लेखा शाखा अधिनियम : 1. वित्तीय अधिकारों का प्रतिनिधायन

1 वित्तीय अधिकारों का प्रतिनिधायन
1.    भूमिका   
                   वित्तीय अधिकार व उनका प्रतिनिधायन किसी राज्य के वित्तीय प्रशासन एवं प्रबंधन की आधारशिला होते है। वित्तीय अधिकारों के प्रतिनिधायन का मूल स्त्रोत भारत का संविधान है। संविधान के अनुच्छेद 154 के अधीन राज्य के कार्यकारी अधिकार राज्यपाल में निहित है और उन अधिकारों का प्रयोग संविधान के अनुसार या तो सीधे राज्यपाल द्वारा अथवा उनके अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से किया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 166 (1) के अनुसार शासन के समस्त कार्यकारी राज्यपाल के नाम से किये गए अभिव्यक्त किये जायेंगे।
                    शासन के अधिकार संविधान के अनुच्छेद 154 के अन्तर्गत और उपबन्धों के अधीन रहते हुए शासन के अधीनस्थ किसी अधिकारी को उस सीमा तक और ऐसे प्रतिबन्धों के साथ-साथ जिन्हें शासन लगाना आवश्यक समझे,  अथवा जो संविधान या शासन के नियमों अथवा आदेशों या राज्य विधानमंडल के किसी अधिनियम के उपबन्धों द्वारा पहले से ही लगाये गये हों, प्रतिनिहित किए जा सकते हैं। वे शर्तें और प्रतिबन्ध जिनके अधीन ऐसे अधिकार प्रतिनिहित किये जायें, प्रतिनिहित करने के आदेशों अथवा नियमों में निर्दिष्ट कर देने चाहिए।
                    चूंकि प्रदेश के समस्त कार्यकारी अधिकार राज्यपाल में निहित हैं और राज्यपाल महोदय के स्तर पर यह सम्भव नहीं है कि सभी अधिकारों का प्रयोग उनके द्वारा किया जाय, अत: राज्य के वित्तीय अधिकारों का प्रतिनिधायन निम्नांकित में किया गया है -
1-        प्रशासकीय विभाग
2-        विभागाध्यक्ष
3-        कार्यालयाध्यक्ष
2.       प्रतिनिधायन के महत्वपूर्ण बिन्दु
  • प्रतिनिधायन करते समय यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इससे शासकीय कार्य कलापों में गतिशीलता, दक्षता तथा मितव्ययिता आये और दायित्व का निर्धारण हो सके। प्रतिनिधायन उसी सीमा तक किया जाना चाहिए जिससे कि उक्त लाभ तो प्राप्त हो सके किन्तु शासकीय धन का अपव्यय, दुरूपयोग अथवा क्षरण न हो।
  • वित्तीय नियम बनाने का अधिकार शासन के अधीनस्थ किसी भी प्राधिकारी को प्रतिनिहित नहीं किया जा सकता है।
  • वित्तीय नियम केवल वित्त विभाग की अनुमति से ही प्रतिनिहित किये जा सकते हैं।
  • किसी प्राधिकारी को प्रतिनिहित किये गये वित्तीय अधिकार, वित्त विभाग की विशिष्ट स्वीकृति के बिना उस प्राधिकारी द्वारा किसी अधीनस्थ प्राधिकारी को पुन: प्रतिनिहित नहीं किए जाएंगे।
  • शासनादेश संख्या-ए-2-1637/दस-14 (1)-75 दिनांक 26 जून, 1975 के अधीन प्रशासकीय विभाग सभी मामलों में निम्नलिखित को छोड़कर अपने विभाग में निहित अधिकारों की सीमा तक किसी अधीनस्थ अधिकारी को अधिकार पुन: प्रतिनिहित कर सकते हैं -
                        1-    पदों का सृजन
                        2-    हानियों को बट्टे खाते में डालना
                        3-    पुनर्विनियोजन
  • शासनादेश संख्या-एस-(2)-1702/दस-19-5-1973 दिनांक 25 अगस्त, 1973 के अन्तर्गत निम्नलिखित शर्तों के अधीन प्रशासकीय विभाग अपर विभागाध्यक्ष को विभागाध्यक्ष के समस्त अथवा कतिपय वित्तीय अधिकार प्रतिनिहित कर सकता है। यदि
                      -विभागाध्यक्ष की संस्तुति हो।
                      -अपर विभागाध्यक्ष प्रथम श्रेणी का अधिकारी हो।
                परन्तु विभागाध्यक्ष के अधिकार का प्रतिनिधायन संयुक्त/उप विभागाध्यक्ष को करने की अनुमति नहीं है।
  • वित्तीय हस्तपुस्तिका खण्ड-पाँच भाग-1 के प्रस्तर 47(जी) के नोट-1 के अन्तर्गत कोई भी कार्यालयाध्यक्ष अपने आहरण वितरण का अधिकार अधीनस्थ राजपत्रित अधिकारी को प्रतिनिधानित कर सकता है।
