बच्चों को जुलाई में भी नहीं मिल पाएंगी नई किताबें, टेंडर विवाद कोर्ट पहुंचा, नहीं मिली किताबें छापने की अनुमति, कागज को लेकर शुरू हुआ था विवाद
सरकारी प्राइमरी स्कूलों के बच्चों को इस साल जुलाई में भी नई किताबें मिलना मुश्किल है। इसकी वजह है किताबों के टेंडर का विवाद कोर्ट में पहुंच जाना। अब कोर्ट से इस विवाद का निपटारा होने के बाद ही छपाई प्रक्रिया शुरू हो सकेगी। छपाई, जांच और वितरण में ही तीन महीने का वक्त लग जाएगा। ऐसे में अगस्त से पहले बच्चों को किताबें मिलना मुश्किल है।
प्रदेश सरकार ने इस साल अप्रैल से नया सत्र शुरू कर दिया था। तब सरकार ने बच्चों को पुरानी किताबें बंटवाने के आदेश दे दिए थे। उम्मीद थी कि जुलाई तक नई किताबें छपकर आ जाएंगी तो पुरानी वापस लेकर बच्चों को नई किताबें दे दी जाएंगी। इस बीच किताबों की छपाई का विवाद बढ़ता चला गया। दरअसल, इस साल सरकार ने कागज की क्वालिटी बढ़ाने का निर्णय लिया। इसके लिए वर्जिन पल्प(वुड बेस्ड या बैंबो बेस्ड) पेपर पर किताबें छापने के आदेश जारी किए गए। वहीं, कवर आर्ट पेपर पर छापने को कहा गया। जबकि पहले रीसाइकल्ड पेपर पर किताबें छपती थीं।
सरकार ने किताबों का टेंडर भी जारी कर दिया। जिस प्रकाशक को टेंडर दिया गया, उस पर कई तरह के आरोप लगे। वहीं, दूसरे प्रकाशक कोर्ट चले गए। इस बीच सबसे कम रेट पर किताबें छापने के लिए टेंडर किया गया। इस पर उसने खुद ही अपना नाम वापस ले लिया। इससे विवाद बढ़ा तो टेंडर निरस्त करना पड़ा। दूसरे प्रकाशकों ने टेंडर प्रक्रिया में गोलमाल का आरोप लगाया। अब मामला कोर्ट में है। कोर्ट ने फिलहाल टेंडर प्रक्रिया रोक दी है। ऐसे में टेंडर का विवाद सुलझ भी जाता है तो स्कूलों तक किताबें पहुंचने में काफी वक्त लगेगा।
उम्मीद है जल्द ही कोर्ट से निर्णय हो जाएगा। उसके बाद किताबों की छपाई शुरू कर दी जाएगी। हमारी कोशिश है कि जल्द से जल्द किताबों की छपाई और उनका वितरण करा दिया जाए। -अमरेंद्र सिंह, पाठ्य-पुस्तक अधिकारी
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