आरटीई : अस्पष्ट आदेश से निजी स्कूल असमंजस में
लखनऊ।
प्रदेश सरकार और शिक्षा विभाग ने शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून लागू
करने के लिए भले ही कमर कस ली हो पर शहर के निजी स्कूल प्रबंधकों के लिए यह
अब भी एक अनसुलझी पहले ही है। स्कूल प्रबंधकों की मानें तो कानून के संबंध
में जारी शासनादेश अधूरा और अस्पष्ट है। अंग्रेजी माध्यम की पहली कक्षा
में पढ़ने वाले बच्चे दो साल तैयारी करके वहां तक पहुंचते हैं जबकि कानून
में गरीब तबके के बच्चों को सीधे पहली कक्षा में दाखिला देने की व्यवस्था
है। इसी तरह, सरकार फीस प्रतिपूर्ति की बात कर रही है लेकिन पढ़ाई पर आने
वाले अन्य मदों के खर्चों पर अब तक मौन है। उनका कहना है कि आरटीई में
सामान्य बदलाव से इसे और भी ज्यादा प्रभावी बनाया जा सकता है। निशुल्क और
अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 को लागू करने में आ रही
दिक्कतों और उसके समाधान के लिए ‘अमर उजाला’ ने राजधानी के कुछ निजी स्कूल
प्रबंधकों से चर्चा की।
- फीस के अलावा अन्य खर्चों पर शासनादेश मौन
एक
निजी स्कूल में फीस के अलावा भी अन्य मदों में खर्चे होते हैं। इसमें
यूनिफॉर्म, किताबें, स्टेशनरी आदि शामिल हैं। बिना किताब और स्टेशनरी के
बच्चे स्कूल में क्या करेंगे? शासनादेश में बच्चों के लिए सिर्फ फीस
प्रतिपूर्ति की व्यवस्था की गई है जबकि यह आदेश अन्य मदों के खर्च पर मौन
है। इनका खर्च कौन उठाएगा, ये सवाल स्कूल ही नहीं बल्कि बच्चों के परिजनों
के सामने भी खड़ा है जिसका कोई जवाब अब तक तो नहीं ही है।
- सरबजीत सिंह, प्रबंधक, अवध कॉलिजिएट
- बच्चों के मानसिक स्तर में भी अंतर
किसी
भी अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में बच्चों को सीधे पहली कक्षा में एडमिशन
देने की व्यवस्था नहीं है। नर्सरी और केजी जैसी क्लासेस में अपना आधार
बनाकर ही वे पहली कक्षा में पहुंचते हैं। आरटीई में बच्चों को सीधे पहली
कक्षा में दाखिला देने की व्यवस्था है। यानी जब यह बच्चे क, ख, ग और
एबीसीडी सीखेंगे, उस समय कक्षा के अन्य बच्चे किताब पढ़ना सीखे चुके होंगे।
ऐसे में आरटीई के तहत दाखिला पाने वाले बच्चों में कुंठा और हीन भावना आना
स्वाभाविक है।
- जयपाल सिंह, प्रबंधक, रानी लक्ष्मीबाई सीनियर सेकंडरी स्कूल
- हो सकती है विशेष व्यवस्था
दिक्कत
कानून में नहीं बल्कि उसे लागू करने के तरीके में है। स्कूल निशुल्क
शिक्षा देने को तैयार हैं पर बिना किताब-कॉपी और मानसिक स्तर में अंतर के
चलते इन बच्चों का अन्य बच्चों के साथ बैठकर पढ़ना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे
में इनके लिए विशेष व्यवस्था करने की जरूरत है। हमें ऐसे बच्चों की एक
संख्या मिल जाए तो उसी के अनुरूप हम अलग से उनकी जरूरतों को ध्यान में रखते
हुए शिक्षा दे सकते हैं।
आरटीई : अस्पष्ट आदेश से निजी स्कूल असमंजस में
Reviewed by Brijesh Shrivastava
on
7:10 AM
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