सात साल बाद भी आरटीई प्रभावी नहीं हो सका : नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने शिक्षा का अधिकार कानून (RTE) के क्रियान्वयन की खामियों को किया उजागर
⚫ दूसरे कार्य में अब भी लगाए जा रहे शिक्षक
⚫ तीन साल में दी जाने वाली सुविधाएं सात साल बाद भी नहीं
⚫ जरूरत से ज्यादा किताबें खरीदीं और विद्युतीकरण भी रहा अधूरा
नई दिल्ली : नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई)के क्रियान्वयन की खामियों को उजागर किया है। शुक्रवार को संसद में पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि कानून को लागू हुए सात साल हो गए हैं। न तो आज तक स्कूलों के भवन बन पाए हैं और न ही 14 साल की उम्र तक के बच्चे स्कूल पहुंच पाए हैं। कैग ने कहा कि कानून 2010 से लागू हुआ।
प्रावधानों के अनुसार तीन साल के भीतर सरकार को स्कूलों की कमी दूर करनी थी। लेकिन सात साल के बाद भी स्कूल नहीं बने हैं। दिल्ली, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में स्कूल अस्थाई परिसरों में चल रहे हैं।
जरूरत से ज्यादा किताबें खरीदीं और बिजली गायब : उप्र के महाराजगंज, गाजीपुर एवं सोनभद्र जिलों में जांच में पता चला कि 2014-16 के दौरान 24.73 लाख ज्यादा किताबें खरीदी गई। जिनकी कीमत 3.19 करोड़ थी। रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ 58 फीसदी विद्यालयों का ही 2014-16 तक विद्युतीकरण हुआ था। इसी प्रकार 64 फीसदी विद्यालयों में ही चारहदीवारी हो पाई है। सिर्फ 24 फीसदी विद्यालयों में ही रैंप बने थे।
नौ राज्य में दूसरे कार्य में लगे शिक्षक : आरटीई के तहत शिक्षकों को तीन कार्यो के अलावा किसी अन्य गैर शिक्षण कार्य में नहीं लगाया जा सकता है।
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