आत्मसम्मान के लिए बच्चों को जूते पहनना जरूरी, बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने उठाए सवाल, यूनिफॉर्म में जूते शामिल क्यों नहीं?
नई दिल्ली : सरकारी स्कूल में जब कुछ बच्चे यूनिफॉर्म के नाम पर महज पैंट-शर्ट या सलवार कमीज पहन कर नंगे पैर पहुंचते हैं तो उनके आत्मसम्मान को ठेस लगती है। यह ऑब्जर्वेशन देते हुए देश की चाइल्ड राइट्स की टॉप बॉडी NCPCR ने HRD और फाइनेंस मिनिस्ट्री को चिट्ठी भेजी है। इसमें सलाह दी गई है कि राइट टू एजुकेशन के तहत स्टूडेंट्स को फ्री यूनिफॉर्म में जूते भी मुहैया कराए जाएं।
नैशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) मेंबर प्रियंक कानूनगो ने कहा कि दुनिया में जहां कहीं भी यूनिफॉर्म का इस्तेमाल होता है उसमें जूते भी शामिल होते हैं। आरटीई के तहत बच्चों को यूनिफॉर्म देने का प्रावधान है लेकिन उन्हें इसका पूरा लाभ नहीं मिल रहा है। बच्चों को जूते भी दिए जाने से उनकी हेल्थ हाइजीन का ख्याल तो रहेगा ही साथ ही यह बच्चों में आत्मसम्मान का भाव जगाने में मददगार होगा।
बच्चों की मांग नहीं हो रही पूरी :
NCPCR की तरफ से भेजे गए पत्र में कहा गया है कि आरटीई की अलग-अलग शिकायतों की जांच करते वक्त पाया गया कि बच्चे जूते की मांग कर रहे हैं लेकिन स्कूल उन्हें जूता उपलब्ध नहीं करा रहा है। आरटीई के सेक्शन 4(डी) में बच्चों को यूनिफॉर्म का हक है लेकिन इसका पालन करते वक्त जूते को यूनिफॉर्म का हिस्सा नहीं माना जा रहा। पत्र में लिखा है कि सर्व शिक्षा अभियान के फ्रेमवर्क में भी यह लिखा है कि बच्चों को यूनिफॉर्म लेने का हक है। लेकिन आयोग ने इस पर आपत्ति जताई है कि यूनिफॉर्म में जूते शामिल नहीं किए जा रहे हैं। पत्र में लिखा है कि 'जूते बच्चों को आत्मसम्मान और कॉन्फिडेंस देते हैं। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले जिन बच्चों के पैरंट्स जूते खरीदने में सक्षम हैं वे बच्चे जूते पहनकर आते हैं लेकिन जिन बच्चों के पास जूते नहीं हैं वे नंगे पैर ही स्कूल आते हैं। ऐसे बच्चे अपमानित महसूस करते हैं।'
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