सूबे में आरटीई एक्ट पूरी तरह से फ्लॉप : गरीब बच्चों को नहीं मिल पा रहा पढ़ने का अधिकार, मोटी फीस वसूलने वाले निजी स्कूलों को मंजूर नहीं एक्ट के प्रावधान
निजी स्कूलों में गरीबों के लिए 6.30 लाख सीटें, दाखिला सिर्फ 4500 को
लखनऊ।
निजी स्कूलों में गरीब बच्चों को दाखिले के लिहाज से निशुल्क और अनिवार्य
बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 (आरटीई एक्ट) उत्तर प्रदेश में एकदम
फ्लॉप साबित हुआ है। एक भी जिले में इसका पालन नहीं हो रहा है। सत्र
2015-16 में गरीब और कमजोर तबके के बच्चों के लिए सूबे के 63 हजार निजी
स्कूलों में 6 लाख से ज्यादा सीटें थीं, पर उन्हें बमुश्किल 4500 सीटों पर
ही दाखिला मिल सका।
आरटीई एक्ट के मुताबिक,
प्रत्येक गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूल को अपने यहां कक्षा 1 में 25 फीसदी
तक सीटें अलाभित और दुर्बल वर्ग के बच्चों से भरनी होंगी। सूबे के शिक्षा
विभाग से मान्यता प्राप्त विद्यालयों के अलावा सीबीएसई और आईसीएसई के
स्कूलों पर भी यह नियम लागू होता है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि मोटी फीस
वसूलने वाले निजी स्कूलों को यह प्रावधान मंजूर नहीं है। शिक्षा विभाग के
अधिकारियों की मिलीभगत से वे खुलेआम गरीब बच्चों का हक मार रहे हैं। यहां
बता दें कि आरटीई एक्ट में 25 फीसदी तक सीटें गरीब बच्चों से भरने की
जिम्मेदारी निजी स्कूलों की है। इस मामले में उन पर निगरानी रखने का काम
जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को दिया गया है। एक्ट का पालन न होने पर
स्कूल की मान्यता रद्द करने का भी प्रावधान है। इसके बावजूद वर्ष 2013-14
और 2014-15 में पूरे सूबे में मात्र 54-54 बच्चों को ही इस योजना के तहत
दाखिला मिल सका। चालू सत्र में भी स्थिति कमोबेश वैसी ही बनी हुई है। नियम
तो यह भी है कि नया सत्र शुरू होने के कम से कम दो महीने पहले इस कानून का
व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाएगा। अखबारों में भी सूचना प्रकाशित करवाई
जाएगी, लेकिन अधिकतर जिलों में ऐसा नहीं किया जा रहा।
- दो साल में 5.25 लाख रुपये शुल्क की भरपाई
प्रदेश
में आरटीई एक्ट के तहत वर्ष 2013-14 और 2014-15 में 14 निजी स्कूलों को
108 गरीब बच्चों को दाखिला देने पर 5.25 लाख रुपये शुल्क की भरपाई की गई।
चालू सत्र में सर्व शिक्षा अभियान ने सभी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों से
इस बाबत रिपोर्ट मांगी है, ताकि केंद्र सरकार से शुल्क की भरपाई के लिए
राशि की मांग भेजी जा सके। यहां बता दें कि आरटीई एक्ट के तहत दाखिला देने
पर निजी स्कूलों को प्रति बच्चा 450 रुपये महीना भुगतान किया जाता है।
गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में 25 फीसदी सीटें गरीब बच्चों को देने का नियम बाध्यकारी नहीं है। आरटीई एक्ट में यह व्यवस्था है कि निजी स्कूलों का प्रबंधन 25 फीसदी तक सीटें गरीब बच्चों से भरने से इन्कार नहीं कर सकता। स्कूल के एक किलोमीटर दायरे में जितने अलाभित और दुर्बल वर्ग के अभिभावक अपने बच्चों को इन स्कूलों में प्रवेश दिलवाने के लिए संपर्क करते हैं, उनके प्रवेश की व्यवस्था की जाती है।-दिनेश बाबू शर्मा, निदेशक, बेसिक शिक्षा
