बेसिक शिक्षा के स्तर पर हाईकोर्ट की गंभीर चिंता वाजिब : जागरण संपादकीय में उठे सवालों पर चर्चा
राज्य में बेसिक शिक्षा के स्तर पर हाईकोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि कोई भी संपन्न व्यक्ति अपने बच्चों को प्राइमरी पाठशालाओं में नहीं पढ़ाना चाहता है। अदालत ने राज्य सरकार से पूछा है कि आखिर ऐसा क्यों है, जबकि बेसिक शिक्षा पर करोड़ों रुपये का बजट खर्च किया जा रहा है। कोर्ट ने शिक्षा का अधिकार कानून के अनुपालन के संबंध में राज्य सरकार की ओर से दी गई जानकारी को पूरी तरह अस्पष्ट और असंतोषजनक बताया है।
सरकार की ओर से दिए गए जवाब में शिक्षा के अधिकार कानून के अनुपालन के बारे में उठाए गए कदमों की जानकारी दी गई थी। न्यायालय ने हलफनामे में दी गई जानकारी को अस्पष्ट और असंतोषजनक करार दिया। कहा कि इनमें उन विद्यालयों का विवरण नहीं है जहां कोई ऐसा सुधार हुआ हो कि निचले पायदान से आने वाले बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल सके जैसी अमीर व उच्च वर्ग के बच्चों को मिलती है।
प्राइमरी विद्यालयों में पठन-पाठन की स्थिति को सुधारने के लिए सरकारें लंबे समय से प्रयास कर रही हैं लेकिन, उन्हें शतप्रतिशत सफलता अब तक नहीं मिल पाई है। तरह-तरह की योजनाएं बनाई गईं, उन्हें क्रियान्वित करने की कोशिश भी हुई पर व्यवस्थाएं जस की तस रहीं। प्राइमरी विद्यालयों में सिर्फ गरीब घरों के बच्चे ही पहले भी पढ़ने आते थे और अब भी वही हालात हैं। इन स्कूलों के अध्यापकों व प्रधानाध्यापकों का वेतन अब पहले की तुलना में बहुत अच्छा हो गया है। बावजूद इसके वे कार्यप्रणाली को दुरुस्त करने को तैयार नहीं हैं। अपवादों को छोड़ दिया जाए तो किसी भी प्राइमरी स्कूल में चले जाइए, अध्यापकों की लापरवाही ही देखने को मिलेगी।
प्राइमरी स्कूलों में स्टाफ की भी कमी है, यह तथ्य किसी से छिपा हुआ नहीं। ऐसी परिस्थितियों में भी मास्टर आए दिन स्कूलों से गायब रहते हैं। दूरदराज गांवों में कई प्राइमरी स्कूल ऐसे हैं जहां के सभी बच्चों की जिम्मेदारी एक ही अध्यापक के कंधे पर रहती हैं। बच्चे भी सिर्फ मध्याह्न् भोजन के लालच में स्कूल आते हैं और खाना खाकर नौ-दो-ग्यारह हो जाते हैं। जब तक शिक्षा के मंदिर की हालत में कोई सुधार नहीं होगा, हाईकोर्ट की ऐसी टिप्पणियां लगातार आती रहेंगी।
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