  • वित्तीय हस्तपुस्तिका खण्ड-पाँच भाग-1 के प्रस्तर 12 (डी) के अन्तर्गत कोई भी विभागाध्यक्ष अपना कार्यालयाध्यक्ष का अधिकार कार्यालय में तैनात अपने अधीनस्थ किसी राजपत्रित अधिकारी को प्रतिनिहित कर सकता है।
 3.    वित्तीय अधिकारों का प्रयोग करने के पूर्व ध्यान रखने योग्य बातें:-
                        शासकीय धन का किसी प्रकार के व्यय के लिये प्रयोग करने से पूर्व अथवा उसका किसी भी प्रयोजन के लिए किसी भी व्यक्ति को भुगतान करने अथवा अग्रिम देने से पूर्व निम्नलिखित मूलभूत शर्तें अवश्य पूरी की जानी चाहिए :-
  1. उक्त व्यय करने की अथवा धन का भुगतान करने अथवा अग्रिम देने की विशिष्ट स्वीकृति अथवा प्राधिकार हो।
  2. व्यय करने का अथवा भुगतान करने या अग्रिम देने का अधिकार अथवा उसकी स्वीकृति तब तक प्रयोग में नहीं लायी जायेगी जब तक कि उस व्यय को पूरा करने के लिए अपेक्षित  निधियाँ बजट मैनुअल में दिये गये नियमों के अनुसार सक्षम प्राधिकारी द्वारा निर्णीत न कर ली गयी हों।
  3. बजट मैनुअल के प्रस्तर-12 (3) में उल्लिखित वित्तीय औचित्य के मानकों (Standards of Financial Propriety)  का उल्लंघन स्वीकृति देते समय न हो रहा हो।
           संदर्भ (वित्तीय औचित्य के मानक) :-   
  • व्यय प्रत्यक्षत: उससे अधिक नहीं होना चाहिए जितना कि अवसरानुकूल हो।
  • प्रत्येक अधिकारी को चाहिए कि वह अपने नियंत्रणाधीन राजकीय धन से व्यय करते समय उतनी ही सतर्कता और सावधानी बरतें जितनी कि सामान्य विवेक वाला व्यक्ति अपना निजी धन व्यय करने में बरतता है।
  • व्यय स्वीकृति करने की अपनी शक्ति का प्रयोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी ऐसे आदेश देने के निमित्त नहीं करना चाहिए जो स्वयं उसके ही लाभ के लिए हो।
  • ऐसे भत्तों की धनराशि यथा प्रतिपूर्ति भत्ते, जिन्हें विशेष प्रकार के व्यय के लिए स्वीकृत किया जाता है, इस प्रकार विनियमित करना चाहिए कि वह भत्ते पाने वाले व्यक्तियों के लिए लाभ का साधन न बन जाय।
    4.    किसी नये सिद्धान्त, नीति प्रथा या नई सेवा पर जैसा कि बजट मैनुअल में परिभाषित है, व्यय करने से पूर्व शासन की स्वीकृति आवश्यक होगी।
4.    वित्तीय अधिकारों व उनके प्रतिनिधायन के संदर्भ - स्त्रोत
             वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-1 वित्तीय अधिकारों के संबंध में प्रमुख नियमावली है। उक्त के अतिरिक्त  प्रसंग के अनुसार निम्नांकित नियम संग्रहों में भी प्रतिनिहित अधिकारों के बारे में उल्लेख किया गया है :-
  • वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-दो भाग 2 से 4
  • वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-तीन
  • वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-पाँच भाग-1
  • सिविल सर्विस रेगुलेशन्स
  • बजट मैनुअल
  • उ0प्र0 भविष्य निधि नियमावली 1985
  • उ0प्र0 मुद्रण एवं लेखन सामग्री नियमावली।
विशेष :-    वित्तीय अधिकारों के बारे में जब भी विस्तार से जानकारी की जानी हो वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-एक के अतिरिक्त विषय वस्तु के अनुसार संबंधित नियम संग्रहों का सन्दर्भ भी लेना चाहिए। उक्त के अतिरिक्त शासन द्वारा समय-समय पर विभिन्न शासनादेशों के माध्यम से भी अधिकारों का प्रतिनिधायन किया जाता है। अत: अद्यावधिक शासनादेशों को भी देख लेना चाहिए।
            कतिपय प्रमुख वित्तीय अधिकार व उनके प्रतिनिधायन सम्यक् प्रारूप पर सुलभ सन्दर्भ हेतु नीचे दिए जा रहे हैं :-
क्रम
अधिकार का प्रकार
किसके द्वारा उपयोग किया जायेगा
परिसीमाएँ
1-
उनके अपने कार्यालयों अथवा उनके अधीनस्थ कार्यालयों के प्रयोग के लिए पुस्तकें, समाचार पत्र, प्रत्रिकायें नक्शे तथा अन्य प्रकाशन खरीदना
क-विभागाध्यक्ष, जिलाधिकारी, जिला न्ययायाधीश शासन के रासायनिक परीक्षक, आगरा, उप पुलिस महानिरीक्षक, जिलों के पुलिस अधीक्षक, राज्य संग्रहालय लखनऊ और प्रशासनाधिकारी पुरातत्व संग्रहालय मथुरा। 
पूर्ण अधिकार।




