शिक्षा से जुड़े फैसलों पर अदालत में हो रही प्रदेश सरकार की किरकिरी, समायोजन से लेकर प्रतिनियुक्ति तक के आदेशों पर हाईकोर्ट की रोक
लखनऊ : बेसिक और माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में राज्य सरकार की ओर से हड़बड़ी में किये गए फैसलों के कारण सरकार को लगातार हाई कोर्ट में असहज स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। नियमों और शासनादेशों में विरोधाभास के चलते शासन के कई नीतिगत निर्णयों पर अदालत की ओर से रोक लगाये जाने से जहां सरकार की किरकिरी हुई है, वहीं शिक्षकों और अभ्यर्थियों में भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
योगी सरकार ने 29 जून 2017 को राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों के समायोजन/स्थानांतरण की नीति जारी की थी। नीति के तहत पहले चरण में अतिरिक्त (सरप्लस) घोषित किये गए शिक्षकों का दूसरे विद्यालयों में समायोजन होना था। दूसरे चरण में बचे हुए पदों पर शिक्षकों का जिले के अंदर तबादला होना था। शिक्षा का अधिकार कानून के दौर में शिक्षकों को सरप्लस घोषित करने के लिए वर्ष 1976 के शासनादेश में निर्धारित मानक को आधार बनाया गया और यही सरकार के लिए हाई कोर्ट में गले की फांस बना। अदालत ने अग्रिम आदेशों तक राजकीय माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों के समायोजन/स्थानांतरण नीति को अमली जामा पहनाने पर रोक लगा दी।
इससे पहले 13 जून को सरकार ने परिषदीय स्कूलों के शिक्षकों के समायोजन और जिले के अंदर तबादले के लिए शासनादेश जारी किया था। सरकार के इस आदेश को भी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। समायोजन के लिए 30 अप्रैल की छात्र संख्या पर यह कहते हुए आपत्ति जताई गई कि बेसिक शिक्षा नियमावली के अनुसार किसी भी काम के लिए सत्र शुरू होने तीन माह बाद ही छात्र संख्या लेने का प्रावधान है। इसी आधार पर पहले 30 सितंबर की छात्र संख्या ली जाती रही है। अब चूंकि सत्र अप्रैल से शुरू होता है और जून में छुट्टी होती है, इसलिए छुट्टी को घटाकर तीन माह लिया जाना चाहिए। इस मामले में भी अदालत ने शासनादेश के अमल पर रोक लगा दी।
अदालत में सरकार की किरकिरी का ताजा मामला राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में परिषदीय स्कूलों के शिक्षकों को प्रतिनियुक्ति पर लेने और रिटायर्ड शिक्षकों को निश्चित मानदेय पर नियुक्त करने से जुड़ा है। राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी से निपटने के लिए चला गया यह दांव भी सरकार को उल्टा पड़ा।
नौकरी की राह तक रहे अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा कर अदालत को बताया कि पिछले साल दिसंबर में राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में एलटी ग्रेड शिक्षक के 9342 पदों पर भर्ती के लिए जारी विज्ञापन के क्रम में तकरीबन छह लाख अभ्यर्थियों ने आवेदन किया। सरकार शिक्षकों की कमी से निपटने के लिए तदर्थ व्यवस्था के तहत परिषदीय शिक्षकों को प्रतिनियुक्ति पर रखने और सेवानिवृत्त शिक्षकों को मानदेय पर रखने का कदम उठाने जा रही है। यह स्थिति तब है जब शिक्षामित्रों का समायोजन रद होने के बाद परिषदीय स्कूलों में खुद शिक्षकों की कमी हो गई है।
■ हमारी नीति पर रोक नहीं
इस बारे में पूछने पर उप मुख्यमंत्री डॉ.दिनेश शर्मा ने कहा कि शैक्षिक सत्र शुरू हो जाने के बाद राजकीय माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों के समायोजन को हाई कोर्ट ने उचित नहीं माना था। कोर्ट ने सरकार के फैसले को खारिज नहीं किया है बल्कि अगली सुनवाई तक स्थगित रखने का निर्देश दिया है। वहीं शिक्षामित्रों का समायोजन रद होने के कारण चूंकि अब परिषदीय स्कूलों में सरप्लस शिक्षक नहीं रह गए हैं, इसलिए कोर्ट ने परिषदीय शिक्षकों को राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में प्रतिनियुक्ति पर लेने पर रोक लगायी है। हाई कोर्ट ने हमारी नीति को नहीं रोका है बल्कि शिक्षामित्रों के बारे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को माना है।
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