नहीं खुली स्वेटर की 'गठरी', इस सर्दी तो ऐसे ही ठिठुरेंगे बच्चे
दिक्कत तो है लेकिन प्रक्रिया तो पूरी करनी ही होगी। बिड भी करवाई गई लेकिन उपयुक्त फर्म मिलना भी जरूरी है। इतनी ज्यादा संख्या में स्वेटर दिए जाने हैं। ऐसी फर्म होनी चाहिए जो तय मानक पर इतने स्वेटर की सप्लाई करे। अभी कोई निर्णय नहीं हुआ है। सरकार की कोशिश है कि जल्द बच्चों को स्वेटर उपलब्ध करवाए जाएं। प्रयास किए जा रहे हैं। -आरपी सिंह, अपर मुख्य सचिव, बेसिक शिक्षा
अगर सरकार चाहती तो जूते-मोजे के साथ स्वेटर का टेंडर भी पहले ही कर सकती थी। अदूरदर्शी सरकार है और नीयत भी ठीक नहीं लगती। एक फर्म इतने ज्यादा स्वेटर की आपूर्ति नहीं कर सकती तो चार-पांच अलग-अलग फर्मों को काम दिया जा सकता था। आशंका यह भी है कि किसी खास फर्म को काम देने के लिए बार-बार टेंडर निरस्त किए जा रहे हैं।
- दीपक सिंह, एमएलसी कांग्रेस
सरकार और अफसरों की जो रफ्तार है, उसके मुताबिक इस सीजन में तो सर्दियों में स्वेटर मिलना मुश्किल है। वास्तव में सरकार की मंशा बच्चों को सर्दी से बचाने की है तो अभी से अगले सर्दी के सीजन के हिसाब से तैयारी करनी चाहिए, तभी सरकार समय पर स्वेटर दे पाएगी। -वीरेंद्र सिंह, जिला मंत्री, प्राथमिक शिक्षक संघ
सरकार ने वादा किया था तो बच्चों को समय पर स्वेटर मिलना ही चाहिए था। यह तो सभी को पता है कि दिसंबर और जनवरी में सबसे ज्यादा ठंड पड़ती है। फिर भी खरीद की शुरुआत न हो पाना घोर लापरवाही है। सर्दियां निकलने के बाद स्वेटर बांटने का कोई मतलब नहीं है। - विनय कुमार सिंह, अध्यक्ष, प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक असोसिएशन
ऐसे हुई देर
करोड़ का बजट तय किया गया है स्वेटर के लिए
390
करोड़ बच्चों को दिए जाने हैं स्वेटर
1.54
लाख सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल हैं यूपी में
1.59
विस्तार से
स्वेटर बंटे नहीं तो बलिया के रेवती ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय, महंगी छाप में बच्चों ने खुद अलाव जलाकर सर्दी से बचने का इंतजाम।• बीजेपी ने विधानसभा चुनाव से पहले वादा किया था कि सरकार बनी तो स्कूली बच्चों को स्वेटर दिए जाएंगे।• मार्च में बीजेपी की सरकार बनी और फिर यही वादा दोहराया गया।• सरकार बनने के सात महीने बाद अक्टूबर के पहले सप्ताह में कैबिनेट बैठक में स्वेटर खरीदने का निर्णय हुआ। • अक्टूबर अंत में केंद्र सरकार के जैम पोर्टल के जरिए खरीद की प्रक्रिया शुरू हुई और आपूर्तिकर्ता फर्मों से आवेदन मांगे गए।• इसी बीच निकाय चुनाव अधिसूचना जारी हो गई और इस वजह से स्वेटर न खरीद पाने का तर्क दिया गया।• 19 नवंबर को राज्य निर्वाचन आयोग ने विशेष परिस्थितियों में स्वेटर खरीद और टेंडर की अनुमति दी।• अनुमति मिलने के बाद तर्क दिया गया कि जैम पोर्टल पर हर जिले में अलग-अलग रेट आने और गुणवत्ता नियंत्रण न रख पाने के कारण अब सरकार ई-टेंडर करवाएगी।• 18 दिसंबर को विधानमंडल में पेश अनुपूरक बजट में सरकार ने स्वेटर के लिए 390 करोड़ रुपये का प्रावधान किया।• सदन में उठे सवालों पर सरकार ने जवाब दिया कि 22 दिसंबर को टेंडर खोला जाएगा और 25 दिसंबर से स्वेटर वितरण शुरू हो जाएगा।• 22 दिसंबर को ई-तकनीकी बिड खोली गई।• बिड में दो ही कंपनियां शामिल हुईं और रेट ज्याद होने के कारण टेंडर कमिटी ने इसे निरस्त कर दिया। • 28 दिसंबर को फिर तकनीकी और फाइनेंशल बिड खोली गई।• इसमें भी दो ही कंपनियां शामिल हुईं और रेट फिर ज्यादा होने के कारण स्वेटर खरीद पर अभी तक निर्णय नहीं हो सका है।• वादों और आश्वासनों में बीत गई आधी सर्दी, अभी दो महीने और लगेंगे• निराश शिक्षकों-अभिभावकों ने कहा, सरकार अब अगले सत्र में वितरण की तैयारी करे