ख-   अन्य कार्यालयाध्यक्ष एक वर्ष में रू0 1200 तक समाचार पत्रों/पत्रिकाओं को छोड़कर।
2-
विज्ञापन के लिए व्यय स्वीकृति करना।
विभागाध्यक्ष
पूर्ण अधिकार। वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-पाँच भाग-1 परिशिष्ट-10 व मैनुअल आफ गवर्नमेंट आर्डस के पैरा 605 के अन्तर्गत उल्लिखित शर्तों के अधीन।
3-
संदर्भ पुस्तकें और शुद्धि पत्र उनके अपने कार्यालयों तथा उनके अधीनस्थ कार्यालयों में प्रयोग के लिए राजकीय मुद्रणालयों से सीधे प्राप्त करना।
विभागाध्यक्ष
कुछ शर्तों के अधीन पूर्ण अधिकार।
4-
निदेशक, मुद्रण तथा लेखन सामग्री से पूर्व परामर्श किए बिना मुद्रणालयों से पंजीयत/अपंजीयत प्रपत्रों व अन्य आवश्यक कार्य जैसे:-नक्शे, नोटिस आदि का मुद्रण कराना।
क-सचिवालय के    प्रशासनिकविभाग                                
ख-  विभागाध्यक्ष
ग-  कार्यालयाध्यक्ष
प्रत्येक मामले में रू0 12000 तक प्रत्येक मामले में रू0 10000 तक प्रत्येक मामले में रू0 5000 तक
टिप्पणी-                                   1-  उक्त अधिकार का प्रयोग विक्रय प्रपत्रों के संबंध में नही किया जाएगा। अन्य प्रपत्रों के संबंध में केवल अपरिहार्य परिस्थितियों एवं न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु किया जायेगा।
2-  चेक बुक, रिपेमेंट आर्डर बुक तथा शासनादेशों का मुद्रण कार्य केवल राजकीय मुद्रणालयों से ही निदेशक, मुद्रण तथा लेखन  सामग्री उ0प्र0 के माध्यम से कराया जायेगा।
3-  उक्त अधिकारों का प्रयोग प्रिटिंग एण्ड स्टेशनरी मैनुअल के पैरा 12 में उल्लिखित अन्य शर्तो के अधीन किया जायेगा। 
5
निदेशक, मुद्रण तथा लेखन सामग्री से पूर्व परामर्श किए बिना स्थानीय स्तर पर तहसील, कलेक्ट्रेट और कमिश्नरी के प्रयोग हेतु आवश्यक फार्म निजी मुद्रणालयों में छपवाना।
क- मण्डलायुक्त
 
