयादेश में मुख्यत: निम्नांकित का उल्लेख किया जाय :
            (1)    रेट/क्वांटिटी कांट्रैक्ट का पूरा सन्दर्भ (आवश्यकतानुसार)
            (2)    स्पेसीफिकेशन तथा विवरण
            (3)    सामग्री की मात्रा
            (4)    टेंडर/कोटेशन का सन्दर्भ
            (5)    आदेश कहाँ के लिए (एफ0ओ0आर0 आदि)
            (6)    व्यापार/अन्य करों की देयता का उल्लेख
            (7)    आपूर्ति पूरी होने की तिथि
            (8)    भुगतान प्रक्रिया
            (9)    डिफाल्टर होने की दशा में डैमरेज वसूलने की शर्त
            (10)    अन्य कोई विशेष बात।
    (ग)    क्रयादेश निर्गत करने के पूर्व दरों का मिलान, टेण्डर पत्र, तुलनात्मक विवरण पत्र तथा निर्णय में लिखी गयी टिप्पणी से अवश्य किया जाय। शा0सं0 ए-1-1173/दस-2001-10(55)/2000, दिनांक 27 अप्रैल, 2001 के अनुसार क्रय के सम्बन्ध में न्यूनतम टेण्डर दर को स्वीकार करते हुए स्वीकर्ता प्राधिकारी पूर्व अनुभव तथा प्रचलित बाजार मूल्यों को भी ध्यान में रखेंगे। यह दायित्व उस अधिकारी का है जो टेण्डर स्वीकृत करने के लिए सक्षम है। यदि बाजार भाव से सामग्री का प्रस्तुत दर (कोटेड रेट) असाधारण रूप से कम हो या असाधारण रूप से अधिक हो तो इसी आधार पर टेण्डर निरस्त किया जाना चाहिए। पुन: नया टेण्डर मांग कर यथार्थ के आधार पर निर्णय लिया जायेगा।
    (घ)    क्रयादेश जारी करने के पूर्व आपूर्तिकर्ता की वित्तीय प्रास्थिति की जांच आवश्यक होती है। बड़ी आपूर्ति की दशा में कारखाने की क्षमता, मजदूरों की संख्या तथा कच्चे पदार्थ की उपलब्धता का भी पता लगाया जाय। आपूर्तिकर्ता द्वारा पूर्व में स्वयं या अन्य विभागों को की गयी आपूर्तियों के ब्यौरे, पूर्व सुरक्षित सूचनाएं, निदेशक उद्योग तथा उसके बैंकर्स के संदर्भ भी इसके आधार हो सकते हैं। रजिस्ट्रार फर्म्स एवं सोसायटीज से रजिस्ट्रेशन के विवरण को भी देखा जा सकता है।
    (ड.)    आयकर विवरणी ट्रेड टैक्स, वैल्यू एडेड टैक्स (वैट) आदि में रजिस्ट्रेशन के आधार पर भी टेण्डर दाता की वित्तीय प्रास्थिति एवं क्षमता की पुष्टि कर लेनी चाहिए । इसके अतिरिक्त अन्य विधियाँ भी उपयुक्त हो सकती हैं जो परिस्थिति के अनुरूप प्रयोग में लायी जायें।
    (च)    यदि मशीनी उपकरण या संयंत्र की आपूर्ति की जानी है तो उचित यह होगा कि टेण्डर में ही स्पेयर पार्ट की आपूर्ति, आफ्टर सेल सर्विस, एनूअल मेंटीनेंस कंट्रैक्ट  आदि के बारे में आफर मांगी जायं जिससे यह कार्य मितव्ययी दर पर व्यवस्थित हो सके।
    (छ)    क्रयादेश में अन्य बातों के साथ-साथ इस शर्त का उल्लेख अवश्य किया जाय कि यदि कोई भी आपूर्ति विज्ञापित नाप-जोख विवरण या सैम्पुल के अनुसार न हो अन्यथा खराब हो तो आपूर्तिकर्ता उसे स्वयं के व्यय पर यथाशीघ्र बदल देगा और अस्वीकृत माल यह अपने व्यय पर उठायेगा एवं इस सम्बन्ध में किसी भी प्रकार का दायित्व विभाग का न होगा।
     (ज)     क्रय नियम-9 में वर्णित आपूर्ति तथा चारे के मामले में वारन्टी क्लाज अवश्य रखा जायेगा।
     (झ)    सम्पूर्ण आपूर्ति को आवश्यकतानुसार विभाजित कर समय-समय पर आपूर्ति करने का अनुबन्ध हो सकता है जिससे सामग्री की रक्षा तथा एक मुश्त भुगतान से बचा जा सके।
     (¥)    पूर्व में प्राप्त टेण्डर के आधार पर पुन: नये फर्मों अथवा चालू फर्मों क लिए रिपीट आर्डर नहीं दिए जायेंगे। स्वीकृत कार्यों को यथासम्भव टुकड़ों में न बाँटा जाय। यदि ऐसा किया जाय तो उसका कारण उल्लिखित किया जाय।
20.    भुगतान
    (क)    आपूर्तिकर्ता से बिल प्राप्त होते ही मूल बिल को स्टोर कीपर के पास भेजकर आपूर्ति के बारे में वेरीफाइड एंड इंटर्ड इन स्टाकबुक एट पेज नं0 ------------------ पर विवरण अंकित --------------- का प्रमाण-पत्र बिल पर ले लिया जायेगा। यह प्रमाणक स्टोरकीपर के पहचान वाले हस्ताक्षर एवं दिनांक से युक्त होगा। आहरण अधिकारी कभी-कभी स्वयं भी सामग्री का सत्यापन  कर सकता है ताकि स्टोर कीपर के प्रमाणन की पुष्टि हो जाय।
    (ख)    बिल के दरों का मिलान कर उसका परीक्षण कराकर जो कटौतियां हो उनको करते हुए निर्धारित प्रपत्र पर बिल तैयार किया जायेगा। नियमानुसार आयकर तथा व्यापार कर की कटौती की जायेगी जिसे संहत रूप से बुक ट्रांसफर या चेक से जमा किया जायेगा।
     (ग)    रू0 2000/- से अधिक का चेक एकाउन्ट पेयी होगा।
    (घ)    यदि 10 प्रतिशत की दर से सिक्योरिटी पहले ही एक मुश्त जमा न हो तो बिल  की मूल धनराशि का 10 प्रतिशत धन रोक लिया जायेगा जिसे समय-समय पर कोषागार में निक्षेप शीर्षक में जमा करेंगे। सिक्योरिटी देने की शर्त टेण्डर फार्म में पहले ही दर्ज होती है।
    (ड.)    आपूर्ति/कार्य पूरा होने के छ: माह (या निविदा शर्तों में उल्लिखित अवधि) के बाद कार्य/आपू‍र्ति संतोषजनक रूप से पूरा होने का प्रमाणक प्राप्त कर सिक्योरिटी लौटाने का आदेश करेंगे।
    (च)    भुगतान के समय यह सुनिश्श्चित करेंगे कि डिफाल्टर होने की दशा में यदि लिक्विडेटेड डैमरेज वसूलने की शर्त हो और ऐसी रिपोर्ट हो तो उसकी वसूली देयक से कर लेंगे। सामान्यता यह दण्ड कुल भुगतान का 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। वास्तविक  हानि की धनराशि से इसका संबंध नहीं जोड़ा जायेगा।
