शिक्षकों की कमी का सवाल : एक ही विभाग के दो मंत्रियों केविरोधाभासी विचार व्यक्त किए जाने को महज नजरिये का फर्क बताकर कर्तव्य की इतिश्री नहीं की जानी चाहिए : जागरण संपादकीय
■ शिक्षकों की कमी का सवाल : एक ही विभाग के दो मंत्रियों केविरोधाभासी विचार व्यक्त किए जाने को महज नजरिये का फर्क बताकर कर्तव्य की इतिश्री नहीं की जानी चाहिए : जागरण संपादकीय
यह कोई अच्छी स्थिति नहीं कि मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को अपने ही विभाग के राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की इस बात का खंडन करना पड़ा कि स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। सर्व शिक्षा अभियान को और अधिक सार्थक बनाने के उद्देश्य से समग्र शिक्षा नामक कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए जहां मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि स्कूलों में शिक्षकों की कमी है वहीं प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि ऐसा नहीं है और यदि कहीं कोई कमी है तो शिक्षकों को तैनात करने की व्यवस्था में।
एक ही विभाग के दो मंत्रियों के बीच एक ही मसले पर विरोधाभासी विचार व्यक्त किए जाने को महज नजरिये का फर्क बताकर कर्तव्य की इतिश्री की जा सकती है, लेकिन इससे यह तथ्य ओझल नहीं होने वाला कि स्कूली शिक्षा का प्रभार उपेंद्र कुशवाहा के पास ही है। इसी तरह इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अपने कनिष्ठ मंत्री से असहमत होते हुए भी प्रकाश जावड़ेकर यह मान रहे हैं कि स्कूली शिक्षकों की तैनाती व्यवस्था में सुधार की जरूरत है।
यह सही है कि इस व्यवस्था में व्याप्त खामी को दूर करने का काम राज्य सरकारों को करना है, लेकिन कम से कम यह तो नहीं ही होना चाहिए कि एक ही समस्या को मानव संसाधन विकास मंत्रलय के दो मंत्री अलग-अलग तरीके से देखें और व्यक्त भी करें। इस अंतर को प्राथमिकता के आधार पर दूर किया जाना चाहिए, क्योंकि तभी मानव संसाधन विकास मंत्रलय राज्य सरकारों को सही तरह निर्देशित कर सकता है।
स्कूली शिक्षकों की तैनाती के मामले में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रलय राज्यों की भूमिका का उल्लेख करके अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। एक तो इसलिए नहीं कि आज देश के अधिकांश राज्यों में भाजपा अथवा उसके सहयोगी दल की सरकारें हैं और दूसरे, पिछले चार सालों में शिक्षा के मोर्चे पर अपेक्षित काम नहीं हो सका है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रलय को पहले दिन से इसके लिए कोशिश करनी चाहिए थी कि भाजपा शासित राज्य स्कूली शिक्षकों की तैनाती व्यवस्था के साथ-साथ शैक्षिक ढांचे को दुरुस्त करने के मामले में गैर भाजपा शासित राज्यों के समक्ष कोई उदाहरण पेश करने में समर्थ होते।
यदि ऐसा कोई उदाहरण सामने होता तो शैक्षिक सुधारों को गति देने में कहीं अधिक सफलता मिलती। राज्यों से केवल यही नहीं कहा जाना चाहिए कि वे समग्र शिक्षा योजना को लागू करने में दिलचस्पी दिखाएं, बल्कि उन पर दबाव भी बनाया जाना चाहिए। आखिर यह राष्ट्र की भावी पीढ़ी के भविष्य का सवाल है। समग्र शिक्षा योजना की शुरुआत करते हुए प्रकाश जावड़ेकर ने भले ही यह कहा हो कि शिक्षा राजनीति और चुनाव का विषय नहीं है, लेकिन यह सवाल तो उठेगा ही कि नई शिक्षा नीति कहां है?
आखिर यह कब आएगी और कब उस पर विचार-विमर्श एवं अमल होगा? यह ठीक है कि मानव संसाधन विकास मंत्रलय की ओर से प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक में सुधार लाने के अनेक कदम उठाए गए हैं, लेकिन बेहतर यह होता कि नई शिक्षा नीति के हिसाब से शैक्षिक सुधारों को गति दी जाती।
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