सूचना का अधिकार : जन सूचना अधिकारियों के लिए मार्गदर्शिका

सूचना का अधिकार अधिनियम - 2005
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 नागरिकों को किसी भी "लोक प्राधिकरण" (Public Authority) से सूचना प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है। किसी लोक प्राधिकरण का जन सूचना अधिकारी नागरिकों के सूचना के अधिकार को मूर्त रूप देने में मुख्य भूमिका निभाता है। अधिनियम उसे विशिष्ट कार्य सौंपता है और किसी त्रुटि के मामले में उसे शास्ति हेतु जवाबदेह ठहराता है। अत: जन सूचना अधिकारी के लिए यह आवश्यक है कि वह अधिनियम का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें और इसके प्रावधानों को भली-.भाँति समझें।
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सूचना क्या है? 
किसी भी स्वरूप में कोई भी सामग्री "सूचना" है। इसमें किसी भी इलेक्ट्रानिक रूप में धारित अभिलेख, दस्तावेज, ज्ञापन, ई-मेल, मत, सलाह, प्रेस, विज्ञप्ति, परिपत्र, आदेश, लॉगबुक, संविदा, रिपोर्ट, कागजपत्र, नमूने, माडल, ऑकड़ा सम्बन्धी सामग्री शामिल है। इसमें किसी निजी निकाय से सम्‍बन्धित ऐसी सूचना शामिल है जिसे लोक प्राधिकरण तत्समय लागू किसी कानून के अन्तर्गत प्राप्त सकता है।

अधिनियम के अन्तर्गत सूचना का अधिकार
किसी नागरिक को किसी लोक प्राधिकरण (Public Authority) से ऐसी सूचना माँगने का अधिकार है, जो उस लोक प्राधिकरण के पास उपलब्ध है या उसके नियंत्रण में उपलब्ध है। इस अधिकार में लोक प्राधिकरण के पास या नियंत्रण में उपलब्ध कृति, दस्तावेजों तथा रिकार्डों का निरीक्षण, दस्तावेजों या रिकार्डों के नोट, उद्धरण या प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना, सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना शामिल है।

  • अधिनियम नागरिकों को, संसद-सदस्यों और राज्य विधान मण्डल के सदस्यों के बराबर सूचना का अधिकार प्रदान करता है। अधिनियम के अनुसार ऐसी सूचना, जिसे संसद अथवा राज्य विधानमण्डल को देने से इन्कार नहीं किया जा सकता, उसे किसी व्यक्ति को देने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता।
  • नागरिकों को डिस्केट्स, फ्लापी, टेप, वीडियों कैसेट या किसी अन्य इलेक्ट्रानिक रूप में अथवा प्रिंट आउट के रूप में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है, बशर्ते कि मांगी गई सूचना कम्प्यूटर में या अन्य किसी युक्ति में पहले से सुरक्षित है, जिससे उसे डिस्केट आदि में स्थानांतरित किया जा सके।
  • आवेदक को सूचना सामान्यत: उसी रूप में प्रदान की जानी चाहिए, जिससे वह मांगता है। तथापि, यदि किसी विशेष स्वरूप में माँगी गई सूचना की आपूर्ति से लोक प्राधिकरण के संसाधनों का अनपेक्षित ढंग से विचलन होता है या इससे रिकार्डों के परिरक्षण में कोई हानि की सम्भावना होती है, तो उस रूप में सूचना देने से मना किया जा सकता है।
  • अधिनियम के अन्तर्गत सूचना का अधिकार केवल भारत के नागरिकों को प्राप्त है। अधिनियम में नियम, संघ, कम्पनी आदि को, जो वैध हस्तियों/व्यक्तियों की परिभाषा के अन्तर्गत तो आते है, किंतु नागरिक की परिभाषा में नहीं आते, को सूचना देने का कोई प्रावधान नहीं है। फिर भी, यदि किसी निगम, संघ, कम्पनी, गैर सरकारी संगठन आदि के किसी ऐसे कर्मचारी या अधिकारी द्वारा प्रार्थना पत्र दिया जाता है, जो भारत का नागरिक है, तो उसे सूचना दी जायेगी, बशर्ते वह अपना नाम इंगित करें। ऐसे मामले में, यह प्रकल्पित होगा कि एक नागरिक द्वारा निगम आदि के पते पर सूचना माँगी गई है।
  • अधिनियम के अन्तर्गत केवल ऐसी सूचना प्रदान करना अपेक्षित है, जो लोक प्राधिकरण के पास पहले से मौजूद है अथवा उसके नियंत्रण में है। जन सूचना अधिकारी द्वारा सूचना सृजित करना, या सूचना की व्याख्या करना, या आवेदक द्वारा उठाई गई समस्याओं का समाधान करना, या काल्पनिक प्रश्नों का उत्तर देना अपेक्षित नहीं है।
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    प्रकटीकरण से छूट प्राप्त सूचना
    इस अधिनियम की धारा 8 की उप-धारा (1) और धारा 9 में सूचना की ऐसी श्रेणियों का विवरण दिया गया है, जिन्हें प्रकटीकरण से छूट प्राप्त है। फिर भी, धारा 8 की उप-धारा (2) में यह प्रावधान है कि उप-धारा (1) के अन्तर्गत छूट प्राप्त अथवा शासकीय गोपनीय अधिनियम, 1923 के अन्तर्गत छूट प्राप्त सूचना का प्रकटीकरण किया जा सकता यदि प्रकटीकरण से, संरक्षित हित को होने वाले नुकसान की अपेक्षा वृहत्तर लोक हित सधता हो। इसके अलावा धारा 8 की उप-धारा (3) में यह प्रावधान है कि उप-धारा (1)के खण्ड (क), (ग), और (झ) में उपबन्धित सूचना के सिवाय उस उप-धारा के अन्तर्गत प्रकटीकरण से छूट प्राप्त सूचना, सम्बंधित घटना के घटित होने की तारीख के 20 वर्ष बाद प्रकटीकरण से मुक्त नहीं रहेगी।

