शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए शिक्षाविदों ने साझा की राय, ढंग की पढ़ाई को बदले ढांचा और ढर्रा, व्यवस्था के ब्लैकबोर्ड पर बस शून्य, इंफ्रास्ट्रक्चर में बदलाव जरूरी



  • शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए शिक्षाविदों ने साझा की राय
  • ढंग की पढ़ाई को बदले ढांचा और ढर्रा
  • व्यवस्था के ब्लैकबोर्ड पर बस शून्य, इंफ्रास्ट्रक्चर में बदलाव जरूरी
  • शिक्षकों की नियुक्ति में योग्यता हो आधार, शिक्षाधिकारी करें जांच
 
इलाहाबाद (ब्यूरो)। सरकारी स्कूलों में मंत्रियों, अधिकारियों, सरकारी कर्मचारियों आदि के बच्चों को पढ़ाने के हाईकोर्ट के आदेश के बाद शिक्षा में गुणवत्ता का सवाल मुखर हो गया है। बदहाल विद्यालय खुदबखुद अपनी कहानी बयां कर रहे हैं। किराए के जर्जर भवनों में संचालित प्रदेश के तमाम प्राथमिक विद्यालयों के पास अपना भवन तक नहीं तो 26 हजार से अधिक विद्यालय मात्र एक कमरे में संचालित हैं। जर्जर भवनों से इतर स्कूलों में शिक्षकों की कमी, पेयजल, शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव बेहतर शैक्षिक माहौल की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। जहां शिक्षक हैं भी, वहां उनकी उपस्थिति और उपलब्धता को लेकर शिकायतें आम हैं।
 
 
वैसे इन चुनौतियों से जूझने और बेहतर शैक्षिक माहौल बनाने को लेकर निजी स्कूलों की अपनी योजनाएं और दावे भी हैं। ऐसे स्कूलों की दशा सुधारने की जिम्मेदारी सौंपने के सवाल पर विद्या भारती के प्रदेश मंत्री चिंतामणि सिंह, रानी रेवती सरस्वती विद्या मंदिर के प्रधानाचार्य आत्मानंद सिंह, पतंजलि शिक्षा समिति की सचिव प्रो.कृष्णा गुप्ता, बीबीएस इंटर कॉलेज के प्रबंधक रणजीत सिंह आदि का कहना है कि पढ़ने लायक माहौल बने और शिक्षा की गुणवत्ता के मानक पूरे हों तो छात्र और अभिभावक, खुदबखुद खिंचे चले आएंगे।
 
  • अफसरों के बच्चों के पढ़ने से बनेगा दबाव
शिक्षा व्यवस्था से जुड़े जानकारों का मानना है कि क्षेत्र के उच्च अधिकारियों के बच्चे उन स्कूलों में पढ़ेंगे तो वहां के शिक्षकों और शिक्षाधिकारियों पर अपने दायित्व के प्रति जिम्मेदारी बढ़ जाएगी। शिक्षक नियमित रूप और समय से स्कूल पहुंचेंगे तो पढ़ने-पढ़ाने का माहौल सुधरेगा। शिक्षक समय पर पहुंचेंगे तो बाकी व्यवस्थाएं भी बेहतर बनेंगी।
 
  • दूरदराज के स्कूलों में तैनात प्रॉक्सी टीचर
विद्यालयों की जांच की उचित व्यवस्था होगी तो शहर से दूरदराज के विद्यालयों में वहां पर तैनात शिक्षकों की उपलब्धता भी सुनिश्चित होगी। तमाम विद्यालयों में शिक्षकों की जांच की व्यवस्था नहीं होने से शहर में रहने वाले शिक्षक विद्यालयों में अपनी जगह दूसरे को (प्रॉक्सी टीचर) रखकर शिक्षण करवाते हैं। ऐसे में पढ़ाई प्रभावित होना स्वाभाविक है।
 
  • तय हो शिक्षकों की जवाबदेही
विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति सिफारिश नहीं मेरिट के आधार पर हो। शिक्षकों को काम के प्रति जवाबदेह बनाने के साथ उन्हें उनके दायित्व का अहसास कराना होगा तभी शैक्षिक माहौल बनेगा। वरिष्ठता नहीं परफार्मेंस के आधार पर शिक्षकों को प्रोन्नति मिले। उनका काम सिर्फ पढ़ाना हो, उन्हें चुनाव ड्यूटी सहित दूसरे कार्यों से मुक्त रखा जाए। शिक्षकों की जवाबदेही नहीं होने से ही स्कूलों में छात्रों की संख्या में गिरावट आ रही है।
 
  • पहले सुधरे इन्फ्रास्ट्रक्चर
बच्चों को स्कूल से जोड़ने केलिए पहले तो विद्यालयों का इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधारा जाए। साफ-सुथरे, हवादार कमरों सहित पेयजल, शौचालय, बिजली, खेलकूद आदि की व्यवस्था जरूरी है। प्राथमिक विद्यालयों में कम से कम पांच कमरे हों ताकि एक कमरे में एक ही कक्षा के विद्यार्थी पढ़ सकें। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में नौ फीसदी प्राथमिक विद्यालयों में ही पांच अथवा उससे अधिक कमरे हैं।
 
  • नजर रखें शिक्षाधिकारी
शिक्षकों की जवाबदेही सहित विद्यालयों की जांच के लिए विकास खंड स्तर पर तैनात खंड शिक्षाधिकारी भी लगातार नजर रखें। क्षेत्र में उनका रहना सुनिश्चित हो तभी बेहतर मॉनीटरिंग हो सकेगी। इसी तरह शिक्षकों को भी स्कूल के करीब ही रखा जाए ताकि उनकी उपलब्धता सुनिश्चित हो। शिक्षकों की तैनाती में स्थानीय लोगों को वरीयता दी जानी चाहिए। इसी तरह स्थानीय लोगों की कमेटी प्रबंधन से जुड़े।

  • व्यवस्था के ब्लैकबोर्ड पर
  कुल प्राइमरी स्कूल- 1.13 लाख
  प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों की संख्या- 2.60 करोड़
  जूनियर हाईस्कूल- 46 हजार
  जूनियर विद्यालयों में बच्चे- 92 लाख
  सिर्फ 55 फीसदी विद्यालयों में ही शौचालय
  प्रदेश के 77 फीसदी स्कूलों में ही खेल का मैदान
•  प्रदेश के 78 फीसदी स्कूलों में कक्षा शिक्षक अनुपात पूरा
  85 फीसदी स्कूलों में ही पीने के पानी की व्यवस्था
•  प्रदेश के 33 फीसदी विद्यालयों में ही लाइब्रेरी की सुविधा
  प्रदेश के 80 फीसदी स्कूलों में छात्र-शिक्षकों का अनुपात पूरा नहीं

  • बजट
•  सर्वशिक्षा 15000 करोड़
•  प्राथमिक शिक्षा-32531.71 करोड़
  माध्यमिक शिक्षा-7941.97 करोड
  राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान 450 करोड़


खबर साभार : अमर उजाला 

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शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए शिक्षाविदों ने साझा की राय, ढंग की पढ़ाई को बदले ढांचा और ढर्रा, व्यवस्था के ब्लैकबोर्ड पर बस शून्य, इंफ्रास्ट्रक्चर में बदलाव जरूरी Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी on 7:36 AM Rating: 5

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