शिक्षकों को नहीं पता योग का पाठ्यक्रम, परिषद ने केवल फरमान जारी कर झाड़ा पल्ला, प्रयोगशाला बन चुके स्कूलों में शिक्षक हो रहे हैरान
इलाहाबाद : योग का ककहरा जिन शिक्षकों को खुद नहीं आता, उन्हें बच्चों को योग सिखाने का जिम्मा दिया गया है। इतना ही नहीं प्राथमिक विद्यालय के कक्षा एक, दो व तीन में पढ़ने वाले मासूम उछलकूद कर लें यही बहुत है? वह योग कैसे करेंगे और इस योग के नाम पर उन्हें क्या सिखाया जाएगा। यह न तो शिक्षकों को पता है और न ही अफसरों ने उन्हें बताना उचित समझा है। बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से फरमान जारी होने के बाद से विभागीय अफसरों के साथ ही शिक्षक सन्न हैं। अब क्या करें, क्या न करें की मुश्किल में फंस गए हैं।
सूबे में सत्ता परिवर्तन होने के बाद से अफसर सरकार को जमीनी हकीकत से रूबरू कराने के बजाए हुक्मरानों को खुश करने का हर जतन कर रहे हैं। विद्यालय मानों एक बड़ी प्रयोगशाला में तब्दील हो गए हैं। अच्छे व बुरे परिणाम का आकलन किए बगैर आदेश जारी हो रहे हैं। इसी क्रम में बुधवार को बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से प्रदेश भर के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों के लिए समय सारिणी जारी की गई है। सभी स्कूलों के लिए पहली बार एक साथ समय सारिणी (टाइम टेबल) जारी किया जाना निश्चय ही अच्छा कदम है, लेकिन इसमें विसंगतियों की भी भरमार है। समय सारिणी में कहीं भी समय का जिक्र ही नहीं है। कहीं नहीं लिखा गया है कि पहले से लेकर आठवां पीरियड तक कितने-कितने मिनट का होगा। मसलन, पहला पीरियड इतने से इतने बजे तक चलेगा।
दूसरा .......प्राथमिक स्कूल हो या जूनियर विद्यालय वहां सबसे पहले प्रार्थना, राष्ट्रगान, योग और दैनिक बालसभा बारी-बारी करने का निर्देश दिया गया है। हकीकत यह है कि सूबे के अधिकांश प्राथमिक विद्यालयों में प्रार्थना होती ही नहीं है। ऐसा ही हाल पीटी का भी है, कुछ स्कूलों में कर्मठ शिक्षक जरूर इस परंपरा का निवर्हन कर रहे हैं, लेकिन अधिकांश स्कूलों में शिक्षक खुद लेटलतीफ पहुंचते हैं तब प्रार्थना कैसे होती है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
यही नहीं परिषद ने योग करने का आदेश दिया है। योग से शिक्षक ही वाकिफ नहीं है, उन्हें खुद नहीं पता कि आखिर अनुलोम-विलोम, कपालभारती, भ्रस्तिका करना ही योग है या फिर बच्चों के लिए योग की कोई और विधा होगी। यदि यह विधाएं ही योग हैं तो उनकी शुरुआत कैसे की जाएगी? साथ ही कक्षा एक, दो व तीन के बच्चे आखिर योग को कैसे सीखेंगे और क्या करेंगे यह सोचकर शिक्षक परेशान हैं। खास बात यह है कि आदेश देने वाले अफसरों ने शिक्षकों को यह निर्देश भी नहीं भेजा है कि योग के नाम पर प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर के बच्चों को क्या बताया या सिखाया जाना है।
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