शिक्षामित्रों पर टूटा मुसीबतों का पहाड़, भविष्य की चिंता में पचास की उम्र में तैयारी कर रहे शिक्षामित्र

इलाहाबाद : प्राथमिक विद्यालय घना का पुरा मऊआइमा के प्रताप बहादुर सिंह 45 साल की उम्र में टीईटी की तैयारी कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट से समायोजन रद्द होने के बाद पैदा हुए हालात में बेटी की शादी खोजने की उम्र में प्रताप को अपने भविष्य की चिंता में टीईटी की तैयारी करनी पड़ रही है।

वर्ष 2000 में शिक्षामित्र के रूप में चयन होने के बाद अगस्त 2014 में सहायक अध्यापक बने तो परिवार को सहारा मिला। उनकी बड़ी बेटी परास्नातक और छोटी बेटी स्नातक कर रही है। ऐसी ही स्थिति प्राथमिक विद्यालय चामू जसरा के लाल बहादुर सिंह, प्राथमिक विद्यालय अचलूपुर होलागढ़ के कमलेश तिवारी, प्राथमिक विद्यालय अमीलो करछना के संतोष शुक्ल, प्राथमिक विद्यालय घुरमुट्टी जसरा के प्रभात चंद्र द्विवेदी, प्राथमिक विद्यालय बीकर जसरा की सीता देवी, नौशाद अहमद मांडा, कृष्ण दत्त पांडेय व रमा सिंह जसरा, राम सूरत सिंह व भारती मिश्र कोरांव और बड़ेलाल यादव धनूपुर आदि शिक्षामित्रों की है।

इनमें से किसी के बच्चे स्नातक तो किसी ने परास्नातक और इंजीनियरिंग तक कर रहे हैं, लेकिन समायोजन निरस्त होने के बाद उम्र के पांचवें दशक में इन्होंने टीईटी के लिए दिन-रात एक कर दिया है। 25 जुलाई के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 15 अक्तूबर को होने जा रही उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा (यूपी-टीईटी) हजारों शिक्षामित्रों के लिए अस्तित्व की लड़ाई का सवाल बन गई है।

प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के जिलाध्यक्ष वसीम अहमद का कहना है कि राज्य और केंद्र में भाजपा की सरकार है। सत्ता में आने से पहले प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर बड़े नेता हर संभव मदद की बात करते थे। इतना ही नहीं भाजपा के संकल्प पत्र में भी शिक्षामित्रों का भविष्य सुरक्षित करने एवं स्थायी समाधान निकालने का जिक्र है। अब सरकार को स्थायी समाधान निकलना चाहिए जिससे शिक्षामित्र स्वतंत्र रूप से अपने परिवार की जिम्मेदारी का निर्वहन कर सके।

इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश सरकार ने 26 मई 1999 को शिक्षामित्र योजना शुरू की थी। अध्यापक बनने का सपना संजोए शिक्षामित्रों ने 14 साल तक 2250 से 3500 रुपये अल्प मानदेय पर नौनिहालों का भविष्य संवारने का काम किया। सपा सरकार ने इन्हें सहायक अध्यापक बनाया लेकिन समायोजन निरस्त होने के बाद से शिक्षामित्रों के ऊपर संकट का पहाड़ टूट पड़ा है। अधिकांश शिक्षामित्र 35 से 50 के बीच हैं। इस उम्र में ही परिवार की जिम्मेदारी भी ज्यादा होती है। बच्चों की पढ़ाई से ले कर शादी विवाह की चिंता बनी हुई है। कुछ तो नाना-नानी, दादा-दादी भी बन चुके हैं। इनका कहना है कि 15-20 साल से पढ़ाई छोड़ने के बाद आज तैयारी करना दर्भाग्यपूर्ण व दुखद है।

जिस प्रकार दिल्ली सरकार गेस्ट टीचरों को समान कार्य के लिए समान वेतन देने की व्यवस्था करने के साथ बिल पास कर अध्यापक बना रही है। वैसे ही राज्य सरकार को बिल लाकर शिक्षामित्रों का हित सुरक्षित करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका डाली गई है, न्याय मिलने तक संघ लड़ेगा।-वसीम अहमद, जिलाध्यक्ष प्राथमिक शिक्षामित्र संघ

शिक्षामित्रों पर टूटा मुसीबतों का पहाड़, भविष्य की चिंता में पचास की उम्र में तैयारी कर रहे शिक्षामित्र Reviewed by प्राइमरी का मास्टर 1 on 7:40 AM Rating: 5

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