प्राइमरी स्कूलों के बच्चों की पढ़ाई पर उनके अभिभावक नहीं देते ध्यान, एक दर्जन से ज्यादा जिलों में ज्यादा दिक्कतें
प्राइमरी स्कूलों के बच्चों की पढ़ाई पर उनके अभिभावक नहीं देते ध्यान, एक दर्जन से ज्यादा जिलों में ज्यादा दिक्कतें
अभी बच्चे स्कूल खुलने का करें इंतजार, कैसे होगी पढ़ाई
संसाधनों के अभाव में लाख प्रयासों के बावजूद बेसिक शिक्षा विभाग बच्चों तक अपनी पहुंच नहीं बना पा रहा
ई पाठशाला : सिर्फ लखनऊ ही सबसे आगे, ग्रामीण पृष्ठभूमि के जनपदों में निराशाजनक तस्वीर
कोरोना वायरस को लेकर अभी स्कूलों में बच्चों के बुलाने का इंतजार और बढ़ सकता है। महामारी के थमने का इंतजार में शैक्षिक सत्रशुरु होने के सात माह बाद भी बच्चे स्कूलों से दूर है। सबसे अधिक हर्जा ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले संसाधन विहीन बच्चों का हो रहा है । किताबी आंकड़ों में भले की गांवों का मौसम गुलाबी होने की तस्वीर पेश की जा रही हो, लेकिन दावें झूठे और मात्र किताबी ही साबित हो रहे है । खुद विभाग के आंकड़े ही खुलेआम दावों की पोल खोल रहे है।
बेसिक शिक्षा विभाग के प्राइमरी सरकारी स्कूलों में बच्चों तक ऑनलाइन कक्षाओं की पहुंच कागजों से आगे नहीं बढ़ सकी है । सरकारी प्राइमरी स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई की हालत धरातल पर शून्य है। जनपद में दो प्रतिशत बच्चों को भी ऑनलाइन शिक्षण मयस्सर नहीं है। स्कूली शिक्षा महानिदेशक ने दिए जनपदवार समीक्षा के बाद सुधार के निर्देश जारी किए थे ।
लाख प्रयासों के बावजूद बेसिक शिक्षा विभाग बच्चों तक अपनी पहुंच नहीं बना पा रहा है। स्थिति यह है कि विभाग के दीक्षा एप से केवल 11 प्रतिशत बच्चे ही ऑनलाइन पढ़ाई कर पा रहे हैं वह भी शहरी क्षेत्र से सटे जनपदों में । इधर विभाग के ओर से बनाए गए व्हाट्सएप ग्रुपों में हर दिन ई - पाठशाला व दीक्षा एप के जरिए बच्चों कोई रोचक वीडियोवई-कंटेंट उपलब्ध कराए जाने की सामग्री परोसी जा रही है। बीते 7 माह से बच्चे स्कूल के साथ शिक्षण से पूरी तरह दूर बने हुए है।
अक्टूबर में विभाग ने दीक्षा एप से पढ़ाई का जो आंकड़ा पेश किया वह निराश करने वाला है। पूरे सूबे में अक्टूबर माह तक दीक्षा एप के माध्यम से ऑनलाइन पढ़ाई करने वाले बच्चों की संख्या केवल 11 प्रतिशत रही है। वही सूबे के कई जिले में कानपुर देहात जनपद में एक प्रतिशत भी बच्चों ने दीक्षाएप डाउनलोड नहीं किया। जबकि आधा दर्जन से अधिक ब्लॉकों का आंकड़ा कागजों में ही दौड़ रहा है । पूरे सूबे में सिर्फ लखनऊ ही सबसे आगे दिखा। जबकि ग्रामीण पृष्ठभूमि के देहात जनपद में यह और भी निराशाजनक तस्वीर पेश करता है।
प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों के बच्चों की पढ़ाई पर उनके अभिभाक ध्यान नहीं देते। करीब 25 प्रतिशत अभिभावक बच्चों की आफ लाइन पढ़ाई के लिए शिक्षण सामग्री लेने स्कूल तक नहीं जाते। शिक्षकों के फोन को अनसुना करते हैं और बुलाने पर आते नहीं।
