देश पढ़ेगा और बढ़ेगा पर लगेगा वक्त, उच्च शिक्षा में नई सोच और ठोस पहल के जरिये दिखे असर के बाद अब प्राथमिक शिक्षा पर होगा फोकस
देश पढ़ेगा और बढ़ेगा पर लगेगा वक्त, उच्च शिक्षा में नई सोच और ठोस पहल के जरिये दिखे असर के बाद अब प्राथमिक शिक्षा पर होगा फोकस।
नई दिल्ली : स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद लंबा सफर पूरा कर देश 80 फीसद साक्षरता तक तो पहुंच गया है, लेकिन गुणवत्ता की कसक बरकरार है। पिछला चार साल एक मायने में खास है कि सरकार शिक्षा की गुणवत्ता के बाबत ठोस पहल करती दिखी, पर ध्यान उच्च शिक्षा पर रहा। स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की मजबूत कोशिश देर से शुरू हुई। सरकार का मानना है कि रास्ता तैयार है, अब रफ्तार भरना है। पर जो ढांचा अब तक दिख रहा है, उसमें फिलहाल आशा नहीं करनी चाहिए कि स्वतंत्रता के 75वें साल में भी हम सीना चौड़ा कर कह सकेंगे कि कभी विश्व को शिक्षा देने वाला देश अब फिर से तैयार है।
शिक्षा को मजबूती देने के लिए सरकार पिछले चार सालों में काफी कुछ करती दिखी है। परंतु, इनमें से ज्यादा कदम ऐसे हैं, जिसके शुरुआती परिणाम आने में अभी और डेढ़-दो साल का वक्त लगेगा। सबसे बड़ी मुश्किल शिक्षकों की कमी है। यह स्थिति दूर-दराज के इंजीनियरिंग कॉलेज, स्कूल हो या फिर विश्वविद्यालय, सभी जगहों पर एक जैसी ही है। पिछले तीन चार सालों में लगभग चार हजार बीएड और आठ सौ इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो गए।
इसका बड़ा कारण गुणवत्ता की कमी था। स्कूली शिक्षा की मजबूत जमीन तैयार न हो पाने की एक बड़ी वजह यह भी रही कि समग्र शिक्षा अभियान या लनिर्ंग आउटकम जैसे कदम देर से उठाए गए। राज्यों का रवैया भी लचर रहा। शिक्षा को आसमान तक पहुंचाने के लिए राज्यों की भूमिका अहम होती है लेकिन केंद्र भी जवाबदेही से नहीं बच सकता। शिक्षा पर जीडीपी का छह फीसद खर्च करने के वादे और इरादे के बावजूद सरकार आधे से कुछ ही आगे बढ़ पाई है।
Reviewed by प्राइमरी का मास्टर 2
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10:33 AM
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