बीएड के प्रति विद्यार्थियों का मोह भंग : सीधे दाखिले से सिर्फ चार हजार प्रवेश, 80 हजार सीटें खाली रहने की आशंका

बीएड के प्रति विद्यार्थियों का मोह भंग : सीधे दाखिले से सिर्फ चार हजार प्रवेश, 80 हजार सीटें खाली रहने की आशंका


बीएड के प्रति विद्यार्थियों का मोह भंग होता जा रहा है। चार चरण की काउंसिलिंग के बाद महाविद्यालय स्तर पर हुए सीधे दाखिले में सिर्फ चार हजार दाखिले ही हुए हैं। अभी भी 82 हजार से ज्यादा सीटें खाली पड़ी हुई हैं। इस साल 2,41,831 में से सिर्फ 1,59,595 सीट ही भर पाई हैं। कई कॉलेज ऐसे हैं जिनमें एक चौथाई सीट भी नहीं भर पाई हैं। लविवि ने दाखिले के लिए 31 दिसंबर तक का मौका दिया है, लेकिन मौजूदा स्थिति में इन सीटों पर दाखिले की उम्मीद कम ही है।


लविवि की ओर से अगस्त में हुई संयुक्त प्रवेश-परीक्षा बीएड-2020-22 की महाविद्यालय स्तर से सीधे प्रवेश की प्रक्रिया भी समाप्त हो चुकी है। अभी भी करीब 82 हजार सीटें खाली हैं। इसके लिए महाविद्यालय स्तर से सीधे प्रवेश की प्रक्रिया को 31 दिसंबर तक बढ़ा दी गई है। इसकी शर्त यह है कि दाखिले महाविद्यालय स्तर पर केवल बीएड काउंसिलिंग पोर्टल से होंगे। काउंसिलिंग के इस चक्र में केवल वैध स्टेट-रैंक धारक अभ्यर्थी ही शामिल हो सकते हैं। इसके साथ ही अब तक कोई सीट आवंटित नहीं होने वाले अभ्यर्थी ही इसमें भाग ले सकते हैं। अब तक के रिकॉर्ड को देखते हुए सीधे दाखिले से सीट भरने की संभावना नहीं दिख रही है। लविवि की ओर से आयोजित बीएड की 2,41,831 सीट के लिए हुई संयुक्त प्रवेश परीक्षा का रिजल्ट पांच सितंबर को जारी किया गया था। प्रवेश परीक्षा में कुल 4,31,904 अभ्यर्थी पंजीकृत थे। इसमें से 3,57,701 अभ्यर्थी परीक्षा में शामिल हुए थे।

महाविद्यालय में ही जमा होगी फीस-
24 दिसंबर से सीधे दाखिले में अभ्यर्थियों को सीधे दाखिले के समय पूरी फीस एडवांस जमा करनी थी। इस बार इससे भी छूट दे दी गई है। मतलब अभ्यर्थी कॉलेज के स्तर पर ही फीस जमा करेंगे। महाविद्यालय प्रशासन अभ्यर्थियों को फीस में छूट दे सकता है या फिर किस्त में भी फीस जमा की जा सकती है।

स्ववित्तपोषित कॉलेजों पर बढ़ेगा भार
नेशनल काउंसिल फ़ॉर टीचर्स एजुकेशन ने बीएड कॉलेजों के मानक बेहद कड़े किए हैं। इसलिए वहां निर्धारित संख्या में शिक्षक की व्यवस्था करना जरूरी है। कॉलेज अपने यहां का खर्च और शिक्षकों का वेतन विद्यार्थियों से मिली फीस से ही निकलता है। जब दाखिले ही नहीं होंगे तो फिर फीस कहां से आएगी। ऐसे में कॉलेजों का अर्थशास्त्र गड़बड़ हो सकता है। कई कालेज में सिर्फ नाममात्र के ही दाखिले हुए हैं। अब इन कॉलेजों में शिक्षकों के वेतन का संकट भी खड़ा हो सकता है।
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