जिम्मेदार बने लापरवाह : अभी भी पुरानी किताबों से पढ़ेंगे बच्चे, परिषदीय स्कूलों में बीते वर्ष भी देर से मिली थीं पुस्तकें
लखनऊ : ‘बच्चों अभी पुरानी किताबों से पढ़ो। नई किताब जब आएंगी तो आपको दी दी जाएंगी।’ राजधानी के प्राथमिक स्कूलों में इन दिनों कुछ इसी तरह शिक्षक बच्चों को समझा रहे हैं। शुक्रवार को प्राथमिक विद्यालय खरियाही, हैदरगंज पहुंची दैनिक जागरण की टीम को यह नजारा देखने को भी मिला। यहां किताबें न बांटे जाने से बच्चे फटी-पुरानी किताबों से पढ़ने को मजबूर दिखे। कई बच्चे ऐसे थे, जिनके पास किताब ही नहीं थी। किताबें न मिलने से कई बच्चे मायूस भी दिखे।
वैसे यह हाल सिर्फ एक स्कूल का नहीं है। राजधानी में करीब 1800 परिषदीय विद्यालय हैं। इनमें पढ़ने रहे छात्रों की संख्या करीब 25000 है। विद्यालयों में एक अप्रैल से सत्र शुरू हो चुका हो, मगर बच्चों को नई किताबें नहीं मुहैया कराई जा सकी हैं। वह पुरानी किताबों से पढ़ाई करने को मजबूर हैं।
टेंडर के चलते बीते वर्ष भी हुआ था खेल : प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों की शिक्षा को लेकर बेसिक शिक्षा विभाग की लापरवाही नयी नहीं है। किताबों की टेंडर प्रक्रिया में घालमेल के चलते बीते वर्ष भी बच्चों को समय पर किताबें नहीं नसीब हुई थीं। इस कारण उन्हें फटी-पुरानी किताबों से पढ़ना पड़ा था। यह स्थिति तब थी जबकि 22 पब्लिेकशन फर्म को टेंडर सौंपा गया था। किताबों की छपाई के लिए 250 करोड़ का टेंडर उठा था। कुल 450 करोड़ रुपये बच्चों की किताबों पर खर्च करने का दावा किया गया था। मगर अर्धवार्षिक परीक्षा बीतने के बाद बच्चों को किताब हाथ लगी थी।
क्या बोले जिम्मेदार : जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रवीण मणि त्रिपाठी का कहना है किताबों को लेकर शासन स्तर पर निर्णय लिया जाता है। जब तक किताबें नहीं उपलब्ध हो पा रहीं, तब तक पुरानी किताबों से ही काम चलाया जा रहा है।
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