इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : शिक्षामित्रों का समायोजन अवैध, यूपी सरकार को बहुत बड़ा झटका, 1.72 लाख शिक्षामित्रों की उम्मीदें धराशायी, दूरस्थ शिक्षा से मिला प्रशिक्षण असंवैधानिक
- शिक्षामित्रों का समायोजन अवैध ~ कोर्ट ने कहा
- सरकार को झटका, 1.72 लाख शिक्षामित्रों की उम्मीदें धराशायी
- शिक्षामित्रों को दूरस्थ शिक्षा से मिला प्रशिक्षण असंवैधानिक
- प्रदेश सरकार नहीं तय कर सकती शिक्षा के मानक
- राज्य सरकार को चयन के नए स्रोत बनाने का हक नहीं
- नियमावली संशोधन और सरकारी आदेश अवैध
- बिना टीईटी पास किए नहीं बन सकते प्राथमिक अध्यापक
- सरकार सुनिश्चित करे बिना प्रशिक्षण न हो नियुक्ति
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश में एक लाख 72 हजार
शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाने के राज्य सरकार के फैसले को
असंवैधानिक करार दिया है। कोर्ट ने इसके लिए सेवा नियमावली में किए गए
संशोधनों व सभी सरकारी आदेशों को भी रद कर दिया है। शिक्षामित्रों को
दूरस्थ शिक्षा के तहत दिया गया प्रशिक्षण अवैध माना गया है। बिना
टीईटी पास किए कोई भी प्राथमिक विद्यालय का अध्यापक नियुक्त नहीं किया जा
सकता। न्यूनतम योग्यता तय करने या इसमें ढील देने का अधिकार केवल केंद्र
सरकार को ही है। राज्य सरकार ने सर्वशिक्षा अभियान योजना के तहत संविदा पर
नियुक्त शिक्षा मित्रों का समायोजन करने में अपनी विधाई शक्ति सीमा का
उल्लंघन किया है। वह केंद्र सरकार द्वारा तय मानक एवं न्यूनतम योग्यता को
लागू करने में विफल रही है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डॉ. डीवाई चंद्रचूड़,
न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता तथा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की तीन सदस्यीय
पूर्ण पीठ ने शिवम राजन व कई अन्य की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए दिया
है।
अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 के उपबंधों के विपरीत राज्य सरकार ने बिना विधिक प्राधिकार के मनमाने तौर पर नियमों में संशोधन किए। यहां तक कि अध्यापक की परिभाषा ही बदल डाली। शिक्षा मित्र अध्यापक नियुक्ति की न्यूनतम योग्यता नहीं रखते। उनकी नियुक्ति व समायोजन में आरक्षण नियमों का पालन भी नहीं किया गया। केंद्र सरकार व एनसीटीई द्वारा निर्धारित मानकों के विपरीत राज्य सरकार ने सहायक अध्यापकों की नियुक्ति के अतिरिक्त स्रोत बनाए जिसका उसे वैधानिक अधिकार नहीं था।
उप्र बेसिक शिक्षा (अध्यापक सेवा) नियमावली 1981 में राज्य सरकार ने अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 के उपबंधों के विपरीत संशोधन किए तथा अध्यापक नियुक्ति के नए मानक तय किए, जो असंवैधानिक है। 1981 की सेवा नियमावली जूनियर बेसिक एवं सीनियर बेसिक स्कूलों के लिए मानक निर्धारित करती है। केंद्र सरकार ने संसद से कानून पारित कर छह वर्ष से 14 वर्ष तक के बच्चों को पढ़ाना अनिवार्य किया है तथा अध्यापक नियुक्ति की न्यूनतम योग्यता एवं मानक तय किए हैं ताकि शिक्षा में एकरूपता लाई जा सके। एनसीटीई ने अधिसूचना जारी कर कार्यरत ऐसे अध्यापकों को प्रशिक्षण प्राप्त करने या न्यूनतम योग्यता अर्जित करने के लिए पांच वर्ष की अवधि की छूट दी थी, लेकिन यह छूट एक बार के लिए ही दी गई थी।
अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 के उपबंधों के विपरीत राज्य सरकार ने बिना विधिक प्राधिकार के मनमाने तौर पर नियमों में संशोधन किए। यहां तक कि अध्यापक की परिभाषा ही बदल डाली। शिक्षा मित्र अध्यापक नियुक्ति की न्यूनतम योग्यता नहीं रखते। उनकी नियुक्ति व समायोजन में आरक्षण नियमों का पालन भी नहीं किया गया। केंद्र सरकार व एनसीटीई द्वारा निर्धारित मानकों के विपरीत राज्य सरकार ने सहायक अध्यापकों की नियुक्ति के अतिरिक्त स्रोत बनाए जिसका उसे वैधानिक अधिकार नहीं था।
उप्र बेसिक शिक्षा (अध्यापक सेवा) नियमावली 1981 में राज्य सरकार ने अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 के उपबंधों के विपरीत संशोधन किए तथा अध्यापक नियुक्ति के नए मानक तय किए, जो असंवैधानिक है। 1981 की सेवा नियमावली जूनियर बेसिक एवं सीनियर बेसिक स्कूलों के लिए मानक निर्धारित करती है। केंद्र सरकार ने संसद से कानून पारित कर छह वर्ष से 14 वर्ष तक के बच्चों को पढ़ाना अनिवार्य किया है तथा अध्यापक नियुक्ति की न्यूनतम योग्यता एवं मानक तय किए हैं ताकि शिक्षा में एकरूपता लाई जा सके। एनसीटीई ने अधिसूचना जारी कर कार्यरत ऐसे अध्यापकों को प्रशिक्षण प्राप्त करने या न्यूनतम योग्यता अर्जित करने के लिए पांच वर्ष की अवधि की छूट दी थी, लेकिन यह छूट एक बार के लिए ही दी गई थी।
राज्य सरकार
ने बिना विधिक प्राधिकार के मनमाने तौर पर नियमों में संशोधन किए। यहां तक
कि अध्यापक की परिभाषा ही बदल डाली। -इलाहाबाद हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ
- राज्य सरकार लड़ेगी लड़ाई
सचिव, बेसिक शिक्षा परिषद से हाई कोर्ट के फैसले की
प्रति उपलब्ध कराने को कहा है। फैसले की प्रति मिलने पर सरकार उस पर विचार
कर आगे की कार्यवाही करेगी। अदालत के फैसले से मुख्यमंत्री कार्यालय और
मुख्य सचिव को भी अवगत करा दिया गया है। सरकार शिक्षामित्रों की लड़ाई
लड़ेगी। -डिंपल वर्मा, प्रमुख सचिव, बेसिक शिक्षा
- सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हुई सुनवाई
उच्चतम न्यायालय ने स्टेट आफ उत्तर
प्रदेश बनाम शिव कुमार पाठक मामले में छह जुलाई, 2015 को शिक्षामित्रों के
समायोजन पर रोक लगाई थी। 27 जुलाई की इसी सिविल अपील में हाई कोर्ट को
निर्देश दिया गया कि मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में पूर्ण पीठ गठित कर
आठ हफ्ते में मामले का निस्तारण किया जाए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : शिक्षामित्रों का समायोजन अवैध, यूपी सरकार को बहुत बड़ा झटका, 1.72 लाख शिक्षामित्रों की उम्मीदें धराशायी, दूरस्थ शिक्षा से मिला प्रशिक्षण असंवैधानिक
Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी
on
6:48 AM
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