सर्वशिक्षा योजना में तंगी का पीरियड : 2,31000 करोड़ रुपए की दरकार



  • शिक्षा अधिकार कानून पूरी तरह लागू करने के लिए Rs2,31,000 करोड़ चाहिए
  • केंद्र से सौ फीसद धन चाहते हैं राज्य फिलहाल यह अनुपात 75:25 का है
  • राज्यों की आनाकानी से परवान नहीं चढ़ पा रही योजना

     नई दिल्ली। शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून के तहत देश में छह से 14 साल की उम्र के सभी बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराने की योजना केन्द्र और राज्यों के बीच तालमेल और धन के अभाव में परवान नहीं चढ़ पा रही है। सरकार के पास धन की तंगी है और खाली हाथ इस योजना को पूरी तरह से लागू करना संभव नहीं है। शिक्षा का अधिकार कानून को शत-प्रतिशत लागू करने के लिए लगभग 2,31000 करोड़ रुपए की दरकार है। दरअसल देश में प्राथमिक शिक्षा में एकरूपता न होने तथा राज्य और केन्द्र की अलग-अलग शिक्षा व्यवस्था होने के नाते इसकी कारगर मानीटरिंग नहीं हो पा रही है। केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए आरटीई एक्ट का एक उद्देश्य यह भी है कि प्राइमरी और माध्यमिक शिक्षा में समरूपता लाई जा सके। इस कानून के दायरे में आने के बाद राज्य अपनी जवाबदेही से नहीं बच पाएंगे। फिलहाल इस कानून को समृद्ध करने के लिए सरकार ने इसमें सर्व शिक्षा अभियान को जोड़ा है। वर्ष 2013-14 के बजट में वित्त मंत्री पर दबाव है कि इस महत्वपूर्ण योजना के लिए केंद्र सरकार खजाना खोले और राज्यों को दिल खोल कर धन दे। लगभग सभी राज्य इस योजना के लिए 100 फीसद केंद्रीय सहायता की मांग कर रहे हैं। फिलहाल इसमें केन्द्र-राज्य का अनुपात 75:25 का रखा गया है। पूर्वोत्तर के राज्यों को छूट दी गई है। उन्हें सिर्फ 10 फीसद धनराशि लगानी होगी। केन्द्र वहां 90 फीसद खर्च करेगा। लेकिन इतनी भारी-भरकम राशि उपलब्ध न हो पाना तथा कई राज्यों द्वारा अपने हिस्से की राशि प्रदान करने में असमर्थता व्यक्त किए जाने के चलते केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय का यह अतिमहत्वाकांक्षी कानून अमलीजामा नहीं पहन पा रहा है। पिछले आम बजट में भारत सरकार ने स्कूली शिक्षा और साक्षरता पर सिर्फ 45,960 करोड़ रुपए योजना (प्लान) पर खर्च करने का प्रावधान किया था। इसमें सर्व शिक्षा अभियान के लिए 8,292.64 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। शिक्षा का अधिकार कानून वर्ष 2009 में भारत सरकार ने लागू किया था और इसका मूल उद्देश्य देश के उन नौनिहालों (6-14 साल) को भी शिक्षा उपलब्ध कराने की गारंटी देना है, जो गरीबी के चलते पढ़ाई से नाता तोड़ लेते हैं। कानून ने प्रावधान किया है कि निजी और नामचीन स्कूल भी अपनी 25 फीसद सीटें आर्थिक रूप से गरीब बच्चों से भरेंगे। ऐसा न करने वाले स्कूलों के खिलाफ इस एक्ट के तहत कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है। लेकिन निजी स्कूलों में ऐसा नहीं हो रहा है। वहां तो मोटी फीस देने वाले परिवारों के बच्चे ही दाखिला पा सकते हैं। स्कूलों में बच्चों के समुचित मानसिक-शारीरिक विकास तथा पठन-पाठन के लिए पर्याप्त संसाधन देने के लिए भी शिक्षा का अधिकार कानून में नौ मानक तय किए गए हैं। लेकिन योजना आयोग के 12वीं योजना ड्राफ्ट में प्रदत्त आंकड़े खुलासा करते हैं कि पिछले वित्तीय वर्ष में देश के महज 4.8 फीसद सरकारी स्कूलों ने ही सभी नौ मानकों का पालन किया है। एक तिहाई स्कूल सिर्फ सात मानकों पर खरे पाए गए हैं, जबकि 30 फीसद ऐसे हैं जिन्होंने पांच या इससे कम मानकों को भी नहीं अपनाया है। सरकार का ही एक यह आंकड़ा भी खुद आरटीई एक्ट की सफलता पर सवाल खड़ा करने के लिए पर्याप्त है, जिसमें एक्ट के एक साल पूरे होने पर बताया गया कि देश में अभी भी 8.1 मिलियन बच्चे (6 से 14 वर्ष) स्कूलों से विमुख हैं और देश भर में 5 लाख 8 हजार शिक्षकों की कमी है। जाहिर है पर्याप्त धन का अभाव ही है जो इस कानून को प्रभावी तरीके से लागू होने में रोड़ा बना हुआ है। देश में माध्यमिक शिक्षा का तो और भी बुरा हाल है। इसकी खस्ताहालत के मद्देनजर योजना आयोग की विशेषज्ञ समिति ने 12वीं कक्षा को भी माध्यमिक शिक्षा अभियान में शामिल करने का सुझाव पिछले साल दिया था। समिति का कहना है कि प्राथमिक शिक्षा और उच्च शिक्षा पर ध्यान दिया गया है जबकि माध्यमिक शिक्षा को अनदेखा किया गया है। समिति ने पूरे देश में समान माध्यमिक शिक्षा उपलब्ध कराने की आवश्यकता जताते हुए कहा कि इसके लिए 12वीं योजना में केंद्र और राज्य सरकार के बीच खर्च अनुपात 75:25 होना चाहिए। समिति ने सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों और निजी स्कूलों को राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान में शामिल करने और 2017 तक पूरे देश में समान माध्यमिक शिक्षा लागू करने का सुझाव दिया था। लेकिन सुझाव धरे के धरे ही रह गए और साल खत्म हो गया। 11वीं पंचवर्षीय योजना में स्कूली शिक्षा पर 1.85 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था, लेकिन वास्तव में मिले थे सिर्फ 1.45 लाख करोड़ रुपए। पता चला है कि यह पैसा भी पूरा खर्च नहीं हो पाया है।
                                                          (साभार-राष्ट्रीय सहारा )


सर्वशिक्षा योजना में तंगी का पीरियड : 2,31000 करोड़ रुपए की दरकार Reviewed by Brijesh Shrivastava on 3:25 PM Rating: 5

No comments:

Contact Form

Name

Email *

Message *

Powered by Blogger.