 
ख- जिलाधिकारी
प्रत्येक मामले में रू0 10000 तक।
प्रत्येक मामले में रू0 5000 तक।
टिप्पणी- उपरिलिखित क्रम सं0-4 के समक्ष टिप्पणी में उल्लिखित शर्तों एंव प्रतिबन्धों का अनुपालन किया जाना चाहिए।
6
शासन द्वारा पट्टे पर ली गयी भूमि के किराए का भुगतान स्वीकृत करना।
विभागाध्यक्ष
वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-पाँच भाग-1 के परिशिष्ट 10 में दी  हुई शर्तों के अधीन रहते हुए प्रत्येक मामले में प्रतिवर्ष रू0 3000 की सीमा तक।
7
अनावसिक प्रयोजनों (गोदामों को छोड़कर) के लिए किराए पर लिये गये भवनों का किराया स्वीकृत कराना।
क- विभागाध्यक्ष एवं
ख- मण्डलायुक्त

































































ग- प्रशासकीय विभाग
  • गाजियाबाद, अलीगढ़ सहित सभी मण्डल मुख्यालय के जनपदों में- रू0 2.50 प्रति वर्ग फुट कारपेट एरिया तक, इस शर्त के अधीन कि प्रत्येक मामले में किराया स्वीकृत करने की अधिकतम सीमा रू0 6000 प्रतिमास होगी।
  • एक लाख जनसंख्या से ऊपर के अन्य नगरों तथा पर्वतीय जिलों में- रू0 2.00 प्रति वर्ग फुट कारपेट एरिया तक, इस शर्त के अधीन कि प्रत्येक मामले में किराया स्वीकृत करने की अधिकतम सीमा रू0 3000 प्रतिमास होगी।
  • एक लाख जनसंख्या से कम के नगरों में - रू0 1.50 प्रति वर्ग फुट कारपेट एरिया तक, इस शर्त के अधीन कि प्रत्येक मामले में किराया स्वीकृत करने की अधिकतम सीमा रू0 2000 प्रतिमास होगी।
  • टाउन एरिया/ नोटीफाइड एरिया में-  रू0 1.00 प्रति वर्ग फुट कारपेट एरिया तक इस शर्त के अधीन कि प्रत्येक मामले में किराया स्वीकृत करने की अधिकतम सीमा रू0 1500 प्रतिमास होगी।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में-   रू0 0.50 प्रतिवर्ग फुट कारपेट एरिया तक प्रतिबन्ध प्रत्येक दशा में यह है कि कार्यालय के लिए जगह वित्त (सी) विभाग के शासनादेश संख्या-सी-2299/दस-एच-639-61, दिनांक 8 जून, 1965 में निर्धारित मानक नमूने के अनुसार ली जाय।
टिप्पणी 1 :-  उपरोक्त सीमा अधिकतम सीमा है और विभागाध्यक्ष एवं मण्डलायुक्त द्वारा अधिक से अधिक सस्ता स्थान प्राप्त करने के लिए प्रयास किये जाने चाहिए।
टिप्पणी 2 :- "कारपेट एरिया" का तात्पर्य भवन के "फ्लोर एरिया" से है जिसमें किचन, बाथरूम, बरामदें, मोटर गैरेज, गैलरी तथा पैसेज के फ्लोर एरिया शामिल नहीं होंगे।
टिप्पणी 3 :- जनपद व मण्डल स्तर के कार्यालय अपना किराया निर्धारण मण्डलायुक्त के स्तर पर करायेंगे।
टिप्पणी 4 :- शेष कार्यालय जिसमें मुख्यत: विभागाध्क्ष स्तर के कार्यालय होंगे, विभागाध्यक्ष से अपना किराया निर्धारित करायेंगे।
टिप्पणी 5 :- विभागाध्यक्ष एवं मण्डलायुक्त को प्रतिनिहित वित्तीय अधिकारों की सीमा से अधिक के मामले शासन के प्रशासकीय विभाग को संदर्भित किये जायेंगे।
पूर्ण अधिकार, निम्नलिखित शर्तों के अधीन :-                    
(1) रेंट कन्ट्रोल ऐक्ट के अधीन निर्धारित अथवा स्थानीय नगर-पालिका द्वारा निर्धारित किराये से जैसी भी स्थिति हो, किराया अधिक न हो। जहाँ इस प्रकार का भवन किराये पर उपलब्ध न हो, वहाँ किराया उस किराये से अधिक नहीं होना चाहिए जिससे जिलाधीश द्वारा उचित प्रमाणित किया गया हो और संबंधित स्थानीय निकाय को सूचित किया गया हो।
(2) जहाँ कि भवन कार्यालय के उपयोगार्थ लिया जा रहा हो, वित्त (सी) विभाग के शासनादेश संख्या-सी-2299/दस-एच-639-61 दिनांक 8 जून, 1965 में निर्धारित मानक नमूनों का यथेष्ट ध्यान रखा जाना चाहिए।
टिप्पणी 1 :- सरकारी कार्यालयों के लिए प्राइवेट भवन किराये पर लेने के लिए निम्न प्रक्रिया अपनाई जायेगी।
(1) ऐसे भवन जो रेंट कंट्रोल ऐक्ट की परिधि के बाहर है, को किराये पर लेने के लिए विभाग को स्थानीय रूप से अधिक पढ़े जाने वाले तीन प्रमुख एवं लोकप्रिय दैनिक समाचार पत्रों में दो बार लगातार कार्यालय प्रयोजन हेतु भवन की आवश्यकता का पूर्ण एवं स्पष्ट विज्ञापन कराना चाहिए।  विज्ञापन सूचना विभाग के माध्यम से कराना आवश्यक न होगा।
(2) विभाग तीन अधिकारियों की एक कमेटी गठित करेगा जो विज्ञापन के फलस्वरूप प्राप्त आवेदनों (Offer) पर विचार करके एवं उपलब्ध भवनों का निरीक्षण करके उपयुक्तक भवन का चयन करेगी और जिलाधिकारी से किराये के औचित्य का प्रमाण-पत्र प्राप्त किया जायेगा। जिसके उपरान्त ही सक्षम अधिकारी द्वारा भवन का किराया कमेटी की संस्तुति पर स्वीकृत किया जा सकेगा।
(3) किराये के औचित्य का प्रमाण-पत्र जिलाधिकारी स्वयं अपने हस्ताक्षर से जारी करेंगे। तहसीलदार या रेंट कंट्रोल अधिकारी द्वारा दिया गया प्रमाण पत्र इस निमित्त मान्य नहीं होगा। टाउन एरिया/ नोटीफाइड एरिया/ ग्रामीण क्षेत्रों में किराये की दर का अनुमोदन  जिलाधिकारी का होगा, परन्तु किराये का औचित्य प्रमाण पत्र जारी करने के लिए परगनाधिकारी अधिकृत होंगे।
टिप्पणी 2 :- सरकारी कार्यालयों के लिए किराये पर लिये गये जो भवन रेंट कंट्रोल ऐक्ट के अन्तर्गत आ गए हैं उन भवनों के किराये में वृद्धि के संबंध में निम्न प्रक्रिया अपनाई जायेगी -
सरकारी कार्यालयों के लिए किराये पर लिये गये जो भवन "उत्तर प्रदेश शहरी भवन (किराये पर देने, किराये तथा बेदखली का विनियमन) अधिनियम 1972" के प्रावधानों के अन्तर्गत आ गये हैं, यदि उनका किराया बढ़ाने की माँग मकानदार द्वारा की जाती है तो उसके इसके लिए उक्त अधिनियम की धारा 21 (8) के प्राविधानों का पालन करना होगा, जिसके अनुसार किसी भी भवन की स्थिति में जिला मजिस्ट्रेट, मकानदार के आवेदन पत्र पर उसके  लिये देय मासिक किराया उतनी धनराशि तक बढ़ा सकता है जो किरायेदार के अधीन भवन के बाजार मूलय के दस प्रतिशत के बारहवें भाग के बराबर भाग होगा और इस प्रकार बढ़ाया गया किराया आवेदन पत्र के दिनांक के ठीक बाद पड़ने वाले किरायेदारी के मास के प्रारम्भ से देय होगा किन्तु अग्रेतर वृद्धि करने के लिए इस प्रकार के आवेदन पत्र वृद्धि के अन्तिम आदेश के दिनांक से पाँच वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात ही दिया जा सकेगा। यदि उभयपक्षों के बीच किसी निर्धारित अवधि तक किराया न बढ़ाने की शर्त तय हो चुकी हो तो उस अवधि तक किराये की वृद्धि संभव नहीं होगी।
8-
भण्डार (स्टोर्स), वस्तुएं (मैटीरियल्स), औजार और संयंत्र इत्यादि के संग्रह करने के निमित्त किराए पर लिए गए गोदामों का किराया स्वीकृत करना।
क- विभागाध्यक्ष