शासन से हुई देर, फिर विभाग ने दिखाई सुस्ती
दरअसल, स्वेटर देने का वादा तो सरकार ने कर दिया था, लेकिन कोई आदेश ही नहीं किए गए। लेटलतीफी का आलम यह रहा कि अक्टूबर में कैबिनेट बैठक में स्वेटर बांटने का निर्णय लिया गया। स्वेटर के लिए धनराशि का प्रावधान भी जुलाई में पेश बजट में न करके दिसंबर में पेश किए गए अनुपूरक बजट में किया गया। उच्च स्तर से हुए विलंब के बाद बाकी कसर बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों ने पूरी कर दी। पहले कहा गया कि केंद्र सरकार के जैम पोर्टल से स्वेटर खरीदे जाएंगे और 15 दिन में प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। अक्टूबर से दिसंबर तक दो बार पोर्टल के जरिए फर्मों से आवेदन मांगे गए। डिमांड जिलास्तर से की गई। हर जिले के अलग-अलग रेट होने के कारण प्रक्रिया रद कर दी गई। इसके बाद प्रदेश स्तर पर ई-टेंडर करवाने का निर्णय लिया गया। दो बार ई-टेंडर हुआ लेकिन रेट ज्यादा होने के कारण निर्णय नहीं हो सका है कि कौन सी फर्म को सप्लाई का काम दिया जाए। सरकार चाहती है कि प्रति स्वेटर 200 रुपये तक खरीद की जाए, लेकिन दोनों बार टेंडर में शामिल फर्मों के दाम इससे ज्यादा थे।
मार्च से पहले स्वेटर मिलना मुश्किल : अब शिक्षा विभाग कितनी भी जल्दी कर ले, कड़ाके की सर्दी बीतने के बाद ही बच्चों को स्वेटर मिल पाएंगे। ऐसा मुश्किल है कि किसी फर्म ने डेढ़ करोड़ से ज्यादा स्वेटर पहले से तैयार रखे होंगे। किसी भी फर्म को स्वेटर सप्लाई का आदेश मिलेगा तो वह हर क्लास के बच्चों की संख्या और साइज के हिसाब से स्वेटर बनवाएगी। उसके बाद वह विभाग को सप्लाई करेगी। वहां से स्वेटर जिलों, ब्लॉक और फिर स्कूलों को भेजे जाएंगे, तब बच्चों को बांटे जाएंगे। इस काम में कम से कम दो महीने का समय लगना तय है। ऐसे में मार्च में ही बच्चों को स्वेटर मिल सकते हैं।
लखनऊ : विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने वादा किया था कि प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों के बच्चों को सर्दियों से बचाने के लिए स्वेटर बांटे जाएंगे। मार्च-2017 में बीजेपी की सरकार बन गई और मुख्यमंत्री से लेकर सभी मंत्री व अफसर वादा करते रहे। इन्हीं वादों के बीच 2018 आ गया। आधी सर्दियां बीत गईं, लेकिन अभी तक यह भी तय नहीं हो पाया कि कौन सी फर्म स्वेटर की सप्लाई करेगी। इस पर निर्णय होने के बाद स्वेटर की खरीद होगी और फिर उसे हर जिले, स्कूल और बच्चों तक पहुंचाना होगा। ऐसे में तय है कि सर्दियां बीतने के बाद ही बच्चों को स्वेटर मिल पाएंगे। लेटलतीफी से निराश शिक्षकों और अभिभावकों का कहना है कि अब सरकार को अगले सर्दी के सीजन के हिसाब से तैयारी करनी चाहिए। अभी से तैयारी होगी तो अगले सत्र में बच्चों को स्वेटर मिल पाएंगे। सरकार और अफसरों की इसी लेटलतीफी पर दीप सिंह की रिपोर्ट :
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