मिड-डे मील तैयार करने के दौरान की स्वच्छता भी सवालों के घेरे में, एमडीएम के बावजूद सरकारी स्कूलों में छात्रों के नामांकन में गिरावट, कैग रिपोर्ट में खाद्यान्न परिवहन, कोटेदारों को लाभांश देने में करोड़ों रुपये अतिरिक्त भुगतान करने का भी उल्लेख
📌 पढ़ाई पर सवाल पुराना अब सेहत की अनदेखी
देश के महालेखापरीक्षक और नियंत्रक (कैग) ने प्राथमिक विद्यालयों में चल रही मध्यान्ह भोजन योजना को सही ढंग से नहीं लागू किए जाने के लिए प्रदेश सरकार की भूमिका को असंवेदनशील करार दिया है। कैग की विधानसभा में रविवार को पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि प्राथमिक शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए केंद्र आधारित यह योजना सही ढंग से लागू नहीं हो पा रही है जिसके कारण 2010 से 2015 तक छात्रों की संख्या में गिरावट आई है।
31 मार्च 2015 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष की रिपोर्ट में कैग ने कहा है कि बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य ही अधर में लटकता दिखाई पड़ रहा है।
सरकारी स्कूलों की शिक्षा के स्तर पर पहले ही सवाल उठते रहे हैं अब यहां के छात्रों के स्वास्थ्य की अनदेखी, मिड-डे मील तैयार करने के दौरान की स्वच्छता भी सवालों के घेरे में है।
रविवार को विधानसभा में पेश की गई नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (सीएजी) रिपोर्ट में मिड-डे मील (मध्यान्ह भोजन) वितरण में लापरवाही, रसोईघरों की स्वच्छता और भोजन वितरण से पहले शिक्षक व किसी एक बच्चे की मां द्वारा चखे जाने की अनदेखी का उल्लेख किया है।
कहा गया कि मध्यान्ह भोजन योजना चलने के बावजूद वर्ष 2010-11 की तुलना में सरकारी स्कूलों में छात्रों के नामांकन में 7.3 फीसद की गिरावट है। छात्रों के पोषकीय स्तर में सुधार के लिए नियमित स्वास्थ्य परीक्षण नहीं कराये जा रहे हैं। जबकि 2010-15 की अवधि में गुणवत्ता परख मध्यान्ह भोजन पर 7,226.65 करोड़ खर्च किये हैं।
सीएजी ने रिपोर्ट में खाद्यान्न परिवहन, कोटेदारों को लाभांश देने में करोड़ों रुपये अतिरिक्त भुगतान करने का उल्लेख किया है।
21 जिलों के 603 विद्यालयों के भौतिक सत्यापन से यह बात उभरकर आई। बच्चे के स्वास्थ्य कार्ड भी नहीं पाए गए। योजना के लिए खाद्यान्नों के उठान भी ठीक ढंग से नहीं की गई। पांच वर्षों में 17 लाख मीट्रिक टन के सापेक्ष सरकार केवल 13 लाख टन अनाज ही उठ सकी। राज्य सरकार ने 2006 से 2015 तक 1.13 लाख रसोईघर बनाने लिए 724 करोड़ रुपए खर्च किए। आडिट के दौरान रसोईघरों के निर्माण में काफी कमियां पाई गईं। रसोईघरों में दरवाजे तक सही से नहीं लगाए गए हैं। बिजली की व्यवस्था नहीं पाई गई। 21 फीसदी स्कूलों में तो रसोईघर ही नहीं पाए गए। 42 प्रतिशत विद्यालयों में गैस कनेक्शन नहीं थे। कैग ने अपनी रिपोर्ट में उच्चतम न्यायालय के कम से कम 200 दिन मध्यान्ह भोजन उपलब्ध कराने के निर्देश का उल्लंघन का भी आरोप लगाया है। रिपोर्ट के मुताबिक 56 हजार स्कूलों में पांच वर्षों में औसतन 102 दिन ही भोजन दिया गया। कई स्कूलों में प्रशिक्षित रसोइया ही नहीं पाए गए।
📌 लखनऊ में एक साल में एनजीओ को हुआ 22 लाख का गलत भुगतान
📌 48 फीसदी स्कूलों में रसोइयों को सफाई की ट्रेनिंग नहीं दी गई न ही सेहत का ख्याल रखा गया।
📌 21 जिलों में 62 फीसदी स्कूलों में कोई स्वास्थ्य परीक्षण नहीं किया गया।
📌 करीब 27 करोड़ रुपये का अनाज प्रधान दबा गए लेकिन उनकी रिकवरी नहीं हो सकी।
📌 42 फीसदी स्कूलों में रसोई गैस कनेक्शन नहीं
प्राइमरी स्कूलों में बच्चों की सेहत बनाने के लिए शुरू किया गया मिड डे मील प्रधानों और एनजीओ के पेट भरता रहा। कैग की रिपोर्ट के हिसाब से लखनऊ में ही 21 एनजीओ को महज एक साल में रसोइया के मानदेय के नाम पर 22 लाख रुपये ज्यादा भुगतान कर दिए गए। भोजन का पोषण जांचा गया न स्वच्छता के मानक पूरे किए गए।
कैग का कहना है कि योजना का उद्देश्य बच्चों की सेहत सुधारना था लेकिन पिछले पांच सालों में बच्चों के पोषण स्तर पर कोई बेसलाइन सर्वे ही नहीं किया गया। अनाज का बफर स्टाक होते हुए भी उसका आवंटन नहीं हुआ जिसके चलते लोकल परचेज से काम चलाया गया।
मिड-डे मील तैयार करने के दौरान की स्वच्छता भी सवालों के घेरे में, एमडीएम के बावजूद सरकारी स्कूलों में छात्रों के नामांकन में गिरावट, कैग रिपोर्ट में खाद्यान्न परिवहन, कोटेदारों को लाभांश देने में करोड़ों रुपये अतिरिक्त भुगतान करने का भी उल्लेख
Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी
on
6:18 AM
Rating:
No comments:
Post a Comment