     (छ)    भण्डार आपूर्ति हेतु अग्रिम का भुगतान क्रय नियम-12 के अनुसार विनियमित होंगें। कतिपय मामलों में अग्रिम के रूप में 98 प्रतिशत तक का भुगतान किया जा सकता है। शत प्रतिशत अग्रिम का भुगतान वि0नि0 संग्रह खण्ड-5 भाग-1 के पैरा 162 के अनुसार सक्षम प्राधिकारी से स्वीकृति लेकर किया जा सकता है।
21.    विदेश से क्रय
    (क)    इसकी संक्षिप्त रूपरेखा वित्तीय नियम संग्रह  खण्ड-V भाग-I के परिशिष्ट XVIII के क्रय नियम 7 में दी गयी है। उनको ध्यान  में रख निम्नवत कार्यवाही की जायेगी :-
    (i)    राज्य सरकार से आयात की अनुमति ली जायेगी।
    (ii)    भारत सरकार द्वारा आपूर्तिकर्ताओं की अनुमोदित सूची से ही क्रय होगा।
    (iii)    ग्लोबल टेण्डर माँगे जायेंगे।
   (iv)    कुछ विभागों को सीधे क्रय करने का अधिकार है जिसे वि0नि0सं0 खण्ड-5 भाग-1 परिशिष्ट XVIII के संलग्नक सूची में देखा जा सकता है।
    (v)    भुगतान के नियम  उक्त नियम संग्रह  के परिशिष्ट XIX में दिए गए हैं। क्रय प्रक्रिया कम से कम बजट कालातीत होने के छ: माह पूर्व या वर्ष के प्रारम्भ में ही शुरू होगी।
    (vi)    आयात नियम एवं प्रक्रियायें बहुधा भारत सरकार/राज्य सरकार की नीतियों के अनुसार बदलती रहती हैं अत: अद्यावधिक नियमों तथा प्रक्रियाओं का भली-भाँति ज्ञान अर्जित कर विदेश से क्रय की कार्यवाही प्रारम्भ करनी चाहिये।
22.    वित्तीय नियम संग्रह, खण्ड V भाग प्‍ के परिशिष्ट XVIII में उल्लिखित नियमों का सारांश
नियम-1   :    विदेश से आयात को छोड़कर शेष सभी क्रय किया गया सामान भारत में प्राप्त किया जायेगा और भुगतान रूपये में किया जायेगा।
नियम-2    :    देश या विदेश से क्रय हेतु टेण्डर प्राप्त करना आवश्यक होगा। यदि क्रय की जाने वाली वस्तुओं की कीमत कम हो या जनहित में टेण्डर मांगना संभव न हो तो कारणों का उल्लेख करते हुए टेण्डर नहीं मांगे जायेंगे।
नियम-3    :    सभी वस्तुयें निरीक्षण के उपरान्त ही स्वीकार्य होंगी। जिन वस्तुओं के लिए निर्दिष्टियां एवं जांच पूर्व निर्धारित हों उनकी जाँच एवं निरीक्षण सामान प्राप्ति के पूर्व व निर्माण अवधि में किया जायेगा।
                            निदेशक उद्योग द्वारा निष्पादित दर एवं मात्रा संविदाओं में कृत क्रय सामग्री निरीक्षण हेतु निदेशक उद्योग उत्तरदायी होंगे।
नियम-4    :    विदेश से आयात के अपवाद के साथ सभी प्लान्ट एवं मशीनरी भारत में उद्योग निदेशक के माध्यम से खरीदी जायेगी। उन्हें अवस्थापित कर तथा पूर्णतया जाँच के पश्चात ही भुगतान होगा। विशेष दशाओं में यदि पूर्व भुगतान आवश्यक हो तो वित्त विभाग से विधिवत पूर्वानुमोदन प्राप्त किया जायेगा। अन्य मुख्य-मुख्य आयरन एवं स्टील की वस्तुएं निदेशक, उद्योग द्वारा अनुमोदित फर्मों से प्राप्त की जायेंगी।
नियम-5    :    ठेके पर दिये जाने वाले निर्माण कार्यों की संविदा-शर्तों में प्राविधान करना होगा कि-
                क-    ठेकेदार निदेशक, उद्योग द्वारा व्यवस्थापित फर्मों से ही सामग्री प्राप्त करेगा।
               ख-    ऐसी व्यवस्था के अभाव में निदेशक,  उद्योग द्वारा अनुमोदित निर्दिष्टियों एवं परीक्षणों के आधार पर ही क्रय होगा। इसके अभाव में ठेका देने वाला अधिकारी अपनी संतुष्टि के अनुसार ठेकेदारों को व्यवस्था करने हेतु सीधे आदेश देगा।
नियम-6    :    एक विभाग द्वारा दूसरे विभाग से क्रय किये जाने पर इन नियमों की कोई रोक लागू नहीं होगी। कतिपय विभाग जैसे जेल, उद्योग, सिंचाई, उद्यान आदि स्वयं सामग्री निर्माण करते हैं। उन्हें इन विभागों द्वारा निर्धारित लागत पर क्रय किया जाएगा।
नियम-7    :    विशेष दशाओं में जब भारत में क्रय किया जाना संभव न हो सके तो शासन से अनुमति लेकर प्लांट/मशीनरी को विदेश से क्रय किया जाएगा।
नियम-8    :    आपातकालीन स्थिति में, जब उद्योग निदेशक द्वारा स्टोर परचेज अनुभाग से सामग्री प्राप्त कराने में जनहित को असुविधा होने की स्थिति हो तो निर्धारित सीमा तथा शर्तों के अन्तर्गत कार्यालयाध्यक्ष एवं विभागाध्यक्ष सामग्री सीधे क्रय कर सकते हैं।
नियम 8-अ :    विभागों के सामान्य स्थिति वाले मामलों में मात्रा अनुबन्ध के अंतर्गत विदेश एवं स्वदेश में निर्मित वस्तुओं को कार्यालयाध्यक्ष एवं विभागाध्यक्ष एक बार में क्रमश: एक लाख तथा दस लाख तक क्रय कर सकते हैं। रूपये एक लाख से दस लाख तक के क्रय के लिए कार्यालयाध्यक्ष विभागाध्यक्ष से अनुमति प्राप्त करेगा तथा दस लाख से अधिक के क्रय के लिए विभागाध्यक्ष प्रशासनिक विभाग से अनुमति प्राप्‍त करेगा। स्वीकृति आदेश स्वीकर्ता अधिकारी के हस्ताक्षरों से निर्गत होगा। मात्रा अनुबन्ध के अन्तर्गत क्रय की गयी वस्तुओं के लिए उद्योग निदेशक का कोई दर अनुबंध नहीं होना चाहिए। स्वीकृत आदेश की प्रतियां उद्योग एवं वित्त विभागों तथा निदेशक, उद्योग को सदैव भेजी जानी चाहिए।
नियम-9    :    निम्न वस्तुओं का क्रय सीधे होगा :-
                (1)    शीघ्र नाशवान, नाजुक प्रकृति, ज्वलनशील तथा उबलने वाली वस्तुएँ।
                (2)    मशीनरी का स्पेयर पार्ट या मरम्मत हेतु प्रयुक्त होने वाली तात्कालिक वस्तुएँ।
