गांवों के गरीब बच्चों को भी निजी स्कूलों में मुफ्त दाखिला, नए शासनादेश में वार्ड की अनिवार्यता समाप्त, अब एक किलोमीटर के अंदर ले सकेंगे दाखिले
📌 तीस एडमिशन के बाद दाखिले से मना नहीं कर सकेंगे सरकारी स्कूल
लखनऊ। नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के अनुसार दुर्बल व अलाभान्वित वर्ग के बच्चे अब गांवों के निजी स्कूलों में भी नि:शुल्क दाखिले पा सकेंगे। शिक्षा विभाग के इस वर्ष जारी नए शासनादेश में वार्ड संबंधी अनिवार्यता हटा ली गई है। पिछले शासनादेश में निजी स्कूलों में नि:शुल्क दाखिले की बात शहरी क्षेत्र के केवल उन वार्डों के लिए कही गई थी, जिनमें एक भी सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल नहीं थे। इस वर्ष ‘पड़ोस’ शब्द को वार्ड के बजाय एक किलोमीटर कर दिया गया है। इससे शहरी क्षेत्र के साथ ही ग्रामीण इलाकों में भी गरीब बच्चों के लिए दाखिलों के दरवाजे खुल जाएंगे।
शासनादेश के अनुसार बच्चे को सबसे पहले राजकीय या अनुदानित विद्यालय में दाखिले के लिए आवेदन करना होगा। इन स्कूलों में बच्चों को कॉपी-किताब व यूनिफॉॅर्म नि:शुल्क मिलती है। सरकारी स्कूल की एक कक्षा में 30 एडमिशन होने के बाद जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी की जिम्मेदारी होगी कि वह दुर्बल व अलाभान्वित वर्ग के बच्चों का नि:शुल्क दाखिला पड़ोस केे निजी स्कूल में कराएं। फीस की प्रतिपूर्ति राज्य सरकार करेगी। अभी तक ‘पड़ोस’ शब्द का अर्थ संबंधित वार्ड था। वार्ड शहरी क्षेत्र में ही होते हैं, इसलिए ग्रामीण क्षेत्र में सरकारी स्कूल नजदीक न होने पर भी बच्चों को निजी स्कूलों में नि:शुल्क दाखिला नहीं मिल पा रहा था।
नए शासनादेश में सरकारी स्कूल में दाखिले की अधिकतम संख्या में बदलाव के बाद एक कक्षा में अधिकतम दाखिलों की संख्या 40 से घटकर 30 हो गई है। सरकारी स्कूल की एक कक्षा में 30 से ज्यादा दाखिले होने के बाद भी अलाभान्वित या दुर्बल वर्ग के बच्चों को दाखिले से मना नहीं किया जा सकेगा।
...पर आरटीई एक्ट का मकसद नहीं हो पा रहा पूरा
अधिनियम की मुख्य मंशा हर बच्चे को आठवीं तक नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार देना है। इसके लिए अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को छोड़कर बाकी सभी निजी विद्यालयों को 25 फीसदी सीटों पर नि:शुल्क दाखिला देना अनिवार्य है, जबकि शासनादेश में सरकारी स्कूलों की सीटें फुल होने के बाद ही निजी स्कूलों की सीटों पर नि:शुल्क दाखिलों की बात कही गई है। ऐसे में शासनादेश निजी स्कूलों को 25 फीसदी सीटों पर अनिवार्य रूप से दाखिले की बात नहीं कर रहा। दाखिले न देने पर स्कूलों पर कार्रवाई की बात भी शासनादेश से नदारद है।
शासनादेश में ‘पड़ोस’ शब्द की परिभाषा पर काफी कन्फ्यूजन था। नए शासनादेश से यह बात साफ हो गई है। वार्ड संबंधी अनिवार्यता हटने के बाद अब ग्रामीण क्षेत्र के निजी स्कूलों में नि:शुल्क दाखिले हो सकेंगे। सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य है। - समीना बानो, भारत अभ्युदय फाउंडेशन
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