पति-पत्नी सरकारी नौकरी में और एक ही शहर में तो दोनों को आवास भत्ता क्यों : हाईकोर्ट ने दोनों को आवास भत्ता देने के शासनादेश पर किया जवाब तलब
इलाहाबाद।
सरकारी नौकरी कर रहे पति-पत्नी यदि एक ही जिले में तैनात हैं और एक ही
आवास में रह रहे हैं तो दोनों को आवास भत्ता किस नीति के तहत दिया जा रहा
है। हाईकोर्ट ने इस मामले पर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है। सरकार ने उसकी
वेतन और भत्ते की नीति भी पूछी है। भीम सिंह सागर की जनहित याचिका पर
सुनवाई कर रही मुख्य न्यायमूर्ति डा. डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति मनोज
कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने प्रदेश सरकार के वित्त विभाग से यह जानकारी
मांगी है।
खंडपीठ का मत था कि यह तो संभव है
कि पति या पत्नी में जिसका वेतन अधिक है उसे आवास भत्ता दिया जाए। मगर एक
ही घर मेें रह कर दोनों आवास भत्ता लें ऐसा किस नीति से किया गया। याची का
कहना था कि सरकार ने 11 फरवरी 2015 को शासनादेश जारी कर पति-पत्नी दोनों को
आवास भत्ता देने का निर्देश दिया है जबकि इससे पूर्व 28 अप्रैल 2000 के
शासनादेश में दोनों में से किसी एक को भत्ता देने का प्रावधान था। खंडपीठ
ने जानना चाहा है कि इस संबंध में सरकारी की सेवा और वेतन नियमावली क्या
है। क्या शासनादेश नियमावली के अनुरूप है। वित्त विभाग के सचिव को 21 जुलाई
तक इस पर जवाब दाखिल करना है।
खबर साभार : अमर उजाला

खबर साभार : हिन्दुस्तान
पति-पत्नी एक ही आवास में तो दोनों को एचआरए कैसे?
इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार के वित्त विभाग से पूछा है कि
जब पति व पत्नी दोनों सरकारी कर्मचारी हैं और दोनों एक ही आवास में रह रहे
हैं तो दोनों को आवासीय भत्ता (एचआरए) कैसे दिया जा रहा है? कोर्ट ने कहा
कि पुराने शासनादेश में संशोधन करने के पीछे सरकार की मंशा क्या है?
जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायमूर्ति डॉ. डीवाई चंद्रचूड एवं न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि पहले नियम था कि एक आवास में रहने वाले पति-पत्नी दोनों को एचआरए नहीं मिलेगा। सरकार ने किन कारणों से इस नियम में संशोधन कर दिया। कोर्ट ने 21 जुलाई तक यह तथ्य स्पष्ट करने को कहा है।
जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायमूर्ति डॉ. डीवाई चंद्रचूड एवं न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि पहले नियम था कि एक आवास में रहने वाले पति-पत्नी दोनों को एचआरए नहीं मिलेगा। सरकार ने किन कारणों से इस नियम में संशोधन कर दिया। कोर्ट ने 21 जुलाई तक यह तथ्य स्पष्ट करने को कहा है।

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Reviewed by Brijesh Shrivastava
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