परिषद की लापरवाही अब भुगतेंगे दस हजार अभ्यर्थी : परिषद के पास कोई रिकार्ड नहीं
शिक्षक बनने के मुहाने पर आकर वे बेरोजगार ही रह
जाएंगे। दो साल से जिस नौकरी के मिलने की आस लगाए बैठे थे, उसमें उनका फेल
हो जाना लगभग तय है। वे न तो मेरिट में पीछे हैं और न एकेडमिक रिकार्डो में
किसी से कम हैं, फिर भी उप्र माध्यमिक शिक्षा परिषद यानी यूपी बोर्ड ऐसे
अभ्यर्थियों को फेल करा देगा। हम बात कर रहे हैं टीईटी पास अभ्यर्थियों की
जिनके अंकपत्र गुम हो गए हैं या फिर उनमें कोई संशोधन होना है। ऐसे लोगों
की संख्या प्रदेश भर में करीब दस हजार के आसपास है। जिन्हें कुछ भी हासिल
नहीं होना है, क्योंकि परिषद के पास कोई रिकार्ड ही नहीं है।
प्रदेश सरकार ने पहली बार शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) 2011 में करायी थी। इस परीक्षा को आयोजित कराने की जिम्मेदारी माध्यमिक शिक्षा परिषद इलाहाबाद को सौंपी गई थी। यूपी के प्राथमिक स्कूलों में 72825 शिक्षकों की भर्ती टीईटी की मेरिट के आधार पर होनी थी। परीक्षा का परिणाम आने के बाद अभ्यर्थियों ने अपना अंकपत्र इंटरनेट से हासिल किया था। परिषद ने फरवरी 2012 में सभी अंकपत्र, प्रमाणपत्र मंडलीय संयुक्त शिक्षा निदेशक के कार्यालयों पर भिजवा दिए। वहीं से वह बांटे गए। परीक्षा में अंक बढ़वाने आदि को लेकर रैकेट सक्रिय था इस पर कार्रवाई हुई और कई बड़े चेहरे गिरफ्तार भी हुए। इस प्रकरण में रमाबाई जिले की पुलिस ने मार्च 2012 में टीईटी-2011 के सारे रिकॉर्ड जब्त कर लिए। पुलिस ने परीक्षाफल बनाने की एजेंसी के कंप्यूटर की हार्डडिस्क तक निकाल ली थी।
टीईटी परीक्षा में रैकेट मिलने के बाद परिणाम की पुनर्समीक्षा हुई। दोबारा कापियां जांची गईं। इसमें अधिकांश छात्रों के अंक बढ़ गए। ऐसे में अभ्यर्थी अंक पत्र में संशोधन कराने, कैटेगरी गलत होने, मूल अंक पत्र न मिलने एवं अंक पत्र खो जाने जैसे तमाम प्रत्यावेदन दिए हैं। मूल अंक पत्र की कापी मांगने के साथ ही डुप्लीकेट अंक पत्र तक मांगे जा रहे हैं। परिषद मुख्यालय में ऐसे प्रत्यावेदन मिलने का सिलसिला 2012 से ही शुरू हो गया था, जो अब तक निरंतर जारी है। लगभग दस हजार अभ्यर्थी अपने प्रत्यावेदन के जवाब का इंतजार कर रहे हैं। ताज्जुब यह है कि परिषद लिखकर दे रहा है कि उसके पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है। कुछ अभ्यर्थी कोर्ट गए और न्यायालय ने आदेश दिया कि अंक पत्र दिया जाए। फिर भी अनसुनी जारी है। अभ्यर्थियों को केवल प्रत्यावेदन रिसीव करने का प्रमाणपत्र दिया जा रहा है, ऐसे में उनका भविष्य चौपट होना तय है।
मूल अंक पत्र कब परिषद आएंगे और समस्या कब दूर होगी स्थिति साफ नहीं है। अंकपत्र का मूल या डुप्लीकेट न मिलने पर संबंधित अभ्यर्थियों का काउंसिलिंग से बाहर होना तय माना जा रहा है। इसी प्रकरण में बीते शनिवार को शासन में बैठक हुई इसमें प्रमुख सचिव के अलावा माध्यमिक शिक्षा परिषद की सचिव शकुंतला देवी यादव, एससीईआरटी के निदेशक सर्वेन्द्र विक्रम सिंह आदि पहुंचे थे। बताते हैं कि बैठक में इस पर चर्चा चली और जांच तेज करने पर सहमति बनी। यही नहीं 2011 में परिषद की तत्कालीन सचिव से पूछताछ होने पर भी रजामंदी बनी और मौजूदा एवं पूर्व सचिव का आमना-सामना कराने की योजना बनी, लेकिन उसके आगे हुआ कुछ नहीं।
