शिक्षक को डराने-धमकाने वाली नीति को हटाकर सहयोग की नीति अपनाएँ : प्रांजल सक्सेना on बेसिक शिक्षा परिषद NEWS
'शिक्षकों के विचार' की पहली कड़ी में प्रस्तुत हैं जिला रामपुर में शिक्षक प्रांजल सक्सेना के विचार ........ आशा है की यह कालम आपको पसंद भी आयेगा और आपके विचारों को भविष्य में और परिमार्जित करने में मदद करेगा? विचारों का क्रम भले ही उतना स्पष्ट ना हो पर मेरा मानना है की अपनी बात को स्पष्ट करने में वह सफल रहे हैं ........ आशा है कि सम्बंधित माननीयों को उनके मुद्दे संबोधित करने में सफल रहेंगे?
(ब्लॉग एडमिन )
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(ब्लॉग एडमिन )
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प्रांजल सक्सेना |
वह व्यक्ति जो कि शिक्षा देता हो उसे शिक्षक कहा गया।
पर आज क्या शिक्षक मात्र शिक्षा देकर ही शिक्षक पद पर बना रह सकता है?
अगर शिक्षा देने वाले व्यक्ति का नाम शिक्षक है तो फिर आज उसी शिक्षक को ड्रेसू ,हलवाई और सुचनू अभी तक नहीं कहा गया है। इसमें शिक्षक को अपना सम्मान ही समझना चाहिये क्योंकि उससे काम तो सारे ही कराये जा रहे हैं सिवाय अध्यापन के ............. और जब अधिकारियों को लगने लगता है कि अब ऐसी कोई बात नहीं रह गयी जिससे अध्यापकों को परेशान किया जा सके? तब कहते हैं कि तुमने साल भर पढ़ाया क्यों नहीं ? अरे साल भर क्या पढ़ाने का समय दिया था क्या ?
पहले जुलाई में विद्यालय प्रबंध समिति का गठन करवाया ,विद्यालय प्रबंध समिति के खाते खुलवाये । अगस्त में कुछ चैन मिला तो सितम्बर में अल्पसंख्यक खाते आ गये। अक्तूबर से अब तक ड्रेस प्रकरण नहीं निपट रहा। अब दिसम्बर में बीएलओ का कार्य फिर से आ रहा है। जनवरी में शीतकालीन अवकाश। फरवरी संभवतः चैन से कट जाये। मार्च में बोर्ड परीक्षा ड्यूटी। अप्रैल से गृह परीक्षायें आरम्भ। अब बतायें पढ़ायें कब?
अब हुई २ गलत बातें पहली कि कम शुल्क वाले निजी विद्यालय गाँव-गाँव खुल गये जिससे गाँव के होनहार छात्र वहाँ पढ़ने गये। क्योंकि गाँव हो या शहर निजी विद्यालय में पढ़ाने वाले की नाक ऊँची। दूसरी ये कि मिड-डे-मील, नि:शुल्क गणवेश आदि योजनाओं ने ऐसे छात्रों को खींचा जिनकी पढ़ने से अधिक इन नि:शुल्क योजनाओं में रूचि है। तो प्राथमिक विद्यालय , कॉन्वेंट कैसे बनें? ऊपर से अधिकारियों का व्यवहार - वेतन रोकना, प्रतिकूल प्रविष्टि, निलंबन, वेतन वृद्धि रोकना इन सब हथकंडों से मात्र शिक्षक को क्षणिक दु:ख ही पहुँचाया जा सकता है और कुछ नहीं।
अधिकारियों का व्यवहार ऐसा हो कि शिक्षक स्वयं उन्हें अपने विद्यालय में निरीक्षण हेतु आमंत्रित करें बजाय उनसे बचे-बचे घूमने के। इन्हीं सब बातों के कारण शिक्षकों में अपने कार्य के प्रति असंतोष है और वे यदि युवा अवस्था में इस सेवा में आ जाते हैं तो अन्य विभागों में जाने के लिये तैयारी करते रहते हैं।
अंत में एक बात कहूँगा सम्भवतया कड़वी लगे पर हैं मेरे निजी विचार – सर्व शिक्षा अभियान से जब तक सर्व शब्द नहीं हटेगा और अधिकारी जब तक शिक्षक को डराने-धमकाने वाली नीति को हटाकर सहयोग की नीति पर नहीं आयेंगे। तब तक भला नहीं होगा।
~ प्रांजल सक्सेना
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अगर शिक्षा देने वाले व्यक्ति का नाम शिक्षक है तो फिर आज उसी शिक्षक को ड्रेसू ,हलवाई और सुचनू अभी तक नहीं कहा गया है। इसमें शिक्षक को अपना सम्मान ही समझना चाहिये क्योंकि उससे काम तो सारे ही कराये जा रहे हैं सिवाय अध्यापन के ............. और जब अधिकारियों को लगने लगता है कि अब ऐसी कोई बात नहीं रह गयी जिससे अध्यापकों को परेशान किया जा सके? तब कहते हैं कि तुमने साल भर पढ़ाया क्यों नहीं ? अरे साल भर क्या पढ़ाने का समय दिया था क्या ?
