बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों के विलय के विरुद्ध दाखिल याचिकाएं खारिज, हाईकोर्ट ने कहा, संविधान के तहत अनिवार्य शिक्षा का अधिकार, एक किमी के भीतर स्कूल की बाध्यता नहीं
बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों के विलय के विरुद्ध दाखिल याचिकाएं खारिज, हाइकोर्ट ने कहा, संविधान के तहत अनिवार्य शिक्षा का अधिकार, एक किमी के भीतर स्कूल की बाध्यता नहीं
51 बच्चों व अन्य याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई के बाद सुरक्षित किया गया था फैसला
08 जुलाई 2025
लखनऊ : हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने राज्य सरकार को बड़ी राहत देते हुए बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों का विलय करने के विरुद्ध दाखिल याचिकाओं को खारिज कर दिया है। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा का अधिकार तो है, लेकिन यह नहीं माना जा सकता है कि अनुच्छेद 21ए के तहत राज्य की यह जिम्मेदारी है कि वह छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों को एक किलोमीटर की दूरी के भीतर ही निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करे। यह निर्णय न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने सीतापुर की कृष्णा कुमारी समेत 51 स्कूली बच्चों व अन्य रिट याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए सोमवार को पारित किया है। शुक्रवार को मामले में सुनवाई पूरी कर न्यायालय ने अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया था।
याचियों की ओर से दलील दी गई थी कि 16 जून, 2025 का स्कूलों के विलय का सरकार का निर्णय मनमाना व अवैध है व अनुच्छेद 21 ए के विरुद्ध है। कहा गया था कि शिक्षा का अधिकार कानून के तहत बने नियम में 300 की आबादी व आबादी के एक किलोमीटर के दायरे में 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए एक स्कूल की स्थापना का दायित्व राज्य सरकार पर है। यह भी दलील दी गई थी कि यदि एक किलोमीटर के दायरे में एक भी बच्चा है तो स्कूल स्थापित करना होगा।
वहीं, राज्य सरकार की ओर से याचिकाओं का विरोध करते हुए दलील दी गई थी कि एक किलोमीटर के दायरे में स्कूल स्थापित करने का आशय है कि बच्चों के रिहायश से स्कूल बहुत अधिक दूर न हो, यह दो-ढाई किलोमीटर की दूरी पर हो सकता है। यह भी कहा गया कि सरकार ने नियमों के तहत ही निर्णय लिया है, जिसमें कोई खामी नहीं है, कई स्कूल तो ऐसे हैं, जिनमें एक भी छात्र नहीं हैं। यह भी तर्क दिया गया कि सरकार ने मर्जर (विलय) नहीं किया है, अपितु स्कूलों की पेयरिंग की गई है।
न्यायालय ने कहा कि संबंधित नियमों की याचियों के अधिवक्ताओं द्वारा जो व्याख्या दी जा रही है, यदि उसे माना जाए तो प्रदेश की आबादी लगभग 24 करोड़ है और इस प्रकार सरकार को आठ लाख स्कूल खोलने पड़ेंगे। न्यायालय ने कहा कि व्याख्या के सिद्धांतों को अपनाते हुए नियम की व्याख्या इस तरह से की जानी चाहिए कि वह प्रभावी और कार्यशील हो, न कि एक मृतप्राय प्रावधान बन के रह जाय। न्यायालय ने शिक्षा का अधिकार कानून और इसके तहत बने नियमों की व्याख्या करते हुए कहा कि राज्य सरकार का दायित्व है कि वह आवासीय क्षेत्र के निकटतम संभव स्थान पर विद्यालय स्थापित करे और यदि विद्यालय नहीं स्थापित हो सकता बच्चों को परिवहन सुविधाएं प्रदान करे। इसके साथ ही बच्चों के लिए आसपास के विद्यालयों की पहचान करना भी जरूरी है, चाहे वे सरकारी हों या निजी।
परिषदीय स्कूलों के विलय का रास्ता साफ, हाईकोर्ट ने आदेश को चुनौती देने वाली 51 बच्चों की दो याचिकाएं की खारिज
🧐 मर्जर (pairing) पर निर्णय देते हुए याचिका खारिज करने के निम्न प्रमुख बिंदु सामने आते हैं
🔴 मुख्य बिंदुओं में निर्णय के कारण:
⚫ कोर्ट ने माना कि मर्जर के बावजूद 6-14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा की गारंटी बनी हुई है। स्कूल को बंद नहीं किया गया बल्कि उन्हें जोड़ा (pair) गया है।
⚫ मर्जर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के निर्देशों के अनुरूप है, जो संसाधनों के उपयुक्त उपयोग और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की दिशा में है।
⚫ जिन स्कूलों का pairing किया गया, उनमें से कई स्कूलों में छात्र संख्या शून्य या अत्यंत कम थी, जिससे संसाधनों की बर्बादी हो रही थी।
⚫ U.P. RTE Rules, 2011 के Rule 4(2) में 1 किमी दूरी के नियम से छूट दी गई है यदि राज्य सरकार वैकल्पिक व्यवस्था (जैसे निःशुल्क परिवहन) करे।
⚫ बहुत कम स्कूलों को ही जोड़ा गया, जो एक बहुत छोटा अनुपात है।
⚫ याचिकाकर्ता यह साबित नहीं कर सके कि बच्चों के अधिकारों का प्रत्यक्ष उल्लंघन हुआ है।
⚫ आदेश को "Government Order" माना गया है, जिसे Rules of Business के तहत Additional Chief Secretary द्वारा जारी किया गया और यह कानून के विरोध में नहीं पाया गया।
⚫ सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, नीति निर्णयों में हस्तक्षेप केवल तभी होता है जब वे मनमाने, दुर्भावनापूर्ण या मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हों — जो इस मामले में नहीं पाया गया।
07 जुलाई 2025, 2PM
लखनऊ । इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ से स्कूलों के विलय मामले में राज्य सरकार को बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने प्राथमिक स्कूलों के विलय के आदेश को चुनौती देने वाली दोनों याचिकाओं को सोमवार को खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने सीतापुर के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले 51 बच्चों समेत एक अन्य याचिका पर यह फैसला सुनाया। इनमें बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा बीती 16 जून को जारी उस आदेश को चुनौती देकर रद्द करने का आग्रह किया गया था, जिसके तहत प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों के बच्चों की संख्या के आधार पर उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में विलय करने का प्रावधान किया गया है।
बच्चों के मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का उलंघन करने वाला आदेश
याचियों ने इसे मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाला कहा था। साथ ही मर्जर से छोटे बच्चों के स्कूल दूर हो जाने की परेशानियों का मुद्दा भी उठाया था। याचियों की ओर से खासतौर पर दलील दी गई थी कि स्कूलों को विलय करने का सरकार का आदेश, 6 से 14 साल के बच्चों के मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का उलंघन करने वाला है।
उधर, राज्य सरकार की ओर से याचिकाओं के विरोध में प्रमुख दलील दी गई कि विलय की कार्रवाई, संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल के लिए बच्चों के हित में की जा रही है। सरकार ने ऐसे 18 प्राथमिक स्कूलों का हवाला दिया था, जिनमें एक भी विद्यार्थी नहीं है।
शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिहाज से लिया गया निर्णय
कहा कि ऐसे स्कूलों का पास के स्कूलों में विलय करके शिक्षकों और अन्य सुविधाओं का बेहतर उपयोग किया जाएगा। सरकार ने पूरी तरह शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिहाज से ऐसे स्कूलों के विलय का निर्णय लिया। कोर्ट ने बीते शुक्रवार को सुनवाई के बाद में फैसला सुरक्षित कर लिया था। इसे सोमवार की दोपहर में सुनाया।
मर्जर पर आज आयेगा फैसला
07 जुलाई 2025 9am
परिषदीय स्कूलों के विलय मामले में हाईकोर्ट में फैसला सुरक्षित
याचियों ने की है राज्य सरकार के 16 जून के आदेश को खारिज करने की मांग
हाई कोर्ट ने इस मुकदमे की रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध लगाने की मांग को ठुकराया
