सरकारी स्कूलों में भी उत्साहित दिखे बच्चे : संसाधनों का अभाव भी खला परिषदीय विद्यालयों मे
लखनऊ। शिक्षा भवन स्थित प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिकविालय जवाहर नगर में टीवी या प्रोजेक्टर तो नहीं लगा था। लेकिन रेडियो के जरिए बच्चों में प्रधानमंत्री के संदेश सुनने की होड़ मची थी। कोई रेडियो के पास चिपक कर खड़ा हो गए तो कोई बैठकर उनकी बातें गौर से सुनने लगा। शिक्षिकाओं ने भी बच्चों को प्रधानमंत्री द्वारा बताई गईं बातें बोर्ड पर लिखकर बताईं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण सुनाने के लिए गोसाईंगंज के स्कूलों में भी विशेष इंतजाम किए गए। कहीं टीवी पर बच्चों ने मोदी को सजीव देखा व सुना तो कहीं रेडियो पर ही उनकी आवाज सुनी। बीईओ शिवप्रकाश ने बताया कि स्कूलों में प्रधानमंत्री का भाषण बच्चों को सुनाने के लिए पूरी व्यवस्था की गई थी।
शिवलर स्थित कस्तूरबा गांधी बालिका विालय में बच्चों ने टीवी पर मोदी को देखा तो सिकंदरपुर अमोलिया में इसके लिए लैपटॉप का सहारा लिया गया। महमूदपुर जूनियर हाईस्कूल की शिक्षिका नीता यादव ने रेडियो पर ही बच्चों को मोदी का भाषण सुनाया। बीकेटी में अधिकांश विालयों में रेडियों पर पीएम का भाषण सुना गया। प्राथमिक विालय सरैया में टीवी लगाया गया था। जबकि पैकरामऊ में लैपटॉप के माध्यम से इसे दिखाया गया।लखनऊ। दोपहर 3 बजे का समय.. स्थान राजकीय जुबली इंटर कॉलेज.. बच्चों में आगे बैठने को लेकर लगी होड़.. हर कोई प्रधानमंत्री के एक-एक शब्द को गौर से सुनने को बेताब.. जैसे ही 3.28 मिनट पर पीएम नरेंद्र मोदी ने लाइव टेलीकॉस्ट के जरिए बोला, बच्चों.. नमस्कार। सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। शुक्रवार को राजकीय जुबली इंटर कॉलेज सहित कई बड़े कॉलेजों से लेकर सरकारी स्कूलों में बच्चों से लेकर शिक्षक भी प्रधानमंत्री काभाषण सुनने को लेकर उत्साहित नजर आए।
खबर साभार : डीएनए
स्पेशल क्लास लेकर छा गए ‘मोदी सर’ बोले - अगर इरादों में दम हो तो आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता नई दिल्ली (एसएनबी)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को शिक्षक दिवस के अवसर पर देशभर के छात्रों से रूबरू हुए। वे यहां सेना के भव्य मानेकशॉ ऑडिटोरियम में विभिन्न स्कूलों के 350 छात्रों से जहां सीधे मुखातिब थे, वहीं देश भर के 18 लाख स्कूलों में ऐसी व्यवस्था की गई थी कि वहां के छात्र मोदी ‘सर’ की क्लास को लाइव सुन सकें। तकरीबन दो घंटे तक चली इस क्लास में मोदी ने छात्रों से प्रेरणादायक बातें की, उन्हें नसीहत दी और फिर उनके सवालों का जवाब बहुत ही संजीदगी से दिया।
इससे पहले, मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत करते हुए कहा कि मेरे लिए सौभाग्य की घड़ी है कि मुझे उन बालकों के साथ बातचीत करने का अवसर मिला है, भारत के भावी सपने जिनकी आंखों में सवार हैं।