                (3)    जानवर तथा उसका चारा।
                (4)    ईंट, बालू, सामान्य प्रकार की लकड़ी, कंकड़, पत्थर, चूना एवं खपड़े आदि।
नियम-10    :    जनहित में उद्योग विभाग द्वारा इन नियमों से छूट की स्वीकृति दी जा सकती है। ऐसे आवेदन पत्र उद्योग निदेशक के माध्यम से प्रस्तुत होंगे।
नियम-11    :    ठेकेदारों से की गयी कटौतियाँ प्रथमतया उचन्त खाते (मुख्य लेखाशीर्षक-8658) में जमा की जायेगी। अन्तिम निर्णय हो जाने के बाद कटौती के लिए निर्धारित धनराशि विभागीय प्राप्ति शीर्षक में स्थानान्तरित होंगी।
नियम-12(क)    :    सामग्री की प्राप्ति तथा निरीक्षण के पूर्व अग्रिम भुगतान अनुमन्य नहीं होगा।
                (ख)    :    शा0सं0 1811/1/18-7-48 (एस0पी0) दिनांक 5-2-90 के अधीन कतिपय मामलों में उक्त शासनादेश में उल्लिखित शर्तों के पूर्ण करने पर 98  प्रतिशत तक अग्रिम भुगतान किया जा सकेगा। प्रमुख शर्तें यह हैं कि माल भेजने की रेलवे रसीद प्रस्तुत करनी होगी, मार्ग बीमा के अभिलेख होंगे, सड़क मार्ग से माल भेजने पर अग्रिम अनुमन्य नहीं होगा। शेष 2 प्रतिशत का भुगतान सामान्य प्रक्रिया के पूर्ण होने पर किया जायेगा।
नियम-13    :    सामग्री क्रय के प्रकरण संविदा नियम से आच्छादित होते हैं। इन्हें वित्तीय नियम संग्रह  खण्ड V भाग I  के परिशिष्ट XIX में देखा जा सकता है।
23.    भण्डार का रख-रखाव                                                      (एम0जी0ओ0 अध्याय LXXII का पैरा 572)
                किसी भी विभाग को उसके सौंपे गये उत्तरदायित्व को पूरा करने के लिए वस्तुओं अथवा भण्डार का क्रय करना पड़ता है। सरकारी कार्यालय के उपयोगार्थ जो वस्तुएँ क्रय की जाती हैं उनका लेखा रखना आवश्यक है। वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-पाँच भाग-1 के पैरा 256 से 259 के अन्तर्गत सरकारी स्टोर एवं स्टाक के अनुरक्षण के सम्बन्ध में विस्तृत व्यवस्था की गयी है। उपरोक्त नियम सामान्यत: सभी विभागों पर लागू होते हैं लेकिन कुछ विभागों में इससे सम्बन्धित विस्तृत प्रतिस्थानी नियमों की अलग से व्यवस्था की गयी है। कृषि, उद्योग,  आबकारी, वन, जल, सार्वजनिक निर्माण विभाग, प्रिन्टिंग एवं स्टेशनरी विभाग में भण्डारों का रख-रखाव इन्हीं विशेष प्रतिस्थानी नियमों के अन्तर्गत आता है।
                अर्द्धशासकीय कार्यालयों तथा संस्थाओं को शामिल करके राज्य सरकार के जिन कार्यालयों में सामग्री क्रय के लिए अलग से धन की व्यवस्था होती है, उन कार्यालयों में भण्डार वही रखना आवश्यक है। "कार्यालय" का तात्पर्य ऐसे कार्यालय से  है जिसके लिए अलग से सामग्री क्रय के लिए धन आवंटित हो।
                प्रत्येक कार्यालय में डेड स्टाक (मृत स्कन्ध) जैसे फर्नीचर, प्लान्ट और मशीनरी आदि एवं लाइवस्टाक एवं नाशवान सामग्री के लिए अलग-अलग स्टाकबुक रखा जाना चाहिए। डेडस्टाक एम0जी0ओ0  के परिशिष्ट 17 में दिये गये प्रारूप के अनुसार रखी जायेगी और इसमें दिये गये निर्देशों का पालन भी किया जायेगा। लाइव स्टाक एवं नाशवान सामग्री के लिए आवश्यकतानुसार संशोधित स्टाकबुक रखी जायेगी। परिशिष्ट 17 का प्रारूप कार्यालय द्वारा तैयार किया जायेगा अथवा अधीक्षक मुद्रण एवं लेखन के कार्यालय से प्राप्त किया जा सकेगा।
                स्टाक बुक में एक सामग्री के लिए आवश्यकतानुसार एक या एक से अधिक पेज आवंटित किया जायेगा तथा सामग्रियों का इंडेक्स भी तैयार किया जायेगा। प्रत्येक सामग्री की प्राप्ति के पश्चात उसकी तत्काल प्रविष्टि स्टाक बुक में अवश्य की जानी चाहिए। प्रत्येक प्रविष्टि का सत्यापन प्रभारी अधिकारी एवं भण्डार लिपिक के द्वारा किया जायेगा। सामान  की प्रविष्टि निरस्त किये जाने  की दशा में उक्त रजिस्टर के सम्बन्धित कालम में इस आशय का नोट अंकित किया जायेगा। प्रत्येक कालम का योग पृष्ठ के अंत में करते हुए वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर भी इनका योग निकाला जायेगा।
                प्रत्येक सामग्री के क्रय मूल्य का विवरण स्टाक बुक में रखा जायेगा। बिना मूल्यांकन सुनिश्चित किये कोई भी सामग्री स्टाक बुक में अंकित नहीं की जायेगी। निम्नलिखित परिस्थितियों में सामयिक (पीरियोडिकल) मूल्यांकन भी किया जाना चाहिए :-
  • जब सामग्री को गर्वमेन्ट  कामर्शियल अन्डरटेकिंग को प्रेषित किया जाना हो।
  • जब किसी कार्य पर सामग्री का मूल्य  वितरित (Apportion) किया जाना हो।
  • जब निजी व्यक्तियों/संस्थाओं से सामग्री का मूल्य प्राप्त करना हो।
                इस प्रकार से निर्धारित मूल्य किसी भी प्रकार बाजार दर से अधिक नहीं होंगे। इस उद्देश्य के लिए बाजार मूल्य का अभिप्राय उद्योग निदेशक द्वारा सामान विवरण (स्पेशिफिकेशन) की वस्तुओं का निर्धारित दर होगा। इसके अभाव में तत्कालीन चालू दर जो बाजार में प्रचलित हो मान्य होगा।
                यथासंभव स्टाक बुक स्टोर के निकट रखनी चाहिए, लेकिन कार्यालयाध्यक्ष सुविधा के अनुसार इसके अतिरिक्त भी किसी अन्य स्थान पर स्टाक बुक रखने की व्यवस्था कर सकते हैं। वस्तु के प्राप्त होते ही तत्काल बुक में इसकी प्रविष्टि की जानी चाहिए। कार्यालय अधीक्षक (मिनिस्ट्रीयल हेड दि ऑफिस), प्रत्येक माह की समाप्ति पर व्यय मद के रजिस्टर व माँग पत्र को ध्यान में रखकर स्टाक बुक का सत्यापन करेंगे कि सभी क्रय की गयी वस्तुएं व सभी प्राप्त (दूसरे कार्यालय से) वस्तुएं ठीक-ठाक ढंग से स्टाक बुक में प्रविष्ट कर दी गय है।
