बच्चों के बस्ते : अधिकारियों की संवेदनहीनता की प्रचलित कहानियों पर मुहर लगा दी बाँदा की घटना ने : जागरण सम्पादकीय में आंकलन

देवरिया के बाद अब बांदा में भी एक ऐसी घटना हुई है जिसने अधिकारियों की संवेदनहीनता की प्रचलित कहानियों पर मुहर लगा दी। देवरिया में यदि मुख्यमंत्री के जाने के बाद अधिकारी शहीद के परिवार के घर से एसी और सोफा उठा ले गए थे तो बांदा में बच्चों से बस्ते छीन लिये गए। मुख्यमंत्री को बांदा के जूनियर व प्राइमरी स्कूलों का निरीक्षण करने जाना था। उनके दौरे को देखते हुए संबंधित स्कूलों में कई दिन पहले से तैयारियां चल रही थीं। बच्चों को कुछ सवाल और उनके जवाब समझा दिये गए थे। उठने, बैठने और बात करने का सलीका सिखाने के अलावा उन्हें कुछ पहाड़े भी रटा दिये गए थे। बच्चों को नए बस्ते भी दिये गए थे लेकिन, किसी कारणवश मुख्यमंत्री उन दोनों ही स्कूलों में पहुंच नहीं सके। अधिकारियों और शिक्षकों को जैसे ही यह पता चला, फौरन ही उनके लिए मानो बच्चों का महत्व खत्म हो गया। सभ्यता का पहाड़ा भूलकर अधिकारियों और शिक्षकों ने बच्चों से नए बस्ते रखा लिये और वे बेचारे अपनी कॉपी किताबें हाथ में लेकर घर लौटे।




लगभग दो हफ्ते के भीतर हुई दोनों घटनाएं इस बात की बानगी हैं कि सरकार कोई हो, शासकीय तंत्र केवल अपने से ऊपर वालों को खुश रखने के मंत्र पर काम करता है। इस तंत्र को लगा कि शहीद परिवार के यहां मुख्यमंत्री जा रहे हैं तो वहां एसी लगना चाहिए। इन्हीं लोगों को लगा कि मुख्यमंत्री के सामने स्कूलों की बढ़िया तस्वीर आनी चाहिए तो बच्चों को सिखा पढ़ाकर तैयार कर दिया गया। यहां तक तो फिर भी ठीक लेकिन, बच्चों को नया बस्ता देकर फिर छीन लेना अमानवीय है। शिक्षक भूल गए कि अपनी जिस अव्यवस्था को वह ढंकना चाहते हैं, मुख्यमंत्री उसे भलीभांति जानते हैं और उसे सुधारने की कोशिश में हैं।




ऐसी घटनाएं आगे न हो सकें, इसके लिए लखनऊ में बैठे अधिकारियों को पहल करनी होगी। सरकार जनता के लिए होती है और उसका यह स्वरूप बना रहे, यह नौकरशाही को सुनिश्चित करना होगा। योगी सरकार के अफसरों को प्रदेश के दूरस्थ अंचल तक आंख रखनी होगी। उन्हें पता रखना होगा कि मुख्यमंत्री के दौरे के नाम पर निहित स्वार्थी तत्व आम लोगों का शोषण तो नहीं कर रहे।

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