मोदी ने छात्रों से सीधा संवाद स्थापित करते हुए कहा कि एक विद्यार्थी के नाते आपके भी बहुत सारे सपने होंगे। मैं नहीं मानता हूं, जिंदगी में परिस्थितियां किसी को भी रोक पाती हैं..अगर आगे बढ़ने वालों के इरादों में दम हो। ..और मैं मानता हूं, इस देश के नौजवानों में, बालकों में वो सामथ्र्य है..। उस सामथ्र्य को लेकर वो आगे बढ़ सकते हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि शायद, बहुत सारे स्कूल होंगे, जहां पांच सितम्बर को इस रूप में याद भी नहीं किया जाता होगा। शिक्षकों को अवार्ड मिलना, उनका समारोह होना, वहां तक ही ये सीमित हो गया है। आवश्यकता है कि हम इस बात को उजागर करें कि जीवन में शिक्षक का महात्म्य क्या है और जब तक हम उस महात्म्य को स्वीकार नहीं करेंगे, उस शिक्षक के प्रति गौरव पैदा नहीं होगा। न ही शिक्षण के माध्यम से नई पीढ़ी में परिवर्तन को लेकर ज्यादा सफलता प्राप्त होगी। इसलिए इस एक महान परंपरा में समयानुकूल परिवर्तन कर उसे अधिक प्राणवान कैसे बनाया जाए, इस पर एक चिंतन बहस होने की आवश्यकता है। क्या कारण है कि बहुत ही सामथ्र्यवान विद्यार्थी, टीचर बनना पसंद क्यों नहीं करते ? इस सवाल का जवाब हम सबको खोजना होगा।
मोदी ने कहा कि डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने इस देश की एक उत्तम सेवा की। वह अपना जन्मदिन नहीं मनाते थे। वह शिक्षक का जन्मदिन मनाने का आग्रह करते थे। ये शिक्षक दिवस की कल्पना ऐसे पैदा हुई है। खैर अब तो दुनिया के कई देशों में इस परंपरा को जन्म मिला है। दुनिया में किसी भी बड़े व्यक्ति से पूछिए, उनके जीवन में सफलता के बारे में वह दो बातें अवश्य बताएगा। एक कहेगा, मेरी मां कहा योगदान है। दूसरा, मेरे शिक्षक का योगदान है। उन्होंने कहा कि एक जमाना था शिक्षक के प्रति ऐसा भाव था, यानि छोटा सा गांव हो तो पूरे गांव में सबसे आदरणीय कोई व्यक्ति हुआ करता था, तो शिक्षक हुआ करता था। धीरे-धीरे स्थिति काफी बदल गई है। हम उस स्थिति को पुन: प्रतिस्थापित कर सकते हैं।
पीएम ने कहा कि एक बालक के नाते आपके मन में काफी सवाल होंगे। आप में से कई बालक होंगे जिनको छुट्टी के दिन परेशानी होती होगी कि सोमवार कैसे आए और संडे को क्या-क्या किया जाकर के टीचर को बता दूं। जो अपनी मां को नहीं बता सकता, अपने भाई-बहन को नहीं बता सकता वो बात अपने टीचर को बताने के लिए इतना लालायित रहता हैं, इतना अपनापन हो जाता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि मैंने 15 अगस्त को एक बात कही थी हमारे देश में इस वर्ष मेरी इच्छा हैं कि जितने स्कूल हैं, उनमें कोई स्कूल ऐसा न हो जिसमें बालिकाओं के लिए अलग टॉयलेट न हो। अब यूं तो लगेगा कि ये ऐसा कोई काम है कि जो प्रधानमंत्री के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन जब मैं डिटेल में गया तो मुझे लगा कि बड़ा महत्वपूर्ण काम है, करने जैसा काम हैं, लेकिन मुझे उसमें, जो देश भर के टीचर मुझे सुन रहे हैं, मुझे हर स्कूल से मदद चाहिए, एक माहौल बनना चाहिए।
