सरकारी शिक्षा पर सिर्फ सियासत - राजनीतिक दलों के बोल के साथ पढ़े शिक्षकों और शिक्षक प्रतिनिधियों के विचार, नवभारत टाइम्स राउंड टेबल चर्चा में शिक्षक और राजनैतिक दल आमने सामने

राउंड टेबल टॉक   : सरकारी शिक्षा के लिए केंद्र से लेकर प्रदेश तक की तमाम योजनाएं हैं लेकिन वो मिड डे मील से लेकर बर्तन बांटने के आगे नहीं बढ़ पाती हैं। राजनीतिक दल मानते जरूर हैं कि सरकारी विद्यालयों की स्थिति बेहतर करने की दिशा में काम ज्यादा नहीं हुए लेकिन उनके पास इसकी कोई योजना नहीं है। आखिर क्या हैं समस्याएं और कैसे सरकारी विद्यालयों की स्थितियां बेहतर होंगी, इस पर बात करने के लिए शिक्षकों से लेकर राजनीतिक दलों के नुमाइंदों को हमने एनबीटी दफ्तर बुलाया और उनसे विस्तार से बात की। परिचर्चा का सार पेश कर है-




⚫ हमारे घोषणापत्र में बेहतर शिक्षा का वादा होगा। हम चाहते हैं कि सरकारी विद्यालयों की दशा बेहतर हो। -बीजेपी

⚫ हमारा पिछला घोषणापत्र भी सरकारी विद्यालयों को बेहतर करने की दिशा में था। हमने काम किया। अब इसे और आगे बढ़ाएंगे। -सपा

⚫ हम चुनाव नहीं लड़ रहे हैं लेकिन हमारे तमाम सुझाव हैं। शिक्षा को व्यवसाय बनाने का कोई भी तरीका न अपनाया जाए।-आप

⚫ यहां से निकलने वाले सारे सुझावों पर पार्टी में चर्चा होगी और फिर उसे घोषणापत्र में शामिल किया जाएगा। -कांग्रेस

⚫ हमारे घोषणा पत्र का हिस्सा होगा कि सरकारी विद्यालयों में सरकारी नौकरीपेशा लोगों के बच्चे पढ़ें। सरकारी विद्यालयों की व्यवस्था सुधारी जाए। -आरएलडी

शिक्षा का बाजारीकरण रुकना चाहिए?
कांग्रेस : हां
बीजेपी : हां
सपा : हां
आरएलडी : हां
आप : हां



सवाल : जब कोर्ट ने कहा कि सरकारी विद्यालयों में सरकारी नौकरीपेशा लोगों के बच्चे जाएं तो फिर सरकार ने फैसला क्यों नहीं लिया?

जवाब : सपा इस फैसले के पक्ष में थी लेकिन सीएम क्लीयर विजन नहीं बना सके। दरअसल, अफसरों ने उन्हें कनविंस कर लिया कि ऐसा नहीं होना चाहिए। अब जब यह स्थिति बनी तो किसी दूसरे दल या शिक्षकों ने न ऐसी मांग की और न दबाव बनाया। बाकी चीजों के लिए सड़क पर उतर सकते हैं तो फिर इस मामले में क्यों नहीं? 

आरोपों से सहमत हूं पर समस्या कभी एकतरफा नहीं होती। गुरुजी आदर्श स्थिति की तो बात करते हैं पर बाद में इस फिराक में रहते हैं कि कैसे जान छुड़ाई जाए। जितनी प्रति व्यक्ति सालाना आय है, उतनी टीचर्स की मंथली सैलरी है। फिर आंदोलन वेतन को लेकर क्यों होते हैं? - दीपक मिश्र, सपा

सरकारें ही नहीं चाहतीं कि सरकारी स्कूलों की व्यवस्था दुरुस्त हो। बोला गया कि एडमिशन बढ़ाओ। हमने जागरूकता रैली से लेकर स्कूल चलो अभियान तक चलाया। अर्द्धवार्षिक परीक्षा हो जाती है और हम किताबें नहीं दे पाते हैं। ऐसे में अभिभावक हमसे ही शिकायत करेगा। जब लैब-लाइब्रेरी नहीं तो बच्चें यहां क्यों पढ़ेंगे। - मीता श्रीवास्तव, शिक्षिका

