स्कूल की किताबों में अब महिला सशक्तिकरण का हुआ बोलबाला, पहले महिलाओं को घरेलू कामकाज करते दिखाया जाता था
पहले बच्चों की किताबों में महिलाओं को घरेलू कामकाज करते दिखाया जाता था
स्कूल की किताबों में अब महिला सशक्तिकरण का हुआ बोलबाला
बच्चों की किताबों में भी महिला सशक्तीकरण बोलबाला है। कुछ साल पहले तक जहां किताबों में महिलाओं की घरेलू कामकाज करते या कम प्रतिष्ठित कार्य करते हुए फोटो दिखा करती थी वहीं अब उनकी मजबूत छवि को पेश किया जा रहा है। न सिर्फ सरकारी किताबों में बल्कि प्राइवेट प्रकाशकों की किताबों में भी यह बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है। हमारे देश में हो रहे इस परिवर्तन की चर्चा हाल ही में यूनेस्कों की ओर से जारी ग्लोबल एजुकेशन मॉनीटरिंग रिपोर्ट में भी हुई है।
यूनेस्को ने 2019 में महाराष्ट्र सरकार के लैंगिक विभेद वाली फोटो हटाने का जिक्र किया है। उदाहरण के तौर पर कक्षा दो की किताब में महिला व पुरुष दोनों को घरेलू काम करते दिखाया गया है। महिला डॉक्टर और पुरुष बावर्ची की की फोटो भी है। बच्चों को इन तस्वीरों को देखकर चर्चा करने को कहा गया है। पिछले तीन सालों से राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद की ओर से प्रकाशित की जा रही किताबों में भी लैंगिक विभेद वाली सामग्री को बहुत कम किया गया है।
यूनिसेफ के सुझाव पर पिछले तीन सालों से किताबों में लैँगिक असमानता वाली सामग्रियों को बहुत कम किया गया है। कक्षा 3 से 5 तक की अंग्रेजी की किताबों की ही देखें तो एक तस्वीर में दादी पोते के साथ पार्क में बैडमिंटन खेलते दिखती हैं। ऑफिस में काम करती युवती, फल विक्रेता, महिला मैं पिछले 18 साल से परिषदीय उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ा रहा हूं। पिछले तीन सालों में लैंगिक विभेद वाली सामग्री किताबों में कप हुई है। बच्चों के मानसिक के लिए आवश्यक है।
किताबों में छपी तस्वीरें बच्चों के मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं। यदि हम बचपन से ही इस विभेद को दूर कर देंगे तो बड़े होने पर महिला-पुरुष के बीच खाई अपनेआप कम हो जाएगी। हर सिंह, सहायक अध्यापक उच् प्राथमिक विद्यालय सीपीआई किताबों में तैंगिक असमानता का प्रसंग तस्वीरों तक सीमित न रखा जाए। उसकी विषयवस्तु, भाषागत परिवर्तनों की भी आवश्यकता है | लिंग विभेद लड़कियों के साथ लड़कों को भी समान रूप से प्रभावित करता है। इसलिए बचपन से ही इन भावनाओं को न पनपने दिया जाए।
एनसीईआरटी के लैंगिक मुद्दों पर गठित फोकस ग्रुप ने भी महिलाओं एवं पुरुषों की एक समान छवि प्रस्तुत करने का सुझाव दिया है। -डॉ. स्कंद शुक्ल, प्राचार्य आंग्ल भाषा शिक्षण संस्थान इशन से लेकर अफगानिस्तान तक पेश कर रहे कमजोर छवि TIERS | दुनिया के कई देश बच्चों की किताबों में महिलाओं की कमजोर छवि पेश कर रहे हैं। इरान की प्राथमिक व माध्यमिक कक्षाओं की 95 किताबों की समीक्षा में यह बात सामने आई कि इस्तेमाल की गई कुल फोटो में तकरीबन 37 प्रतिशत महिलाओं की थी। उन्हें परिवार और शिक्षा से जोड़कर दिखाया गया है। अफगानिस्तान की किताबों में भी महिलाओं को घर की दीवार तक सीमित दिखाया गया है। उनके लिए टीचर ही एकमात्र करियर विकल्प दिखाई पड़ता है। वकील, महिला दुकानदार रेहाना, बहन लौटते भाई की तस्वीरें बिना कुछ कहे के साथ खेत से फसल सिर पर लेकर बहुत बड़ा संदेश देती नजर आती हैं।
स्कूल की किताबों में अब महिला सशक्तिकरण का हुआ बोलबाला, पहले महिलाओं को घरेलू कामकाज करते दिखाया जाता था
Reviewed by प्राइमरी का मास्टर 2
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6:30 AM
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