परिषदीय स्कूलों में अध्ययनरत दो करोड़ बच्चों को मोबाइल से दूर करने के लिए परंपरागत और देसी खेलों का लिया जाएगा सहारा

परिषदीय स्कूलों में अध्ययनरत दो करोड़ बच्चों को मोबाइल से दूर करने के लिए परंपरागत और देसी खेलों का लिया जाएगा सहारा



बेसिक शिक्षा परिषद के 1.50 लाख से अधिक प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों में अध्ययनरत कक्षा एक से आठ तक के तकरीबन दो करोड़ बच्चों को मोबाइल से दूर करने के लिए छुपन-छुपाई, लंगड़ी टांग जैसे परंपरागत और देसी खेलों का सहारा लिया जाएगा।


राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में बच्चों को आधुनिक रहते हुए भी अपनी सांस्कृतिक परंपराओं से जोड़े रखने की परिकल्पना की गई है। इसी कड़ी में राज्य शिक्षा संस्थान के विशेषज्ञ देशज और परंपरागत खेलों को बचाए रखने की पहल करने जा रहे हैं।


संस्थान के विशेषज्ञ एनईपी 2020 के तहत शुरू किए गए बैगलेस डे पर बच्चों के खेलने के लिए परंपरागत खेलों पर आधारित सचित्र बिगबुक बनाने जा रहे हैं। राज्य शिक्षा संस्थान के प्राचार्य नवल किशोर का कहना है कि बिगबुक तैयार करने के लिए राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) से अनुमति मांगी गई है। यह बिगबुक विद्यालयों में बैगलेस-डे वाले दिन बच्चों के लिए अध्यापक प्रयोग करेंगे। इससे बच्चों में बढ़ रही मोबाइल संस्कृति को कम करने में मदद मिलेगी।


संस्थान की सहायक उप शिक्षा निदेशक और राज्य शिक्षा संस्थान में समन्वयक समग्र शिक्षा डॉ. दीप्ति मिश्रा का कहना है कि वर्तमान समय में बच्चे पारंपरिक खेलों को पूरी तरह से भूलते जा रहे हैं क्योंकि वीडियो गेम, प्रैंक वीडियो, रील्स, व्हाट्सएप मीम्स और यूट्यूब चैनल में इतने लीन हो गए हैं कि अब वे घर के बाहर जाकर देशज खेल खेलना नहीं चाहते। बच्चे यदि ये खेल खेलेंगे तो उनकी मानसिक और शारीरिक क्षमता में भी वृद्धि होगी।


इन खेलों को शामिल करेंगे
छुपन-छुपाई, आंख-मिचौली, चिप्पी फोड़, इक्कट-दुक्कट, अष्टा-चंगा, किकली (रस्सी-कूद), गोल-गोल धानी, चोर-सिपाही, लंगड़ी टांग, विष-अमृत, बर्फ-पानी, चक-चक चलनी, रस्सा-कसी, सितौलिया, पकड़म-पकड़ाई, खो-खो, रंग-रंग बाल्टी, गिल्ली-डंडा व ऊंच-नीच आदि।
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