गलतियां सरकारों की तरफ से हुईं तो शिक्षकों ने उसे आगे बढ़ाया। आज का शिक्षक पढ़ाने से ज्यादा जॉब सिक्योर करने में लगा है। राजनीतिक दलों ने इसे व्यावसायिक बना दिया। आज भी हजारों ऐसे सरकारी विद्यालय हैं, जिनमें टॉयलेट तक नहीं।-आईपी सिंह, बीजेपी

प्राइमरी स्कूलों को पढ़ाई के अलावा हर चीज के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। बच्चों को आधा सत्र निकलने के बाद कॉपी-किताबें मिलती हैं। शिक्षक कभी वोटर लिस्ट बनवाते हैं, तो कभी जनगणना कराते हैं। - आशुतोष मिश्र, महामंत्री, प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक असोसिएशन

सरकारी स्कूल में मास्टरों के पास पढ़ाई के अलावा कई काम हैं। सरकारी शिक्षा को 90 के दशक के बाद व्यावसायिक मानसिकता के नेताओं ने बर्बाद कर दिया। इससे ऐसे मास्टरों की तैनाती हुई, जो ऊंची पहुंच वाले हैं। सरकार व्यवस्था को ब्यूरोक्रेट्स ने बर्बाद किया है। - सुरेंद्र राजपूत, कांग्रेस

प्राइमरी शिक्षा को चौपट कर दिया गया। मिड डे मील, मुफ्त यूनिफॉर्म जैसी दूसरी योजनाओं में पैसे का बंटवारा तय है। हर योजना का 25-30 फीसदी यूज होता है। अब तक प्राइमरी विद्यालयों में किताबें नहीं आईं और सीएम, प्रमुख सचिव संग बर्तन बांटने पर ध्यान दे रहे हैं। - विनय कुमार सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक असोसिएशन

दो तरह की व्यवस्था होगी तो उसमें बेहतर का विकल्प चुना जाएगा। अगर लगता है कि अंग्रेजी पद्धति के विद्यालय बेहतर हैं तो फिर सरकारी विद्यालयों को उस आधार पर तैयार क्यों नहीं किया जाता?  ऐसा इसलिए नहीं किया जाता है क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो निजी विद्यालयों के मार्फत मुनाफे का बाजार खत्म हो जाएगा। - अनिल दुबे, आरएलडी

सरकारी स्कूलों को संसाधन नहीं दिए गए और बाकी बोझ उनके ऊपर लाद दिया गया। मैं खेल शिक्षक हूं लेकिन स्कूलों में खेल संसाधन ही नहीं हैं। इन्हें इसलिए ऐसा बनाया गया ताकि प्राइवेट स्कूलों को खड़ा किया जा सके। अफसर से लेकर नेताओं तक के बड़े विद्यालय हैं। - विश्वजीत सिंह, खेल शिक्षक

सरकारें भ्रष्ट हैं। तमाम योजनाएं सिर्फ कमाई के लिए लाई जाती हैं न कि शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए। किताब से ज्यादा सीएम की दिलचस्पी बर्तन बांटने में है। सरकारी को चौपट कर प्राइवेट स्कूल खोलने के आधार बनाए गए। - घनश्याम, आम आदमी पार्टी

शिक्षा किसी दल की प्राथमिकता नहीं है। हर सरकार शिक्षा को प्रयोग के तौर पर देखती है। सपुस्तक परीक्षा तो कभी स्वकेंद्र इन्हीं का परिणाम है। हर जगह भ्रष्टाचार हो रहा है। जुगाड़ और प्रभावशाली लोगों के अपॉइंटमेंट कराए जाते हैं।-डॉ़ आरपी मिश्र, प्रदेशीय मंत्री माध्यमिक शिक्षक संघ


पैनल - • डॉ़ आरपी मिश्र, प्रदेशीय मंत्री माध्यमिक शिक्षक संघ • विश्वजीत सिंह, खेल शिक्षक• विनय कुमार सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक असोसिएशन• आशुतोष मिश्र, महामंत्री, प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक असोसिएशन• मीता श्रीवास्तव, शिक्षिक • दीपक मिश्र, सपा • अनिल दुबे, आरएलडी n सुरेंद्र राजपूत, कांग्रेस • आईपी सिंह, बीजेपी • घनश्याम, आप

सरकारी शिक्षा पर सिर्फ सियासत - राजनीतिक दलों के बोल के साथ पढ़े शिक्षकों और शिक्षक प्रतिनिधियों के विचार, नवभारत टाइम्स राउंड टेबल चर्चा में शिक्षक और राजनैतिक दल आमने सामने Reviewed by प्राइमरी का मास्टर 1 on 8:49 AM Rating: 5

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