ख- प्रशासकीय विभाग
प्रस्येक मामले में रू0 2500 प्रतिवर्ष तक।
पूर्ण अधिकार।
9-
नीलाम कर्ताओं को जहाँ उनकी सेवाएँ लेना अनिवार्य समझा जाय, कमीशन का भुगतान स्वीकृत करना।
विभागाध्यक्ष
उनके द्वारा बिक्री की सकल धनराशि के 5 प्रतिशत की अनधिक दर तक, किन्तु नीलामकर्ता की नियुक्ति के संबंध में प्रशासकीय विभाग की अनुमति प्राप्त करनी होगी।
10-
प्रदर्शनियों के लिए व्यय स्वीकृत करना जिसमें परिवहन व्यय, अस्थायी कर्मचारियों का यात्रा भत्ता, आकस्मिक व्यय इत्यादि सम्मिलित हैं।
विभागाध्यक्ष
एक वर्ष में रू0 10000 तक इस शर्त के अधीन कि उक्त के संबंध में कोई विशिष्ट स्वीकृतियाँ न हों।
11-
अपने नियंत्रणाधीन कार्यालयों के लिए टेलीफोन कनेक्शन स्वीकृत करना।
सचिवालय के प्रशासकीय विभाग
एक वर्ष से अनधिक अवधि के लिए किन्तु शर्त  यह है कि इस संबंध में होने वाला व्यय आय-व्ययक में टेलीफोन व्यय के  लिए विशिष्ट रूप से की गयी व्यवस्था से पूरा हो जाये और इस निमित्त व्यवस्थित धन-राशि में पुनर्विनियोग द्वारा वृद्धि किए बिना किया जाय।
12-
अवर कर्मचारियों को वर्दी तथा गर्म कपड़ों की सप्लाई स्वीकृत करना।
कार्यालयाध्यक्ष
पूर्ण अधिकार, मैनुअल आफ गवर्नमेंट आर्डस के परिशिष्ट-16 (1981 का संस्करण) और वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-पाँच भाग-1 के परिशिष्ट-10 के अन्तर्गत  उल्लिखित शर्तों के अधीन।
13-
नगर पालिका/ महापालिका अथवा कैन्टोनमेंट करो तथा बिजली और पानी संबंधी व्यय का भुगतान स्वीकृत करना।
कार्यालयाध्यक्ष
वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-पाँच भाग-1 के प्रस्तर 165 में दी गई शर्तों के अधीन पूर्ण अधिकार।
14-
विभाग के सामान्य प्रकार के प्रासंगिक व्यय, जिसके लिए अन्यत्र कोई विशिष्ट प्रतिनिधायन नहीं किया गया हो, स्वीकृत करना।
क- प्रशासकीय विभाग
 
ख- विभागाध्यक्ष

ग- कार्यालयाध्यक्ष
1-  अनावर्तक तथा आवर्तक आय-व्ययक व्यवस्था के अंतर्गत पूर्ण अधिकार।
2- आवर्तक रू0 2000 तक।  अनावर्तक रू0 20000 तक।
3- आवर्तक प्रत्येक मामले में रू0 100 तक अनावर्तक प्रत्येक मामले में रू0 500 तक।
टिप्पणी :- उपरोक्त प्रतिनिधायन निम्नलिखित शर्तों के अधीन है-
(1) स्वीकृति तभी दी जाय जब यह सुनिश्चित कर लिया जाय कि व्यय को पूरा करने के लिए निधियाँ उपलब्ध हैं।
(2) इस प्रतिनिधायन का उपयोग उन प्रयोजनों के लिए नहीं किया जाना चाहिए जिनके लिए विशिष्ट प्रतिनिधायन अन्यत्र मौजूद है अथवा जिनके लिए औपचारिक स्वीकृति अपेक्षित है।
(3) यदि व्यय के सामान्य प्रकार का होने में अथवा राज्य के राजस्व में से उसके  उचित रूप से भुगतान किये जाने के सम्बन्ध में कोई सन्देह हो तो उस विषय में वित्त विभाग की राय लेनी चाहिए।
(4) सार्वजनिक सेवा के लिए अपेक्षित वस्तुओं की पूर्ति किये जाने से सम्बन्धित नियमों को तथा लेखन सामग्री की खरीद को विनियमित करने वाले नियमों का सख्ती से पालन किया जाता हो।
(5) जहाँ व्यय की मात्रा निर्धारित कर दी गयी हो अथवा अन्य परिसीमायें निर्धारित की गयी हों तो उन अनुदेशों का सावधानी से पालन किया जाना चाहिए।
(6) आवर्तक व्यय को इस ढंग से स्वीकृत किया जाना चाहिए कि जिससे कि शासन उस वित्तीय वर्ष से आगे की अवधि के लिए और भुगतान करने के निमित्त बाध्य न हो जिसमें वह व्यय स्वीकृत किया गया हो।
15-
वर्तमान आवासीय भवनों में सुधार के लिए अनुमानों की प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान करना।
क- विभागाध्यक्ष
 
 
ख- प्रशासकीय विभाग
आय-व्ययक प्राविधान के अंतर्गत प्रत्येक मामले में रू0 10000 की सीमा तक।
आय-व्ययक प्राविधान के अंतर्गत प्रत्येक मामले में रू0 50000 की सीमा तक शर्त यह है कि मानक किराया या ऐसे वर्ग के किराएदारों की, जिसके लिए यह बना हो, औसत उपलब्धियों के 10 प्रतिशत से अधिक न हो।
16-
छोटे निर्माण कार्य (पेटी वर्क्स) निष्पादन तथा सभी प्रकार की मरम्मतों के लिए टेण्डर/ठेके स्वीकृत करना।
क- कार्यालयाध्यक्ष



