बीएड-बीटीसी बगैर टीईटी प्रमाणपत्र प्राप्त करने का मामला, सूबे के 50 हजार प्राथमिक शिक्षकों को मिली राहत, हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
👉 सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के पर यथास्थिति कायम रखने के दिए
👉 टीईटी रिजल्ट के बाद बीएड बीटीसी वालों को नौकरी से हटाने का था।
नई दिल्ली। उप्र के करीब 50,000 से ज्यादा प्राथमिक शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई है। फिलहाल उनकी नौकरी नहीं जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के पर यथास्थिति कायम रखने के दिये हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली शिक्षकों की याचिका पर नेशनल काउंसिल आफ टीचर्स एजूकेशन (एनसीटीई) व उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस भी जारी किया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गत 30 मई को दिए गए फैसले में कहा था कि जिन लोगों का टीईटी रिजल्ट पहले आया और बीएड या बीटीसी का रिजल्ट बाद में आया उनका टीईटी प्रमाणपत्र वैध नहीं है। हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के सभी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को दिया था कि वे ऐसे शिक्षकों की पहचान कर उन्हें नौकरी से बेदखल करें। हाईकोर्ट ने ये प्रक्रिया दो महीने में पूरी करने को कहा था। दो महीने की समय सीमा 30 जुलाई को खत्म हो रही थी। उत्तर प्रदेश के करीब 550 प्राथमिक शिक्षकों ने तीन याचिकाओं के जरिये हाईकोर्ट के इस को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
शुक्रवार को न्यायमूर्ति अरुण मिश्र व न्यायमूर्ति एस.अब्दुल नजीर की पीठ ने याचिकाओं पर आर वेंकट रमणी व रूपाली चतुर्वेदी की दलीलें सुनने के बाद एनसीटीई और उत्तर प्रदेश सरकार व उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में याचिका का जवाब मांगा है। इसके साथ ही कोर्ट ने अंतरिम तौर पर हाईकोर्ट के पर यथास्थिति कायम रखने के दिये। इससे पहले वकीलों की बहस सुनकर न्यायाधीश अरुण मिश्र ने कहा कि इस पूरे मामले में एनसीटीई के नियमों में दिये गये शब्द पसरुइँग (करते रहना) की व्याख्या जरूरी है ताकि पूरे देश में एकरूपता बनी रहे। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2013 में शिक्षकों की 29334 भर्तियां निकाली। और भर्ती कर लीं। इन भर्तियों को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी जिसके बाद हाईकोर्ट ने उपरोक्त फैसला दिया था।
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