    स्मरणीय है कि अधिनियम की धारा 8 (3) के अनुसार लोक प्राधिकरियों (Public Authority) से यह अपेक्षा नहीं की गई है कि वे अभिलेखों को अनन्त काल तक सुरक्षित रखें। लोक प्राधिकरण को प्राधिकरण में लागू अभिलेख धारण अनुसूची के अनुसार ही अभिलेखों को संरक्षित रखना चाहिए। किसी फाइल में सृजित जानकारी फाइल/अभिलेख के नष्ट हो जाने के बाद भी कार्यालय ज्ञापन अथवा पत्र अथवा किसी भी अन्य रूप में मौजूद रह सकता है। अधिनियम के अनुसार यह अपेक्षित है कि धारा 8 की उप-धारा (1) के अन्तर्गत-प्रकटन से छूट प्राप्त होने के बावजूद भी, 20 वर्ष बाद इस प्रकार उपलब्ध जानकारी उपलब्ध करा दी जाये। अर्थ यह है कि ऐसी जानकारी जिसे सामान्य रूप से अधिनियम की धारा 8 की उप-धारा (1) के अन्तर्गत प्रकटन से छूट प्राप्त है, जानकारी से सम्बन्धित घटना के घटित होने के 20 वर्ष बाद ऐसी छूट से मुक्त हो जायेगी। तथापि, निम्नलिखित प्रकार की जानकारी के लिए प्रकटन से छूट जारी रहेगी और 20 वर्ष बीत जाने के बाद भी ऐसी जानकारी को किसी नागरिक को देना बाध्यकारी नहीं होगा-
  1. ऐसी जानकारी जिसके प्रकटन से भारत की संप्रभुता और अखण्डता, राष्ट्र की सुरक्षा, सामरिक, वैज्ञानिक और आर्थिक हित, विदेश के साथ सम्बन्ध प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती हो अथवा किसी अपराध को करने का उद्दीपन होता हो। 
  2. ऐसी जानकारी जिसके प्रकटन से विधान मण्डल के विशेषाधिकार की अवहेलना होती हो, अथवा
  3. अधिनियम की धारा 8 की उप-धारा (1) के खण्ड (झ) के प्रावधान में दी गई शर्तों के अधीन मंत्रिपरिषद, सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श सहित मंत्रिमण्डलीय दस्तावेज। सूचना का अधिकार का अध्यारोही प्रभाव होना
  • सूचना का अधिकार अधिनियम के उपबन्ध, शासकीय गोपनीयता अधिनियम, 1923 और तत्समय प्रभावी किसी अन्य कानून में ऐसे प्रावधान, जो सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों से असंगत है, की स्थिति में सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधान प्रभावी होंगे। 
आवेदकों को सहायता प्रदान करना
जन सूचना अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह सूचना माँगने वाले व्यक्तियों को युक्तियुक्त सहायता प्रदान करें। अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सूचना प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति से अपेक्षित है कि वह अंग्रेजी अथवा हिन्दी अथवा जिस क्षेत्र में आवेदन किया जाना है, उस क्षेत्र की राजकीय भाषा में लिखित अथवा इलेक्ट्रानिक माध्यम से अपना निवेदन प्रस्तुत करे। यदि कोई व्यक्ति लिखित अथवा इलेक्ट्रानिक माध्यम से अपना निवेदन प्रस्तुत करे। यदि कोई व्यक्ति लिखित रूप से निवेदन देने में असमर्थ है, तो जन सूचना अधिकारी से अपेक्षा की जाती है कि वह ऐसे व्यक्ति को लिखित रूप में आवेदन तैयार करने में युक्तियुक्त सहायता करेगा।

