8वीं तक की सरकारी पढ़ाई को निगल गया भ्रष्टाचार तो प्राइमरी व जूनियर शिक्षा का हाल हुआ बदहाल

लखनऊ : आठवीं तक के सरकारी स्कूलों पर सरकार हर साल 55 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर रही है। इसके बावजूद करीब 52 फीसदी बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने को मजबूर हैं। वजह, सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर बेहद खराब होना है। पांचवीं क्लास के 57 फीसदी बच्चे कक्षा तीन की किताब नहीं पढ़ सकते। आठवीं के 75 फीसदी बच्चों को गुणा-भाग करना तक नहीं आता।




दो-तीन पीढ़ी पहले तक इन्हीं स्कूलों में पढ़कर अफसर और नेता बने लोगों ने सरकारी शिक्षा की ऐसी दुर्दशा की कि उनके बच्चे और नाती-पोते अब सिर्फ प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ते हैं। इसका खमियाजा भुगतना पड़ रहा है कि मध्यम, निम्न मध्यम और गरीब तबके के लोगों को।  शिक्षकों का आरोप है  कि उन्हें पढ़ाने के अलावा दूसरी सरकारी जिम्मेदारियों में ज्यादा उलझाए रखा जाता है। उनकी तैनातियां घरों से दूर की जाती हैं और तबादले के लिए घूस देनी पड़ती है। गांव, कस्बों और शहरों में इन स्कूलों की जिम्मेदारी संभालने की सामुदायिक भागीदारी कहीं नजर नहीं आती। मां-बाप चाहते हैं कि उनके बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से सरकारी स्कूल में पढ़ने का मौका मिले, जो फिलहाल दूर की कौड़ी है। सरकारी कॉपी-किताबें कभी बच्चों तक समय से पहुंचती ही नहीं।




नई सरकार और सीएम आदित्यनाथ योगी से लोगों को उम्मीदे हैं। मानव विकास सूचकांक का एक प्रमुख मुद्दा छोटे बच्चों की पढ़ाई है। सरकार ध्यान दे तो पंद्रह वर्षों में आई गिरावट को ठीक किया जा सकता है। सरकार को इस मुद्दे को अपनी प्राथमिकता में लेना होगा क्योंकि यह हमारे भविष्य की नींव है।

8वीं तक की सरकारी पढ़ाई को निगल गया भ्रष्टाचार तो प्राइमरी व जूनियर शिक्षा का हाल हुआ बदहाल Reviewed by प्राइमरी का मास्टर 1 on 8:27 AM Rating: 5

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