रिपोर्ट : यूपी में अपने लक्ष्य से भटकी मध्याह्न भोजन योजना, खराब एमडीएम से स्कूलों में घट रहे बच्चे
हर साल पांच लाख बच्चे हो रहे कम समय से नहीं होती योजना की समीक्षालखनऊ। उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में मध्यान्ह भोजन योजना (एमडीएम) ठीक से संचालित नहीं की जा रही है। न तो खाने की गुणवत्ता ठीक है और न ही इसे बनाते समय साफ-सफाई का ठीक से ध्यान रखा जाता है। स्कूलों में छात्र संख्या बढ़ाने के लिए इस योजना की शुरुआत की गई थी, मगर भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट बताती है कि पिछले पांच वर्षों में बच्चों की संख्या बढ़ने के बजाय घटी है।
एमडीएम
के तहत 2010-15 के बीच सूबे में 7226.65 करोड़ की राशि खर्च की गई।
रिपोर्ट में बताया गया है कि विद्यालयों में बच्चों को मानक के अनुसार
अनुपूरक पोषक तत्व उपलब्ध नहीं कराए गए। कैग ने अपने अध्ययन में 21 जिलों
के 630 विद्यालयों को शामिल किया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि योजना में
दिए गए बजट का ठीक से प्रबंधन भी नहीं किया गया। यही वजह है कि 2010-11 के
अंत में अवशेष राशि 336.58 करोड़ रुपये थी, जो 2014-15 के अंत में बढ़कर
598.96 करोड़ हो गई।
शासकीय एवं सहायता
प्राप्त शासकीय विद्यालयों में 2010-11 में 1.59 करोड़ बच्चों का पंजीकरण
किया गया था, लेकिन 2014-15 में इनकी संख्या गिरकर 1.34 करोड़ पर पहुंच गई।
इस तरह से इन स्कूलों में हर साल 5 लाख बच्चे कम हो रहे हैं।
कई तरह की गड़बड़ी मिली
•2010-15
के बीच एमडीएम में 16.95 लाख मीट्रिक टन अनाज उपलब्ध था, मगर इसमें से
13.83 लाख मीट्रिक टन ही उठाया गया। जबकि, विद्यालयों में कोई बफर स्टॉक
नहीं था।
•21
जिलों के 630 विद्यालयों की जांच में पाया गया कि परिवहन लागत के तौर पर
12.74 करोड़ का अधिक भुगतान किया गया। वहीं कोटेदारों को लाभांश के तौर पर
3.19 करोड़ ज्यादा दिए गए। 56.47 करोड़ के खाली बोरों का कोई हिसाब-किताब
नहीं रखा गया।
•2006-15
के बीच 724.23 करोड़ की लागत से 1.13 लाख रसोई-सह-भंडारगृहों का निर्माण
किया गया, लेकिन यह मानकों के अनुरूप नहीं थे। 42 प्रतिशत विद्यालयों में
मध्यान्ह भोजन पकाने के लिए रसोई गैस कनेक्शन नहीं था।
•2010
से 2015 के बीच 56257 विद्यालयों में औसतन 102 दिन ही मध्यान्ह भोजन दिया
गया। जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक यह वर्ष में 200 दिन एमडीएम
मिलना चाहिए।
•नमूना
जांच में पाया गया कि 32 प्रतिशत विद्यालयों में स्वास्थ्य परीक्षण नहीं
किया गया। 62 प्रतिशत विद्यालयों में हेल्थ कार्ड का रखरखाव नहीं किया गया।
43 प्रतिशत विद्यालयों में वजन नापने की मशीन नहीं थी।
रिपोर्ट
के अनुसार, 24 जिलों के 9072 पूर्व प्रधान 13.39 करोड़ रुपये का 25992
मीट्रिक टन अनाज दबाए बैठे हैं। बदायूं के पूर्व प्रधानों के पास 92 लाख की
परिवर्तन लागत अवशेष थी, जिसको अक्टूबर 2010 में निर्वाचित हुए नए
प्रधानों को हस्तांतरित नहीं की गई। उनसे वसूली भी नहीं की गई। हरदोई में
2009-10 के उपभोग प्रमाणपत्र के आधार पर अवशेष राशि 12.72 करोड़ खाते में
नहीं थी।
- लखनऊ में एनजीओ को किया ज्यादा भुगतान
लखनऊ
जिले में 22 गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) ने अप्रैल 2010 से मई 2011 के बीच
41969 बच्चों को एमडीएम उपलब्ध कराया। इन्हें मानकों के विपरीत जाकर
रसोइया सह सहयोगी मानदेय के रूप में 21.12 लाख रुपये का अधिक भुगतान किया
गया। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अधिक भुगतान के बारे में मध्यान्ह
भोजन प्राधिकरण कोई जवाब नहीं दे सका। वहीं लखनऊ, फैजाबाद, गाजीपुर और
मिर्जापुर के डीआईओएस ने अनाज की आपूर्ति के मानकों का पालन नहीं किया।
इससे 7.36 करोड़ के 14200.25 मीट्रिक टन अनाज की या तो कम आपूर्ति हुई या
इसका दुरुपयोग किया गया। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि लखनऊ, गाजीपुर
और मिर्जापुर में अनाज की विलुप्त मात्रा संबंधी आपत्ति पर मध्यान्ह भोजन
प्राधिकरण ने कोई जवाब नहीं दिया।
- बच्चों की उपस्थिति पर ध्यान नहीं
रिपोर्ट
में कहा गया है कि मध्यान्ह भोजन प्राधिकरण ने स्कूलों में बच्चों की
उपस्थिति सुनिश्चित कराने के लिए कोई योजना तैयार नहीं की, जबकि ऐसी योजना
की उससे अपेक्षा की जाती है। सर्व शिक्षा अभियान ने भी गरीब बच्चों के बाबत
कोई सूचना उपलब्ध नहीं कराई।
रिपोर्ट : यूपी में अपने लक्ष्य से भटकी मध्याह्न भोजन योजना, खराब एमडीएम से स्कूलों में घट रहे बच्चे
Reviewed by Brijesh Shrivastava
on
7:35 AM
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