मोदी ने कहा कि अभी मैं दो दिन पहले जापान गया था, मुझे एक भारतीय परिवार मुझे मिला लेकिन उनकी पत्नी जापानी है, पतिदेव इंडियन है वो मेरे पास आकर बोले कि आपका 15 अगस्त का भाषण सुना था, आप सफाई पर बड़ा आग्रह कर रहे हैं। हमारे यहां जापान में नियम है कि हम सभी टीचर और स्टूडेंट मिलकर स्कूल में सफाई करते हैं। ये काम हमारा हमारे स्कूल में हमारे चरित्र निर्माण का एक हिस्सा है। आप हिंदुस्तान में ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं। मैंने कहा, मुझे जाकर मीडिया वालों से पूछना पड़ेगा, वरना ये 24 घंटे चल पड़ता है। मैंने क्योंकि एक दिन देखा था कि जब मैं गुजरात में था तो कार्यक्रम आ रहा था। कार्यक्रम ये था कि बच्चे स्कूल में सफाई करते हैं और क्या तूफान खड़ा कर दिया था, ये कैसा स्कूल है, ये कैसा मैनेजमेंट है, कैसे टीचर हैं, बच्चों पर दमन करते हैं। खैर, मैंने उनसे तो मजाक कर लिया, लेकिन हम इसको एक राष्ट्रीय चरित्र कैसे बनाएं और ये बन सकता। इसे बनाया जा सकता है। दूसरा, मैं देश के गणमान्य लोगों से भी आग्रह करना चाहता हूं। कि क्या वे कोई स्कूल पसंद करके सप्ताह में एक पीरियड उन बच्चों को पढ़ाने का काम कर सकते हैं? विषय तय करें स्कूल के साथ बैठ करके।
प्रधानमंत्री ने शिक्षा के पेशे के महत्व को बढ़ाने पर जोर दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि सभी पढ़े लिखे लोग जिनमें इंजीनियर, वकील, आईएएस अधिकारी, आईपीएस अधिकारी और डाक्टर शामिल हैं, कक्षाएं लें ताकि शिक्षण को राष्ट्र निर्माण के लिए जरूरी एक जन आंदोलन बनाया जा सके। मोदी ने कहा, ‘आप मुझे बताइए कि यदि हिंदुस्तान में पढ़े लिखे लोग सप्ताह में एक पीरियड लें, स्कूलों में जाकर बच्चों के साथ समय बिताएं, उनको कुछ सिखाएं तो अच्छे टीचर न होने की शिकायत को ठीक किया जा सकता है। हम राष्ट्र निर्माण को एक जन आंदोलन में परिवर्तित करें.हर किसी की शक्ति को जोड़े, हम ऐसा देश नहीं हैं जिसको इतने पीछे रहने की जरूरत है, हम बहुत आगे जा सकते हैं।’
प्रधानमंत्री ने छात्रों से सवाल किया कि आप लोगों में से कितने हैं जिनको दिन में चार-बार शरीर से भरपूर पसीना निकलता है ? देखिए जीवन में खेलकूद नहीं है तो जीवन खिलता नहीं है। ये उमर ऐसी है, इतना दौड़ना चाहिए, इतनी मस्ती करनी चाहिए, इतना समय निकालना चाहिए, शरीर में कम से कम चार बार पसीना निकलना चाहिए। वरना आपकी जिंदगी क्या बन जाएगी। किताब, टीवी और कंप्यूटर के दायरे में जिंदगी नहीं दबनी चाहिए। इससे भी बहुत बड़ी दुनिया है और इसलिए ये मस्ती हमारे जीवन में होनी चाहिए। आप लोगों में से कितने हैं, जिनको पाठ्यक्रम के सिवाय किताबें पढ़ने का शौक है? मोदी ने कहा कि मेरा विद्यार्थियों से आग्रह है कि जीवन चरित्र पढ़ें। जीवन चरित्र पढ़ने से हम इतिहास के बहुत निकट जाते हैं। क्योंकि उस व्यक्ति के बारे में जो भी लिखा जाता है, उसके नजदीक के इतिहास को हम भलीभांति जानते हैं। कोई जरूरी नहीं है कि एक ही प्रकार के जीवन को पढ़ें। मोदी ने कहा कि मुझे बताया गया है कि कुछ विद्यार्थियों के मन में कुछ सवाल भी हैं। तो मुझे अच्छा लगेगा, उनसे गप्पें-गोष्ठी करना। बहुत हल्का-फुल्का माहौल बना दीजिए, जरा गंभीर रहने की जरूरत नहीं है। आपके शिक्षकों ने कहा होगा, हाय ऐसा मत करो, यूं मत करो, ऐसे सबने कहा होगा ‘ना’। आपको शिक्षक ने जो कहा है, यहां से जाने के बाद उसका पालन कीजिए। अभी हंसते-खेलते आराम से बैठिए फिर हम बातें करेंगे।
