सरकारी स्कूलों में घटते रहे छात्र और बढ़ता गया योजनाओं का बजट, नियंत्रक महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में शिक्षा की हकीकत का खुलासा

इलाहाबाद : यूपी की सरकारी शिक्षा की तस्वीर बहुत चिंताजनक है। 6 से 14 आयु वर्ग के बच्चों की शिक्षा पर केंद्र और राज्य सरकार पानी की तरह रुपये बहा रही है लेकिन स्कूलों में बच्चों की संख्या साल दर साल कम होती जा रही है। 18 मई को राज्य के विधानमंडल में प्रस्तुत भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की जनरल सोशल सेक्टर ऑडिट रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।




परिषदीय प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों में वर्ष 2012-13 में 3.71 करोड़ बच्चे नामांकित थे जिनकी संख्या 2015-16 में घटकर 3.64 करोड़ हो गई। 2010 से 2016 के बीच सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में नामांकन में 18.6 प्रतिशत की कमी हुई जबकि निजी गैर सहायता प्राप्त विद्यालयों में नामांकन में वृद्धि 36.5 प्रतिशत हुई।




जिला शिक्षा सूचना प्रणाली और हाउसहोल्ड सर्वेक्षण के आंकड़ों की तुलना से यह स्पष्ट हुआ कि औसत रूप से ड्रॉप आउट बच्चों की संख्या 20 लाख प्रति वर्ष थी। लेकिन राज्य सरकार की ओर से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार 2011-16 की अवधि में ड्राप आउट बच्चों की संख्या औसतन दशमलव 63 लाख (63 हजार) प्रतिवर्ष थी।लेखा परीक्षा की टीम ने 428 स्कूलों की नमूना जांच की तो इनमें नामांकित 51649 बच्चों में से केवल 13861 (27 प्रतिशत) उपस्थित मिले। यह स्थिति तब है जबकि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, शिक्षकों के वेतन, स्कूलों में आवश्यक सुविधाएं आदि पर केंद्र व राज्य सरकार का खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है।वित्तीय वर्ष 2012-13 में केंद्र व राज्य सरकार ने क्रमश: 3755 और 2086 करोड़ (कुल 5841 करोड़) खर्च किए। यह खर्च 2015-16 में बढ़कर केंद्र व राज्य सरकार पर क्रमश: 4954 व 7511 करोड़ (कुल 12465) हो गया।




इलाहाबाद। सरकारी स्कूलों में बच्चे कम होने का एक कारण तेजी से अमान्य स्कूलों की संख्या बढ़ना भी है। नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 को शिक्षा विभाग के अफसर सही मायने में लागू नहीं करवा सके। उनकी नाक के नीचे फर्जी स्कूल फलते-फूलते रहे लेकिन सब जानकर कोई कार्रवाई नहीं की। नतीजा यह हुआ कि अभिभावकों ने सरकारी स्कूलों की बजाय अंग्रेजी शिक्षा के नाम पर खुले फर्जी स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला करवा दिया।

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