05 जुलाई 2025
लखनऊ :इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने प्राथमिक स्कूलों के विलय को चुनौती देते हुए दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर शुक्रवार को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया। यह आदेश जस्टिस पंकज भाटिया की एकल पीठ ने कृष्णा कुमारी व अन्य की दाखिल दो अलग-अलग याचिकाओं पर पारित किया। याचियों ने विलय संबंधी राज्य सरकार के 16 जून के आदेश को खारिज करने की मांग की है।
याचियों की ओर से पेश अधिवक्ता एलपी मिश्रा व गौरव मेहरोत्रा ने तर्क दिया कि सरकार का कृत्य संविधान के अनुच्छेद 21 ए तहत छह से 14 साल के बच्चों को प्रदत्त शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है, क्योंकि इससे वे अपने घर से नजदीक शिक्षा पाने के हक से वंचित हो जाएंगे। यदि किसी स्कूल में छात्रों की संख्या कम है तो सरकार को प्रयास करना चाहिए कि स्कूल के स्तर को सुधारे ताकि वहां अधिक से अधिक बच्चे दाखिला लें।
सरकार ने यह करने की बजाए आसान तरीका निकाला है कि विलय या अन्य किसी तरीके से उन स्कूलों को ही बंद कर दिया जाए। तर्क दिया कि संविधान सरकार को एक कल्याणकारी राज्य की तरह काम करने को कहता है जिसमें आर्थिक लाभ-हानि से ज्यादा अधिक से अधिक जनता की भलाई की बात की जानी चाहिए।
सरकार की ओर से पेश अपर महाधिवक्ता अनुज कुदेशिया, मुख्य स्थायी अधिवक्ता शैलेंद्र सिंह और निदेशक बेसिक शिक्षा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप दीक्षित ने तर्क दिया कि सरकार ने नियमों के तहत ही निर्णय लिया है जिसमें कोई खामी नहीं है। कई स्कूल तो ऐसे हैं जिनमें एक भी छात्र नहीं हैं। यह भी तर्क दिया कि सरकार ने मर्जर नहीं किया है अपितु स्कूलों की पेयरिंग की है। यह भी कहा गया कि जिन प्राइमरी स्कूलों की पेयरिंग की गई है वे बंद नहीं किए जा रहे हैं। अपर महाधिवक्ता अनुज कुदेशिया ने कोर्ट से इस केस की रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध लगाने की भी मांग उठाई।
यूपी के प्राथमिक स्कूलों के मर्जर मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में दो याचिकाओं पर आज फिर होगी सुनवाई
04 जुलाई 2025
Merger of primary schools: यूपी के प्राथमिक स्कूलों के विलय के मामले में लखनऊ हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इस मामले में सरकार ने अपना पक्ष रखा। इसकी सुनवाई शुक्रवार को फिर होगी
प्रदेश के सरकारी प्राथमिक स्कूलों के विलय करने के मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में सुनवाई जारी है। इस मामले में विलय आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बृहस्पतिवार को न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ के समक्ष सुनवाई हुई। कोर्ट ने याचिकाओं पर अगली सुनवाई 4 जुलाई को नियत की है।
पहली याचिका, सीतापुर के प्राथमिक व उच्च प्रथामिक स्कूलों में पढ़ने वाले 51 बच्चों ने दाखिल की है। जबकि, इसी मामले में एक अन्य याचिका भी दाखिल हुई है। इनमें बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा बीती 16 जून को जारी उस आदेश को चुनौती देकर रद्द करने का आग्रह किया गया है, जिसके तहत प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों के बच्चों की संख्या के आधार पर उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में विलय करने का प्रावधान किया गया है।
याचियों ने इसे मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाला कहा है। साथ ही मर्जर से छोटे बच्चों के स्कूल दूर हो जाने की परेशानियों का मुद्दा भी उठाया गया है। याचिकाओं में, प्राथमिक स्कूलों की चल रही मर्जर की कारवाई पर तत्काल रोक लगाने की भी गुजारिश की गई है।