इससे पहले, मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत करते हुए कहा कि मेरे लिए सौभाग्य की घड़ी है कि मुझे उन बालकों के साथ बातचीत करने का अवसर मिला है, भारत के भावी सपने जिनकी आंखों में सवार हैं।
मोदी ने छात्रों से सीधा संवाद स्थापित करते हुए कहा कि एक विद्यार्थी के नाते आपके भी बहुत सारे सपने होंगे। मैं नहीं मानता हूं, जिंदगी में परिस्थितियां किसी को भी रोक पाती हैं..अगर आगे बढ़ने वालों के इरादों में दम हो। ..और मैं मानता हूं, इस देश के नौजवानों में, बालकों में वो सामथ्र्य है..। उस सामथ्र्य को लेकर वो आगे बढ़ सकते हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि शायद, बहुत सारे स्कूल होंगे, जहां पांच सितम्बर को इस रूप में याद भी नहीं किया जाता होगा। शिक्षकों को अवार्ड मिलना, उनका समारोह होना, वहां तक ही ये सीमित हो गया है। आवश्यकता है कि हम इस बात को उजागर करें कि जीवन में शिक्षक का महात्म्य क्या है और जब तक हम उस महात्म्य को स्वीकार नहीं करेंगे, उस शिक्षक के प्रति गौरव पैदा नहीं होगा। न ही शिक्षण के माध्यम से नई पीढ़ी में परिवर्तन को लेकर ज्यादा सफलता प्राप्त होगी। इसलिए इस एक महान परंपरा में समयानुकूल परिवर्तन कर उसे अधिक प्राणवान कैसे बनाया जाए, इस पर एक चिंतन बहस होने की आवश्यकता है। क्या कारण है कि बहुत ही सामथ्र्यवान विद्यार्थी, टीचर बनना पसंद क्यों नहीं करते ? इस सवाल का जवाब हम सबको खोजना होगा।
मोदी ने कहा कि डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने इस देश की एक उत्तम सेवा की। वह अपना जन्मदिन नहीं मनाते थे। वह शिक्षक का जन्मदिन मनाने का आग्रह करते थे। ये शिक्षक दिवस की कल्पना ऐसे पैदा हुई है। खैर अब तो दुनिया के कई देशों में इस परंपरा को जन्म मिला है। दुनिया में किसी भी बड़े व्यक्ति से पूछिए, उनके जीवन में सफलता के बारे में वह दो बातें अवश्य बताएगा। एक कहेगा, मेरी मां कहा योगदान है। दूसरा, मेरे शिक्षक का योगदान है। उन्होंने कहा कि एक जमाना था शिक्षक के प्रति ऐसा भाव था, यानि छोटा सा गांव हो तो पूरे गांव में सबसे आदरणीय कोई व्यक्ति हुआ करता था, तो शिक्षक हुआ करता था। धीरे-धीरे स्थिति काफी बदल गई है। हम उस स्थिति को पुन: प्रतिस्थापित कर सकते हैं।