ख- विभागाध्यक्ष
आय-व्ययक प्राविधान के अंतर्गत प्रत्येक मामले में रू0 25000 तक किन्तु शर्त यह है कि अनुमान विभागाध्यक्ष द्वारा स्वीकृत कर दिये गये हों।
आय-व्ययक प्राविधान के अंतर्गत प्रत्येक मामले में रू0 50000 तक।
17- नयी साज-सज्जा का क्रय स्वीकार करना। क- विभागाध्यक्ष
ख- प्रशासकीय विभाग
निम्नलिखित शर्तों के अधीन पूर्ण अधिकार-
  1. किसी एक वस्तु का मूल्य रू0 10000 से अधिक नहीं होगा।
  2.  क्रय की निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।
  3. स्वीकृत विशिष्ट प्राविधानित अनुदानों के अंतर्गत निधियाँ उपलब्ध हैं।
रू0 10000 से ऊपर के मूल्य की किसी वस्तु के मामले में वित्त विभाग की सहमति प्राप्त करनी होगी।
टिप्पणी- नई साज-सज्जा की श्रेणी में आने वाली वस्तुओं की सूची :
1- टाइपराइटर 2- डुप्लीकेटर/ फोटो स्टेट मशीन 3- टाइमपीस/ क्लाक  4- वाटर बेसिन/ जग/ तसला 5- वाटर कूलर, एकजास्ट पंखे, एअर कण्डीशनर और रूम हीटर 6- फोटोग्राफी उपकरण 7- अस्पतालों के लिए बेड 8- पंच मशीन व स्टेपलर 9- कैलकुलेटर 10- आलमारी व कैश सेफ
18- कार्यालय फर्नीचर फिक्चर्स का क्रय स्वीकृत करना। क- विभागाध्यक्ष
ख- कार्यालयाध्यक्ष
आय-व्ययक नियतन के अंतर्गत पूर्ण अधिकार।
विभागाध्यक्ष द्वारा आबंटित धनराशि की सीमा तक।
19- उनके स्वयं के कार्यालयों के लिए तथा उनके अधीनस्थ कार्यालयों के लिए लेखन सामग्री व कागज का क्रय करना। क- विभागाध्यक्ष
ख- कार्यालयाध्यक्ष
एक बार में रू0 50000 तक।
एक बार में रू0 20000 तक।
नोट :- फाइल कवर, फाइल बोर्ड तथा कैडक की आपूर्ति खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के ही माध्यम से की जायेगी।
20- आपात स्थिति में जब उद्योग निदेशक के सामग्री क्रय अनुभाग के माध्यम से सामग्री क्रय में विलम्ब की स्थिति हो जिससे सार्वजनिक सेवा में गंभीर असुविधा हो रही हो तो ऐसी सामग्री का सीधे क्रय करना। क- प्रशासकीय विभाग
ख- विभागाध्यक्ष
ग- कार्यालयध्यक्ष
पूर्ण अधिकार। एक समय में रू0 1000000 तक।
एक समय में  रू0 100000 तक।
21- मात्रा अनुबन्ध के अधीन मामलों में विभागीय क्रय समिति के माध्यम से क्रय करना। क- विभागाध्यक्ष
ख- कार्यालयाध्यक्ष
रू0 1000000/- मूल्य की सीमा तक। रू0 100000/- मूल्य की सीमा तक।
नोट- उपरोक्त क्रय शासनादेश सं0 344/18-5-2003-76 (एस0 पी0)/ 86, दिनांक 10 जनवरी, 2003 में निहित प्राविधानों के अन्तर्गत किया जायेगा।
22- विलम्ब शुल्क  (डैमरेज/वाटर चार्जेज्‍) पर व्यय स्वीकृत करना। क- प्रशासकीय विभाग ख-विभागाध्यक्ष
ग- कार्यालयाध्यक्ष
पूर्ण अधिकार। पूर्ण अधिकार किन्तु रू0 2500 से अधिक के मामले में प्रशासकीय विभाग को सूचित करना होगा।
पूर्ण अधिकार परन्तु रू0 1000 से  अधिक के प्रत्येक मामले में विभागाध्यक्ष को सूचित करना होगा।
23- मृतक सरकारी कर्मचारियों के बकाया वेतन/भत्तों आदि के दावों के भुगतान स्वीकृत करना। क- विभागाध्यक्ष ख- कार्यालयाध्यक्ष रू0 5000 से अधिक सकल धनराशि के दावों के बारे में। रू0 5000 के सकल धनराशि के दावों तक।
24- फालतू और निष्प्रयोज्य भण्डार का विक्रय स्वीकृत करना (अभियन्त्रण विभागों को छोड़कर)। क- कार्यालयाध्यक्ष (प्रथम श्रेणी के अधिकारी) ख- विभागाध्यक्ष/मंडलायुक्त (राजस्व विभाग क संदर्भ में)
ग- प्रशासकीय विभाग
रू0 5000 से अनधिक मूल मूल्य तक इस प्रतिबन्ध के साथ कि फालतू भण्डार का विक्रय 20 प्रतिशत से अनधिक ह्रासित मूल्य पर किया जाय। क- रू0 50000 से अधिक अनधिक मूल मूल्य के फालतू भण्डार का विक्रय 20 प्रतिशत से अनधिक ह्रासित मूल्य पर किया जाए।
ख- रू0 50000 से अनधिक मूल मूल्य के निष्प्रयोज्य भण्डार को।
प्रत्येक मामले में रू0 50000 से अधिक एवं 300000 तक ऊपर मद सं0-2 में उल्लिखित शर्तों के साथ
टिप्पणी- जब भण्डार किसी प्राविधिक या औद्योगिक विद्यालय का हो तो विक्रय के लिए परामर्शदात्री समिति की स्वीकृति आवश्यक होगी।
रू0 300000 से अधिक लागत की फालतू एवं निष्प्रयोज्य भण्डार के विक्रय के प्रस्तावों पर निर्णय लिए जाने हेतु प्रशासकीय विभाग के प्रमुख सचिव/सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जायेगा जिसके सदस्य वित्त विभाग के प्रतिनिधि (जो संयुक्त सचिव स्तर से नीचे के न हों) तथा संबंधित विभागाध्यक्ष होंगे। केवल अतिविशिष्ट तथा जटिल मामले ही वित्त विभाग को संदर्भित किए जाएगें।
25- भण्डार या लोकधन की अवसूलनीय हानियाँ जिनके अंतर्गत पूर्णत: नष्ट स्टाम्पों की हानि भी सम्मिलित है, को बट्टे खाते में डालना। क- कार्यालयाध्यक्ष (प्रथम श्रेणी के अधिकारी) ख- विभागाध्यक्ष/मंडलायुक्त (राजस्व विभाग के संदर्भ में)
ग- प्रशासकीय विभाग
प्रत्येक मामले में रू0 2000 तक किन्तु एक वर्ष में कुल 10000 की सीमा तक। प्रत्येक मद में रू0 20000 की सीमा तक बशर्ते मदों के समूह का कुल मूल्य एक वर्ष में रू0 50000 से अधिक न हो।
प्रत्येक मद में रू0 20000 से अधिक तथा रू0 50000 से अनधिक की सीमा तक बशर्ते मदों के समूह का कुल मूल्य रू0 100000 से अधिक न हो।
उपरोक्त प्रतिनिधायन इस शर्त के अधीन है कि हानि से इस बात का पता न चलता  हो कि :
(1) प्रणाली का कोई दोष है जिसमें संशोधन के लिए उच्चतर प्राधिकारी के आदेशों की आवश्यकता हो, अथवा
(2) किसी एक अधिकारी अथवा अधिकारियों की ओर से कोई घोर असावधानी  की गई हो जिसके निमित्त सम्भवत: अनुशासनिक कार्यवाही करने के लिए उच्चतर प्राधिकारी के आदेशों की आवश्यकता हो।
26- दुर्घटनाओं, जालसाजी, असावधानी या अन्य कारणों से खोए या नष्ट हुए या क्षतिग्रस्त हुए भण्डारों एवं अन्य सम्पत्ति के वसूल न हो सकने वाले मूल्य या खोये सरकारी धन की वसूल न हो सकने वाली धनराशियों को बट्टे खाते में डालना। क- कार्यालयाध्यक्ष (प्रथम श्रेणी के अधिकारी)