यदि किसी दस्तावेज को, संवेदनात्मक रूप से नि:शक्त व्यक्ति को उपलब्ध कराना अपेक्षित है, तो जन सूचना अधिकारी को ऐसे व्यक्ति को समुचित सहायता प्रदान करनी चाहिए, ताकि वह सूचना प्राप्त करने में सक्षम हो सके। यदि दस्तावेज की जाँच करनी हो, तो उस व्यक्ति को ऐसी जाँच के लिए उपयुक्त सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
जन सूचना अधिकारी को उपलब्ध सहायता
जन सूचना अधिकारी किसी भी अन्य अधिकारी से ऐसी सहायता माँग सकता है, जिसे वह अपने कर्तव्य के समुचित निर्वहन के लिए आवश्यक समझता हो। अधिकारी, जिससे सहायता माँगी जाती है, जन सूचना अधिकारी को सभी प्रकार की सहायता प्रदान करेगा। ऐसे अधिकारी को जन सूचना अधिकारी माना जाएगा और वह अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए उसी प्रकार उत्तरदायी होगा, जिस प्रकार कोई अन्य जन सूचना अधिकारी होता है। जन सूचना अधिकारी के लिए यह उचित होगा कि जब वह किसी अधिकारी से सहायता माँगे, तो उस अधिकारी को उपर्युक्त प्रावधान से अवगत करा दे।
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सूचना का अपनी ओर से प्रकटन
अधिनियम की धारा 4 के प्रावधानों के अनुसार प्रत्येक लोक प्राधिकरण (Public Authority) के लिए अपने संगठन, इसके क्रियाकलापों, कर्तव्यों और अन्य विषयों आदि के ब्यौरों का स्वत: प्रकटन करना बाध्यकारी है। धारा 4 की उप-धारा (4) के अनुसार, इस प्रकार से प्रकाशित जानकारी बाध्यकारी है। धारा 4 की उप-धारा (4) के अनुसार, इस प्रकार से प्रकाशित जानकारी इलेक्ट्रानिक फार्मेट में जन सूचना अधिकारी के पास सुलभ होनी चाहिए। जन सूचना अधिकारी को यह सुनिश्चित करने का भरसक प्रयास करना चाहिए कि लोक प्राधिकारी द्वारा धारा 4 की अपेक्षाएं पूरी की जाएं और लोक प्राधिकरण के संबंध में अधिकतम सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध हो। इससे दो लाभ होंगे, प्रथम, अधिनियम के अंतर्गत आवेदनों की संख्या में कमी आएगी और द्वितीय, यह सूचना प्रदान करने के कार्य को सुकर बनाएगा, क्योंकि अधिकतर सूचना एक ही स्थान पर उपलब्ध होगी।
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सूचना माँगने का शुल्क
आवेदनकर्ता से अपेक्षित है कि वह अपने आवेदन पत्र के साथ आवेदन शुल्क 10/- (दस रूपए) डिमांड ड्राफ्ट अथवा बैंकर्स चेक अथवा भारतीय पोस्टल ऑर्डर के रूप में लोक प्राधिकरण के नाम से भेजें। शुल्क का भुगतान लोक प्राधिकरण अथवा जन सूचना अधिकारी अथवा सहायक जन सूचना अधिकारी को नकद भी किया जा सकता है। ऐसी में आवेदनकर्ता को उपयुक्त रसीद अवश्य प्राप्त कर लेनी चाहिए।

सूचना की आपूर्ति के लिए उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार (फीस और लागत विनियमन) नियमावली, 2006 के द्वारा शुल्क का प्रावधान भी किया गया है, जो निम्नानुसार है:-
  • सृजित अथवा फोटोकॉपी किए हुए प्रत्येक पृष्ठ के लिए (ए 4 अथवा ए 3 आकार के कागज के लिए) दो रूपए (2/- रूपये)
  • बड़े आकार के कागज में कापी का वास्तविक प्रभार अथवा लागत कीमत,
  • नमूनों या मॉडलों के लिए वास्तविक लागत अथवा कीमत,
  • अभिलेखों के निरीक्षण के लिए, पहले घण्टे के लिए दस रूपए का शुल्क और उसके बाद पन्द्रह मिनट (या उसके खण्ड) के लिए पाँच रूपए का शुल्क,
  • डिस्केट अथवा फ्लापी में सूचना प्रदान करने के लिए प्रत्येक डिस्केट अथवा फ्लापी पचास रूपए (50/- रूपये), और
  • मुद्रित रूप में दी गई सूचना के लिए, ऐसे प्रकाशन के लिए नियत मूल्य पर अथवा प्रकाशन के उद्धरणों की फोटोकापी के लिए दो रूपए प्रति पृष्ठ।
गरीबी रेखा के नीचे की श्रेणी के अंतर्गत आने वाले आवेदनकर्ताओं को किसी प्रकार का शुल्क देने की आवश्यकता नहीं है। तथापि, उसे गरीबी रेखा के नीचे के स्तर का होने के दावे का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होगा। आवेदन के साथ निर्धारित 10/- रूपये के शुल्क अथवा आवेदनकर्ता के गरीबी रेखा के नीचे वाला होने का प्रमाण, जैसा भी मामला हो, नहीं होने पर आवेदन को अधिनियम के अंतर्गत वैध नहीं माना जाएगा और इसलिए, ऐसे आवेदक को अधिनियम के अंतर्गत सूचना प्राप्त करने का हक नहीं होगा।