पीएम ने कहा कि एक बालक के नाते आपके मन में काफी सवाल होंगे। आप में से कई बालक होंगे जिनको छुट्टी के दिन परेशानी होती होगी कि सोमवार कैसे आए और संडे को क्या-क्या किया जाकर के टीचर को बता दूं। जो अपनी मां को नहीं बता सकता, अपने भाई-बहन को नहीं बता सकता वो बात अपने टीचर को बताने के लिए इतना लालायित रहता हैं, इतना अपनापन हो जाता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि मैंने 15 अगस्त को एक बात कही थी हमारे देश में इस वर्ष मेरी इच्छा हैं कि जितने स्कूल हैं, उनमें कोई स्कूल ऐसा न हो जिसमें बालिकाओं के लिए अलग टॉयलेट न हो। अब यूं तो लगेगा कि ये ऐसा कोई काम है कि जो प्रधानमंत्री के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन जब मैं डिटेल में गया तो मुझे लगा कि बड़ा महत्वपूर्ण काम है, करने जैसा काम हैं, लेकिन मुझे उसमें, जो देश भर के टीचर मुझे सुन रहे हैं, मुझे हर स्कूल से मदद चाहिए, एक माहौल बनना चाहिए।
मोदी ने कहा कि अभी मैं दो दिन पहले जापान गया था, मुझे एक भारतीय परिवार मुझे मिला लेकिन उनकी पत्नी जापानी है, पतिदेव इंडियन है वो मेरे पास आकर बोले कि आपका 15 अगस्त का भाषण सुना था, आप सफाई पर बड़ा आग्रह कर रहे हैं। हमारे यहां जापान में नियम है कि हम सभी टीचर और स्टूडेंट मिलकर स्कूल में सफाई करते हैं। ये काम हमारा हमारे स्कूल में हमारे चरित्र निर्माण का एक हिस्सा है। आप हिंदुस्तान में ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं। मैंने कहा, मुझे जाकर मीडिया वालों से पूछना पड़ेगा, वरना ये 24 घंटे चल पड़ता है। मैंने क्योंकि एक दिन देखा था कि जब मैं गुजरात में था तो कार्यक्रम आ रहा था। कार्यक्रम ये था कि बच्चे स्कूल में सफाई करते हैं और क्या तूफान खड़ा कर दिया था, ये कैसा स्कूल है, ये कैसा मैनेजमेंट है, कैसे टीचर हैं, बच्चों पर दमन करते हैं। खैर, मैंने उनसे तो मजाक कर लिया, लेकिन हम इसको एक राष्ट्रीय चरित्र कैसे बनाएं और ये बन सकता। इसे बनाया जा सकता है। दूसरा, मैं देश के गणमान्य लोगों से भी आग्रह करना चाहता हूं। कि क्या वे कोई स्कूल पसंद करके सप्ताह में एक पीरियड उन बच्चों को पढ़ाने का काम कर सकते हैं? विषय तय करें स्कूल के साथ बैठ करके।
प्रधानमंत्री ने शिक्षा के पेशे के महत्व को बढ़ाने पर जोर दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि सभी पढ़े लिखे लोग जिनमें इंजीनियर, वकील, आईएएस अधिकारी, आईपीएस अधिकारी और डाक्टर शामिल हैं, कक्षाएं लें ताकि शिक्षण को राष्ट्र निर्माण के लिए जरूरी एक जन आंदोलन बनाया जा सके। मोदी ने कहा, ‘आप मुझे बताइए कि यदि हिंदुस्तान में पढ़े लिखे लोग सप्ताह में एक पीरियड लें, स्कूलों में जाकर बच्चों के साथ समय बिताएं, उनको कुछ सिखाएं तो अच्छे टीचर न होने की शिकायत को ठीक किया जा सकता है। हम राष्ट्र निर्माण को एक जन आंदोलन में परिवर्तित करें.हर किसी की शक्ति को जोड़े, हम ऐसा देश नहीं हैं जिसको इतने पीछे रहने की जरूरत है, हम बहुत आगे जा सकते हैं।’