ख- विभागाध्यक्ष/मंडलायुक्त (राजस्व विभाग के संदर्भ में)

ग- प्रशासकीय विभाग
प्रत्येक मामले में रू0 2000 तक बशर्ते एक वर्ष में रू0 10000 से अधिक की हानियाँ बट्टे खाते में न डाली जायें। प्रत्येक मद में रू0 20000 की सीमा तक किन्तु एक वर्ष में कुल रू0 50000 की अधिकतम सीमा तक।
प्रत्येक मद में रू0 20000 से अधिक तथा रू0 50000 से अनधिक की सीमा तक बशर्ते मदों के समूह का कुल मूल्य रू0 100000 से अधिक न हो।
टिप्पणी- उपरोक्त प्रतिनिधायन उन्ही शर्तों के अधीन है जो उपरोक्त क्र0 सं0 26 में उल्लिखित है तथा कार्यालयाध्यक्ष उक्त अवसूलनीय हानियों के अपलेखन के संबंध में विभागाध्यक्ष को भी सूचित करेंगें।
27- सरकारी पुस्तकालयों से खोई अथवा नष्ट हुई पुस्तकों की अवसूलनीय हानियों को बट्टे खाते में डालना। क- विभागाध्यक्ष एवं जनपद न्यायाधीश तथा उप पुलिस महानिरीक्षक
ख- प्रशासकीय विभाग
प्रत्येक पुस्तक के संबंध में रू0 250 के मूल्य तक किन्तु एक वर्ष में कुल रू0 20000 की अधिकतम सीमा तक। प्रत्येक पुस्तक के संबंध में रू0 500 के मूल्य तक किन्तु एक वर्ष में कुल रू0 100000 की अधिकतम सीमा तक।
टिप्पणी- रू0 500 से अधिक मूल के प्रत्येक पुस्तक के मामले वित्त विभाग की सहमति से निस्तारित होंगे।
28- राजस्व की हानि (जिनके अन्तर्गत न्यायालयों द्वारा डिक्री की गयी अवसूलनीय धनराशि भी सम्मिलित है) या अवसूलनीय ऋण या अग्रिम धन का बट्टे खाते में डालना। क- विभागाध्यक्ष/मंडलायुक्त (राजस्व विभाग के संदर्भ में)