आवेदन की विषय-वस्तु और प्रपत्र
आवेदक को सूचना माँगने के लिए उससे सम्पर्क करने के लिए आवश्यक विवरण के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्तिगत ब्यौरा देना आवश्यक नहीं है। साथ ही अधिनियम अथवा प्रवृत्त नियमों में सूचना प्राप्त करने हेतु आवेदन का कोई निर्धारित प्रपत्र नहीं है। इसीलिए, आवेदक से सूचना का निवेदन करने का कारण बताने अथवा अपने रोजगार इत्यादि का ब्यौरा देने अथवा किसी विशेश प्रपत्र पर आवेदन प्रस्तुत करने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए।
अवैध आवेदन
आवेदन पत्र करने के तुरंत बाद जन सूचना अधिकारी को यह जाँच करना चाहिए कि क्या आवेदक ने 10/- रूपये के आवेदन शुल्क का भुगतान कर दिया है अथवा क्या आवेदक गरीबी रेखा के नीचे के परिवार से है। यदि आवेदन के साथ निर्धारित शुल्क अथवा गरीबी रेखा के नीचे का प्रमाणपत्र संलग्न नहीं है, तो इसे सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत वैध आवेदन नहीं समझा जाएगा। ऐसे आवेदन को अस्वीकृत किया जा सकता है।
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आवेदन का हस्तांतरण
यदि आवेदन के साथ निर्धारित शुल्क अथवा गरीबी रेखा के नीचे का प्रमाणपत्र संलग्न है, तो सूचना अधिकारी को देखना चाहिए कि क्या आवेदन की विषयवस्तु अथवा उसका कोई खण्ड किसी अन्य लोक प्राधिकरण से सम्बन्धित तो नहीं है। यदि आवेदन की विषय-वस्तु किसी अन्य लोक प्राधिकरण से संबंधित हो, तो उक्त आवेदन को सम्बद्ध लोक प्राधिकरण को हस्तांतरित कर दिया जाना चाहिए। यदि आवेदन आंशिक रूप से ही अन्य लोक प्राधिकरण से संबंधित है, तो उस लोक प्राधिकरण से संबंधित खण्ड को स्पष्ट रूप से विनिर्दिष्ट करते हुए आवेदन की एक प्रति उस लोक प्राधिकरण को भेज देनी चाहिए। आवेदन का हस्तांतरण करते समय अथवा उसकी प्रति भेजते समय संबंधित लोक प्राधिकरण को सूचित किया जाना चाहिए कि आवेदन शुल्क प्राप्त कर लिया गया है। आवेदक को उसके आवेदन के स्थानांतरण के बारे में तथा उस लोक प्राधिकरण, जिसको उनका आवेदन अथवा उसकी एक प्रति भेजी गई है, के ब्यौरों के बारे में भी सूचित कर लेना चाहिए।

आवेदन अथवा उसके भाग का हस्तांतरण जितना जल्दी संभव हो, कर देना चाहिए। यह ध्यान रखा जाए कि हस्तांतरण जितना जल्दी संभव हो कर देना चाहिए। यह ध्यान रखा जाए कि हस्तांतरण करने में आवेदन की प्रति की तारीख से पांच दिन से अधिक का समय न लगे। यदि कोई जन सूचना अधिकारी किसी आवेदन की प्राप्ति के पांच दिन के बाद उस आवेदन को स्थानांतरित करता है तो उस आवेदन के निपटान में होने वाले विलम्ब में से से इतने समय के लिए वह जिम्मेदार होगा जो उसने स्थानांतरण में 5 दिन से अधिक लगाया।

उस लोक प्राधिकरण (Public Authority) का जन सूचना अधिकारी जिसे आवेदन हस्तांतरित किया गया है, इस आधार पर आवेदन के हस्तांतरण को नामंजूर नहीं कर सकता है कि उसे आवेदन 5 दिन के भीतर हस्तांतरित नहीं किया गया।

कोई लोक प्राधिकरण (Public Authority) अपने लिए जितने आवश्यक समझे उतने जन सूचना अधिकारी पदनामित कर सकता है। यह सम्भव है कि ऐसे लोक प्राधिकरण जिसमें एक से अधिक जन सूचना अधिकारी हों, कोई आवेदन संबंधित जन सूचना अधिकारी के बजाय किसी अन्य जन सूचना अधिकारी को प्राप्त हो। ऐसे मामले में आवेदन प्राप्त करने वाले जन सूचना अधिकारी को इसे संबंधित जन सूचना अधिकारी को यथाशीघ्र, अधिमानत: उसी दिन हस्तांतरित कर देना चाहिए। हस्तांतरण के लिए पाँच दिन की अवधि केवल तभी लागू होती है जब आवेदन एक लोक प्राधिकरण से दूसरे लोक प्राधिकरण को हस्तांतरित किया जाता है ना कि तब जब हस्तांतरण एक ही प्राधिकरण के ए‍क जन सूचना अधिकारी से दूसरे जन सूचना अधिकारी को हो।
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सूचना की आपूर्ति
सूचना देने वाले जनसूचना अधिकारी को देखना चाहिए कि मांगी गई सूचना अथवा उसका कोई भाग अधिनियम की धारा-8 अथवा 9 के अंतर्गत प्रकटीकरण से छूट से आच्छादित तो नहीं है। प्रकटीकरण से छूट के अंतर्गत आने वाले भाग के संबंध में किए गए अनुरोध को नामंजूर कर दिया जाए तथा शेष सूचना तत्काल अथवा अतिरिक्त शुल्क लेने के बाद, जैसा भी मामला हो, उपलब्ध करवा दी जाए।

