अंग्रेजी के फेर में निजी स्कूलों के फेरे, धारणा है कि अंग्रेजी के बिना सामाजिक पहचान बनाना मुश्किल : एससीईआरटी
सरकारी नौकरी और बड़ा पद पाने के लिए अंग्रेजी ज्ञान को जरूरी मानते हैं ज्यादातर अभिभावक
लखनऊ। ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम वाले
निजी स्कूलों में इसलिए पढ़ा रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अंग्रेजी
का ज्ञान आज की जरूरत है। सरकारी नौकरियां, बड़ा पद और प्रतिष्ठा पाने में
अंग्रेजी का ज्ञान न सिर्फ सहायक है बल्कि आवश्यक भी। मौजूदा व्यवस्था में
अंग्रेजी के बिना अच्छी सामाजिक पहचान बना पाना मुश्किल है।
यह निष्कर्ष
है राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) द्वारा कराये
गए सर्वेक्षण अध्ययन का, जिसकी रिपोर्ट तैयार की जा रही है। यह अध्ययन
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रलय के सौजन्य से सर्व शिक्षा अभियान के
तहत कराया गया है। निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों का
मानना है कि प्रत्येक क्षेत्र में अंग्रेजी को महत्व दिया जाता है।
अंग्रेजी का ज्ञान होने से आत्मविश्वास बढ़ जाता है। उच्च शिक्षा, खासकर
इंजीनियरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट, कंप्यूटर आदि की पढ़ाई भी अंग्रेजी माध्यम
में होती है। अंग्रेजी में व्यावसायिक व रोजगार के अवसर ज्यादा हैं। हाई
कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में भी अंग्रेजी में कामकाज होता है। विदेश के अलावा
देश के गैर-हंिदूी भाषी राज्यों में भी अंग्रेजी संपर्क भाषा का काम करती
है।
निजी स्कूलों में पढ़ाने की अन्य वजहें : बच्चों के लिखित कार्य की ठीक
से जांच की जाती है। जांच के बाद उसमें सुधार के मौके देकर अच्छे कार्य व
व्यवहार की प्रशंसा भी की जाती है। बच्चों को पुरस्कृत भी किया जाता है।
बच्चों के अभ्यास कार्य की जांची गईं पुस्तिकाएं अभिभावक, प्रधानाध्यापक व
प्रबंधक द्वारा भी देखी जाती हैं। बच्चों को सिखाने के लिए चार्ट, नक्शे,
मॉडल आदि शिक्षण सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है। पढ़ाने के लिए कंप्यूटर
व सूचना प्रौद्योगिकी का भी उपयोग किया जाता है। बच्चों का
साप्ताहिक/पाक्षिक/मासिक टेस्ट लिया जाता है। बच्चों के सीखने-समझने के
बारे में स्कूल डायरी प्रतिदिन भरी जाती है जिसके जरिये अभिभावक और
शिक्षकों के बीच संवाद भी बना रहता है। बच्चों को लोक व्यवहार व शिष्टाचार
के गुण सिखाये जाते हैं। निजी स्कूलों में पेयजल, शौचालय, पुस्कालय आदि की
सुविधाएं अच्छी रहती हैं। शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों में नहीं लगाया
जाता है।
बीस जिलों में हुआ सर्वे : उप्र के 20 जिलों में बच्चों को निजी
स्कूलों में पढ़ाने वाले 761 अभिभावकों का साक्षात्कार और प्रश्नावली के
जरिये सर्वेक्षण किया गया। इनमें 302 अभिभावक ग्रामीण और 459 शहरी क्षेत्र
से ताल्लुक रखते हैं। यह सर्वेक्षण इलाहाबाद, भदोही, बलिया, गाजीपुर
गोरखपुर, जौनपुर, प्रतापगढ़, वाराणसी, अमरोहा, बरेली, मेरठ, मुजफ्फरनगर,
मुरादाबाद, सहारनपुर, पीलीभीत, झांसी, मथुरा, लखनऊ, बाराबंकी व सीतापुर में
हुआ।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:-
- 91 फीसद अभिभावक प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर पर बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाने के हामी।
- 84 फीसद अभिभावकों का मानना है कि अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देकर बच्चों का भविष्य अच्छा बनाया जा सकता है।
- 81 फीसद अभिभावकों के अनुसार सरकरी नौकरी और बड़ा पद पाने के लिए अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है।
- 85 प्रतिशत अभिभावकों के मुताबिक सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की व्यवस्था ठीक नहीं है।
अध्ययन की वजह : एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन
रिपोर्ट (असर) 2014 में बताया गया था कि प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में
2006 में उत्तर प्रदेश के निजी स्कूलों में 30.3 फीसद बच्चे नामांकित थे
जबकि 2014 में यह आकड़ा 50 प्रतिशत के पार पहुंच गया। वहीं 2006 में
राष्ट्रीय स्तर पर निजी स्कूलों में 18.7 फीसद बच्चे नामांकित थे जिनकी
संख्या 2014 में बढ़कर 30.8 प्रतिशत हो गई थी। इन आंकड़ों से साफ है कि
राष्ट्रीय औसत की तुलना में उप्र में अभिभावक बच्चों की पढ़ाई के लिए निजी
स्कूलों की ओर ज्यादा भाग रहे हैं। अध्ययन का मकसद उन वजहों को जानना था कि
जिनके आधार पर अभिभावक सरकारी स्कूलों की बजाय निजी विद्यालय का रुख कर
रहे हैं। साथ ही, पता लगाना था कि निजी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के
बारे में अभिभावक क्या सोचते हैं।
अंग्रेजी के फेर में निजी स्कूलों के फेरे, धारणा है कि अंग्रेजी के बिना सामाजिक पहचान बनाना मुश्किल : एससीईआरटी
Reviewed by Brijesh Shrivastava
on
5:24 AM
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