जागरण संपादकीय : दूध के लिए कंवर्जन कास्ट के रूप में उपलब्ध कराए जाने वाले बजट की जो व्यवस्था है उसमें अतिरिक्त संसाधन जुटाए बिना इसे लागू कर पाना संभव ही नहीं।



मध्याह्न् भोजन
यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि आज कोई भी सरकारी योजना भ्रष्टाचार और लापरवाही से अछूती नहीं। हां, यह अवश्य है कि इसका स्तर कहीं कम तो कहीं ज्यादा है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत सरकारी स्कूलों में बंटने वाले मध्याह्न् भोजन की योजना भी ऐसी ही है जहां भ्रष्टाचार और लापरवाही की कोई सीमा नहीं। 
 
यह सवाल पहले से उठते रहे हैं कि मध्याह्न् भोजन में परोसा जाने वाला खाना मानक अनुरूप नहीं होता। इसका मेन्यू पहले से तय है लेकिन शायद ही कहीं इसका पालन होता हो। इसलिए पिछले दिनों जब मध्याह्न् भोजन में सुधार के उपाय किए गए तो कुछ उम्मीद बंधी थी। अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग संस्थाओं का चयन कर उन्हें मध्याह्न् भोजन की गुणवत्ता सुधारने और समय से उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी दी गई थी।
 
 यह भी तय किया गया कि अब सप्ताह में एक दिन यानी बुधवार को भोजन के साथ पौष्टिक तत्व के रूप में दूध भी उपलब्ध कराया जाएगा पर योजना शुरू होते ही इस पर ग्रहण लग गया। पहले बुधवार को तो किसी तरह दूध वितरण की औपचारिकता की गई लेकिन दूसरे बुधवार को ही योजना भरभरा गई। बीते बुधवार को प्रदेश भर के अधिकतर स्कूलों में दूध वितरण नहीं हो सका। 
 
हालांकि सरकारी स्तर पर 1,17,000 परिषदीय स्कूलों में सिर्फ 13,906 स्कूलों में दुग्ध वितरण न हो पाने की बात स्वीकारी गई।1यह शिकायत भी आम मिल रही है कि भोजन गुणवत्ता युक्त नहीं है। सब्जी या दाल में सिर्फ पानी ही पानी होता है। मेन्यू का पालन न होने की बात भी कही जा रही है। दूरदराज के क्षेत्रों में तो कई-कई दिन तक मध्याह्न् भोजन न बनने की शिकायत आती रहती है। 
 
सवाल उठता है कि जब इस तरह की शिकायतें शुरू से ही आ रही हैं तो इसके निराकरण के ठोस उपाय क्यों नहीं किये जा रहे। कोई भी योजना तभी भ्रष्टाचार व लापरवाही की भेंट चढ़ती है जब उसके तल में ही छेद मौजूद हों। 
 
फिलहाल, अफसर भले कह रहे हों कि दुग्ध वितरण योजना नई होने के कारण कुछ खामियां हैं, बाद में यह ठीक हो जाएगी लेकिन इसके लिए कंवर्जन कास्ट के रूप में उपलब्ध कराए जाने वाले बजट की जो व्यवस्था है उसमें अतिरिक्त संसाधन जुटाए बिना इसे लागू कर पाना संभव ही नहीं। अच्छा होता कि अधिकारी नई योजना शुरू करने से पहले पुराने छेद भरते तो यह स्थिति न आती।
 
खबर साभार :  दैनिक जागरण

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जागरण संपादकीय : दूध के लिए कंवर्जन कास्ट के रूप में उपलब्ध कराए जाने वाले बजट की जो व्यवस्था है उसमें अतिरिक्त संसाधन जुटाए बिना इसे लागू कर पाना संभव ही नहीं। Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी on 7:29 AM Rating: 5

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