सूचना देने से इंकार
 जब सूचना के लिए अनुरोध को नामंजूर किया जाए तो जन सूचना अधिकारी को अनुरोध करने वाले व्यक्ति को निम्नलिखित जानकारी देनी चाहिए :-
  • अस्वीकृति के कारण
  • अवधि जिसमें अस्वीकृत के विरूद्ध अपील दायर की जा सके, और
  • उस प्राधिकारी का ब्यौरा जिससे अपील की जा सकती है।
आवेदक द्वारा अतिरिक्त शुल्क का भुगतान
यदि सूचना का अधिकार (फीस और लागत विनियमन) नियमावली, 2006 में किये गये प्राविधान के अनुसार आवेदक द्वारा अतिरिक्त शुल्क का भुगतान करना अपेक्षित हो, तो जन सूचना अधिकारी आवेदक को निम्न सूचना देगा :-

  • सूचना प्राप्त करने हेतु अपेक्षित शुल्क का विवरण,
  • माँगी गई शुल्क की राशि निर्धारित करने हेतु की गई गणना,
  • यह तथ्य कि आवेदक को इस प्रकार माँगे गये शुल्क के बारे में अपील करने का अधिकार है,
  • उस प्राधिकारी का विवरण जिससे अपील की जा सकती है और
  • समय सीमा जिसके भीतर अपील की जा सकती है।
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पृथक्करण द्वारा आंशिक सूचना की आपूर्ति
यदि किसी ऐसी सूचना के लिए आवेदन प्राप्त होता है और जिसके कुछ भाग को तो प्रकटीकरण से छूट मिली हुई है लेकिन उसका कुछ भाग ऐसा है जो छूट के अन्तर्गत नहीं आता है और जिसे इस प्रकार पृथक किया जा सके कि पृथक किये हुये भाग में छूट प्राप्त जानकारी बच पाये, तो जानकारी के ऐसे पृथक किये हुए भाग रिकार्ड को आवेदक को उपलब्ध कराया जा सकता है। जहाँ रिकार्ड के किसी भाग के प्रकटीकरण को इस तरीके से अनुमति दी जाय तो जन सूचना अधिकारी को आवेदक को यह सूचित करना चाहिए कि माँगी गयी सूचना को प्रकटीकरण से छूट प्राप्त है तथा रिकार्ड के मात्र ऐसे भाग को पृथक्करण के बाद उपलब्ध कराया जा रहा है जिसको प्रकटीकरण से छूट प्राप्त नहीं है। ऐसा करते समय, उसे निर्णय के कारण बताने चाहिये। साथ ही उस सामग्री, जिस पर निष्कर्ष आधारित था, का संदर्भ देते हुए सामग्रीगत प्रश्नों पर निष्कर्ष भी बताना चाहिए। इन मामलों में जन सूचना अधिकारी को सूचना की आपूर्ति से पहले समुचित प्राधिकारी का अनुमोदन लेना चाहिए तथा निर्णय लेने वाले अधिकारी के नाम तथा पदनाम की सूचना भी आवेदक को देनी चाहिये।

सूचना की आपूर्ति के लिए समय अवधि
जन सूचना अधिकारी को सूचना की आपूर्ति अनुरोध की प्राप्ति के तीस दिनों के भीतर कर देनी चाहिए। यदि माँगी गई सूचना का संबंध किसी व्यक्ति के जीवन अथवा स्वातंत्रय से हो तो सूचना आवेदन की प्राप्ति के अड़तालीस घंटे के भीतर उपलब्ध करना अपेक्षित है।

प्रत्येक लोक प्राधिकरण से अपेक्षित है कि वह प्रत्येक उप प्रभागीय तक अथवा अन्य उप जिला स्तर पर सहायक जन सूचना अधिकारी नामित करेजो अधिनियम के अन्तर्गत आवेदनों अथवा अपीलों को प्राप्त कर सके और उन्हें जन सूचना अधिकारी अथवा अपीलीय प्राधिकारी अथवा राज्‍य सूचना आयोग को अग्रसारित कर सके। यदि सूचना के लिए कोई अनुरोध सहायक जन सूचना अधिकारियों के माध्यम से प्राप्त होता है तो सहायक जन सूचना अधिकारी द्वारा आवेदन प्राप्त होने के 35 दिन के भीतर तथा यदि माँगी गई सूचना व्यक्ति के जीवन तथा स्वातंत्रय से संबंधित हो, तो सूचना अनुरोध प्राप्ति के 48 घंटों जमा 5 दिन के भीतर उपलब्ध करा दी जानी चाहिए।

उपर्युक्त पैरा 21 में संदर्भित एक लोक प्राधिकरण से दूसरे लोक प्राधिकरण को स्थानांतरित किये गये सामान्य आवेदन का उत्तर सम्बंधित लोक प्राधिकरण का उसके द्वारा आवेदन प्राप्ति के 30 दिन के भीतर देना चाहिए। यदि माँगी गई सूचना व्यक्ति के जीवन तथा स्वातंत्र्य से संबंधित हो तो 48 घंटै के भीतर सूचना उपलब्ध करवा दी जानी चाहिए।

यदि आवेदक से सूचना प्राप्त करने हेतु कोई शुल्क देने को कहा जाता है तो शुल्क के भुगतान के बारे में सूचना के प्रेषण तथा आवेदक द्वारा शुल्क का भुगतान करने के बीच की समय अवधि को उत्तर देने की अवधि के उद्देश्य से नहीं गिना जायेगा। निम्न तालिका में विभिन्न परिस्थितियों में आवेदनों के निपटान के लिए निर्धारित समय सीमा को दर्शाया गया है:-

