जो शिक्षा हम दे रहे वह केवल सरकारी नौकरी के ही लायक है, क्या सरकार सबको नौकरी देने की स्थिति में हैं?

कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा आगामी वर्षो में भारत की आर्थिक विकास दर सात-आठ प्रतिशत आंकने से कुछ लोग अति उत्साहित हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात से आने वाली कुछ खबरें इन्हीं लोगों के लिए हैं। ताजातरीन खबर उत्तर प्रदेश से है, जहां चपरासी पद की 368 रिक्तियों के लिए 23.25 लाख आवेदन पत्र प्राप्त हुए हैं, जिनमें 1़ 52 लाख ग्रेजुएट, 25 हजार पोस्ट ग्रेजुएट और 250 पीएचडी धारी हैं। चतुर्थ श्रेणी की इन 368 नौकरियों के लिए न्यूनतम योग्यता कक्षा पांच उत्तीर्ण होना है, साथ ही उन्हें साइकिल चलाना भी आना चाहिए। जाहिर है, हरेक 6,318 उम्मीदवारों में से किसी एक भाग्यशाली को यह नौकरी मिल पाएगी। प्रदेश सरकार परेशान है कि यदि सभी योग्य उम्मीदवारों का इंटरव्यू लिया जाए, तो इस काम में दो साल लग जाएंगे। 14 सितंबर, 2015 तक प्राप्त अर्जियों पर फैसला लेने के लिए अब उत्तर प्रदेश शासन ने एक सचिव स्तरीय उपसमिति बनाई है, जो सात-आठ महीनों में इंटरव्यू की प्रक्रिया पूरी करने की योजना बनाएगी।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। साल 2006 में चतुर्थ श्रेणी की 260 नौकरियों के लिए एक लाख उम्मीदवारों ने आवेदन किया था। जब कभी प्रदेश में पुलिस कॉन्स्टेबल, लेखपाल, क्लर्क, चपरासी जैसी नौकरियों के लिए भर्ती की जाती है, तो चयन स्थल पर अक्सर दंगे जैसे हालात पैदा हो जाते हैं। इसी से जुड़ी एक और घटना है। हाल में जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के स्कूलों में कार्यरत 1़ 5 लाख शिक्षा-मित्रों की नियुक्ति को रद्द कर दिया, तो पूरे प्रदेश में अशांति फैल गई। हर जिला मुख्यालय व शहरों में सांसदों, मंत्रियों, विधायकों व अधिकारियों का बौखलाए शिक्षा-मित्र घेराव कर रहे हैं। कई शिक्षा-मित्रों को दिल के दौरे पड़े हैं और कई आत्महत्या की मन:स्थिति में दिख रहे हैं। शिक्षा-मित्रों को भले ही अच्छी तनख्वाह नहीं मिलती हो, लेकिन यह नौकरी उन्हें एक पहचान देती है कि वे ठलुआ नहीं हैं।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भले ही मामले को सुलझाने और सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के आश्वासन दे रहे हों, किंतु शिक्षा-मित्रों की नियुक्ति में वैधानिक प्रक्रिया का पालन न करके लाखों युवाओं की जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले अधिकारियों की जवाबदेही तो तय होनी चाहिए। यूं तो सभी राज्यों में सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती बोर्ड हैं, लेकिन उन पर भ्रष्ट राजनीतिज्ञों, नौकरशाहों और दलालों के गठजोड़ ने कब्जा कर लिया है। मध्य प्रदेश का व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, जिसमें पिछले 10-15 वर्षो से सरकारी नौकरियों और मेडिकल दाखिले के लिए बड़े पैमाने पर घूसखोरी और बंदरबांट चल रही थी। इस पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का बयान भी चौंकाने वाला है। उनका कहना है कि व्यापम जैसी सरकारी नौकरियों की बंदरबांट सभी राज्यों में है। फर्क सिर्फ इतना है कि मध्य प्रदेश में उसका पर्दाफाश हो गया है और अन्य राज्यों में अभी परदा पड़ा हुआ है।

गुजरात में पिछले महीने ओबीसी आरक्षण पर हुआ पटेल युवाओं का आंदोलन ऊपरी तौर पर आरक्षण का मुद्दा लगता है, किंतु जमीनी हकीकत कुछ और है। यूं तो पटेल समुदाय को गुजरात में और दुनिया में सभी जगह एक उद्यमी, परिश्रमी और संपन्न जाति के रूप में देखा जाता है, मगर पटेल समुदाय के नौजवान भी आजकल बौखलाए हुए हैं। गांवों के पढ़े-लिखे पटेल नौजवान शहरों में बसना चाहते हैं, क्योंकि खेती-बाड़ी अब घाटे का सौदा है। पिछले दो-तीन दशकों में गुजरात का त्वरित औद्योगीकरण होने और सड़क-बिजली के आधारभूत ढांचे के मजबूत होने के फलस्वरूप गुजरात में गांव व शहर के मध्यवर्ग को अपनी आमदनी बढ़ाने के बहुत अवसर मिले। पिछले आम चुनाव में गुजरात मॉडल राष्ट्रीय स्तर पर बहस का मुद्दा बना। पटेल आंदोलन बताता है कि इसमें सब कुछ ठीक नहीं था। गुजरात जैसे समृद्ध राज्य में कई वर्षो तक सरकारी नौकरियों में भर्ती बंद रही, जो कुछ साल पहले ही खुल पाई है। अब भर्ती का जो मॉडल है, उसमें युवाओं को सरकारी नौकरी मिलने के पहले चार-पांच वर्षो तक तनख्वाह का एक हिस्सा ही मिलता है।भारत में शैक्षणिक बेरोजगारी की समस्या नई नहीं है, लेकिन पिछले दो दशकों में हुए उच्च शिक्षा के तीव्र विस्तार से यह समस्या अब काफी गंभीर हो गई है।