                यथासंभव प्रत्येक वस्तु पर समुचित चिन्ह अंकित किया जाना चाहिए ताकि उनका सत्यापन आसानी से किया जा सके। सरकारी संपत्तियों की एक विवरण सूची विभिन्न कक्षों एवं अधिष्ठानों के बीच रखनी चाहिए। इसकी अद्यतन सूची प्रत्येक कक्ष में लटका देनी चाहिए।
                स्टोर मे कार्यालय की आवश्यकता से ज्यादा सामग्री नहीं रखनी चाहिए। क्षयशील व उपभोग्य वस्तुएँ जिनका प्रयोग कई वर्षों से नहीं किया गया है को फालतू माना जायेगा, जब तक कि कार्यालयाध्यक्ष इसके इतर कोई विचार नहीं रखते। प्रभारी अधिकारी फालतू सामग्रियों की एक सूची तैयार कर सक्षम प्राधिकारी को प्रस्तुत करेंगे। इसका वर्गीकरण सर्विसेबुल एवं निष्प्रयोज्य दो भागों में किया जायेगा। सर्विसेबुल आइटम के लिए सक्षम अधिकारी उसे अधीनस्थ कार्यालयों में वितरण के लिए अंदेशित करेंगे। निष्प्रयोज्य वस्तुओं के लिए नीलामी द्वारा विक्रय की अनुमति दी जायेगी व अन्तर को बट्टे खाते में डाला जायेगा। सभी प्रकार की हानियों को संज्ञान में आने पर तत्काल सक्षम प्राधिकारी की स्वीकृति से स्टाफ बुक में अंकित किया जायेगा।
                प्रभारी राजपत्रित अधिकारी  उपभोग्य व नाशवान वस्तुओं को कम से कम 5 महीने में एक बार व डेड स्टाक को वर्ष में एक बार अवश्य सत्यापित करेंगे। प्रभारी अधिकारी द्वारा वस्तुओं का सत्यापन स्टाक बुक पर अवशेष के आधार पर किया जायेगा और स्टाक बुक पर इस आशय का एक प्रमाण-पत्र भी अंकित किया जायेगा।
                प्रभारी अधिकारी यह भी सत्यापित करेगें कि कार्यालय अधीक्षक ने मासिक सत्यापन किया है कि नहीं। स्टोर सत्यापन में स्टोर प्रभारी की सहायता नहीं लेनी चाहिए। स्टोर प्रभारी लिपिक के अतिरिक्त किसी अन्य कर्मचारी की सहायता से सत्यापन किया जाना चाहिए, लेकिन अल्प वेतनभोगी कर्मचारियों की सहायता भी नहीं लेनी चाहिए। यह सत्यापन स्टोर प्रभारी के ही समक्ष किया जायेगा।
                स्टोर सत्यापन के समय प्रकाश में आयी सभी प्रकार की हानियाँ, विक्रय व निस्तारण को संज्ञान में लिया जायेगा। यह देखा जाना चाहिए कि हानि बाजार मूल्य के उतार चढ़ाव के कारण हुई है अथवा उनके क्रय एवं रख-रखाव के कारण। बहुधा क्रय के पश्चात सामग्री के रख-रखाव में हुई उपेक्षा भी इसके मूल्य ह्रास का कारण होती है। अन्य प्रकार यथा चोरी या दैवीय आपदा के कारण हुई क्षति को भी संज्ञान में लेकर सक्षम अधिकारी के आदेशार्थ प्रकरण प्रस्तुत किया जाना चाहिए। सक्षम अधिकारी की अनुमति से हानियों को स्टाक बुक में अंकित किया जायेगा।
                अन्य अधीनस्थ अधिकारी भी इसी प्रकार स्टोर का निरीक्षण करेंगे और आख्या सक्षम प्राधिकारी को प्रस्तुत करेंगें। वरिष्ठ अधिकारी को कार्यालय निरीक्षण के समय स्टाक बुक का निरीक्षण करना चाहिए। सक्षम अधिकारी की अनुमति से हानियों को स्टाक बुक में अंकित किया जायेगा।
24.    भण्डार निस्तारण से सम्बन्धित नियम
                कार्यालयों में कभी-कभी निष्प्रयोज्य वस्तुएँ अधिक समय तक पड़ी रहती हैं एवं सही रख-रखाव न होने के कारण उनका लगातार क्षय होता जाता है। ऐसा होने का मुख्य कारण भण्डारों की सामयिक जाँच न होना तथा रख-रखाव  में असावधानी बरतना है। निष्प्रयोज्य वस्तुयें एक तो अनावश्यक रूप से भण्डार का स्‍थान घेरे रहती हैं साथ ही अधिक समय बीतने पर  उनका लगातार अवमूल्यन भी होता जाता है। ऐसे वस्तुओं को चिन्हित कर उनके नीलाम करने के सम्बन्ध में आवश्यक कार्यवाही किया जाना आवश्यक होता है।
                वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-पाँच भाग-1 के परिशिष्ट-19(घ) में राजकीय सम्पत्ति के निस्तारण के नियम दिये गये हैं। इन नियमों के प्रयोजन के लिए सक्षम प्राधिकारी से तात्पर्य उस अधिकारी से है जिसे सरकार द्वारा किसी नियम अथवा आदेश के अन्तर्गत भण्डार के विक्रय अथवा निस्तारण के लिए अधिकृत किया गया हो।
                निष्प्रयोज्य भण्डार के विक्रय के अधिकार शासन द्वारा निम्नलिखित स्तरों पर निर्धारित सीमा तक अनुमन्य कराया गया है:-
            1-    कार्यालयाध्यक्ष प्रथम श्रेणी के अधिकारी :- 5,000/- रूपये से अनधिक मूल्य के भण्डार तक। इस प्रतिबन्ध के साथ कि फालतू भण्डार का विक्रय 20 प्रतिशत से अनधिक ह्रासित मूल्य पर किया जाय।
            2-    विभागाध्यक्ष :- 5,000/- रूपये से ऊपर किन्तु 50,000/- रूपये  से अनधिक मूल्य के फालतू भण्डार  का विक्रय, 20 प्रतिशत से अनधिक ह्रासित मूल्य पर।
            3-     प्रशासकीय विभाग द्वारा 50,000/- से ऊपर के निष्प्रयोज्य सामग्री की बिक्री की अनुमति उपर्युक्त प्रतिबन्धों के अंतर्गत प्रदान की जायेगी किन्तु रू0 3 लाख से ऊपर के निष्प्रयोज्य सामग्री की बिक्री हेतु प्रशासकीय विभाग के प्रमुख सचिव/सचिव की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा निर्णय लिया जाएगा।
            वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-पाँच भाग-1 के परिशिष्ट-19(घ) में उल्लिखित सार्वजनिक नीलामी के संबंध में मुख्य नियम निम्नवत हैं :
  1. जब कभी ऐसा प्रतीत हो कि स्टाक में वाहन, औजार तथा संयंत्र को शामिल करते हुए स्थित वस्तुएँ विभाग की आवश्यकता से अधिक हो गयीं है या पुन: प्रयोग के लिए अनुपयुक्त हो गयी है तो इसकी सूचना सक्षम प्राधिकारी को दी जानी चाहिए। सक्षम अधिकारी द्वारा वस्तुओं के निरीक्षण की व्यवस्था की जायेगी तथा यथाआवश्यक नीलामी की कार्यवाही किये जाने के सम्बन्ध में निर्णय लिया जायेगा।
  2. आवश्यकता से अधिक सामानों के निस्तारण हेतु वित्तीय हस्त पुस्तिका खण्ड-पाँच भाग-1 के परिशिष्ट-19 डी. में दिये गये प्रपत्र-ए पर सर्वे रिपोर्ट तैयार की जायेगी। स्टाक में उपलब्ध सभी सामानों को अतिशेष में शामिल कर लिया गया है यह सुनिश्चित करने के पश्चात् इस रिपोर्ट पर अधिकारी द्वारा हस्ताक्षर किया जाना चाहिए।
  3. यदि नीलामी के लिए चिन्हित भण्डार मरम्मत के पश्चात व्यवहार में लाये जा सकते हैं तो ऐसी वस्तुओं की सूची प्रथमत: मूल विभाग के अधीनस्थ कार्यालयों तथा अन्य सरकारी कार्यालयों में परिपत्र से सूचित कर दिया जाएगा ताकि आवश्यकतानुसार उनका उपयोग उन कार्यालयों में किया जा सके। सूचना में भण्डार की दशा, मूल्य तथा ह्रासित मूल्य भी बताएं जायेंगे। वस्तुओं की नीलामी केवल तब की जानी चाहिए जब अन्य कार्यालय द्वारा उनकी अपेक्षा नहीं की जाती है।
  4. नीलामी के पहले विज्ञापन आदि के माध्यम से नीलामी की जाने वाली वस्तुओं, नीलामी की तिथि, समय तथा स्थान का व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए। सक्षम प्राधिकारी द्वारा निर्धारित किये जाने वाले मूल्य की घोषणा भी की जानी चाहिए। नीलामी राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में संचालित की जानी चाहिए, जो यह देखेगा कि समुचित बोली लगायी जाती है।
  5. सामान्यत: नीलामी अधिकारी द्वारा उच्चतम बोली स्वीकार होगी किन्तु अधिकारी उच्चतम बोली या किसी अन्य बोली को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं है। उच्चतम बोली स्वीकार न किये जाने की दशा में इसके कारणों को उधृत किया जाना आवश्यक होगा। संदेहपूर्ण एवं दुर्भावना युक्त व्यक्तियों को बोली बोलने से मना किया जायेगा।
  6. नीलामी की बोली को स्वीकार करना सक्षम प्राधिकारी द्वारा तथा कतिपय मामलों में सरकार द्वारा दिये जाने वाली स्वीकृति के अधीन होगा जिसे नीलामी के समय ही स्पष्ट कर दिया जायेगा।
        {सक्षम अधिकारी द्वारा पूर्व में ऐसी वस्तुओं का अपलिस्ट (बोली आरम्भ करने की सीमा) तथा आरक्षित (रिजर्ब) मूल्यों को तय कर घोषित करने की व्यवस्था की जायेगी।}                       
  1. प्रत्येक बोली लगाने वाला व्यक्ति सिर्फ स्वयं के लिए ही बोली लगा सकेगा तथा उसके द्वारा लगायी बोली की धनराशि में किसी भी दशा में किसी कमी पर विचार नहीं किया जायेगा।
  2. कोई व्यक्ति अन्य व्यक्ति की ओर से नीलामी पर बोली लगाने के लिए तब तक अधिकृत नहीं होगा जब तक कि उसने ऐसे व्यक्ति से जो नीलामी पर उपस्थित है लिखित प्राधिकार नहीं प्राप्त कर लेता।
  3. जहाँ जैसे है (as is where is) की शर्त पर वस्तुओं का विक्रय किया जायेगा। न्यूनतम बोली/कीमत को पूर्व में घोषित कर दिया जायेगा। इसके लिए बोली पंजी (बिड रजिस्टर) फार्म पर बनाया जाएगा। प्रत्येक सामग्री या लाट के लिए अलग-अलग पृष्ठों पर बिड लाये जायेगे। कोई भी गारंटी या वारंटी नहीं होगा तथा कोई शिकायत स्वीकार्य नहीं होगी। बोली बोलने वाले पूर्व में भण्डार की पूर्व जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
  4. जब सामान को ढेर (lot) के स्थान पर माप तथा संख्या द्वारा नीलाम किये जाने का प्रस्ताव होता है तो इसकी घोषणा नीलामी के पूर्व की जानी चाहिए। ऐसे मामलों में बोली प्रत्येक संख्या एवं माप के लिए की जायेगी।
  5. नीलामी संचालित करने वाला अधिकारी यदि यह समझता है कि बोली लगाने वाले समूह (रिंग) गठित कर रहे हैं तथा इसके परिणामस्वरूप नीलामी में प्रस्तावित सामान के लिए उचित मूल्य नहीं प्राप्त किया जा सकेगा तो वह नीलामी को स्थगित कर सकेगा।
  6. परिसर में रखे गये या विज्ञापित किये गये किसी सामान को नीलामी संचालित करने वाला अधिकारी बिना कारण बताये नीलामी से रोकने के लिए अधिकृत होगा।
  7. बोली के अंतिम होते ही मूल्य का 25 प्रतिशत अर्नेस्ट मनी के रूप में तत्काल नगद जमा करा लिया जायेगा। इस हेतु चेक, बैंक ड्राफ्ट या हुंडी स्वीकार्य नहीं होंगे। नीलामी कराने वाला अधिकारी बिना कारण बताये ही अन्तिम बोली लगाने वाले व्यक्ति से 25 प्रतिशत के ऊपर वस्तु के पूर्ण कीमत तक की अर्नेस्ट  मनी की मांग कर सकता है।
  8. अर्नेस्ट मनी जमा न करने की दशा में बोली तत्काल निरस्त कर दी जायेगी तथा अगले उच्चतम बोली लगाने वाले को भण्डार बेचा जा सकेगा या पुन: नीलामी की जा सकेगी। अग्रिम धन जमा करने में असफल बोली लगाने वाले के विरूद्ध शासन को विधिसम्मत कार्यवाही करने का अधिकार सुरक्षित रहेगा।
  9. बोली लगाने वाला व्यक्ति यदि बोली के अन्तर्गत निर्धारित शर्तों को पूरा नहीं करता तो वह भारतीय दण्ड संहिता की धारा-185 के अन्तर्गत अभियोजन के लिए दायी होगा।