आवेदन का निटान करने हेतु समय-सीमा

1. सामान्य स्थिति में सूचना की आपूर्ति 30 दिन

2. यदि सूचना व्यक्ति के जीवन अथवा स्वातंत्र्य से संबंधित हो तो इसकी आपूर्ति 48 घंटे

3. यदि आवेदन सहायक जन सूचना अधिकारी के माध्यम से प्राप्त होता है तो सूचना की आपूर्ति क्र० सं० 1 तथा 2 पर दर्शायी गई समय अवधि में 5 दिन और जोड़ दिये जायेंगे।

4. यदि आवेदन/अनुरोध अन्य लोक प्राधिकरण से स्थानांतरित होने के बाद प्राप्त होते हैं तो सूचना की आपूर्ति
  • (क) सामान्य स्थिति में - संबंधित लोक प्राधिकरण द्वारा आवेदन की प्राप्ति के 30 दिन के भीतर
  • (ख) यदि सूचना व्यक्ति के जीवन तथा स्वतंत्रता से संबंधित हो - संबंधित लोक प्राधिकरण द्वारा आवेदन की प्राप्ति के 48 घंटों के भीतर
5. यदि सूचना तीसरी पार्टी से संबंधित है तथा तीसरी पार्टी ने इसे गोपनीय माना हो तो सूचना की आपूर्ति इन मार्गनिर्देशों के पैरा 37 से 41 में दी गई प्रक्रिया का पालन करते हुए उपलब्ध करवाई जाये।

6. यदि सूचना की आपूर्ति जिसमें आवेदक को शुल्क का भुगतान करने को कहा गया हो आवेदक को शुल्क के बारे में सूचित करने तथा आवेदक द्वारा शुल्क भुगतान के बीच की अवधि को उत्तर देने की दृष्टि से नहीं गिना जायेगा।
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पर व्यक्ति (Third Party) की सूचना
यदि जन सूचना अधिकारी जानकारी के लिए अनुरोध पर निर्धारित समय में निर्णय देने में असफल रहता है तो यह माना जायेगा कि जन सूचना अधिकारी ने अनुरोध को अस्वीकार कर दिया है। यह बताना प्रासांगिक होगा कि यदि कोई लोक प्राधिकरण सूचना देने की समय सीमा का पालन नहीं कर पाता है तो संबंधित आवेदक को सूचना बिना शुल्क मुहैया करवायी जानी होगी।  इस अधिनियम के संदर्भ में पर व्यक्ति का तात्पर्य आवेदक से भिन्न अन्य व्यक्ति से है। ऐसे लोक प्राधिकरण भी पर व्यक्ति की परिभाषा में शामिल होंगे जिससे सूचना नहीं माँगी गई है।

स्मरणीय है कि वाणिज्यिक गुप्त बातों, व्यवसायिक रहस्यों और बौद्धिक संपदा संहित ऐसी सूचना, जिसके प्रकटन से किसी पर व्यक्ति की प्रतियोगी स्थिति को क्षति पहुँचती हो, को प्रकटन से छूट प्राप्त है। धारा-8 (1) (घ) के अनुसार यह अपेक्षित है कि ऐसी सूचना को प्रकट न किया जाय जब तक कि सक्षम प्राधिकारी इस बात से आश्वस्त न हो कि ऐसी सूचना का प्राकटन वृहत लोक हित में है।

यदि कोई आवेदक ऐसी सूचना माँगता है जो किसी पर व्यक्ति से संबंध रखती है अथवा उसके द्वारा उपलब्ध करवायी जाती है और पर व्यक्ति ने ऐसी सूचना को गोपनीय माना है, तो जन सूचना अधिकारी से अपेक्षित है कि वह सूचना को प्रकट करने अथवा न करने पर विचार करें। ऐसे मामलों में मार्गदर्शी सिद्धान्त यह होना चाहिये कि यदि प्रकटन से पर व्यक्ति को संभावित हानि की अपेक्षा वृहत्तर लोक हित सधता हो तो प्रकटन की स्वीकृति दे दी जाय बशर्ते कि सूचना कानून द्वारा संरक्षित व्यवसायिक अथवा वाणिज्यिक रहस्यों से संबंधित न हो। तथापि ऐसी सूचना के प्रकटन से पहले नीचे दी गयी प्रक्रिया को अपनाया जाये। यह ध्यान देने योग्य बात है कि इस प्रक्रिया को केवल तभी अपनाया जाना है जब पर व्यक्ति ने सूचना को गोपनीय माना हो।

यदि जन सूचना अधिकारी सूचना को प्रकट करना उचित समझता है तो उसे आवेदन प्राप्ति की तारीख के 5 दिन के भीतर, तीसरी पार्टी को एक लिखित सूचना देनी चाहिए कि सूचना का अधिकार अधिनियम से तहत आवेदक द्वारा सूचना माँगी गई है और कि वह सूचना को प्रकट करना चाहता है। उसे पर व्यक्ति से निवेदन करना चाहिए कि पर व्यक्ति लिखित अथवा मौखिक रूप से सूचना को प्रकट करने या न करने के सम्बन्ध में अपना पक्ष रखे। पर व्यक्ति को प्रस्तावित प्रकटन के विरूद्ध प्रतिवेदन करने के लिए 10 दिन का समय दिया जाना चाहिये।