प्रदेश के प्राइमरी सकूलों में ऑनलाइन पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को ऑफलाइन भी शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है। कॉपी किताब देने के साथ-साथ विभाग स्कूलों के बच्चों को वर्कशीट भी उपलब्ध करा रहा है। यह वर्कशीट सप्ताह में एक दिन बच्चों के अभिभावकों को स्कूल लेने आना होता है। और फिर इसे दोबारा आने पर वापस जमा करना होता है। विभाग के अधिकारियों के मुताबिक शिक्षकों के फोन करने, बुलाने तथा संदेश देने के बावजूद करीब 25% अभिभावक ऐसे मिले हैं जो स्कूल नहीं आते। यह बच्चों की पढ़ाई को लेकर गंभीर नहीं हैं।
दीक्षा एप से जुड़े छात्र भी ले सकते हैं शिक्षण सामग्री
करीब 11% बच्चे दीक्षा एप से जुड़े हैं। वह ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं। टेलीविजन व रेडियो से भी पढ़ाई कर रहे हैं। इन्हें भी वर्कशीट लेना है। लेकिन जो आन लाइन पढ़ रहे हैं वह और जो नहीं पढ़ रहे हैं उन सभी मिलाकर करीब 25% बच्चों के अभिभावक स्कूल नहीं आते।
इन जिलों में ज्यादा दिक्कतें
प्रदेश के कई जिलों में ज्यादा स्थिति खराब है। फतेहपुर, प्रयागराज, गाजीपुर, फर्रुखाबाद, बिजनौर, बहराइच, इटावा, पीलीभीत, कासगंज, जौनपुर, मेरठ, एटा, मिर्जापुर, कन्नौज, सुल्तानपुर। इन जिलों में स्थिति और ज्यादा खराब है। बच्चों के अभिभावक बुलाने पर नहीं आते। लखनऊ की स्थिति अच्छी है।
राशन व सुविधाएं लेने में सबसे आगे
बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल आने में पीछे रहने वाले बच्चों के माता पिता मिड डे मील का राशन व कन्वर्जन कास्ट लेने में सबसे आगे रहते हैं। मिड डे मील प्राधिकरण के आंकड़े बताते हैं कि इन जिलों में करीब 90% बच्चों के अभिभावक राशन ले जा चुके। कन्वर्जन कास्ट भी ले जा चुके हैं। लेकिन बच्चों की पढ़ाई की वर्कशीट लेने के लिए स्कूल नहीं आते।
बच्चों तक शिक्षण सामग्री पहुंचाने में लगा विभाग
महानिदेशक स्कूल शिक्षा विजय किरण आनंद लगातार सुधार के प्रयास कर रहे हैं। 7 नवंबर को वह प्रदेश के सभी खंड शिक्षा अधिकारियों तथा डिस्टिक कोऑर्डिनेटर के साथ ऑनलाइन मुखातिब हुए। उन्होंने अभिभावकों के पास मोबाइल फोन, इंटरनेट तथा अन्य चीजों की कमी की बात सिरे से खारिज कर दी और अधिकारियों से कहा कि वह इस मामले में कोई बहानेबाजी नहीं सुनना चाहते हैं। हर बच्चे को ऑनलाइन शिक्षा देना है। अभिभावक को सीधे जोड़ा जाए। उससे संपर्क करें।
प्राइमरी स्कूलों के बच्चों की पढ़ाई पर उनके अभिभावक नहीं देते ध्यान, एक दर्जन से ज्यादा जिलों में ज्यादा दिक्कतें
Reviewed by प्राइमरी का मास्टर 2
on
7:21 AM
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