प्रधानमंत्री ने छात्रों से सवाल किया कि आप लोगों में से कितने हैं जिनको दिन में चार-बार शरीर से भरपूर पसीना निकलता है ? देखिए जीवन में खेलकूद नहीं है तो जीवन खिलता नहीं है। ये उमर ऐसी है, इतना दौड़ना चाहिए, इतनी मस्ती करनी चाहिए, इतना समय निकालना चाहिए, शरीर में कम से कम चार बार पसीना निकलना चाहिए। वरना आपकी जिंदगी क्या बन जाएगी। किताब, टीवी और कंप्यूटर के दायरे में जिंदगी नहीं दबनी चाहिए। इससे भी बहुत बड़ी दुनिया है और इसलिए ये मस्ती हमारे जीवन में होनी चाहिए। आप लोगों में से कितने हैं, जिनको पाठ्यक्रम के सिवाय किताबें पढ़ने का शौक है? मोदी ने कहा कि मेरा विद्यार्थियों से आग्रह है कि जीवन चरित्र पढ़ें। जीवन चरित्र पढ़ने से हम इतिहास के बहुत निकट जाते हैं। क्योंकि उस व्यक्ति के बारे में जो भी लिखा जाता है, उसके नजदीक के इतिहास को हम भलीभांति जानते हैं। कोई जरूरी नहीं है कि एक ही प्रकार के जीवन को पढ़ें। मोदी ने कहा कि मुझे बताया गया है कि कुछ विद्यार्थियों के मन में कुछ सवाल भी हैं। तो मुझे अच्छा लगेगा, उनसे गप्पें-गोष्ठी करना। बहुत हल्का-फुल्का माहौल बना दीजिए, जरा गंभीर रहने की जरूरत नहीं है। आपके शिक्षकों ने कहा होगा, हाय ऐसा मत करो, यूं मत करो, ऐसे सबने कहा होगा ‘ना’। आपको शिक्षक ने जो कहा है, यहां से जाने के बाद उसका पालन कीजिए। अभी हंसते-खेलते आराम से बैठिए फिर हम बातें करेंगे।
मोदी सर के जीवन सूत्र:-
- जो साल का सोचते हैं वो अनाज बोते हैं, जो दस साल का सोचते हैं वो फलों के वृक्ष बोते हैं, जो पीढ़ियों का सोचते हैं वो इंसान के निर्माण के बारे में सोचते हैं।
- टीचर और बच्चे ही स्कूलों को साफ करें और अफसर यदि हफ्ते में एक दिन कुछ समय स्कूल को दें तो इससे राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण हो सकता है।
- दिन में चार बार बच्चों का पसीना निकलना चाहिए। खेलकूद और मस्ती भी करनी चाहिए।
- बच्चों को महान लोगों का जीवन चरित्र पढ़ना चाहिए।
- बच्चों को तकनीक से वंचित रखना एक सामाजिक अपराध है।
- भारत पूरी दुनिया को अच्छे शिक्षक बनाने का सपना दे सकता है और पूरी दुनिया को टीचर एक्सपोर्ट कर सकता है।
- बालिकाओं की शिक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए। एक लड़की की शिक्षा से दो परिवार शिक्षित होते हैं।
- कहा जाता है कि व्यक्ति का अनुभव ही उसकी सबसे बड़ी शिक्षा है, लेकिन अनुभव भी अच्छी शिक्षा पर ही निर्भर करता है।
- बिजली बचाना, अच्छा विद्यार्थी बनना, सफाई जैसी छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना भी एक तरह की देश सेवा है।
- बिजली उत्पादन महंगा लेकिन बिजली बचाना बहुत सस्ता है। बच्चे बिजली बचाते हुए चांदनी रात का मजा ले सकते हैं।
- हर काम ‘गूगल गुरु ’करता है। गूगल हमें जानकारी तो दे सकता है लेकिन ज्ञान नहीं।
- डिग्री के साथ हुनर होना जरूरी है। स्किल डेवलपमेंट का अवसर मिलना चाहिए।
खबर साभार : राष्ट्रीय सहारा
सरकारी स्कूलों में भी उत्साहित दिखे बच्चे : संसाधनों का अभाव भी खला परिषदीय विद्यालयों मे
Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी
on
7:57 PM
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