- राज्य सरकार की नियमावली में ही ढूंढा बचाव का हथियार
आरटीई
एक्ट की धारा 12(सी) में कहा गया है कि अलाभित और दुर्बल वर्ग के बच्चों
को ‘पड़ोस’ के निजी स्कूलों में दाखिला लेने का अधिकार होगा, लेकिन इसी
एक्ट की धारा 38-2(बी) में ‘पड़ोस’ शब्द को परिभाषित करने की जिम्मेदारी
राज्य सरकार को दी गई है। राज्य सरकार की नियमावली के प्रावधान 4(1-क) में
‘पड़ोस’ के मायने बताए गए हैं : स्कूल की एक किलोमीटर परिधि में रहने वाले
लोग। हालांकि, नियमावली में कहीं भी एक किलोमीटर दायरे से बाहर रहने वालों
को दाखिला न देने की बात नहीं कही गई है, मगर शिक्षा विभाग के अधिकारियों
का कहना है कि एक किलोमीटर के दायरे में जितने बच्चे आते हैं, उन्हें निजी
स्कूलों में दाखिला दिलवा दिया जाता है। उस सीमा से बाहर रहने वालों का
दाखिला लेने के लिए स्कूलों को बाध्य नहीं किया जा सकता। वहीं, आरटीई के
जानकारों का कहना है कि एक्ट में कहीं भी एक किलोमीटर का दायरा निर्धारित
नहीं किया गया है। अगर राज्य सरकार की नियमावली में ऐसी व्यवस्था होने से
कोई दिक्कत आ रही है तो उसे बदलवाने के लिए शिक्षा विभाग के अधिकारियों को
शासन को रिपोर्ट भेजनी चाहिए।
- एनसी-केजी की सीटें भी आरटीई के दायरे में
आरटीई
एक्ट की धारा 12(1-सी) के मुताबिक, गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में
पहली कक्षा (स्टार्ट क्लास) की 25 फीसदी तक सीटें गरीब परिवारों के बच्चों
से भरनी होंगी। अगर किसी स्कूल में प्री-स्कूल एजुकेशन (नर्सरी
क्लासेज-केजी) का प्रावधान है, तो उसकी भी 25 फीसदी तक सीटें गरीब बच्चों
से भरनी होंगी।
- क्या हैं अलाभित और दुर्बल वर्ग
उत्तर
प्रदेश सरकार की ओर से जारी नियमावली के तहत निशक्त बच्चे, अनुसूचित जाति,
अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, एचआईवी या कैंसर पीड़ित अभिभावकों के
बच्चे और निराश्रित बेघर बच्चों को अलाभित समूह में रखा गया है। बीपीएल
कार्डधारक माता-पिता या संरक्षक के बच्चों को दुर्बल वर्ग में रखा गया है।
इसके अलावा विधवा, निशक्त और वृद्धावस्था पेंशन पाने वाले अभिभावकों के
बच्चों और अधिकतम एक लाख रुपये तक आय वाले अभिभावकों के बच्चों को भी
दुर्बल वर्ग में रखा गया है।
- 35 हजार सालाना आमदनी वाले परिवारों को वरीयता
शासनादेश
के मुताबिक, आरटीई एक्ट के तहत गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में
दाखिले में 35 हजार रुपये तक सालाना आमदनी वाले अभिभावकों के बच्चों को
प्राथमिकता दी जाएगी। उसके बाद एक लाख रुपये तक आय वाले आवेदकों के बच्चों
को आय के आरोही क्रम में तैयार की गई सूची के अनुसार प्रवेश दिया जाएगा।
सूबे में आरटीई एक्ट पूरी तरह से फ्लॉप : गरीब बच्चों को नहीं मिल पा रहा पढ़ने का अधिकार, मोटी फीस वसूलने वाले निजी स्कूलों को मंजूर नहीं एक्ट के प्रावधान
Reviewed by Brijesh Shrivastava
on
7:46 AM
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