स्कूल बनने के खिलाफ याचिका खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने ठोका पांच हजार का हर्जाना, शिक्षा पाने को मूल अधिकार बताते हुए याचिका को बताया बाधक
इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 21-ए के अंतर्गत 6 से 14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा देने का दायित्व सरकार का है। यदि गांव सभा की जमीन पर प्राइमरी स्कूल बन रहा है तो यह जनहित में है। इसे रोकने की याचिका को जनहित याचिका नहीं माना जा सकता। प्राइमरी स्कूल निर्माण को रोकने की मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिका कोर्ट ने पांच हजार रुपये हर्जाने के साथ खारिज कर दी है।
शिक्षा पाना बच्चों का मूल अधिकार है। इसमें व्यवधान डालने वाली याचिका जनहित में नहीं मानी जा सकती। - हाईकोर्ट
यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी ने संत कबीर नगर के हड़हा गांव के अबू बकर की जनहित याचिका पर दिया है। कोर्ट ने 25 हजार हर्जाना लगाया था, किंतु अनुनय करने पर यह राशि पांच हजार कर दी। जिसे एक माह में हाईकोर्ट की विधिक सेवा समिति में जमा करना होगा। याची का कहना था कि गांव के बगल के गांव में 700 मीटर दूरी पर प्राइमरी स्कूल है और जिस बंजर जमीन पर स्कूल प्रस्तावित है, आबादी से सटा है तथा एरिया एक हजार वर्गमीटर से कम है। ऐसे में इस बंजर जमीन पर स्कूल नहीं बन सकता।
कोर्ट ने इन तर्को को नहीं माना। बेसिक शिक्षा अधिकारी व जूनियर इंजीनियर की रिपोर्ट को आधार मानकर स्कूल निर्माण पर रोक नहीं लगाई जा सकती। एरिया 0.089 हेक्टेयर ही है। एसडीएम खलीलाबाद ने 27 सितंबर, 2011 को गांव में प्राइमरी स्कूल बनाने का प्रस्ताव स्वीकार किया है, याची जिस पर आपत्ति कर रहे थे। कोर्ट ने कहा गांव में स्कूल बनाना अनिवार्य शिक्षा कानून के उपबंधों को लागू करना है और जनहित है। सरकार व निकाय का दायित्व है कि वह बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल बनवाए।
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