वोटबैंक के हिसाब से घोषित अवकाश तत्कालीन सरकारों की शिक्षा के प्रति संवेदना का आईना, महापुरुषों के बारे में जानकारी ज्यादा आवश्यक : जागरण सम्पादकीय
⚫ छुट्टी का सबब
महापुरुषों की जयंती और निर्वाण दिवस पर होने वाले अवकाश से स्कूली बच्चों का कितना नुकसान होता होगा, यदि अवकाश घोषित करने से पहले यह अनुमान लगाया जाता तो हालात आज इतने विषम न होते। स्थिति यह है कि साल में 220 दिन विद्यालय चलने चाहिए लेकिन, 120 दिन से ज्यादा नहीं चल पा रहे हैं। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी का यह निर्णय सराहनीय है कि महापुरुषों के नाम पर होने वाली छुट्टियां अब बंद होंगी। इनकी जगह महापुरुषों की जयंती पर अब स्कूलों में घंटे-दो घंटे के कार्यक्रम होंगे ताकि बच्चे उनके संघर्ष के बारे में जान सकें। इस प्रकार बच्चे महापुरुषों के त्याग-तपस्या और उनके कार्यो को जान सकेंगे।
बाबा साहब की जयंती पर आयोजित समारोह में मुख्यमंत्री का यह कथन शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान भी लगाता है कि कई बार गांवों में जाने पर उन्होंने बच्चों से पूछा कि स्कूल क्यों नहीं गए तो उत्तर मिला कि इतवार है। यह याद दिलाने पर कि इतवार नहीं, मंगलवार है तो बच्चे इतना ही बता पाते कि स्कूल में छुट्टी है। वे यह नहीं बता पाते कि छुट्टी किस बात की है। हर महापुरुष के नाम पर स्कूल बंद करने की परंपरा ठीक नहीं। वस्तुत: ऐसी छुट्टियों का कोई औचित्य भी नहीं है। अत्यधिक छुट्टियां पठन-पाठन में बाधक बनती हैं। जब जिस दल की सरकार आती है, वह अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए किसी महापुरुष के नाम पर छुट्टी का एलान कर देती है। विचार किया जाना चाहिए कि ऐसे अवकाशों का सुफल क्या है?
स्कूली छुट्टियों में कटौती से न केवल पठन-पाठन की व्यवस्था दुरुस्त होगी बल्कि शिक्षकों की प्रतिभा-क्षमता भी उजागर हो सकेगी। छुट्टियों की वजह से तय पाठ्यक्रम हर साल अधूरा रह जाता है। यह समस्या भी अब काफी हद तक दूर हो सकती है। स्कूल ज्यादा दिन खुलेंगे तो क्लास के कमजोर बच्चों को सबसे ज्यादा फायदा होगा। उन्हें अपने कमजोरियों पर विजय प्राप्त करने के लिए ज्यादा अवसर उपलब्ध हो सकेंगे। अध्यापक भी ज्यादा समय मिलने पर अपनी पूरी क्षमता के साथ नौनिहालों का भविष्य संवारने में योगदान दे पाएंगे।
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