बजट हुआ दोगुना लेकिन स्कूलों में घटे 36 लाख बच्चे, प्रदेश में 2343 विद्यालय ऐसे जहां 15 से कम छात्रों का नामांकन
लखनऊ : बेसिक शिक्षा का बजट छह वर्षों में दोगुना हो गया लेकिन, इस दौरान बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से संचालित स्कूलों में 36.62 लाख छात्र घट गए। निशुल्क शिक्षा के अलावा मुफ्त में मिलने वाली किताबें, यूनिफॉर्म, मिड-डे मील, दूध व फल और स्कूल बैग जैसी सौगातों के बावजूद परिषदीय स्कूलों से बच्चों और अभिभावकों का मोहभंग हो रहा है।
परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में वर्ष 2011-12 में 1.46 करोड़ बच्चे नामांकित थे। वर्ष 2016-17 में इन विद्यालयों में छात्र नामांकन घटकर 1.16 करोड़ रह गया। छह वर्षों में प्राथमिक स्कूलों से 30 लाख बच्चों ने मुंह फेर लिया। उच्च प्राथमिक स्कूलों में 2011-12 में जहां 42 लाख बच्चे नामांकित थे, वहीं 2016-17 में उनकी संख्या घटकर 35.38 लाख रह गई है। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद इन विद्यालयों में नामांकन के बाद स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की सालाना दर (ड्रॉप आउट रेट) 10 प्रतिशत है। बेसिक शिक्षा पर यह अपने आप में सबसे बड़ा सवाल है जिसका आज तक कोई कारगर हल नहीं ढूंढ़ा जा सका है। बेसिक शिक्षा के बजट का बड़ा हिस्सा शिक्षकों, शिक्षामित्रों व अनुदेशकों के वेतन और मानदेय पर खर्च होता है।
मानव संसाधन विकास मंत्रलय की रिपोर्ट के मुताबिक 15 या उससे कम छात्र नामांकन वाले परिषदीय स्कूलों की संख्या के लिहाज से प्रदेश के टॉप टेन जिलों में ऐसे 2343 विद्यालय पाये गए। इन जिलों की सूची में पहला नंबर अमरोहा का है जहां 15 या उससे कम छात्र नामांकन वाले 151 परिषदीय स्कूल मिले। वहीं बिजनौर में 145, प्रतापगढ़ में 129, इटावा में 126, बुलंदशहर में 98, फतेहपुर में 82, सिद्धार्थनगर में 82, मैनपुरी में 78, फीरोजाबाद में 77 और रायबरेली में 73 ऐसे स्कूल पाये गए।
⚫ बच्चों की अनुपस्थिति की दर ज्यादा : विद्यालयों में बच्चों की अनुपस्थिति भी बड़ी चुनौती है। 2016 की एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट बताती है कि ग्रामीण क्षेत्रों के परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में बच्चों की अनुपस्थिति दर 44 फीसद और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 44.2 फीसद है जो कि राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। बच्चों के सीखने-समझने के स्तर पर भी सवाल उठते रहे हैं। बीते बजट सत्र में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने विस में इस मुद्दे को उठाया था।
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