पहले जुलाई में विद्यालय प्रबंध समिति का गठन करवाया ,विद्यालय प्रबंध समिति के खाते खुलवाये । अगस्त में कुछ चैन मिला तो सितम्बर में अल्पसंख्यक खाते आ गये। अक्तूबर से अब तक ड्रेस प्रकरण नहीं निपट रहा। अब दिसम्बर में बीएलओ का कार्य फिर से आ रहा है। जनवरी में शीतकालीन अवकाश। फरवरी संभवतः चैन से कट जाये। मार्च में बोर्ड परीक्षा ड्यूटी। अप्रैल से गृह परीक्षायें आरम्भ। अब बतायें पढ़ायें कब?
अब हुई २ गलत बातें पहली कि कम शुल्क वाले निजी विद्यालय गाँव-गाँव खुल गये जिससे गाँव के होनहार छात्र वहाँ पढ़ने गये। क्योंकि गाँव हो या शहर निजी विद्यालय में पढ़ाने वाले की नाक ऊँची। दूसरी ये कि मिड-डे-मील, नि:शुल्क गणवेश आदि योजनाओं ने ऐसे छात्रों को खींचा जिनकी पढ़ने से अधिक इन नि:शुल्क योजनाओं में रूचि है। तो प्राथमिक विद्यालय , कॉन्वेंट कैसे बनें? ऊपर से अधिकारियों का व्यवहार - वेतन रोकना, प्रतिकूल प्रविष्टि, निलंबन, वेतन वृद्धि रोकना इन सब हथकंडों से मात्र शिक्षक को क्षणिक दु:ख ही पहुँचाया जा सकता है और कुछ नहीं।
अधिकारियों का व्यवहार ऐसा हो कि शिक्षक स्वयं उन्हें अपने विद्यालय में निरीक्षण हेतु आमंत्रित करें बजाय उनसे बचे-बचे घूमने के। इन्हीं सब बातों के कारण शिक्षकों में अपने कार्य के प्रति असंतोष है और वे यदि युवा अवस्था में इस सेवा में आ जाते हैं तो अन्य विभागों में जाने के लिये तैयारी करते रहते हैं।
अंत में एक बात कहूँगा सम्भवतया कड़वी लगे पर हैं मेरे निजी विचार – सर्व शिक्षा अभियान से जब तक सर्व शब्द नहीं हटेगा और अधिकारी जब तक शिक्षक को डराने-धमकाने वाली नीति को हटाकर सहयोग की नीति पर नहीं आयेंगे। तब तक भला नहीं होगा।
~ प्रांजल सक्सेना
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शिक्षक को डराने-धमकाने वाली नीति को हटाकर सहयोग की नीति अपनाएँ : प्रांजल सक्सेना on बेसिक शिक्षा परिषद NEWS
Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी
on
9:56 PM
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