  10. सक्षम प्राधिकारी द्वारा बोली के अनुमोदन के पश्चात शेष धनराशि को उसी जिले की ट्रेजरी में सात दिनों के भीतर जमा किया जायेगा।
  11. यदि सफल बोली लगाने वाला निर्धारित समय के अन्तर्गत धनराशि जमा करने में असफल रहता है तो उसके पक्ष में नीलामी को निरस्त कर दिया जायेगा तथा अग्रिम को जब्त कर लिया जायेगा साथ ही सामान को अगले उच्चतम बोली लगाने वाले को प्रस्तावित किया जायेगा किन्तु शर्त यह है कि 25 प्रतिशत जब्त धनराशि को शामिल करते हुए उसकी बोली उच्चतम बोली लगाने वाले द्वारा प्रस्तावित बोली से कम नहीं होगा अन्यथा वस्तु की नीलामी पुन: की जानी चाहिए।
  12. सफल बोली को सक्षम अधिकारी द्वारा स्वीकार किये जाने की लम्बित दशा में बोली लगाने वाला नीलामी के परिसर के अन्तर्गत अपने उत्तरदायित्व पर सामान की अभिरक्षा की उचित व्यवस्था कर सकेगा।
  13. पूर्ण भुगतान के बाद सक्षम अधिकारी द्वारा नीलामी की गयी वस्तु बोली लगाने वाले को उपलब्ध करायी जायेगी।
  14. सक्षम अधिकारी या किसी अन्य राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में वस्तु को परिसर से उठाया जा सकेगा।
  15. भुगतान हो जाने के सात दिनों के अन्दर माल उठाना आवश्यक होगा अन्यथा सक्षम अधिकारी द्वारा माल स्टोर करने एवं इसकी अभिरक्षा हेतु एक प्रतिशत प्रतिदिन की दर से (विक्रय मूल्य पर)  अतिरिक्त प्रभार निर्धारित किया जा सकेगा।
  16. यदि शासन या सक्षम अधिकारी स्वीकृत बोली को अनुमोदित नहीं करते हैं तो बोली लगाने वाले के द्वारा जमा की गयी अर्नेस्ट मनी लौटा दी जायेगी तथा उसके पक्ष में किया गया नीलामी शून्य (नल एण्ड वायड) हो जाएगा।
  17. चुंगी अथवा अन्य किसी कर की देयता जो विधि के अधीन बकाया हो क्रेता की होगी।
  18. गाड़ी नीलामी की दशा में रजिस्ट्रेशन पत्र एवं अन्य अभिलेख क्रेता को दे दिया जायेगा यदि वह वैध है। यदि वाहन के अभिलेख विभाग द्वारा नवीनीकृत नहीं कराये गये हो तथा इसे अपने व्यय पर क्रेता द्वारा नवीनीकृत किया गया हो तो इस कारण वाहन के सम्बन्ध में कोई दावा स्वीकार नहीं किया जायेगा।
  19. विवाद की स्थिति उत्पन्न होने पर विभागाध्यक्ष/सचिव द्वारा नामित व्यक्ति द्वारा पंचाट किया जाएगा जिसका निर्णय उभय पक्षों को मान्य होगा।
  20. किसी मुकदमें की स्थिति उत्पन्न होने पर बाद संस्थित करने के लिए क्षेत्राधिकार वह स्थान होगा जहाँ नीलामी की गयी हो।
  21. विक्रय लेखा का प्रारूप फार्म बी पर तैयार किया जाना चाहिए। विक्रय लेखा उस अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित किया जाना चाहिए, जो अतिशेष सामान की रिपोर्ट के साथ विक्रय लेखा में की गयी प्रविष्टियों की तुलना करने के बाद बोली का पर्यवेक्षण किया हो। किसी अन्य अधिकारी द्वारा सामान अवमुक्त किये जाने की दशा में विक्रय लेखा की कालम-9 की प्रविष्टि को ऐसे अधिकारी के हस्ताक्षर से प्रमाणित किया जायेगा।
  22. अप्रयोज्य, पुराना या आवश्यकता से अधिक घोषित करने वाले आदेश की प्रति महालेखाकार,  उ0प्र0 को भेजी जायेगी।
  23. बोली में भाग लेने की अनुमति दिये जाने के पूर्व बोली के प्रतिभागियों से यह लिखित रूप से प्राप्त किया जायेगा कि वे इन नियमों में निर्धारित शर्तों एवं निबन्धनों को यथावत स्वीकार करते हैं।
25.    निष्प्रयोज्य वाहनों की नीलामी
                वाहन के निरन्तर उपयोग के क्रम में एक ऐसी स्थिति आती है जब मरम्मत के पश्चात भी वाहन का समुचित रूप से चल पाना संभव नहीं हो पाता है। ऐसी मरम्मत पर होने वाला व्यय भी वाहन के पुस्तकीय मूल्य से अधिक होने की दशा में आर्थिक दृष्टिकोण से भी यह उचित जान पड़ता है कि वाहन को निष्प्रयोज्य घोषित कर उसके निस्तारण की कार्यवाही की जाय। साथ ही कभी-कभी किसी दुर्घटना में वाहन को अधिक क्षति पहुँचने/वाहन चालन मितव्ययी न होने सम्बन्धी विशेष कारणों से वाहन को निष्प्रयोज्य घोषित करने की आवश्यकता होती है।
(क)    निष्प्रयोज्य घोषित करने के मापदण्ड
                    परिवहन विभाग के शासनादेश संख्या 3817/30-4-24 के एम-76 दिनांक 31 अक्टूबर 1986 के अन्तर्गत वाहन को निष्प्रयोज्य घोषित करने के मापदण्ड निम्नवत निर्धारित किये गये हैं:-
(1)    तीन टन व उसके अधिक क्षमता वाली डीजल मोटर गाड़ियाँ :-
                (क)    मैदानी क्षेत्र :- ऐसी गाड़ियाँ जो मैदानी भाग पर कम से कम 15 वर्ष चल चुकी हों अथवा उन्हें 4.50 लाख किमी0 की दूरी तय कर ली हो, उन्हें निष्प्रयोज्य घोषित करने पर विचार किया जा सकता है।
                (ख)    पहाड़ी क्षेत्र :- पहाड़ी मार्ग पर कम से कम दस वर्ष चल चुकी अथवा 3.25 लाख किमी0 की दूरी तय कर चुकी गाड़ियों को निष्प्रयोज्य घोषित करने पर विचार किया जा सकता है।
(2)    तीन टन व उससे अधिक क्षमता वाले पेट्रोल चलित गाड़ियाँ :-
                (क)    मैदानी क्षेत्र :- मैदानी मार्गों पर कम से कम 12 वर्ष तक चल चुकी अथवा 2.25 लाख किमी0 की दूरी तय कर चुकी गाड़ियों को निष्प्रयोज्य घोषित किये जाने पर विचार किया जा सकता है।
                (ख)    पहाड़ी क्षेत्र :- पहाड़ी मार्गों पर कम से कम 8 वर्ष तक चल चुकी अथवा 1.60 लाख किमी0 की दूरी तय कर चुकी गाड़ियों को निष्प्रयोज्य घोषित किये जाने पर विचार किया जा सकता है।