ख- प्रशासकीय विभाग
रू0 5000 की सीमा तक प्रतिबन्ध यह है कि प्रशासकीय विभाग को यथानुसार अवगत कराया जाये। रू0 10,000 की सीमा तक तथा रू0 10000 से अधिक किन्तु रू0 100000 की सीमा तक वित्त विभाग की सहमति से।
टिप्पणी - उपरोक्त अधिकार का प्रयोग उन्हीं शर्तों के अधीन किया जायेगा जो उपरोक्त क्रं0सं0 26 में उल्लिखित है।
29- स्थायी अग्रिम स्वीकृत करना। प्रशासकीय विभाग/विभागाध्यक्ष वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-पाँच भाग-1 के पैरा 67 में उल्लिखित शर्तों के अधीन पूर्ण अधिकार।
30- भवन निर्माण/क्रय व मरम्मत विस्तार क लिए सरकारी सेवकों को अग्रिम  स्वीकृत करना। शासन के सचिव, विभागाध्यक्ष मण्डलायुक्त, जिलाधिकारी एवं जिला न्यायाधीश पूर्ण अधिकार।
31- कार/जीप, कम्प्यूटर, मोटर साइकिल/ स्कूटर/ मोपेड तथा साइकिल क्रय हेतु सरकारी सेवकों को अग्रिम स्वीकृत करना। क- शासन के सचिव, विभागाध्यक्ष मण्डलायुक्त, जिलाधिकारी एवं जिला न्यायाधीश                 ख- कार्यालयाध्यक्ष पूर्ण अधिकार।
केवल साइकिल क्रय हेतु।
32- स्वयं अथवा अधीनस्थ सरकारी सेवकों को दौरा/स्थानान्तरण/उच्च शिक्षा/प्रशिक्षण हेतु दौरा/अवकाश यात्रा सुविधा पर जाने हेतु यात्रा भत्ता अग्रिम स्वीकृत करना। कार्यालयाध्यक्ष वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-पाँच भाग-1 के प्रस्तर 249ए में दी गयी सीमाओं एवं शर्तों के अधीन पूर्ण अधिकार। सम्भावित व्यय की जाने वाली धनराशि के 90 प्रतिशत तक।
33- कानूनी वादों के लिए अग्रिम स्वीकृत करना। कार्यालयाध्यक्ष वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-पाँच भाग-1 के प्रस्तर 249 ई में उल्लिखित शर्तों सीमाओं के अधीन पूर्ण अधिकार इस शर्त के अधीन कि दावा दायर/विरोध करने की स्वीकृति सक्षम प्राधिकारी से प्राप्त की गयी हो।
34- कार्यालय के गाड़ियों/मोटर वाहनों के डीजल/पेट्रोल व मोबिल आयल के क्रय हेतु अग्रिम स्वीकृत करना। कार्यालयाध्यक्ष एवं विभागाध्यक्ष रू0 25000 या एक माह के खपत के मूल्य तक जो भी कम हो। ‍ टिप्पणी- पूर्व में स्वीकृत अग्रिम के समायोजन के बाद ही दुबारा अग्रिम स्वीकृत किया जाय।
35- सामानों की पूर्ति, मशीन की मरम्मत तथा वार्षिक रखरखाव आदि के लिए गैर सरकारी फर्मों/पार्टियों को अग्रिम भुगतान स्वीकृत करना। प्रशासकीय विभाग एवं विभागाध्यक्ष किसी मामले में रू0 25000 से अनधिक की सीमा तक  (वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-पाँच भाग-1 के प्रस्तर 162 के अन्तर्गत)।
36- अपने अधीन कार्यालयों के लिए आहरण एवं वितरण अधिकारी घोषित करना। वित्त विभाग (प्रशासनिक विभाग की संस्तुति पर) निम्नलिखित शर्तों के अधीन पूर्ण अधिकार
  1. संबंधित अधिकारी जो एक स्वतंत्र इकाई का सर्वोच्च राजपत्रित अधिकारी हो और लेखा प्रक्रिया तथा वित्तीय नियमों से भली भाँति परिचित हो।
  2. उक्त अधिकारी को कम से कम पाँच वर्ष का प्रशासनिक अनुभव हो।
37- किसी अधिकारी को जिले में कार्यालयाध्यक्ष घोषित करना। प्रशासनिक विभाग (कार्मिक विभाग के परामर्श से ) पूर्ण  अधिकार।
38- अतिरिक्त विभागाध्यक्ष को विभागाध्यक्ष के कतिपय वित्तीय अधिकार पूर्ण या आंशिक रूप से प्रतिनिहित करना। प्रशासकीय विभाग पूर्ण अधिकार। निम्नलिखित  शर्तों के अधीन   1- विभागाध्यक्ष की संस्तुति   2- अतिरिक्त विभागाध्यक्ष श्रेणी-1 से कम स्तर का अधिकारी न हो।
39- सामान्य भविष्य निधि में सामान्य स्थिति में अस्थायी अग्रिम स्वीकृत करना। कार्यालयाध्यक्ष पूर्ण अधिकार। किंतु स्वयं के संबंध में उच्चतर प्राधिकारी की स्वीकृति अपेक्षित।
40- सामान्य भविष्य निधि से विशेष कारण से अग्रिम या अन्तिम निष्कासन स्वीकृत करना। सा0भ0नि0 नियमावली 1985 की द्वितीय अनुसूची में उल्लिखित अधिकारी या शासन द्वारा सक्षम घोषित अधिकारी तथा समूह "घ" कर्मचारियों के संबंध में संबंधित विभाग के जनपद स्तरीय वरिष्ठतम आहरण वितरण अधिकारी पूर्ण अधिकार। किंतु स्वयं के संबंध में उच्चतर प्राधिकारी की स्वीकृति अपेक्षित।
41- चिकित्सा व्यय की प्रतिपूर्ति स्वीकृत करना (प्रदेश के अन्दर व बाहर)। 1- कार्यालयाध्यक्ष


2- विभागाध्यक्ष




3- प्रशासकीय विभाग स्वयमेव



4- प्रशासकीय विभाग द्वारा चिकित्सा विभाग के परामर्श एवं वित्त विभाग की सहमति से
रू0 40,000 तक (उपचार/संदर्भित करने वाले राजकीय चिकित्सालय के प्रभारी चिकित्सा अधीक्षक द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित)। रू0 40,000 से अधिक किन्तु रू0 1,00,000 तक (उपचार/संदर्भित करने वाले राजकीय चिकित्सालय के प्रभारी चिकित्सा अधीक्षक द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित)।
रू0 1,00,000 से अधिक किन्तु रू0 2,00,000 तक (मंडलीय अपर/संयुक्त निदेशक, चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित)।
रू0 2,00,000 से अधिक (मंडलीय अपर/संयुक्त निदेशक, चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित)।
42- चिकित्सा अग्रिम स्वीकृत करना। (देश के अन्दर शासन के चिकित्सा विभाग द्वारा विशिष्ट उपचार के लिए चिन्हित/संदर्भित चिकित्सालय/संस्थान के प्रमुख/मुख्य चिकित्सा अधीक्षक/ प्रभारी प्रशासक द्वारा प्रदत्त व्यय प्राक्कलन के आधार पर)। 1- कार्यालयाध्यक्ष
2- विभागाध्यक्ष
3-  प्रशासकीय विभाग स्वयमेव
4- प्रशासकीय विभाग द्वारा चिकित्सा विभाग के परामर्श एवं वित्त विभाग की सहमति से
रू0 30,000 तक। रू0 30,000 से रू0 75,000 तक।
रू0 75,000 से रू0 1,50,000 तक।
रू0 1,50,000 से अधिक।
(उक्त बिंदु सं0-43 में अंकित सीमाओं के 75 प्रतिशत तक)।


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लेखा शाखा अधिनियम : 1. वित्तीय अधिकारों का प्रतिनिधायन Reviewed by Brijesh Shrivastava on 4:44 PM Rating: 5

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