स्कूल-पूर्व शिक्षा को अनिवार्य करने पर फैसला जल्द, आरटीई का दायरा स्कूल-पूर्व से दसवीं तक करने पर हो रहा विचार, यूनीसेफ की रिपोर्ट में सामने आई स्कूल-पूर्व शिक्षा की बदहाली
नई दिल्ली : पहली कक्षा से शुरू होने वाली औपचारिक पढ़ाई से पहले की शिक्षा और नौवीं-दसवीं कक्षाओं को भी मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार के तौर पर शामिल करने पर सरकार जल्द ही फैसला करने वाली है। यूनीसेफ की रिपोर्ट में खास तौर पर स्कूल-पूर्व शिक्षा की बदहाली के सामने आने के बाद सरकार ने इस संबंध में भरोसा दिलाया है।
केंद्रीय स्कूली शिक्षा सचिव एस सी खूंटिया ने मंगलवार को कहा, ‘जो नई शिक्षा नीति तैयार हो रही है, उसमें भी इस संबंध में प्रस्ताव आए हैं। स्कूल-पूर्व शिक्षा को मुफ्त और अनिवार्य किए जाने की जरूरत को अब गंभीरता से समझा जा रहा है। हमने एक समिति बनाई है जो स्कूल-पूर्व शिक्षा और लोअर सेकेंडरी कक्षाओं- नौवीं और दसवीं को भी सार्वभौमिक बनाने पर विचार कर रही है ताकि अधिक से अधिक बच्चों को इसका लाभ मिल सके।’ यह बात उन्होंने यूनीसेफ की ओर से ‘स्टेट ऑफ वल्र्ड चिल्ड्रेन’ रिपोर्ट जारी किए जाने के मौके पर कही। इस दौरान यूनीसेफ के भारत प्रतिनिधि लूई-जॉर्ज आर्सेनाल्ट ने भी कहा कि शिक्षा को अलग-अलग खांचों और सांचों में बांधना ठीक नहीं है। इसे समग्रता से और एकीकृत रूप में पेश किया जाना चाहिए।
यूनीसेफ की यह रिपोर्ट बताती है कि भारत में तीन से छह वर्ष की उम्र के 7.4 करोड़ बच्चों में से लगभग दो करोड़ बच्चे किसी भी तरह की पूर्व-शिक्षा हासिल नहीं कर रहे। जबकि इसके लिए आंगनबाड़ी जैसे व्यापक कार्यक्रम दशकों से चल रहे हैं। रिपोर्ट में सबसे अहम सिफारिश यही है कि स्कूल-पूर्व शिक्षा को मजबूती देने के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों को बेहतर बनाया जाए। यहां बच्चों को खेलने और पढ़ने के लिए बेहतर माहौल मिले। ज्यादा प्रशिक्षित शिक्षक या आंगनबाड़ी कार्यकर्ता उपलब्ध हों और बेहतर आधारभूत ढांचा हो। साथ ही यह अभिभावकों को भी स्कूल-पूर्व शिक्षा के लिए जागरूक करने पर जोर देती है।
वर्ष 2009 में संसद से शिक्षा का अधिकार कानून पारित किया गया था, जो प्रावधान करता है कि छह से 14 वर्ष की आयु का कोई बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रहेगा। पिछले कुछ वर्षो से इसका दायरा बढ़ाने की मांग उठ रही है। शुरुआती साल ही जीवन को आधार देते हैं। जो देर से सीखना शुरू करते हैं, वे पीछे रह जाते हैं। खासकर वंचित तबके के बच्चे जब बिना स्कूल-पूर्व शिक्षा के दाखिला लेते हैं तो आगे चल कर उनके और दूसरे बच्चों के बीच अंतर बढ़ता चला जाता है।’’ - लूई-जॉर्ज आर्सेनाल्ट, यूनीसेफ के भारत प्रतिनिधि
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