जन सूचना अधिकारी को चाहिये कि वह पर व्यक्ति के निवेदन को ध्यान में रखते हुए सूचना के प्रकटन के संबंध में निर्णय लें। ऐसा निर्णय सूचना के अनुरोध की प्राप्ति से 40 दिन के भीतर ले लिया जाना चाहिए। निर्णय लिये जाने के पश्चात जन सूचना अधिकारी को लिखित में पर व्यक्ति को अपने निर्णय की सूचना देनी चाहिये। पर व्यक्ति को सूचना देते समय यह भी बताना चाहिये कि पर व्यक्ति को धारा 19 के अधीन अपील करने का हक है।

पर व्यक्ति जन सूचना अधिकारी द्वारा दिए गए निर्णय की प्राप्ति के तीस दिन के अन्दर प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील कर सकता है। यदि पर व्यक्ति प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के निर्णय से संतुष्ट न हो, तो वह राज्य सूचना आयोग के समक्ष द्वितीय अपील कर सकता है।

यदि पर व्यक्ति द्वारा जन सूचना अधिकारी के सूचना प्रकट करने के निर्णय के विरूद्ध कोई अपील योजित की जाती है, तो ऐसी सूचना को तब तक प्रकट नहीं किया जाना चाहिये जब तक कि अपील पर निर्णय न ले लिया जाए।

अपील और शिकायतें
यदि किसी आवेदक को निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना उपलब्ध नहीं करवाई जाती है, अथवा वह दी गई सूचना से संतुष्ट नहीं होता है, तो वह प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील कर सकता है। प्रथम अपीलीय प्राधिकारी जन सूचना अधिकारी से रैंक में वरिष्ठ अधिकारी होता है। ऐसी अपील सूचना उपलब्ध कराए जाने की समय-सीमा के समाप्त होने अथवा जन सूचना अधिकारी के निर्णय के प्राप्त होने की तारीख से 30 दिन की अवधि के भीतर की जा सकती है। लोक प्राधिकरण के अपीलीय प्राधिकारी से अपेक्षा की जाती है कि वह अपील की प्राप्ति के तीस दिन की अवधि के भीतर अथवा विशेष मामलों में 45 दिन के भीतर अपील का निपटारा कर दे। यदि प्रथम अपीलीय प्राधिकारी निर्धारित अवधि के भीतर अपील पर आदेश पारित करने में असफल रहता है अथवा यदि अपीलकर्ता प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के आदेश से संतुष्ट नहीं होता है, तो वह प्रथम अपीलीय प्राधिकारी द्वारा निर्णय किए जाने की निर्धारित समय-सीमा समाप्त होने अथवा अपीलकर्ता द्वारा वास्तविक रूप में निर्णय की प्राप्ति की तारीख से नब्बे दिन के भीतर राज्य सूचना आयोग के समक्ष द्वितीय अपील दायर कर सकता है।
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यदि कोई व्यक्ति संबंधित लोक प्राधिकरण द्वारा जन सूचना अधिकारी नियुक्त न किये जाने के कारण आवेदन करने में असमर्थ रहता है, अथवा जन सूचना अधिकारी उसके आवेदन अथवा अपील को संबंधित जन सूचना अधिकारी अथवा अपीलीय प्राधिकारी को भेजने के लिए स्वीकार करने से इंकार करता है, अथवा सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन सूचना को पाने के उसके अनुरोध को ठुकरा दिया जाता है, अथवा अधिनियम में निर्धारित समय-सीमा के भीतर उसके सूचना प्राप्त करने के अनुरोध का प्रत्युत्तर नहीं दिया जाता है, अथवा उसके द्वारा फीस के रूप में एक ऐसी राशि अदा करने की अपेक्षा की गई है जिसे वह औचित्यपूर्ण नहीं मानता है, अथवा उसका विश्वास है कि उसे अधूरी, भ्रामक व झूठी सूचना दी गई है, तो वह राज्य सूचना आयोग के समक्ष शिकायत कर सकता है।

शास्ति का अधिरोपण
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, अधिनियम आवेदक को राज्य सूचना आयोग के समक्ष अपील करने और शिकायत करने का अधिकार देता है। यदि किसी शिकायत अथवा अपील का निर्णय करते समय राज्य सूचना आयोग इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि जन सूचना अधिकारी ने बिना किसी औचित्यपूर्ण कारण के, सूचना के लिए आवेदन को प्राप्त करने से मना किया है अथवा निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना नहीं दी है अथवा सूचना के अनुरोध को दुर्भावनापूर्वक अस्वीकार किया है, अथवा जानबूझकर गलत, अपूर्ण अथवा भ्रामक सूचना दी है अथवा संबंधित सूचना को नष्ट किया है अथवा सूचना प्रदान करने की कार्यवाही में किसी प्रकार से बाधा उत्पन्न की है, तो वह आवेदन प्राप्ति अथवा सूचना दिए जाने तक दो सौ पचास रूपए प्रतिदिन के हिसाब से शास्ति लगा देगा। ऐसी शास्ति की कुल राशि पच्चीस हजार रूपए से अधिक नहीं होगी। तथापि, शास्ति लगाए जाने से पूर्व जन सूचना अधिकारी को सुनवाई के लिए पर्याप्त अवसर दिया जाएगा। यह सिद्ध करने का भार जन सूचना अधिकारी पर होगा कि उसने सोच-विचार और सदाशयता से कार्य किया तथा उक्त अनुरोध के अस्वीकार करने के मामले में ऐसा अस्वीकरण न्यायसंगत था।

