बड़े राज्यों में परवान नहीं चढ़ पा रही है बालिका शिक्षा, रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2016-17 में उत्तर प्रदेश में प्राथमिक स्तर पर बालिकाओं का सकल नामांकन अनुपात 91 फीसद, बालिकाओं की शिक्षा में पहले स्थान पर दिल्ली
बालिकाओं को पढ़ाने की सरकार की कोशिश उत्तर प्रदेश, झारखंड, राजस्थान सहित देश के कई बड़े राज्यों में परवान नहीं चढ़ पा रही है। यह स्थिति माध्यमिक स्तर पर और ज्यादा खराब है। अकेले उत्तर प्रदेश पर नजर डालें, तो यहां प्राथमिक से माध्यमिक स्तर तक आते-आते बालिकाओं की संख्या करीब 30 फीसद कम हो जाती है। वहीं माध्यमिक स्तर पर जिन राज्यों का बालिकाओं की शिक्षा में सबसे बेहतर प्रदर्शन रहा है, उनमें दिल्ली पहले स्थान पर है।
रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2016-17 में उत्तर प्रदेश में प्राथमिक स्तर पर बालिकाओं का सकल नामांकन अनुपात 91 फीसद है, जबकि माध्यमिक स्तर पर यह अनुपात मात्र 60 फीसद ही रह जाता है। मानव संसाधन विकास मंत्रलय की ओर से संसद को दी गई एक जानकारी में यह तथ्य सामने आया है। इसमें बताया गया है कि देश में बालिकाओं की शिक्षा का प्राथमिक स्तर पर सकल नामांकन अनुपात 96 फीसद है, जबकि माध्यमिक स्तर पर यह अनुपात 80 फीसद है। रिपोर्ट के तहत जिन राज्यों में बालिकाओं की माध्यमिक शिक्षा का अनुपात काफी कम है, उनमें उत्तर प्रदेश, झारखंड के अलावा राजस्थान, गुजरात, नगालैंड और जम्मू एवं कश्मीर सहित कई अन्य शामिल हैं।
मंत्रलय के मुताबिक, उत्तर प्रदेश, झारखंड जैसे राज्यों में माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं के सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) में यह गिरावट लगातार तीन सालों से जारी है।
रिपोर्ट के तहत माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं का सकल नामांकन अनुपात गुजरात में 66 फीसद है, जबकि गुजरात में 68 फीसद, नगालैंड में 64 फीसद और जम्मू-कश्मीर में 60 फीसद है। रिपोर्ट के तहत उत्तर प्रदेश जैसे राज्य तो प्राथमिक स्तर पर भी राष्ट्रीय औसत अनुपात से काफी पीछे है। प्राथमिक स्तर पर उत्तर प्रदेश का सकल नामांकन अनुपात 91 फीसद है। जो राष्ट्रीय औसत अनुपात 96 फीसद से कम है। बालिकाओं की शिक्षा को लेकर राज्यों के इस रवैए को लेकर मंत्रलय ने भी नाराजगी जाहिर की है।
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