हमारे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से हर साल 50 लाख लोग डिग्रियां लेकर रोजगार के बाजार में प्रवेश करते हैं। भारत सरकार के श्रम मंत्रलय के अनुसार, 29 वर्ष से कम आयु के तीन स्नातक डिग्रीधारियों में से एक बेरोजगार है। अनपढ़ युवाओं से ज्यादा बेरोजगारी शिक्षित युवाओं में है।क्या सभी शिक्षित युवाओं को सरकारी नौकरी देना संभव है? क्या केंद्र और राज्य सरकारें वित्तीय दृष्टि से इतनी सक्षम हैं कि हर वर्ष 50 लाख से 75 लाख शिक्षित युवाओं को सरकारी नौकरियां दे सकें?

सरकारी नौकरियों के लिए शिक्षित युवाओं की बढ़ रही उत्कंठा का एक बड़ा कारण हमारे देश में आर्थिक विकास का मौजूदा मॉडल है। बाजार अर्थव्यवस्था पर भरोसा करने वाले इस मॉडल में पूंजी के निवेश के साथ-साथ रोजगार के अवसर आनुपातिक रूप में नहीं बढ़ रहे हैं। बड़ी और इजारेदार पूंजी जिस नई प्रौद्योगिकी को कारखानों में इस्तेमाल कर रही है, उसमें ऑटोमेशन तथा रोबोटिक्स पर ज्यादा जोर है। नतीजतन, संगठित क्षेत्र का कुल रोजगार में योगदान कम हो रहा है। हां, असंगठित श्रमिकों की तादाद बढ़ रही है, किंतु उनकी कार्य व जीवन की दशाएं चिंताजनक हैं।हमारी शिक्षा प्रणाली भी इसके लिए उत्तरदायी है, जिसमें किताबी ज्ञान पर ही जोर दिया जाता है और आज के युग में उद्योगों में जरूरी हुनर, कला-कौशल, योग्यताएं और प्रतिभाएं विकसित नहीं की जातीं।

हमारे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों का उद्योग-धंधों से कोई तादात्मय नहीं रहता है। हमारी उच्च शिक्षा सामाजिक हकीकतों से भी कटी हुई है। सभी शिक्षित युवाओं को सरकारी नौकरी देना भले ही संभव न हो, किंतु अगले पांच वर्षो में केंद्र व राज्य सरकारें मिलकर उच्च प्राथमिकता देते हुए कुछ ऐसा कर सकती हैं कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा गुजरात जैसी स्थितियां हर जगह पैदा न हों। सबसे पहले तो सरकारी नौकरियों में भर्ती को पूरी तरह पारदर्शी व भ्रष्टाचार मुक्त बनाना होगा। साथ ही, देश के पारंपरिक रोजगार परक उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए। जैसे, कपड़ा, हैंडलूम, हैंडी-क्राफ्ट, खाद्य-प्रसंस्करण, पर्यटन तथा एग्री-बिजनेस जैसे उद्योगों में रोजगार के अवसर बढ़ाना आसान है। हमारे मध्यम, लघु तथा अति लघु उद्योगों में रोजगार के अवसर पैदा करने की अद्भुत तथा अपार क्षमता है, किंतु ये उद्योग आज समस्याओं से जूझ रहे हैं। इन्हें सहयोग देकर अधिक रोजगार पैदा करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

शिक्षित बेरोजगारी की समस्या को हल करने का सबसे कारगर उपाय होगा देश में ‘उद्यमिता-क्रांति’ लाना। हर कॉलेज व यूनिवर्सिटी में ‘उद्यमिता-प्रकोष्ठ’ बनाकर युवाओं को उद्यमी बनने के लिए प्रशिक्षित करना होगा। ‘इन्क्यूबेशन-सेंटरों’ की स्थापना करनी होगी, जो उद्यमी बनने का सपना देखने वाले युवाओं को प्रारंभिक दो-तीन वर्षो तक हर तरह से सहयोग और समर्थन दें।

हरिवंश चतुर्वेदी
चेयरमैन, बिमटेक
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

जो शिक्षा हम दे रहे वह केवल सरकारी नौकरी के ही लायक है, क्या सरकार सबको नौकरी देने की स्थिति में हैं? Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी on 1:49 PM Rating: 5

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