(3)    तीन टन से कम क्षमता वाली सामान्य मोटर गाड़ियाँ :-
                (क)    मैदानी क्षेत्र :- मैदानी मार्गों पर चलने वाली उन हल्की तथा सामान्य गाड़ियों को, जो कम से कम 10 वर्ष तक चल चुकी हों या उन्होंने 1.75 लाख किमी0 की दूरी तय कर ली हो, निष्प्रयोज्य घोषित करने पर विचार किया जा सकता है।
                (ख)    पहाड़ी क्षेत्र :- पहाड़ी मार्गों पर चलने वाली उन हल्की तथा सामान्य गाड़ियों को जो कम से कम 8 वर्ष तक चल चुकी हों या जिन्होनें 1.50 लाख किमी0 की दूरी तय कर ली हो निष्प्रयोज्य घोषित करने पर विचार किया जा सकता है।
(4)    मोटर साइकिल/स्कूटर
                3.5 हार्स पावर या अधिक  शक्ति के इंजन वाली गाड़ियों को 1,00,000 (एक लाख) किमी0 की दूरी तय करने अथवा 5 वर्ष की अवधि पूर्ण करने के उपरान्त निष्प्रयोज्य घोषित करने पर विचार किया जा सकता है।
(5)    जीप अथवा गाड़ियों द्वारा खींचे जाने वाले ट्रेलर
                मैदानी मार्गों पर 12 वर्ष तथा पर्वतीय मार्गों पर 10 वर्ष चलने के उपरान्त ट्रेलर को निष्प्रयोज्य घोषित करने पर विचार किया जा सकता है।
                उपरोक्त्त प्रस्तर (1) से (5) तक दिये गये मापदण्ड संबंधित वाहन के सामान्य चालन के संदर्भ में हैं। राजकीय वाहन के दुर्घटना हो जाने अथवा किसी विशेष परिस्थितियों में वाहन का संचालन व मरम्मत मितव्ययी न होने की दशा में, परिवहन आयुक्त द्वारा गठित तकनीकी अधिकारियों की एक समिति द्वारा  की गई प्राविधिक जाँच के आधार पर परिवहन आयुक्त, उ0प्र0 द्वारा सम्बन्धित वाहन को निष्प्रयोज्य घोषित किये जाने पर विचार किया जा सकता है।
                उक्त कार्य हेतु गठित समिति के सदस्य निम्नानुसार होंगे।
            (1)    संभागीय परिवहन अधिकारी अथवा उसके द्वारा नामित सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी (प्रशासन/प्रर्वतन/प्राविधिक)।
                (2)    क्षेत्रीय सेवा प्रबंधन उत्तर प्रदेश सड़क परिवहन निगम।
                (3)    संबंधित क्षेत्र के संभागीय निरीक्षक/सहायक संभागीय निरीक्षक (प्राविधिक)।
(ख)    सरकारी वाहनों को निष्प्रयोज्य घोषित करने का अधिकार
                शासनादेश संख्या 2747/30-4-97 के0एम0-76, दिनांक  4-10-97  के द्वारा पूर्व व्यवस्था को संशोधित करते हुए मंडलायुक्तों के क्षेत्रार्न्तगत मंडल स्तरीय एवं जिला स्तरीय सरकारी गाड़ियों को निष्प्रयोज्य घोषित करने के लिए संबंधित मण्डलायुक्तों को अधिकृत किया गया है तथा विभागाध्यक्षों के मुख्यालय स्तरीय गाड़ियों को निष्प्रयोज्य घोषित करने का अधिकार संबंधित विभागाध्यक्षों को प्रदान किया गया है। गाड़ियों को निष्प्रयोज्य घोषित करने के क्रम में निर्धारित प्रमाण पत्र भी उन्हीं  के स्तर से निर्गत किया जायेगा।
                किसी सरकारी वाहन को निष्प्रयोज्य घोषित करने विषयक निष्प्रयोज्य प्रमाण पत्र में मण्डलायुक्त/विभागाध्यक्ष द्वारा यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि वाहन का निष्प्रयोज्य घोषित किया जाना आर्थिक दृष्टिकोण से मितव्ययी है। निष्प्रयोज्य प्रमाण पत्र में यह भी प्रमाणित किया जायेगा कि वाहन के मरम्मत पर व्यय की गयी धनराशि (ईंधन को छोड़कर) वाहन के वर्तमान क्रय मूल्य के धनराशि के 65 प्रतिशत से अधिक नहीं है। इस प्रमाण पत्र में वाहन के न्यूनतम अपेक्षित मूल्य का भी उल्लेख किया जायेगा।
(ग)    वाहन के न्यूनतम मूल्य के निर्धारण सम्बन्धी नियम
                न्यूनतम मूल्य के निर्धारण की प्रक्रिया शासनादेश संख्या-2747/30-4-97 24 के0एम0/76, दिनांक 04 अक्टूबर, 1997 के द्वारा संशोधित कर दिया गया है। न्यूनतम मूल्य निर्धारित करने के लिए वाहन के जीवनकाल और उसके द्वारा तय की गयी दूरी दोनों मापदण्डों को ध्यान में रखा जायेगा। वाहन द्वारा दोनों मापदण्डों को अक्षरश: पूरा करने की दशा में उसका न्यूनतम मूल्य उसके वर्तमान क्रय मूल्य के 10 प्रतिशत के बराबर होगा। यदि वाहन को निष्प्रयोज्य घोषित करते समय दोनों में से किसी एक मापदण्ड की पूर्ति नहीं हो रही है तो मापदण्ड की पूर्ति में जितनी कमी होगी उस अनुपात में वाहन का न्यूनतम मूल्य बढ़ जायेगा। मापदण्डों के पूरे होने की स्थिति में तकनीकी जाँच और न्यूनतम मूल्य के निर्धारण में प्राविधिक निरीक्षकों के सहयोग की आवश्यकता नहीं होगी।
                मापदण्डों के पूरे होने की स्थिति में विभागाध्यक्ष द्वारा न्यूनतम मूल्य परिवहन आयुक्त अथवा उसके द्वारा नामित अधिकारी के परामर्श से निर्धारित किया जायेगा।
                वाहन निष्प्रयोज्य घोषित होने के उपरान्त आयुक्त/विभागाध्यक्ष द्वारा यह सुनिश्चित किया जायेगा कि वाहन के मरम्मत एवं ईंधन  पर कोई धन व्यय न किया जाय तथा वाहन की नीलामी तीन माह के अन्दर अवश्य पूरी कर ली जाय।
                उपरोक्त आदेश सचिवालय की गाड़ियों पर लागू नहीं होंगे।
(घ)    वाहनों की नीलामी
