नौनिहालों की ड्रेस की राह में नियमों की बाधा : छ महीने देर से आया धन और अब जल्द बटवाने की आपाधापी
शाहजहांपुर : शासन की मंशा भले ही गरीब
नौनिहालों को निशुल्क शिक्षा के साथ जरूरी इमदाद मुहैया कराना हो, लेकिन
शासन की मंशा जमीन पर धड़ाम हो रही है। जहां शासन ड्रेस वितरण बजट की
धनराशि देने में छह माह लगा देती है, वहीं उसके वितरण के लिए मात्र पंद्रह
दिन निर्धारित कर देती है और वह भी मात्र दो सौ रुपये में। मानक की तलवार
को ङोलता बेचारा शिक्षक हर समय कटघरे में खड़ा रहता है। ताज्जुब तो यह है
कि प्रशासनिक व बेसिक के आला अधिकारी सब कुछ जानकर भी अनजान बने रहते हैं।
वहीं शिक्षकों के हितों का दम भरने वाले तमाम शैक्षिक संगठन इसके खिलाफ कोई
आवाज उठाने की जुर्रत नहीं समझते हैं।
गौरतलब है कि निशुल्क शिक्षा अधिकार के तहत परिषदीय विद्यालयों में नौनिहालों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करने के साथ निशुल्क मध्यान्ह भोजन, पाठ्य-पुस्तकें, छात्रवृत्ति और दो सेट में ड्रेस देता है। इसमें हास्यापद पहलू यह है कि जब बच्चे पुरानी फटी ड्रेस के साथ आधा साल गुजार देते हैं तो शासन को ड्रेस बजट राशि जारी करने की सुध आती है। एसएसए के एएओ प्रेमपाल सिंह ने बताया कि शासन ने 16 सितंबर को ड्रेस वितरण के लिए बजट धनराशि प्रेषित की थी। उन्होंने 19 सितंबर को जिला की समस्त एसएमसी के खातों में धनराशि प्रेषित कर दी थी। इससे बड़ा मजाक क्या हो सकता है कि जिस मद में धनराशि देने में शासन को छह माह लग गए उसके वितरण की अंतिम मियाद 15 अक्टूबर रख दी गई थी। यह तो लगातार त्यौहार अवकाश की वजह से स्कूलों को ड्रेस वितरण का समय भी आगे बढ़ने से राहत मिल गई। वैसे शासन को भी जानता है कि इतने कम समय पर ड्रेस वितरण संभव नहीं इसीलिए उपभोग प्रमाणपत्र साल के आखिर में अंतिम अवधि 31 दिसंबर रखता है। अधिकांश शिक्षकों का दबी जुबान से यह भी कहना है कि शासन की पंद्रह दिनों में ड्रेस वितरण की नीति ही गलत है। शासन स्वयं गलत कार्य को बढ़ावा दे रहा है। जहां आज दो सौ रुपया में कपड़ा मिलना भी मुश्किल है, ऐसे में सिलवाकर गुणवत्ता युक्त ड्रेस देना शासन गलत कार्यो की ओर कदम बढ़ाने को मजबूर कर देना है। ऐसी भी चर्चा है कि इस ड्रेस के खेल में कुछ एबीएसए, प्रधानाध्यापक, एसएमसी, कपड़ा व्यापारी सबके कमीशन बंध जाते हैं।
गौरतलब है कि निशुल्क शिक्षा अधिकार के तहत परिषदीय विद्यालयों में नौनिहालों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करने के साथ निशुल्क मध्यान्ह भोजन, पाठ्य-पुस्तकें, छात्रवृत्ति और दो सेट में ड्रेस देता है। इसमें हास्यापद पहलू यह है कि जब बच्चे पुरानी फटी ड्रेस के साथ आधा साल गुजार देते हैं तो शासन को ड्रेस बजट राशि जारी करने की सुध आती है। एसएसए के एएओ प्रेमपाल सिंह ने बताया कि शासन ने 16 सितंबर को ड्रेस वितरण के लिए बजट धनराशि प्रेषित की थी। उन्होंने 19 सितंबर को जिला की समस्त एसएमसी के खातों में धनराशि प्रेषित कर दी थी। इससे बड़ा मजाक क्या हो सकता है कि जिस मद में धनराशि देने में शासन को छह माह लग गए उसके वितरण की अंतिम मियाद 15 अक्टूबर रख दी गई थी। यह तो लगातार त्यौहार अवकाश की वजह से स्कूलों को ड्रेस वितरण का समय भी आगे बढ़ने से राहत मिल गई। वैसे शासन को भी जानता है कि इतने कम समय पर ड्रेस वितरण संभव नहीं इसीलिए उपभोग प्रमाणपत्र साल के आखिर में अंतिम अवधि 31 दिसंबर रखता है। अधिकांश शिक्षकों का दबी जुबान से यह भी कहना है कि शासन की पंद्रह दिनों में ड्रेस वितरण की नीति ही गलत है। शासन स्वयं गलत कार्य को बढ़ावा दे रहा है। जहां आज दो सौ रुपया में कपड़ा मिलना भी मुश्किल है, ऐसे में सिलवाकर गुणवत्ता युक्त ड्रेस देना शासन गलत कार्यो की ओर कदम बढ़ाने को मजबूर कर देना है। ऐसी भी चर्चा है कि इस ड्रेस के खेल में कुछ एबीएसए, प्रधानाध्यापक, एसएमसी, कपड़ा व्यापारी सबके कमीशन बंध जाते हैं।
- एसएमसी ड्रेस की व्यवस्था कराएगी
- ड्रेस के लिए बीस हजार से एक लाख तक कुटेशन लिया जाएगा। जबकि एक लाख से ऊपर होने पर टेंडर पडेंगे
- टेंडर डालने के लिए विज्ञापन प्रक्रिया में ही लगभग एक माह का समय बीत जाता है
- ड्रेस कपड़ा को मिलाने के लिए सेंपुल के लिए कपड़ा संग्रह में रखा जाएगा
- प्रति ड्रेस की लागत दो सौ रुपया मात्र नियत है। इसमें कपड़ा कीमत, टेंडर विज्ञापन व्यय, टेलर सिलाई शामिल है
- शासन ड्रेस गुणवत्ता के लिए स्वयं कोई मानक नमूना उपलब्ध नहीं कराता है। ताकि उसे भी अहसास हो कि दो सौ रुपया में ड्रेस कैसे सिलकर तैयार हो सकती है।
नौनिहालों की ड्रेस की राह में नियमों की बाधा : छ महीने देर से आया धन और अब जल्द बटवाने की आपाधापी
Reviewed by Brijesh Shrivastava
on
7:13 AM
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