टेंडर के फंदों में उलझ गया स्कूली बच्चों का स्वेटर, न्यूनतम रेट वाले को ठेका नहीं, खरीद प्रक्रिया सवालों में
सरकारी स्कूलों में बच्चों को बांटा जाने वाला स्वेटर टेंडर के फंदों में उलझ गया है। कड़ाके की ठंड में सूबे के करीब डेढ़ करोड़ बच्चे ठिठुर रहे हैं। खुद मुख्यमंत्री ने बच्चों को तत्काल स्वेटर उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं, लेकिन जिम्मेदार प्रक्रिया चलने की बात कह रहे हैं। टेंडर क्यों नहीं हो रहा? स्वेटर कब तक बंट पाएंगे? कौन है इस प्रक्रिया में बाधक? इन सवालों पर सभी चुप्पी साधे हुए हैं।
सवाल यह भी उठ रहा है कि दो बार न्यूनतम रेट लगाने वाली कंपनी को टेंडर क्यों नहीं दिया गया? क्योंकि नौ नवंबर को बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से स्वेटर वितरण के लिए गवर्नमेंट ई मार्केट (जीईएम) पोर्टल पर बिड खोली गई। इसमें रिवर्स ऑक्सन (आरए) के तहत विभाग की ओर से प्रति स्वेटर की न्यूनतम दर 350 रुपये तय की गई थी। यानी इससे कम बोली लगानी थी।
सूत्रों का कहना है कि स्वेटर वितरण के लिए एक कंपनी ने सबसे कम 249.75 रुपये प्रति स्वेटर बोली लगाई थी, लेकिन यह सिर्फ लखनऊ के लिए थी और आगे दूसरे जिलों के लिए नई बिड लेने का प्रावधान था। इस पर सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी ने यह कहते हुए आपत्ति दर्ज कराई कि अलग-अलग जिलों के लिए अलग-अलग टेंडर का कोई तुक नहीं और इससे उसके रेट भी लीक हो जाएंगे। कंपनी की आपत्ति पर विभाग ने पहली प्रक्रिया रोक दी।
इसके बाद दोबारा टेंडर प्रक्रिया शुरू की गई। इसके तहत जीईएम पोर्टल पर दूसरी बिड डिमांड एग्रीग्रेशन (मांग एकत्रीकरण) यानी बिड डीए आमंत्रित की। इसमें पूरे यूपी के लिए विभिन्न साइज के स्वेटर के रेट मांगे गए। बिड 23 नवंबर को हुई। घालमेल की आशंका होने पर पहली बार न्यूनतम रेट देने वाली कंपनी ने दूसरी बिड में पहले से भी कम 248.13 रुपये प्रति पीस स्वेटर का रेट डाला। ये रेट सबसे कम निकला, मगर फिर भी कंपनी को टेंडर आवंटित नहीं किया गया। ऐसा क्यों? इस पर जिम्मेदार मौन रहे और 23 दिसंबर को फिर नया ई टेंडर जारी कर दिया गया जो अब तक फाइनल नहीं किया जा सका है।
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