बहुरेंगे शिक्षा के दिन : बच्चों की ड्रेस में बदलाव से लेकर इंग्लिश मीडियम स्कूलों के रूप में परिषदीय स्कूलों की होने वाले तब्दीली, सरकार के प्रगतिशील नजरिया का बच्चों को कितना फायदा मिल पाएगा? - जागरण सम्पादकीय


बहुरेंगे शिक्षा के दिन : बच्चों की ड्रेस में बदलाव से लेकर इंग्लिश मीडियम स्कूलों के रूप में परिषदीय स्कूलों की होने वाले तब्दीली, सरकार के प्रगतिशील नजरिया का बच्चों को कितना फायदा मिल पाएगा? - जागरण सम्पादकीय


प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा की काया पलट का दौर शुरू हो चुका है। पांच हजार प्राथमिक स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई की तैयारी शुरू हो गई है। फिलहाल हर ब्लॉक के पांच स्कूलों को अंग्रेजी माध्यम में तब्दील किया जाएगा। समय के साथ चलना अपेक्षित और आवश्यक भी होता है। योगी सरकार ने इसे शिद्दत से महसूस करते हुए प्राथमिक शिक्षा में भारी फेरबदल की नींव रख दी है। इसकी बड़ी शुरुआत बच्चों के ड्रेस का रंग बदलने से हुई है।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर हर बच्चे का अधिकार है। यह बच्चों के मौलिक अधिकार में भी शामिल है। राइट टु एजुकेशन उनके इसी अधिकार की पैरोकारी करता है, लेकिन प्रदेश में बच्चों का दुर्भाग्य ये रहा है कि उनके बारे में टाट-पट्टी से ऊपर कुछ सोचा ही नहीं गया। न ही समय के साथ-साथ उनकी शिक्षा को अद्यतन किया गया। नतीजतन हिंदी माध्यम से पढ़कर बच्चे अगली कक्षाओं में खिसकते रहे, पर सरपट दौड़ने लायक गिने-चुने ही बच्चे निकल पाते थे। इन बच्चों के सामने अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों ने बहुत बड़ी लकीर खींच दी थी। यही कारण है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे खुद को हीन समझने लगे हैं। उनका मनोबल भी धीरे-धीरे गिरता जा रहा है। उनमें आत्मविश्वास की कमी आती जा रही है। रही-सही कसर इन स्कूलों में शिक्षा के गिरते स्तर ने पूरी कर दी है।

घोर पारिवारिक अभाव और स्कूलों में सुविधाओं की जबर्दस्त कमी से भी बच्चे उबर नहीं पा रहे हैं। ऐसे में इन बच्चों का भविष्य क्या हो सकता है, समझना कोई मुश्किल काम नहीं है। अब योगी सरकार ने प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा की दशा-दिशा बदलने का जो कदम उठाया है, निश्चित रूप से प्रदेश में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से महरूम बच्चों को इसका काफी फायदा मिलेगा, लेकिन ध्यान रखना होगा कि यह भी महज दिखावा या कुछ स्वार्थी अध्यापकों की लूटखसोट का जरिया न बन जाए, क्योंकि पब्लिक स्कूलों में मूल पुस्तकों से कम और अगल-बगल की पुस्तकों से ज्यादा पढ़ाई होती है, इन पुस्तकों की कीमत मूल पुस्तकों से कई गुना ज्यादा होती है, क्योंकि इनका भारी भरकम कमीशन स्कूलों की जेब में जाता है।

जो भी हो, फिलहाल एक नई शुरुआत हो चुकी है, बाकी समय बताएगा कि योगी के प्रगतिशील नजरिया का बच्चों को कितना फायदा मिल पाएगा।


बहुरेंगे शिक्षा के दिन : बच्चों की ड्रेस में बदलाव से लेकर इंग्लिश मीडियम स्कूलों के रूप में परिषदीय स्कूलों की होने वाले तब्दीली, सरकार के प्रगतिशील नजरिया का बच्चों को कितना फायदा मिल पाएगा? - जागरण सम्पादकीय Reviewed by प्राइमरी का मास्टर 1 on 9:39 AM Rating: 5

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