प्रदेश सरकार ने पहली बार शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) 2011 में करायी थी। इस परीक्षा को आयोजित कराने की जिम्मेदारी माध्यमिक शिक्षा परिषद इलाहाबाद को सौंपी गई थी। यूपी के प्राथमिक स्कूलों में 72825 शिक्षकों की भर्ती टीईटी की मेरिट के आधार पर होनी थी। परीक्षा का परिणाम आने के बाद अभ्यर्थियों ने अपना अंकपत्र इंटरनेट से हासिल किया था। परिषद ने फरवरी 2012 में सभी अंकपत्र, प्रमाणपत्र मंडलीय संयुक्त शिक्षा निदेशक के कार्यालयों पर भिजवा दिए। वहीं से वह बांटे गए। परीक्षा में अंक बढ़वाने आदि को लेकर रैकेट सक्रिय था इस पर कार्रवाई हुई और कई बड़े चेहरे गिरफ्तार भी हुए। इस प्रकरण में रमाबाई जिले की पुलिस ने मार्च 2012 में टीईटी-2011 के सारे रिकॉर्ड जब्त कर लिए। पुलिस ने परीक्षाफल बनाने की एजेंसी के कंप्यूटर की हार्डडिस्क तक निकाल ली थी।
टीईटी परीक्षा में रैकेट मिलने के बाद परिणाम की पुनर्समीक्षा हुई। दोबारा कापियां जांची गईं। इसमें अधिकांश छात्रों के अंक बढ़ गए। ऐसे में अभ्यर्थी अंक पत्र में संशोधन कराने, कैटेगरी गलत होने, मूल अंक पत्र न मिलने एवं अंक पत्र खो जाने जैसे तमाम प्रत्यावेदन दिए हैं। मूल अंक पत्र की कापी मांगने के साथ ही डुप्लीकेट अंक पत्र तक मांगे जा रहे हैं। परिषद मुख्यालय में ऐसे प्रत्यावेदन मिलने का सिलसिला 2012 से ही शुरू हो गया था, जो अब तक निरंतर जारी है। लगभग दस हजार अभ्यर्थी अपने प्रत्यावेदन के जवाब का इंतजार कर रहे हैं। ताज्जुब यह है कि परिषद लिखकर दे रहा है कि उसके पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है। कुछ अभ्यर्थी कोर्ट गए और न्यायालय ने आदेश दिया कि अंक पत्र दिया जाए। फिर भी अनसुनी जारी है। अभ्यर्थियों को केवल प्रत्यावेदन रिसीव करने का प्रमाणपत्र दिया जा रहा है, ऐसे में उनका भविष्य चौपट होना तय है।
मूल अंक पत्र कब परिषद आएंगे और समस्या कब दूर होगी स्थिति साफ नहीं है। अंकपत्र का मूल या डुप्लीकेट न मिलने पर संबंधित अभ्यर्थियों का काउंसिलिंग से बाहर होना तय माना जा रहा है। इसी प्रकरण में बीते शनिवार को शासन में बैठक हुई इसमें प्रमुख सचिव के अलावा माध्यमिक शिक्षा परिषद की सचिव शकुंतला देवी यादव, एससीईआरटी के निदेशक सर्वेन्द्र विक्रम सिंह आदि पहुंचे थे। बताते हैं कि बैठक में इस पर चर्चा चली और जांच तेज करने पर सहमति बनी। यही नहीं 2011 में परिषद की तत्कालीन सचिव से पूछताछ होने पर भी रजामंदी बनी और मौजूदा एवं पूर्व सचिव का आमना-सामना कराने की योजना बनी, लेकिन उसके आगे हुआ कुछ नहीं।
खबर साभार : दैनिक जागरण
परिषद की लापरवाही अब भुगतेंगे दस हजार अभ्यर्थी : परिषद के पास कोई रिकार्ड नहीं
Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी
on
6:57 AM
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