उन्हें चाहिए बुढ़ापे की लाठी का सहारा पुरानी पेंशन के लिए अटेवा ने छेड़ा तो संघर्ष लेकिन पुरानी पेंशन नहीं बन सकी चुनावी मुद्दा एक दशक बाद भी किसी भी पेंशन योजना का लाभ नहीं पा सके बेसिक शिक्षक
- उन्हें चाहिए ‘बुढ़ापे की लाठी’ का सहारा
एक जनवरी 2004 को केन्द्र सरकार ने अपने अधीन विभागों के लिए पुरानी पेंशन क्या समाप्त की, राज्यों में भी पुरानी पेंशन खत्म करने की होड़ लग गई। उत्तर प्रदेश में भी सरकार ने एक अप्रैल 2005 के बाद नियुक्त कर्मचारियों एवं अधिकारियों के लिए पुरानी पेंशन का खात्मा कर नवीन पेंशन का आगाज कर दिया। नवीन पेंशन का आच्छादन कर्मचारियों को रास नहीं आया। अब तक बेसिक शिक्षा परिषद समेत कुछ अन्य विभागों में नवीन पेंशन कटौती नहीं शुरू हो सकी है। नवीन पेंशन लागू करने की सरकारी जद्दोजहद के बीच कर्मचारी संगठनों ने पुरानी पेंशन बहाली की मांग पुरजोर तरीके से उठाई। अटेवा संगठन ने मोर्चा संभाला और धरना प्रदर्शनों के जरिए सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाई। संगठन एवं कर्मियों को उम्मीद थी कि पुरानी पेंशन के महत्व को देखते हुए राजनीतिक दल इस मुद्दे को अपने संकल्प एवं घोषणा पत्रों में शरीक करेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लिहाजा कर्मचारियों का यह महत्वपूर्ण मुद्दा चुनावी मुद्दा नहीं बन सका। पेश है एक रिपोर्ट....
- सालों बीतने के बाद भी एक पाई नहीं
कई विभाग ऐसे हैं जिनके कर्मचारियों ने एक अप्रैल 2005 के बाद नौकरी ज्वाइन की लेकिन अब तक उनके पास बुढ़ापे के लिए विभागीय तौर पर एक पाई नहीं जमा हो सकी। पुरानी पेंशन के खात्मे के बाद सरकार ने नवीन पेंशन योजना के अन्तर्गत आच्छादन का प्रस्ताव किया था। कुछ सालों बाद कई विभागों में एनपीएस तो लागू हो गई लेकिन बेसिक शिक्षा परिषद एवं कुछ अन्य विभागों के लाखों कर्मचारी नवीन पेंशन के नाम पर एक पाई नहीं जमा कर सके। प्रशासनिक अफसरों समेत अन्य विभागों के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को तो यह लाभ मिलने लगा पर परिषदीय शिक्षकों को अब तक यह लाभ नहीं मिल सका। मजेदार तथ्य यह है कि सैकड़ों शिक्षकों को अब तक एनपीएस के लिए आवश्य़क परमानेंट रिटायरमेंट एकाउन्ट नंबर यानी प्रान ही अलॉट नहीं किया जा सका है। इस दशा में शिक्षकों की स्थिति अधर में है। एनपीएस को लेकर शासन स्तर पर कई आदेश जारी किए गए लेकिन इन्हें अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। कभी साफ्टवेयर को लेकर दिक्कत सामने आई तो कभी अन्य तकनीकी कारणों से एनपीएस परवान नहीं चढ़ सका।
- पुरानी पेंशन बनाम नवीन पेंशन योजना
पुरानी पेंशन पाने वालों के लिए जीपीएफ सुविधा है लेकिन नवीन पेंशन योजना में यह सुविधानहीं है। पुरानी पेंशन में वेतन से कटौती जीपीएफ के लिए होती है न कि पेंशन के लिए। इसलिए पुरानी पेंशन के लिए वेतन से कटौती नहीं होती लेकिन नवीन पेंशन के लिए मूलवेतन से दस फीसदी कटौती होगी। इसके अलावा दस फीसदी अंशदान दिया जाएगा। पुरानी पेंशन योजना में रिटायरमेंट के समय एक निश्चित पेंशन(अंतिम वेतन का 50 फीसदी) की गारंटी है लेकिन एनपीएस में यह निश्चित नहीं है। पुरानी पेंशन में सेवाकाल में मृत्यु पर पारिवारिक पेंशन मिलती है। इसके अलावा मंहगाई व वेतन आयोगों का लाभ भी पुरानी पेंशन में मिलता है।
- पुरानी पेंशन के लिए अटेवा ने छेड़ा संघर्ष
समय बीतने के साथ पुरानी पेंशन से वंचित कर्मचारियों की संख्या में इजाफा होता गया। संख्याबल अधिक होने के बाद कर्मियों ने पुरानी पेंशन के लिए संघर्ष छेड़ने का आह्वान किया। पुरानी पेंशन की बहाली के लिए कई विभागों के संयुक्त संगठन आल टीचर इम्प्लाइज वेलफेयर एसोशिएसन (अटेवा) ने जन्म लिया और पुरानी पेंशन के लिए आन्दोलन का नेतृत्व किया। प्रदेश, जिला और ब्लॉक स्तर पर संगठन की कार्यकारिणी के गठन के बाद अटेवा ने पुरानी पेंशन के लिए व्यापक रणनीति बनाई। 7 दिसंबर को पुरानी पेंशन के लिए विधानसभा का घेराव करने जा रही भीड़ पर लाठीचार्ज के दौरान शिक्षक रामाशीष की मौत भी हो गई। इस पर संगठन ने संघर्ष को और अधिक धारदार बनाने का दावा किया था। पुरानी पेंशन के लिए संगठन का आन्दोलन अब तक जारी है।
- पुरानी पेंशन नहीं बन सकी चुनावी मुद्दा
एक अप्रैल 2005 के बाद नियुक्त लाखों शिक्षकों एवं कर्मचारियों द्वारा पुरानी पेंशन की मांग करने से उम्मीद जगी थी कि वर्तमान विधानसभा चुनाव के दौरान पुरानी पेंशन एक ज्वलंत मुद्दा बनकर उभरेगी लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं दिख रहा है। कहा जा रहा था कि राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्रों व संकल्प पत्रों में राजनीतिक लाभ की आस के चलते इस मुद्दे को सम्मिलित किया जा सकता है लेकिन यह उम्मीद भी धराशायी हो गई। चुनाव प्रचार के दौरान भी नेताओं ने पुरानी पेंशन को लेकर कोई आश्वासन नहीं दिया।
उन्हें चाहिए बुढ़ापे की लाठी का सहारा पुरानी पेंशन के लिए अटेवा ने छेड़ा तो संघर्ष लेकिन पुरानी पेंशन नहीं बन सकी चुनावी मुद्दा एक दशक बाद भी किसी भी पेंशन योजना का लाभ नहीं पा सके बेसिक शिक्षक
Reviewed by प्राइमरी का मास्टर 1
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8:45 AM
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