अफसर ही संस्थाओं को कर रहे कमजोर : संस्थाओं के प्रस्तावों पर सरकार की मंशा भारी, बेसिक शिक्षा परिषद की बैठक में एकमत से तीन वर्ष पर तबादले की बात को किनारे करके शासन द्वारा 10 वर्ष तबादले की तैयारी
इलाहाबाद : यह तीनों मिसाल वर्षो पुरानी संस्थाओं के कामकाज को बयां करने के लिए काफी हैं। यह संस्थाएं एक समय शिखर पर रही हैं, क्योंकि यहां तैनात अफसर आपसी मंथन के बाद उम्दा निर्णय लागू करवाते रहे हैं। इनकी बैठक व उसमें पारित प्रस्ताव ही कुछ दिन बाद आदेश का रूप लेते रहे हैं, लेकिन इधर अहम संस्थाएं महज डाकिये की भूमिका में आ गई हैं और पूरी तरह से वह ‘शासनमुखी’ होकर रह गई हैं।
पुलिस मुख्यालय, आबकारी मुख्यालय, राजस्व परिषद समेत अन्य अहम संस्थान भी कुछ वर्ष पहले तक नीति नियंता रहे हैं। नियमावली और उसमें संशोधन आदि की प्रक्रिया इन महकमों में आज भी मुख्यालय से ही हो रही है और कागजी लिखापढ़ी में वह दर्ज भी है, लेकिन हकीकत में यह संस्थान उस तरह संचालित नहीं हो पा रहे हैं, जिस तरह के कामकाज के लिए यह जाने जाते रहे हैं।
बेसिक शिक्षा परिषद की बैठक में शिक्षा महकमे के निदेशक बेसिक व परिषद सचिव के सामने तमाम अफसर व नेताओं ने एक स्वर से कहा कि शिक्षकों का तबादला तीन वर्ष पर ही होना चाहिए। इसके बाद भी शासन 10 वर्ष बाद तबादला आदेश जारी करने की तैयारी में है।
ऐसे में सवाल है कि आखिर इन संस्थाओं की यदि सुननी नहीं है तो बैठकों की औपचारिकता ही क्यों हो? इसका जवाब अफसरों के पास नहीं है। राज्य शिक्षा संस्थान, परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालयों में भी सारे निर्णय ऊपर के अफसरों के निर्देश पर ही हो रहे हैं। नाम न छापने की शर्त पर अफसर कहते हैं कि ताकत का केंद्र बिंदु सरकार है इसलिए शासन की मनमर्जी लागू होना स्वाभाविक है।
बेसिक शिक्षा परिषद की दो वर्ष बाद बीते 26 मई को बैठक हुई। इसमें ज्यादातर उन्हीं प्रस्तावों पर मुहर लगी, जिन पर अधिकारी पहले से सहमत हैं। तबादला आदि नए मुद्दों पर बैठक में चर्चा हुई व जो निष्कर्ष निकला, उसके उलट शासन निर्णय करने जा रहा है।
माध्यमिक शिक्षा परिषद को स्वायत्तशासी इकाई कहा जाता है, लेकिन यहां हाईस्कूल व इंटर की प्रायोगिक परीक्षा तक का बड़े अफसरों से निर्देश लेना पड़ रहा है। वार्षिक परीक्षा, परिणाम जैसे कार्यो में शासन का पूरा दखल है। यहां बोर्ड के बजाय बड़े अफसरों की ही चलती है।
शिक्षा निदेशालय लंबे समय से प्रदेश के राजकीय कालेजों को मिलने वाले वार्षिक बजट, मरम्मत आदि कार्यो का आवंटन करता आ रहा है, लेकिन पिछले वर्ष यह कार्य निदेशालय से छीनकर सीधे संयुक्त शिक्षा निदेशकों को सौंप दिया गया। इसका विवाद अब तक चल रहा है।
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