उधर, राज्य सरकार की ओर से याचिकाओं के विरोध में प्रमुख दलील दी गई कि विलय की कारवाई, संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल के लिए बच्चों के हित में की जा रही है। सुनवाई के समय राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता अनुज कुदेसिया, मुख्य स्थाई अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार सिंह के साथ पेश हुए। जबकि, याचियों की ओर से अधिवक्ता डा एल पी मिश्र और गौरव मेहरोत्रा ने दलीलें दीं। बेसिक शिक्षा विभाग के अधिवक्ता भी पेश हुए। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को करने का आदेश दिया है।

02 जुलाई 2025
लखनऊ। परिषदीय विद्यालयों के विलय (मर्जर) के आदेश को 51 बच्चों ने अपने अभिभावकों के जरिये हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में चुनौती दी है। ये बच्चे सीतापुर के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र हैं। वहीं इसी मामले में एक अन्य याचिका भी दाखिल हुई है। न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने इन याचिकाओं पर 3 जुलाई को सुनवाई नियत की है।
याचिका में कहा गया है प्राथमिक स्कूलों का विलय कानून समेत सांविधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है। ऐसे में इस पर रोक लगाकर बच्चों के शिक्षा के अधिकार की हिफाजत करने का आग्रह किया गया है। याचिका में बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा 16 जून को जारी उस आदेश को चुनौती देकर रद्द करने का आग्रह किया गया है, जिसके तहत प्राथमिक विद्यालयों के बच्चों की संख्या के आधार पर उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में विलय करने का प्रावधान किया गया है।
याचिका में राज्य सरकार समेत बेसिक शिक्षा निदेशक, सीतापुर के डीएम समेत बेसिक शिक्षा अधिकारी को पक्षकार बनाया गया है। सुनवाई के समय राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार सिंह पेश हुए। जबकि, याचियों की ओर से अधिवक्ता डॉ. एलपी मिश्र और गौरव मेहरोत्रा पेश हुए।
याचियों ने स्कूलों के विलय को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाला कहा है। साथ ही विलय से छोटे बच्चों के स्कूल दूर हो जाने की परेशानियों का मुद्दा भी उठाया है। कहा गया है कि नया सत्र पहली जुलाई से शुरू हो चुका है, इसलिए स्कूलों का विलय छोटे बच्चों की पढ़ाई को प्रभावित करेगा।
हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में एक याचिका दाखिल हुई है, याचिका दाखिल करने वाली एक छात्र की मां बताई जा रही हैं। डबल बेंच में हुई इस याचिका को सुनवाई के बाद बुधवार को सिंगल बेंच के लिए रेफर कर दिया गया। सिंगल बेंच में इससे संबंधित एक याचिका पहले से ही दाखिल हो चुकी है। 72,825 शिक्षक भर्ती समेत अन्य भर्तियों में हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कानूनी लड़ाई लड़ चुके कुछ चर्चित शिक्षक पेयरिंग के खिलाफत में उतर आए हैं।
कार्रवाई के भय से शिक्षक स्वयं सामने नहीं आ रहे हैं। शिक्षक याचिका दाखिल करवाने के लिए ऐसे छात्रों के अभिभावकों से संपर्क कर रहे हैं, जो पेयरिंग से प्रभावित हैं। इसके पीछे इनका तर्क है कि पेयरिंग से छात्रों के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है इसलिए अभिभावकों की ओर से ही याचिका दाखिल करवाना उचित होगा। विरोध कर रहे शिक्षकों का आरोप है कि पेयरिंग के नाम पर स्कूलों को बंद करने की तैयारी चल रही है। इनका सवाल है कि जब स्कूलों की जरूरत ही नहीं थी तो खोला ही क्यों गया।
बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों के विलय के विरुद्ध दाखिल याचिकाएं खारिज, हाईकोर्ट ने कहा, संविधान के तहत अनिवार्य शिक्षा का अधिकार, एक किमी के भीतर स्कूल की बाध्यता नहीं
Reviewed by प्राइमरी का मास्टर 2
on
6:11 AM
Rating:
No comments:
Post a Comment