शिक्षकों पर सारा जिम्मा धरने वाले और खरी खरी कहने वाले मंत्री और अधिकारी  बताये कि आखिर उन्होंने अपनी जवाबदेही क्यों नहीं निभाई? जागरण संपादकीय में व्यवस्था के जिम्मेदारों से उठाये गए कड़वे सवाल

शिक्षकों पर सारा जिम्मा धरने वाले और खरी खरी कहने वाले मंत्री और अधिकारी  बताये कि आखिर उन्होंने अपनी जवाबदेही क्यों नहीं निभाई? जागरण संपादकीय में व्यवस्था के जिम्मेदारों से उठाये गए कड़वे सवाल।

शिक्षा की दुर्दशा, क्या कारण है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वालों की संख्या लगातार रही घट: विशेष रिपोर्ट

क्या कारण है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वालों की संख्या लगातार घट रही है और बच्चे पढ़ने भी आ रहे हैं, उन्हें अच्छी शिक्षा नहीं दी जा रही। यह प्रश्न शिक्षक दिवस पर शिक्षकों से पूछा गया और भी खरी-खरी बातें की गईं। 

बातें करने वाले थे उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री और बड़े अफसर। इन सबने बड़ी सुविधापूर्वक प्रदेश की लगभग ध्वस्त सरकारी शिक्षा व्यवस्था का जिम्मा शिक्षकों पर धर दिया। उनसे कहा गया कि आखिर क्यों लोग खुद तो नौकरी सरकारी स्कूलों में करना चाहते हैं लेकिन, अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं। प्रमुख सचिव, माध्यमिक व उच्च शिक्षा का तो यह भी कहना था कि खुशी तब होगी जब यूपी बोर्ड के बच्चे भी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता के कीर्तिमान बनाएंगे। मंत्री और अफसर समस्याएं तो बता गए लेकिन, बेहतर होता जब वे समाधान भी सुझाते। पहली बात तो यह कि केवल चंद वर्ष पहले तक यूपी बोर्ड की पढ़ाई और परिणाम देश के किसी भी बोर्ड के लिए ईष्र्या के कारण थे। तब आम धारणा थी कि यूपी बोर्ड में 60 फीसद अंक पाने के लिए केंद्रीय बोडरें के 80 प्रतिशत अंकों की तुलना में अधिक श्रम करना होता है। मंत्री-अफसर भले ही शिक्षकों से सवाल कर गए किंतु यूपी की जनता उनसे जानना चाहती है कि वे बताएं, यूपी बोर्ड कहां पिछड़ गया। अभिभावक पूछ रहे हैं कि क्यों अब यूपी बोर्ड की छवि नकल की बन गई है। 


स्कूलों में नकल होती है तो उत्तरदायी शिक्षा अधिकारियों और प्रबंधकों का तंत्र है और आखिरकार जिम्मेदार हैं मंत्रिमंडल और सचिवालय में बैठे अधिकारी जो समस्या के मर्म पर प्रहार करने से बचते हैं। वे खूब जानते हैं कि शिक्षा माफिया कैसे और क्यों पनपते हैं लेकिन, राजनीतिक कारण और निजी लाभ ऐसे लोगों की ढाल बन जाते हैं। हां, बेशक सरकारी शिक्षक भी दोषी हैं। वे पढ़ाने नहीं जाते, खुद नहीं पढ़ते, शिक्षक संघों की राजनीति करते हैं और अपनी जगह शिकमी टीचर तक रख लेते हैं लेकिन, इसके बाद भी यदि सारा जिम्मा उन्हीं पर डाला जाएगा तो यह मुंह चुराने जैसी बात होगी। प्रश्न है कि हमारे तंत्र की प्राथमिकता पर शिक्षा कहीं है भी क्या। विधायक सिंचाई, पीडब्ल्यूडी, नगर विकास, वन और राजस्व मंत्री बनना पसंद करते हैं, शिक्षा मंत्रलय सबकी वरीयता नहीं होता। उत्तर प्रदेश में शिक्षा की बदहाली के बहुत से कारण हैं, शिक्षक उनमें से केवल एक हैं। 

शिक्षकों पर सारा जिम्मा धरने वाले और खरी खरी कहने वाले मंत्री और अधिकारी  बताये कि आखिर उन्होंने अपनी जवाबदेही क्यों नहीं निभाई? जागरण संपादकीय में व्यवस्था के जिम्मेदारों से उठाये गए कड़वे सवाल Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी on 5:58 AM Rating: 5

No comments:

Contact Form

Name

Email *

Message *

Powered by Blogger.