            परिवहन अनुभाग-4 के शासनादेश संख्या: 1914/30-4-2002-38/90, दिनांक 5 अगस्त, 2002 में सरकारी विभागों की निष्प्रयोज्य गाड़ियों की नीलामी के सम्बन्ध में व्यवस्था है। विभागाध्‍यक्ष, शासनादेश संख्या-3817/30-4-24 के.एम./86,  दिनांक 31 अक्टूबर, 1986 के अनुसार, वाहनों को पूर्व की भाँति संलग्न प्रपत्रानुसार निष्प्रयोज्य घोषित करेंगे। राज्य मुख्यालय लखनऊ में स्थित शासन एवं विभागाध्यक्ष स्तर पर प्रयुक्त होने वाले वाहनों की नीलामी निम्न समिति के माध्यम से किये जाने की व्यवस्था है-
(क)    शासन स्तरीय समिति
(i) परिवहन आयुक्त या उसके प्रतिनिधि
अध्यक्ष
(ii) विभागाध्यक्ष या विभागाध्यक्ष के कार्यालय में परिवहन की व्यवस्था का कार्य देखने वाले राजपत्रित प्रभारी जिसे विभागाध्यक्ष नामित करेंगे।
सदस्य
(iii)परिवहन आयुक्त कार्यालय में नियुक्त तकनीकी कर्मचारी/अधिकारी जो सहायक संभागीय निरीक्षक (प्राविधिक) से निम्न स्तर का न हो।
सदस्य
(ख)    लखनऊ, कानुपर एवं इलाहाबाद स्थित विभागाध्यक्ष स्तरीय समिति
(i) विभागाध्यक्ष या उनके द्वारा नामित अधिकारी, जो अतिरिक्त विभागाध्यक्ष से कम स्तर का न हो।
अध्यक्ष
(ii) कार्यालयाध्यक्ष या उनके  द्वारा नामित अधिकारी
सदस्य
(iii) सम्भागीय परिवहन अधिकारी, लखनऊ/इलाहाबाद/कानपुर या उसके द्वारा नामित अधिकारी/कर्मचारी, जो सहायक सम्भागीय निरीक्षक (प्राविधिक) से निम्न स्तर का न हो।
सदस्य
3-    जिले स्तर पर प्रयुक्त होने वाले वाहनों की नीलामी जिला मुख्यालय पर तथा मण्डल स्तरीय अधिकारियों द्वारा प्रयुक्त वाहनों की नीलामी मण्डल स्तर के निम्नांकित समितियों द्वारा की जायेगी :-
(क)    जिलास्तरीय समिति
(i) जिलाधिकारी
अध्यक्ष
(ii) संबंधित विभागीय अधिकारी परिवहन
सदस्य
(iii) संबंधित सम्भागीय अधिकारी परिवहन अधिकारी/संभागीय सहायक अधिकारी या उसके द्वारा नामित अधिकारी/कर्मचारी जो सहायक सम्भागीय निरीक्षक (प्राविधिक) से निम्न स्तर का न हो।
सदस्य
(ख)    मण्डल स्तरीय समिति
(i) मण्डलायुक्त
अध्यक्ष
(ii) संबंधित विभागीय अधिकारी
सदस्य
(iii) संबंधित सम्भागीय अधिकारी परिवहन अधिकारी या उसके नामित अधिकारी/कर्मचारी- जो सहायक संभागीय निरीक्षक (प्राविधिक) से निम्न स्तर का न हो।
सदस्य
  1. जनपद एवं मण्डल स्तर पर नीलामी की कार्यवाही प्रत्येक त्रैमास में कम से कम एक बार अवश्य की जायेगी। परिवहन विभाग के मण्डल स्तरीय अधिकारी का यह दायित्व होगा कि जिलाधिकारी/मण्डलायुक्त से संपर्क करके प्रत्येक त्रैमास हेतु नीलामी की तिथि निश्चित करें एवं उनकी सूचना संबंधित सभी अधिकारियों को दें।
  2. विभागाध्यक्ष द्वारा निष्प्रयोज्य गाड़ियों की नीलामी करने से पूर्व न्यूनतम मूल्य का निर्धारण परिवहन आयुक्त अथवा उसके द्वारा नामित अधिकारी के परामर्श द्वारा ठहराए गए मूल्य के आधार पर किया जायेगा।
  3. विभागीय अधिकारियों का यह दायित्व होगा कि वे गाड़ियों के निष्प्रयोज्य होने के तुरन्त बाद उसकी नीलामी किया जाना सुनिश्चित करेंगे और प्रत्येक दशा में 6 माह के अन्दर उसकी नीलामी अवश्य कर देंगे।
               शासनादेशों के अन्तर्गत निष्प्रयोज्य किये जाने वाले वाहन  का न्यूनतम मूल्य वाहन के वर्तमान मूल्‍य के 10 प्रतिशत निर्धारित किया गया है। वाहन के नये यूरो माडल बाजार में आ जाने से पुराने निष्प्रयोज्य वाहन के बाजार मूल्य में गिरावट आयी है जिससे सरकारी वाहनों का न्यूनतम नीलामी मूल्य प्राप्त कर पाना मुश्किल हो रहा है। इस क्रम में परिवहन अनुभाग-4 के शासनादेश संख्या-1288(11)/30.4.2002-24के0एम0/76, दिनांक 11 जून, 2002 के द्वारा निर्धारित प्रक्रिया में आंशिक संशोधन करते हुए निम्न मापदण्ड निर्धारित किया गया है:-
                निर्धारित न्यूनतम नीलामी मूल्य को आरक्षित न्यूनतम नीलामी मूल्य के रूप में रखा जाय और यह प्रयास किया जाय कि न्यूनतम आरक्षित मूल्य पर ही वाहन की नीलामी की जाय। यदि स्थानीय समाचार-पत्रों में व्यापक प्रचार-प्रसार के बाद भी न्यूनतम नीलामी मूल्य पर वाहन की नीलामी संभव न हो और यदि नीलामी समिति यह उचित समझे कि प्राप्त अधिकतम मूल्य वाहन की, भौतिक स्थिति एवं बाजार मूल्य के दृष्टिगत उचित है तो प्राप्त अकिधतम मूल्य पर वाहन नीलाम किया जा सकता है।
                निष्प्रयोज्य वाहनों के प्रतिस्थापन सम्बन्धी प्रस्तावों पर निर्णय लेते समय नये वाहन के क्रय सम्बन्धी कार्यवाही पूरी कर ली जाती है किन्तु प्रतिस्थापित वाहन के नीलामी सम्बन्धी कार्यवाही तत्परता से पूर्ण नहीं की जाती है, जिससे राजकोष में जमा होने वाली धनराशि विलम्बित हो जाती है। यह नियम सम्मत नहीं है। नये वाहन के क्रय हेतु धन के आहरण के पूर्व निष्प्रयोज्य वाहन की नीलामी एवं विक्रय से प्राप्त धनराशि राजकोष में अवश्य जमा हो जानी चाहिए। अत: इस संबंध में शासन द्वारा अब यह स्पष्ट निर्देश दे दिये गये है कि नये वाहन हेतु स्वीकृत धनराशि के आहरण के समय आहरण वितरण अधिकारी इस बात का भी प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करेंगे कि निष्प्रयोज्य वाहन की समस्त औपचारिकतायें पूर्ण कर नीलामी करा दी गयी है तथा प्राप्त विक्रय राशि राजकोष में जमा करा दी गयी है।
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लेखा शाखा अधिनियम : 4. भण्डार-क्रय, रखरखाव एवं निस्तारण Reviewed by Brijesh Shrivastava on 1:57 PM Rating: 5

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