यदि किसी शिकायत अथवा अपील पर निर्णय देते समय राज्य सूचना आयोग का यह मत होता है कि जन सूचना अधिकारी ने बिना किसी उचित कारण के और लगातार रूप से सूचना हेतु किसी आवेदन को प्राप्त करने में लापरवाही बरती अथवा निर्धारित समय के भीतर सूचना नहीं दी, अथवा दुर्भावनापूर्वक सूचना हेतु अनुरोध को अस्वीकार किया, अथवा जानबूझकर गलत,, अपूर्ण अथवा भ्रामक सूचना दी, अथवा अनुरोध के विषय की सूचना को नष्ट किया, अथवा सूचना देने में किसी प्रकार से बाधा उत्पन्न की तो वह जन सूचना अधिकारी के विरूद्ध अनुशासनिक कार्रवाई की अनुशंसा कर सकता है।

जन सूचना अधिकारी के विरूद्ध अनुशासनिक कार्रवाई
यदि किसी शिकायत अथवा अपील पर निर्णय देते समय राज्य सूचना आयोग का यह मत होता है कि जन सूचना अधिकारी ने बिना किसी उचित कारण के और लगातार रूप से सूचना हेतु किसी आवेदन को प्राप्त करने में लापरवाही बरती, अथवा निर्धरित समय के भीतर सूचना नहीं दी, अथवा दुर्भावनापूर्वक सूचना हेतु अनुरोध को अस्वीकार किया, अथवा जानबूझकर गलत, अपूर्ण अथवा भ्रामक सूचना दी, अथवा अनुरोध के विषय की सूचना को नष्ट किया, अथवा सूचना देने में किसी प्रकार से बाधा उत्पन्न की तो वह जन सूचना को नष्ट किया, अथवा सूचना देने में किसी प्रकार से बाधा उत्पन्न की तो वह जन सूचना अधिकारी के विरूद्ध अनुशासनिक कार्रवाई की अनुशंसा कर सकता है।
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सदाशयता (नेकनीयती) में किए गए कार्य की संरक्षा
अधिनियम की धारा 21 में यह प्रावधान है कि अधिनियम अथवा उसके तहत बनाए गए किसी नियम के अधीन नेकनीयती से किए गए कार्य अथवा ऐसा कार्य करने के इरादे की वजह से, किसी व्यक्ति के विरूद्ध कोई भी मुकदमा, अभियोजन अथवा अन्य विधिक कार्यवाही नहीं की जायेगी। तथापि, जन सूचना अधिकारी को ध्यान रखना चाहिए कि यह साबित करना उसका उत्तरदायित्व होगा कि उसके द्वारा की गई अभिक्रिया नेकनीयती में की गई थी।
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राज्य सूचना आयोग की वार्षिक रिपोर्ट
राज्य सूचना आयोग प्रत्येक वर्ष सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के कार्यन्वयन की एक रिपोर्ट तैयार करता है, जिसे विधान मण्डल के समक्ष रखा जाता है। इस रिपोर्ट में, अन्य बातों के साथ-साथ, प्रत्येक लोक प्राधिकरण को प्राप्त अनुरोधों की संख्या, ऐसे निर्णयों की संख्या जिनमें आवेदनकर्ताओं को मांगे गए दस्तावेज प्राप्त करने का हक नहीं था, अधिनियम के वे प्रावधान जिनके अधीन ये निर्णय किये गए और ऐसे प्रावधानों के आह्ववाहन के अवसरों की संख्या तथा अधिनियम के तहत प्रत्येक लोक प्राधिकरण द्वारा एकत्र किए गए प्रभार की राशि का विवरण देना होता है। प्रत्येक विभाग से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने अधिकार-क्षेत्र में आने वाले सभी लोक प्राधिकरणों से यह सूचना एकत्र करें और इसे आयोग को भेजें। जन सूचना अधिकारी को चाहिए कि वह सम्बन्धित सूचना तैयार रखे ताकि वर्ष के समाप्त होते ही वह इसे अपने प्रशासकीय विभाग को भेज सके और विभाग इसे आयोग को उपलब्ध करवा सके।

  • आर०टी०आई० के तहत आवेदन करने के लिये आवेदन फॉर्म डाउनलोड करने के लिये (यहाँ) और ज्यादा जानकारी के लिए (यहाँ) क्लिक करें !
  • बेसिक शिक्षा परिषद, उ0प्र0, के विभिन्न कार्यालयों के लिए सहायक जन सूचना अधिकारी, जन सूचना अधिकारी तथा उनके अपीलीय जन सूचना अधिकारी की जानकारी के लिये (यहाँ) क्लिक करें !

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सूचना का अधिकार : जन सूचना अधिकारियों के लिए मार्गदर्शिका Reviewed by Brijesh Shrivastava on 10:00 PM Rating: 5

1 comment:

Anonymous said...

बनारस में 2013 के promotion में ब्लाक में जगह रहते हुए भी दुरस्त ब्लाक में भेजा गया । जो की GO के खिलाफ है ।फिर भी हमारे हरा***र नेताओ ने कोई R T I नहीं डाली ।

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